भारत की जनसँख्या (population of India)
स्टेशन पे खचाखच भरी रेल गाड़ी आते ही धक्का – मुक्की , गाली गलौच और झगड़े का दौर शुरु हो जाता है , दरवाजे तक लटके लोग और उसी डिब्बे मे चढ़ने के लिये लगी कतार , अंदर सांस लेने की जगह नही एक दूसरे के उपर चढ़े लोग . ये आम नजारा आपमे से अधिकांश लोगो ने देखा होगा महसूस इसलिये नही किया होगा की भई हमारे पास तो पैसा है .पहले से ही वातानुकूलित या शयनयान श्रेणी मे सीट आरक्षित करा रखी है . पर क्या चार दिन बाद या महीने बाद का आरक्षण भी आपको आसानी से मिल जाता है.
bheed |
अब सडको को ही ले लीजिये हर साल लगभग 5 लाख दुर्घटनाए होती है और लगभग 1.5 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है . मैं खुद घर से बाहर निकलने पर भगवान से अपनी सलामती की दुआ मांगकर निकलता हूँ , क्योंकि हम अपनी गलती तो छोड़ दीजिये दूसरो की गलती का ज्यादा शिकार होते है . कल जिस सिंगल रोड पे आराम से यात्रा हो जाती थी आज फोरलेन होने के बाद भी गाडियाँ जाम मे अपना समय और संसाधन दोनो बर्बाद कर रही है . देश की क्रियाशील जनसंख्या का अधिकांश समय जाम मे ही निकल जाता है .
हर साल बढ़ती बेरोजगारो की फ़ौज , कृषि योग्य भूमि मे होती कमी , कंक्रीट के छतो की बढ़ती मांग , प्राकृतिक संसाधनो का तेजी से दोहन , मांग और पूर्ति मे बढ़ता अंतर , अधिकांश क्षेत्रो मे जल का अकाल क्या ये जनसंख्या विस्फोट का संकेत है या शायद होना शुरु हो चुका है .
एक घर मे यदि सद्स्यो की संख्या बढ़ने लगती है तो उसमे नये कक्ष का निर्माण या दूसरे जगह नया घर ही बना लिया जाता है . पर हम इस नयर धरा का निर्माण कहा से करेंगे . बांग्लादेश जनसंख्या विस्फोट का प्रमुख उदाहरण है रोहिन्ग्या शरणार्थी इसी का परिणाम थे . बांग्लादेश मे सडको पे पैदल चलने वालो की इतनी भीड़ रहती है की उनके लिये रेड और ग्रीन सिग्नल बने है . अभी तो संचार क्रांति ने कई जगहो पर लगने वाली कतार को कम कर दिया नही तो ज़िंदगी का 1/3 हिस्सा लाइनो मे ही निकल जाता .दिल्ली जैसे महानगरो मे तो सांस लेना भी दुश्वार हो गया है.
यही हाल रहा तो पूरे देश मे दिल्ली जैसी भयावह स्थिति होगी.बढ़ती जनसँख्या से हम अपने देश में प्रति व्यक्ति भोजन की गुणवत्ता को नहीं दे पाते जिस कारण व्यक्ति के काम करने की क्षमता में कमी आती है। हमारे देश के संसाधन सीमित है तथा जनसँख्या बढ़ने पर उनपर दबाव पड़ना लाजिमी है ,उपलब्ध जनसँख्या भी रोजगार से लेकर संसाधनों को जुटाने तक तनाव ग्रस्त रहती है। एक तरफ जहा राजनीतिक पार्टियों द्वारा स्वयं की स्वार्थ सिद्धि और अपने - अपने वोट बैंक बढ़ाने हेतु इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है वही आने वाले चंद सालो में ही इसके भीषण परिणाम देखने को मिलेंगे।
फिलहाल मौजूदा महंगाई को देखते हुए एक बच्चे का भरण पोषण बेहतर तरीके से हो जाये वर्तमान समय में यही बेहतर है , सरकार करे चाहे न करे लेकिन आम आदमी अपनी समस्या को देखते हुए और होने वाले बच्चे के उज्जवल भविष्य हेतु वही कार्य करेगा जो उसके हित में है।
"क्योंकि छोटा परिवार सुखी परिवार "
इन्हे भी पढ़े - बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें