तेरा जाना (कविता )-tera jana (poetry)
शाम होने लगी ज़िन्दगी की अब
रात का दर हमें अब सताने लगा
तन्हा हम भी थे , तन्हा तुम भी थी - मगर
सैलाब आंसुओ का, अब रोका जाने लगा
तुम कहती रही खुद से ही मगर - 2
गम अपना कभी हमें बताया नहीं
सांस धीमी पड़ी नब्ज थमने लगी
दर्द चेहरे पे तुमने दिखाया नहीं
वक़्त कम सा पड़ा हम थम से गए
कुछ हमारे समझ में भी आया नहीं
आ गई वो घडी जब तुम चल सी पड़ी
अकेले हम थे यहाँ, और थी आंसुओ की लड़ी
खुदा ने भी हम पे तरस खाया नहीं
हम समझ ना सके हो रहा है ये क्या -2
और तुमने कभी हमें समझाया नहीं
चली गई तुम कहा ,रह गए हम यहाँ
ये जमाना हमें रास आया नहीं
अब तो अकेले है हम ,और है तेरा गम
एक लम्हा नहीं जब तू याद आया नहीं
शाम होने लगी. .. ... ....... ......... .......
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