baat



बात 

                                                                        
baat

बात करते करते बात बन जाए तो क्या बात है 
और अगर बात करनी इतनी ही जरूरी थी तो बात की क्यों नहीं 
फिर बात बताते हो की बात हुई 
पर बात बताई नहीं उसको 
बात बताओगे नहीं तो उसकी बात पता कैसे चलेगी 

बात रखे रहने में भी कोई बात नहीं है 

बात बताने से ही बात बढ़ेगी 
फिर कुछ बात उधर से होगी 
हो सके बात ना बन पाए 
हो सके बातों का सिलसिला शुरू हो जाये 
पर बात बताना अदब से 
यही बात की कलाकारी है 
बातों से  ही तो आजकल जंग लड़ी जाती है 
बातों में ही तो सम्मोहन है 

अगर बात बन गई तो क्या बात है 

कुछ बात तुम्हारी होगी कुछ बात उनकी होगी 
औरो की बातों पर ध्यान मत देना 
उनको केवल बातो में मजा लेना है 
पर तुमको बातो से ही जीवन चलाना है 
यही बात है मेरी 
कुछ और बात है तो आओ बातें करे 





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inklaab jaruri hai


इंकलाब जरुरी है

inklaab jaruri hai


मर रहा किसान है देखो
कैसी उसकी मजबूरी है

कहता है रोम - रोम मेरा अब तो

इंकलाब जरुरी है

तब देश उन्होंने लूटा
अब देश इन्होने लूटा
कैसी जनता की मजबूरी है
अब तो इंकलाब जरुरी है

वे गोरे  थे  ये क्या काले है
दोनों ही देश को लूटने वाले है

तब लाठी का जोर यहाँ था
अब लालच का शोर यहाँ है
तब भी दंगे यहाँ हुए थे
अब भी दंगे कहाँ रुके है

कहने को है देश के बेटा

पर भरे स्विस बैंक की तिजोरी है
अब तो  इंकलाब जरुरी है

ना गई अपनी गरीबी देखो
हुए अमीर इनके करीबी देखो
वे विदेशी थे ये देशी है
पर नीयत एक जैसी है

भगत और  चंद्रशेखर को खोकर जो आजादी पाई थी
लगता है  शायद उसकी ज्यादा कीमत चुकाई थी
चेहरे शायद बदले है , जालिमो की नई जमात आई है
है तरीका अलग पर आपस में  मौसेरे भाई है


कितना रोकेंगे खुद को हम
छलियो और लुटेरों से

है देशभक्ति का खून भरा

रुकेगा ना ये रोके से


भगत सिंह और चंद्रशेखर बनना

हालात की मजबूरी है
वो क्रांति तब भी जरुरी थी
एक क्रांति अब भी जरुरी है



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tumse



तुमसे 

tumse



तुम कहते हो की सावन की रिमझिम बुँदे

मेरी याद दिलाती है
तुम कहते हो की घनघोर घटा
राग मल्हारी गाती है

तुम कहते हो की मेरी पैजनिया की आहट
तुम्हे प्रफ्फुलित कर जाती है
मैं कहती हूँ तुम सावन के इंद्र धनुष जैसे
जीवन में खुशियों के रंग भर जाते हो

तुम एक मधुर साज मैं जीवन गीत तुम्हारी प्रियतम
है साँस तुम्हारी इस धड़कन  में
रहे साथ जीवन में हरदम

तुम कहते हो की दुःख की काली  रातो में
मैं उजियारी सुबह लाती हूँ
मैं कहती हूँ इन स्याह रातों में
तुमसे मिलने चली आती हूँ

अपने बगियाँ में सावन के झूले
उस पर मंद - मंद बर्षा  की बुँदे
मैं क्या झुलू सब कुछ भूलूँ
जब प्रतिक्षण साथ तुम्हारा हो

तुम ही बसंत तुम ही सावन
तुम प्रेम की सुगन्धित फुलवारी हो

सब कुछ तुमसे , तुममे सबकुछ

मैं कहती हो तुम मेरे कृष्ण मुरारी हो



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nakhda




नखड़ा


नई  नवेली बहु ने ससुराल आते ही नखड़ो की लाइन  लगा दी , लम्बी चौड़ी फरमाइशों के साथ मायके में गुड़िया की तरह रहने की कहानियाँ सुना डाली। बेचारी सास यह सोचकर हैरत में थी की ये आजकल की पीढ़ी को हो क्या गया है जहाँ जाओ वहा  यही कहानी सुनने को मिलती है आखिर इनकी माँ ने भी तो मेहनत कर के ही पाला होगा  बेचारी इनके पैदा होने से लेकर ससुराल में जाने तक इनका ख्याल रखा है और साथ में अपने घर के बूढ़े बुजुर्गो का ध्यान भी जिम्मेदारी पूर्वक निभाया है। फिर इनको ऐसा क्या हो जाता है की जवान होने पर भी इनका बचपना नहीं जाता। हमारी तो जैसे तैसे निकल जाएगी लेकिन इनका गुजारा कैसे होगा , खुद के खाने के लिए तो मेहनत करनी ही पड़ेगी।  नौकर चाकर का क्या भरोसा अगर भरोसा कर भी लिया जाये तो बच्चे उनका क्या ? ......  अभी सास इसी उधेड़ बुन में थी की लड़के और बहु की आवाजें उसके कानो में गूंजने लगी। 

बहु ने आते ही नए घर की मांग कर दी थी और लड़का अपने माँ - बाप को छोड़ने को तैयार नहीं था उसने साफ़ तौर पर कह दिया की अगर उसे सबके साथ रहना है तो रहे नहीं तो वापस अपने मायके जा सकती है। जिस माँ ने उसे जन्म दिया बचपन से लेकर आज तक बिना स्वार्थ के पालन किया , जिस पिता ने सालो एक ही कपडे में गुजार दिए की उसके बेटे की परवरिश में कोई कमी ना रह जाये उनसे जुदा होने की बात वो सपने में भी नहीं सोच सकता 


माँ को कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ , बहु की हरकते देखकर भविष्य की हरकतों का अंदाजा हो गया था।  बल्कि उसे अपने संस्कार पर गर्व था जो उसने अपने बेटे को दिए थे और साथ ही अपने बेटे पर भी। 
बहु अब तक समझ गई थी की इस घर की बुनियाद जिस संस्कार पर टिकी हुई है वहां उसके नखड़े का कोई स्थान नहीं ....  

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sang tere


संग तेरे 



तेरी  तन्हाईया अब भी ये सवाल करती है
मरता था तू जिस पे वही ये हाल करती है

बड़ी नाजुक थी तेरी मुहब्बत
जो दर्दे - खास  देती है
की तेरी हर एक  याद
जिस्म को सांस देती है

हुआ करते थे, हम भी कभी रांझा
की उसको हीर कहते थे
की बदल सके न जिसको हम
उसे तकदीर कहते थे

जमाना है ये बड़ा कातिल
जो दिलो को तोड़ देता है
जो चल सके न संग इसके
उसे ये छोड़ देता है

हमने देखे थे जो सपने, संग साथ जीने के
टूटे गए वो सपने  तेरे मेरे सीने के

सोचे ये दिल अब  मेरा
मेरी जान जरा सुन ले
बहुत हुआ जीना अब तो,  मौत ही चुन ले

तू धड़कन में  था  यूँ  समाया
जैसे सीप में मोती
अगर संग तेरा जो होता, तो क्या जिंदगी होती

तेरी जुल्फों में  शाम होती
तेरी आँखों में सुबह होती
कभी तू मुझमे खो जाती
कभी मैं तुझमे खो जाता। ...




लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/axibfjtu/sng-tere


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barsaat

बरसात 



आज बेमुरौवत बरसात हो गई
घर से निकले थे तभी रात हो गई
कदम लड़खड़ाये  अँधेरे में
संभलते ही उनसे मुलाकात हो गई
संभलना याद ना रहा
फिर से वही वारदात हो गई

भीगे सारी रात हम

इश्क़ के दरिया  में

बरसात तो अब पुरानी बात हो गई

बादलो से   चाँद आज  जमीं पर उतर आया था 
पूर्णिमा की रात तो मेरी थी 
ना जाने कितने घरो में  अँधेरा छाया था 

वो बेपनाह खूबसूरत सी इश्क़ की एक मूरत थी 
और मेरी वीरान दुनिया की  जरुरत थी 
इश्क़ में आज फरमा बहुत रहे थे हम 
पर चुपके से शरमा भी बहुत रहे थे हम 


सावन और मुहब्बत दोनों की शुरुआत हो चुकी थी 


उम्र भर साथ चलने की बात हो चुकी थी 
सोचा कही ये ख्वाब तो नहीं 
पर गालो पर सुर्ख गुलाबी मखमली अहसास हो  चुकी थी 

शायद ये निश्छल प्यार था मेरा 
और उसको समझने वाला यार था मेरा 
बारिश  ने भी आज सारी  रात जगा दिया 
और दो प्यार करने वालो की कश्ती को किनारे लगा दिया ....... 

लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/4kafvoxj/brsaat

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