kaliyug



कलियुग 

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कलियुग शुरू हो गया है क्या  ?
लोगो की मति तो मारी ही जा रही है 
भीड़ भी बढ़ते ही जा रही है 
बेटा बाप को काट रहा है 
और बीवी के तलवे चाट रहा है 
रिश्तो की जगह कब धन ने ले ली पता ही ना चला  
हकीकत की जगह कब दिखावे ने ले ली पता ही ना चला 
राह चलते छोटी बात बड़ी बन जाती है 
अब तो यूरिया से भी रबड़ी बन जाती है 

दिमाग में भूसा और गुस्सा दोनों ही ज्यादा है 
आम आदमी मार - काट पे आमदा है 
कंक्रीट के जाल बिछते जा रहे है 
पेड़ और पहाड़ कटते जा रहे है 

विकास यही है क्या ?

आज का सभ्य समाज यही है क्या  ?
राजा खुद को भगवान कहने लगा है 
अब तो सुना है पहरेदारो के साथ , महलों में रहने लगा है 

खाली पेट बच्चे बड़े हो रहे है 
और वे करोडो खर्च करके चुनाव में खड़े हो रहे है 
बाप नौकरी की तलाश में भटक रहे है 
नए लड़के ढाढ़ी और बाल बढ़ा के मटक रहे है 
संत व्यापार और व्यभिचार में लिप्त है 
यह देख के जनता विक्षिप्त है 
स्त्री अपने अस्तित्व की लड़ाई में हार रही है 
और सफेदपोशो के कपडे फाड़ रही है 

रोज घट रही हजारो दुर्घटना है 
जान हुई सस्ती अब, गुलामो की तरह रोज खटना है 
सुना है इंसानो ने भी, आपस में नस्लों का बंटवारा कर लिया है 
खून तो एक ही है सबमे , शायद जमीर से किनारा कर लिया है 


अब क्या बचा है दाता के इस संसार में 

शायद वही प्रकट हो इस कलियुग में, अपने नए अवतार में 



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rajneetik sunyata


राजनीतिक शून्यता 



विगत कुछ दिनों से भारतीय राजनीति में एक शून्यता की स्थिति आ गई है।  भारतीय जनता पार्टी भी केवल इसी शून्य में समाहित होते दिख रही है। बिहार जैसे राज्य में जहाँ बीजेपी की सहयोगी पार्टी के मंत्री पर मुजफ्फरपुर काण्ड में संलिप्तता के आरोप लगने पर बीजेपी खामोश है वही दिन प्रतिदिन बढ़ने वाली दुष्कर्म की घटनाओ में ढिलाई बरतना अब बीजेपी की भी आदत बन चुकी है।


विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने जहाँ ऐसे मुद्दों को जोर शोर से उठाया था वहीँ सत्ता पक्ष में रहते हुए ख़ामोशी बनाये रखना उसके राजनीतिक सेहत के लिए घातक सिद्ध  हो सकता है।

दूसरी प्रमुख बात अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के मामले में जहाँ शीर्ष कोर्ट ने स्वीकार किया था की देश में इस क़ानून के दुरूपयोग के  मामले बढ़ते ही जा रहे है। वही बीजेपी ने इस अध्यादेश को उच्च सदन में पास करवाकर यह दिखा दिया की वह अभी जाती की राजनीति में सबसे आगे खड़ी है।  इस विधेयक को पास करवाने के साथ ही भाजपा ने शायद अगड़ी जातियों के प्रति यह मान लिया है की वह इस एक्ट से प्रताड़ित नहीं होते। बल्कि सुप्रीम कोर्ट के इस तथ्य को भी नकारा है की इसका दुरूपयोग नहीं होता।


2019  के चुनावों को देखते  हुए इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता की अगर फायदे और नुक़्सान को निकाला जाये तो एक और जहा भाजपा को फायदा हो सकता है तो दूसरी तरफ अगड़ी जातियों से उसे नुकसान भी सहना पड़ सकता है। 

मोदी की लोकप्रियता 2014 के अनुरूप तो नहीं है परन्तु  राहुल गाँधी के विपक्ष में होने के नाते छवि स्वतः ही बन जाती है।  राहुल गाँधी को लेकर अभी कांग्रेस की ग़लतफ़हमी दूर नहीं हुई है तो 2019 के चुनावों के बाद वो भी दूर हो जाएगी।  फिलहाल जनता ने जिस सरकार को 2014 में पूरी उम्मीद के साथ चुना था सरकार उस उम्मीद पर कितनी खरी उतरी है उप चुनावों में जनता ने उसे बता दिया और जनता के सामने उचित विकल्प  का ना होना उसका दुर्भाग्य ही है और राजनीतिक पार्टियों का सौभाग्य। 



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बात 

                                                                        
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बात करते करते बात बन जाए तो क्या बात है 
और अगर बात करनी इतनी ही जरूरी थी तो बात की क्यों नहीं 
फिर बात बताते हो की बात हुई 
पर बात बताई नहीं उसको 
बात बताओगे नहीं तो उसकी बात पता कैसे चलेगी 

बात रखे रहने में भी कोई बात नहीं है 

बात बताने से ही बात बढ़ेगी 
फिर कुछ बात उधर से होगी 
हो सके बात ना बन पाए 
हो सके बातों का सिलसिला शुरू हो जाये 
पर बात बताना अदब से 
यही बात की कलाकारी है 
बातों से  ही तो आजकल जंग लड़ी जाती है 
बातों में ही तो सम्मोहन है 

अगर बात बन गई तो क्या बात है 

कुछ बात तुम्हारी होगी कुछ बात उनकी होगी 
औरो की बातों पर ध्यान मत देना 
उनको केवल बातो में मजा लेना है 
पर तुमको बातो से ही जीवन चलाना है 
यही बात है मेरी 
कुछ और बात है तो आओ बातें करे 





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inklaab jaruri hai


इंकलाब जरुरी है

inklaab jaruri hai


मर रहा किसान है देखो
कैसी उसकी मजबूरी है

कहता है रोम - रोम मेरा अब तो

इंकलाब जरुरी है

तब देश उन्होंने लूटा
अब देश इन्होने लूटा
कैसी जनता की मजबूरी है
अब तो इंकलाब जरुरी है

वे गोरे  थे  ये क्या काले है
दोनों ही देश को लूटने वाले है

तब लाठी का जोर यहाँ था
अब लालच का शोर यहाँ है
तब भी दंगे यहाँ हुए थे
अब भी दंगे कहाँ रुके है

कहने को है देश के बेटा

पर भरे स्विस बैंक की तिजोरी है
अब तो  इंकलाब जरुरी है

ना गई अपनी गरीबी देखो
हुए अमीर इनके करीबी देखो
वे विदेशी थे ये देशी है
पर नीयत एक जैसी है

भगत और  चंद्रशेखर को खोकर जो आजादी पाई थी
लगता है  शायद उसकी ज्यादा कीमत चुकाई थी
चेहरे शायद बदले है , जालिमो की नई जमात आई है
है तरीका अलग पर आपस में  मौसेरे भाई है


कितना रोकेंगे खुद को हम
छलियो और लुटेरों से

है देशभक्ति का खून भरा

रुकेगा ना ये रोके से


भगत सिंह और चंद्रशेखर बनना

हालात की मजबूरी है
वो क्रांति तब भी जरुरी थी
एक क्रांति अब भी जरुरी है



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तुमसे 

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तुम कहते हो की सावन की रिमझिम बुँदे

मेरी याद दिलाती है
तुम कहते हो की घनघोर घटा
राग मल्हारी गाती है

तुम कहते हो की मेरी पैजनिया की आहट
तुम्हे प्रफ्फुलित कर जाती है
मैं कहती हूँ तुम सावन के इंद्र धनुष जैसे
जीवन में खुशियों के रंग भर जाते हो

तुम एक मधुर साज मैं जीवन गीत तुम्हारी प्रियतम
है साँस तुम्हारी इस धड़कन  में
रहे साथ जीवन में हरदम

तुम कहते हो की दुःख की काली  रातो में
मैं उजियारी सुबह लाती हूँ
मैं कहती हूँ इन स्याह रातों में
तुमसे मिलने चली आती हूँ

अपने बगियाँ में सावन के झूले
उस पर मंद - मंद बर्षा  की बुँदे
मैं क्या झुलू सब कुछ भूलूँ
जब प्रतिक्षण साथ तुम्हारा हो

तुम ही बसंत तुम ही सावन
तुम प्रेम की सुगन्धित फुलवारी हो

सब कुछ तुमसे , तुममे सबकुछ

मैं कहती हो तुम मेरे कृष्ण मुरारी हो



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नखड़ा


नई  नवेली बहु ने ससुराल आते ही नखड़ो की लाइन  लगा दी , लम्बी चौड़ी फरमाइशों के साथ मायके में गुड़िया की तरह रहने की कहानियाँ सुना डाली। बेचारी सास यह सोचकर हैरत में थी की ये आजकल की पीढ़ी को हो क्या गया है जहाँ जाओ वहा  यही कहानी सुनने को मिलती है आखिर इनकी माँ ने भी तो मेहनत कर के ही पाला होगा  बेचारी इनके पैदा होने से लेकर ससुराल में जाने तक इनका ख्याल रखा है और साथ में अपने घर के बूढ़े बुजुर्गो का ध्यान भी जिम्मेदारी पूर्वक निभाया है। फिर इनको ऐसा क्या हो जाता है की जवान होने पर भी इनका बचपना नहीं जाता। हमारी तो जैसे तैसे निकल जाएगी लेकिन इनका गुजारा कैसे होगा , खुद के खाने के लिए तो मेहनत करनी ही पड़ेगी।  नौकर चाकर का क्या भरोसा अगर भरोसा कर भी लिया जाये तो बच्चे उनका क्या ? ......  अभी सास इसी उधेड़ बुन में थी की लड़के और बहु की आवाजें उसके कानो में गूंजने लगी। 

बहु ने आते ही नए घर की मांग कर दी थी और लड़का अपने माँ - बाप को छोड़ने को तैयार नहीं था उसने साफ़ तौर पर कह दिया की अगर उसे सबके साथ रहना है तो रहे नहीं तो वापस अपने मायके जा सकती है। जिस माँ ने उसे जन्म दिया बचपन से लेकर आज तक बिना स्वार्थ के पालन किया , जिस पिता ने सालो एक ही कपडे में गुजार दिए की उसके बेटे की परवरिश में कोई कमी ना रह जाये उनसे जुदा होने की बात वो सपने में भी नहीं सोच सकता 


माँ को कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ , बहु की हरकते देखकर भविष्य की हरकतों का अंदाजा हो गया था।  बल्कि उसे अपने संस्कार पर गर्व था जो उसने अपने बेटे को दिए थे और साथ ही अपने बेटे पर भी। 
बहु अब तक समझ गई थी की इस घर की बुनियाद जिस संस्कार पर टिकी हुई है वहां उसके नखड़े का कोई स्थान नहीं ....  

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