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forest politics


जंगल राजनीति 



कौवा चले  हंस की चाल, हंस देख बउराये
शेर खाये घास हरी - हरी , गधा रोज शिकार पर जाये 
मानव  करे नाच झमाझम  बंदरियां देख शर्माए
गिरगिट सब गायब हो गए , नेता रंग बदलते जाये

महंगाई अब  रोज डंसे है , नागिन टीवी पे नाच दिखाए
मगर देख हुए भौचक्का , अब तो राजा  ही  घड़ियाली आँशु बहाये 
कुत्ते हुए भयभीत सब , कंही गाड़ी से कुचल  ना जायें 
देख तमाशा खबरनवींशों  का , भालू भी अचरज खाये

ऊंट बोले मैं लम्बा या कालाधन , जिसे पकड़ ना पाए
घर की रबड़ी खुद ही खा गए , इल्जाम बिल्ली मौसी पे  लगाए
हाथी जैसा हुआ भ्रष्टाचार , जिसे मिटाने आये
खुद ही हो गए फूल के गैंडा ,तुमसे कछु ना हो पाए

लोमड़ी पहने भगवा चोला , साधु ईश्वर से कह ना पाए
तोता बोले राम - राम , तुम भी थे राम का रट्टा लगाए
पूछे गइया चिल्ला के तुमसे , राम का मंदिर काहे ना  बनवाये -


हम जंगल के जीव है सारे , तुम तो मानव कहलाये
सत्ता की खातिर तुम बने जानवर , तुमसे तो अच्छे हम कहलाये 




lajja karo sarkar


लज्जा करो सरकार 

lajja karo sarkar


रोक सको तो रोक लो बंधु
ये सरकार तुम्हारी है
जनमत की आवाज है अब तो
बिना काम की  चौकीदारी है

उड़ना - उड़ना छोड़के अब तो
कुछ तो  ढंग का काम करो

क्या रक्खा है जुमलों में अब

जब जनता जान रही है सब
फेंकी थी जो विकास की बातें
बोलो अब करोगे कब

देश - विदेश की रबड़ी खाई
फ़्रांस की खाई रसमलाई
पाक ने दागी सीने पे गोली
निकल सकी ना तुम्हारे मुंह से बोली
अब कितना लहू बहाओगे तुम
पूछे शहीद की माँ हो गुमसुम

56 इंच का सीना लेकर क्या कसमे खाई थी
कुछ तो शर्म करो राजा जी
क्या अपने झूठे वादों पर
तनिक लाज ना आई थी।


इन्हे भी पढ़े - आखिर कब तक ? 

indian political future

भारत के राजनीतिक भविष्य के बारे में आपके क्या विचार हैं?


"भारत का राजनीतिक भविष्य उज्जवल है" आप सोच रहे होंगे की वर्तमान समय के नेताओ को देखकर यह कैसा कथन है। परन्तु शायद आपने सिक्के का दूसरा पहलु अर्थात इस देश की जनता की बढ़ती राजनीतिक समझ की तरफ ध्यान नहीं दिया। आपने देखा होगा की कैसे इस देश की जनता ने अपने उज्जवल भविष्य हेतु एक राजनीतिक नौसिखिये (अरविन्द केजरीवाल ) को उम्मीद से बढ़कर समर्थन दिया, कैसे गठबंधन की सरकारों के दौर में देश को आगे ले जाने हेतू पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में बनवाई , जोकि सर्वसमाज की एकता के बिना असंभव था। यह बात जरूर है की यह जनता इन्ही के द्वारा छल का भी शिकार हुई है, परन्तु इसने मौका मिलते ही छल का भी बदला लिया। सोशल मीडिया पर आम जनता द्वारा (पार्टियों की आईटी सेल द्वारा प्रायोजित टिप्पणियों को छोड़कर ) टिप्पणियों में उसकी बढ़ती राजनीतिक समझ को देखा जा सकता है। 

जब आप खुदके प्रति जागरूक होते है तब आप को कोई बहका नहीं सकता जैसा की भारतीय वोटरों के साथ होता आया है। और जनता की इसी राजनीतिक समझ के कारण धीरे - धीरे राजनीतिक पार्टियों को अपने चेहरे में बदलाव करना जरुरी हो जाता है। जो खुद को दुसरे से ज्यादा स्वच्छ और ईमानदार सिद्ध करता है ( नाकि बताता है ) जनता उसको जरूर आगे बढाती है। हाँ अभी जनता में जहाँ - जहाँ शिक्षा का अभाव है वहाँ थोड़ा समय अवश्य लगेगा।
आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में जनता द्वारा ही बदलाव होंगे और आम आदमी के बीच से ही नए नेतृत्व निकलकर राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होंगे और इस देश को उन्नति के शिखर पर लेकर जायेंगे।

लेखक द्वारा हिंदी क्वोरा पर एक सवाल का जवाब से साभार -

Nota - Beginning Empty of Throne with the Pink Revolution



नोटा - गुलाबी  क्रांति से सिंहासन खाली करो की  शुरुआत -

Nota - Beginning Empty of Throne with the Pink Revolution

भारतीय राजनीति एक बार फिर अपने महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है जहाँ आम जनता का विश्वास मौजूदा राजनीतिक पार्टियों से उठता दिख रहा है। सवर्णो को अपना जन्मसिद्ध वोटर मानने वाली बीजेपी को उम्मीद नहीं थी की एससी / एसटी को खुश करने के चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय को वह पलट चुकी है वही उसकी सत्ता पलटने की हैसियत रखती है।  सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट की खामी को दूर करते हुए  एफ़ आई आर के बाद बिना जाँच की गिरफ्तारी पर रोक लगा दिया था।  उसी पर  सरकार को लगा की नहीं गिरफ्तारी तो बिना जाँच के ही होनी चाहिए भले ही किसी निर्दोष को फंसाया जा रहा हो, जबतक अदालत उसे निरपराध घोषित करेगी तब तक बेचारा ऐसे  गुनाह की सजा काटकर आएगा जिसका उससे कोई वास्ता ही नहीं , बस उसकी गलती यही होगी की वह सवर्ण है। और उस भाजपा का पारम्परिक वोटर भी जिसकी सरकार  बनवाने में उसने मदद की थी वही भाजपा उसकी लुटिया डूबोने में लगी हुई है।

यह तो था सवर्णो का दुःख अब देश की बाकि गरीब जनता की भी सुन लीजिये वह भी सरकार से पूछ रही है की क्या नोटबंदी  में कड़कड़ाती ठण्ड में  2000 रूपये के लिए केवल उसे ही परेशान  क्यों किया गया।  इस देश के पूँजीपति से लेकर अधिकारी वर्ग तक और बड़े नेता से लेकर छुटभैया तक इन लाइनों  में क्यों नहीं दिखे। कुछ ईमानदार छवि और दिखावटी लोगो को छोड़कर केवल आम जनता मरती रही और सरकार दावा करती रही की इसके बाद देश के अंदर का कालाधन वापस आ जायेगा और एक नए भारत का निर्माण होगा। अभी भी नोटबंदी की सफलता और असफलता पर चर्चा जारी है।  अगर यह इतनी सफल ही होती तो चर्चा की कोई बात ही नहीं थी। 

कई गरीबो के घर बेटियों की शादिया टूट गई क्या किसी अमीर के घर ऐसा हुआ नहीं , बल्कि कई वीआईपी शादियों में पैसा पानी की तरह बहा।  गुजरात के एक कोआपरेटिव बैंक में अमित शाह के पैसो को सफ़ेद करने का मामला भी सामने आया जिसे प्रबंधित मीडिया ने ज्यादा टूल नहीं दिया। ऐसे ही कई बीजेपी नेता नए नोटों की गड्डियाँ  उड़ाते मिले। 50 से ज्यादा बार नोटबंदी  के दौरान आरबीआई ने अपने फैसलों और नियमो में बदलाव किया।  उत्तर प्रदेशो के चुनावों में इस नोटबंदी  ने अपना व्यापक असर दिखाया और अन्य पार्टिया इस कारण  अपना पॉलिटिकल  मनैजमेंट  नहीं कर पाई जिससे फायदा बीजेपी को हुआ इसी कारण नोटबंदी  का खेल खेला गया जिसमे आम आदमी ने अपनी जान और मान दोनों को ही गँवा दिया । मध्यम  और निचले तबके के व्यापारी वर्ग तो बुरी तरह टूट गए  और इसके बाद लागू  होने वाली जीएसटी ने तो मानो उसकी कमर ही तोड़ दी , कभी पुराना  माल को लेकर जीएसटी की संशय  कभी इसकी प्रणाली को समझने का फेर महीनो बिना व्यापार किये ही  निकल गए। और मिला क्या ? ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।

नोटा फिल्म का एक पोस्टर 


देश के विकास के नाम पर जब आम आदमी घुन की तरह पिसा  रहा था तब भी विदेश यात्राओं में कुछ कमी नहीं आई, पेट्रोल के जिन दामों पर विपक्ष में रहते हुए साइकिल से चला गया आज अपनी सरकार  में सवाल पूछने पर मुंह फेर लिया जाता  है.  जब जनता पूछती है की ऐसा क्यों है की अंतराष्ट्रीय मार्केट  में 65 डॉलर प्रति बैरल होने के बाद भी पेट्रोल महंगा है जबकि पूरवर्ती  सरकार में १४४ डॉलर प्रति बैरल में  भी  दाम इतने ही थे।  रुपया क्यों भारतीय प्रधानमंत्री की उम्र पार करने के बाद भी नहीं रुक रहा

अर्थव्यवस्था इतनी व्यवस्था करने के बाद भी काबू में नहीं आ रही है तो आपमें और पिछली सरकारों में क्या अंतर था।  हिन्दू का कार्ड कबतक चलेगा ,खाली पेट तो बिलकुल नहीं , गाय  की रक्षा कबतक होगी जब बहु बेटियाँ  ही सुरक्षित नहीं है ।कब तक पाकिस्तान हमारी देश की बहुओ  को विधवा बनाता रहेगा  ? नेपाल का चीन के साथ सैन्य अभ्यास क्यों आखिर आप क्यों चार साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस को कोस रहे है ? जातिवाद का जहर घोलना था तो अन्य पार्टियों में क्या बुराई थी  ? 

विपक्ष में कमजोर नेतृत्व , तीसरे  मोर्चे  की नाजुक स्थिति तथा  लालची एकता  और भाजपा के विश्वासघात  को देखते हुए धीरे -  धीर आम आदमी अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए भारी संख्या में नोटा दबाने का मन बना चुका है इसकी संख्या को देखते हुए 2019  में अवश्य ही इसे एक बार फिर गुलाबी क्रांति की संज्ञा दी जाएगी क्योंकि नोटा के बटन का रंग गुलाबी है।



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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - सरदार पटेल की मूर्ति 


statue of unity


स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - सरदार पटेल की मूर्ति 


भारत में बनने वाली सरदार पटेल की इस 182 मीटर लम्बी विशालकाय प्रतिमा को बनाने की जिम्मेदारी लार्सन एन्ड ट्रूबो नामक कंपनी को दी गई है। नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए इस योजना की शुरुआत की गई थी। तथा देश भर के किसानो से लोहा भी माँगा गया था। मूर्ति का एक हिस्सा कांसे का है जिसका निर्माण चीन के एक कारखाने टीक्यू आर्ट फैक्ट्री में हुआ है। इसके अलावा भी अन्य सामग्री चीन से मंगवाई जा रही है।
statue of unity

भारत जैसे देश में जहाँ आबादी का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे रहने को मजबूर है , यहाँ तक की अधिसंख्य परिवारों को दो जून की रोटी भी नहीं नसीब हो पाती है , उस देश में इस तरह की परियोजनाएं अपने ही देश की गरीबी का मजाक उड़ाती है। मेरा मानना है की जब तक देश में एक भी इंसान गरीबी रेखा के नीचे है तब तक हम उसी देश के करदाताओं काएक भी पैसा अपनी राजशाही और राजनीतिक स्वार्थ के लिए खर्च नहीं कर सकते। ऊपर से आप एक ओर मेक इन इंडिया की बाते करते है और दूसरी तरफ मेड इन चाइना के माल से सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महान शख्शियत की मूर्ति सुसज्जित करवाते है। जिसपे आप सोचते है की हम भारतीयों को गर्व की अनुभूति हो, तो हमें अनुभूति तो होती है लेकिन गर्व की नहीं, शर्म की। अगर हम अन्य देशो की तुलना करते हुए उनसे ऊँची मूर्ति लगा रहे है तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए की उनमे से अधिकांश विकसित देश है।

मूर्ति में लगने वाली रकम जो की लगभग 3000 करोड़ के करीब है सोच के इस देश के नीति नियंताओ की मंशा पे संदेह होता है। दूसरी तरफ क्या हाड़ - मांस के बने इंसान खाली पेट इस मूर्ति के दर्शन पाकर तृप्त हो सकेंगे। भारत का करदाता अपना कर ख़ुशी - ख़ुशी इसलिए देता है की उसका देश तरक्की कर सके उसके देश के गरीब भाई - बहनो के लिए चलने वाली योजनाए सुचारु रूप से जारी रह सके नाकि चाइना के माल से मूर्तियां  खड़ी हो सके।

विश्व स्तर पर भारत को बस विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति के ख़िताब से नवाजे जाने के सिवा कुछ और नहीं हासिल होने वाला और घरेलु स्तर पर लम्बे समय तक चलने वाला एक राजनीतिक मुद्दा।


rafale aircraft deal

राफेल विमान सौदा -

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राफेल विमान 

आइये पहले तो राफेल डील की शुरुआत पे एक संछिप्त नजर डालते है (क्योंकि जवाब विषय को देखते हुए थोड़ा लम्बा है )-

कारगिल युद्ध के बाद सेना के लिए ऐसे लड़ाकू विमानों की आवश्यकता महसूस हुई जो सेना की जरूरतों को पूरा कर सके , जिसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार में 126 विमानों की खरीद का प्रस्ताव रखा गया और अगली कांग्रेस की सरकार ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। अमेरिका , ब्रिटेन, रूस इत्यादि 6 देशो के लड़ाकू विमानों का निरीक्षण करने के बाद यूपीए सरकार ने फ़्रांस के राफेल विमानों पर अपनी मुहर लगाई जो की अन्य विमानों की तुलना में कम कीमत ,गुणवत्ता और रखरखाव में भी सस्ते थे। परन्तु यूपीए सरकार के कार्यकाल में तकनीकी कारणों की वजह से यह डील पूरी नहीं हो पाई। उस समय एचएएल को भारत में इसके पुर्जो को आपस में जोड़ने का काम सौंपा जाना था। तकनीकी हस्तांतरण का मुद्दा भी फ़्रांस से डील ना हो पाने की प्रमुख वजह थी। रही बात विमान की तकनीकी की तो विमान की तकनीकी इतनी उन्नत है की 100 किलोमीटर दूर विमान को भी आसानी से निशाना बना सकती है , यहॉँ तक की अमेरिका और चीन के पास भी इतनी उन्नत श्रेणी के विमान नहीं है।

मोदी सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फ़्रांस की यात्रा के दौरान इस डील को आगे बढ़ाते हुए दोनों देशो ने इस पर अपनी सहमति दे दी।
अब अपना रुख विवाद की तरफ करते है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस डील को पूरा करने के बाद जानकारी दी की उन्होंने इस डील में कांग्रेस की अपेक्षा 12600 करोड़ की बचत की परन्तु उन्होंने इस तथ्य को सार्वजनिक नहीं किया की डील हुई कितने में है उन्होंने कहा की फ़्रांस इसके अलावा कलपुर्जे और मिसाइल अपने पास से देगा।
बस यही से विवाद की शुरुआत होती है। कांग्रेस ने अपने समय होने वाली डील से सम्बंधित समस्त आंकड़े रखते हुए मोदी सरकार से डील सार्वजनिक करने की मांग की है और मोदी सरकार डील की रकम को सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक ना करने का हवाला देते हुए डील पर अपनी पीठ थपथपा रही है।
कांग्रेस का आरोप है की जो विमान वह 428 करोड़ में खरीद रही थी , मोदी सरकार उसी के 1555 करोड़ दे रही है। और भारत में कलपुर्जो को जोड़ने का काम एचएएल को ना देकर अनिल अम्बानी की कम्पनी रिलायंस डिफेन्स को दिया गया है , हालाँकि अनिल अम्बानी ने राहुल गाँधी को लिखे पत्र में यह स्पष्ट किया है की उनका इस डील से कोई वास्ता नहीं है। और नाहीं सरकार की तरफ से उनके पास इस तरह का कोई प्रस्ताव आया है। यहाँ तक की अनिल अम्बानी की स्वामित्व वाली कंपनियों ने नेशनल हेराल्ड में प्रकाशित इससे सम्बंधित एक खबर को संज्ञान में लेते हुए 5000 करोड़ का मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है।
सारा विवाद डील की कीमतों और भारत में इसके रखरखाव और कलपुर्जो को जोड़ने में रिलायंस डिफेन्स और इसकी सहायक कंपनियों की भूमिका को लेकर है। सरकार का कहना है की फ़्रांसिसी कंपनी भारत में "मेक इन इंडिया " कार्यक्रम को बढ़ावा देगी जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं था। जबकि कांग्रेस इस तथ्य को सिरे से ख़ारिज करती है और डील की कीमतों को बढ़ा हुआ बताकर डील में घोटाले का होना बताती है।
मेरे अनुसार एक बात तो तय है की विमान बड़ी ही उन्नत श्रेणी के है जिसका कोई जवाब नहीं है और इस तथ्य को दोनों पार्टियाँ और अन्य रक्षा विशेषज्ञ भी मानते है । इस डील से भारतीय वायुसेना का आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही और साथ में देश की सुरक्षा व्यवस्था भी और मजबूत होगी। दूसरी बात कांग्रेस सरकार ने देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए राफेल जैसे अनेक सौदों को लटकाये रखा जो की देश की सुरक्षा के लिए अत्यंत ही आवश्यक थी और जिसे मोदी सरकार ने तेजी से पूरा करने का काम किया है। कांग्रेस के समय डील के मसौदो पर ही चर्चा हुई थी तथा समय के साथ लागत मूल्य बढ़ना लाजमी है। एक और तथ्य जो की सबसे आवश्यक है वह यह है की विक्रेता देश और उसकी कम्पनियाँ अपने उत्पाद को अलग अलग देशो को अलग अलग मूल्यों पर बेचती है तथा मूल्य उजागर होने पर उनकी तकनीकी के स्तर का आंकलन भी किया जा सकता है इसलिए कई समझौतो में इसके मूल्य को गोपनीय रखने की शर्तपर ही कम्पनियाँ अपना उत्पाद देने को तैयार होती है। इस कारण हो सकता है सरकार इस को उजागर करने से बच रही हो। अगर इस डील में किसी तरह का घोटाला हुआ है जैसा की कांग्रेस के आरोप है तो उसके लिए हमें तब तक प्रतीक्षा करनी होगी जब तक दोनों देशो की किसी भी जाँच एजेंसी से इस तरह की कोई खबर नहीं आती। जैसा की अभी तक किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है या भारतीय कैग की रिपोर्ट जो की अपने मानको के अनुसार आडिट करती है। अगर कांग्रेस के आरोप निराधार है तो उसे देश की सुरक्षा से सम्बंधित मसलो पर राजनीति नहीं करनी चाहिए जो की उसी के लिए घातक है और अगर वास्तव में घोटाला हुआ है तो सिद्ध होने पर भाजपा भी उसी की श्रेणी में खड़ी हो जाएगी।
लेखक द्वारा क्वोरा पर राफेल विमान के मुद्दे पर पूछे गए सवाल पर दिए गए जवाब से साभार -

bjp ka rag congresi aur ek desi

बीजेपी का राग कांग्रेसी और एक देसी  - 



इधर कुछ दिनो से भारतीय राजनीति मे एक नये तरह का गीत सत्ता पक्ष द्वारा गुनगुनाया जा रहा है जिसे राग कांग्रेसी कहा जाता है . राग कॉंग्रेसी मे आवश्यकता और समय की नजाकत के अनुसार केवल उसके बोल मे परिवर्तन किया जाता है .



भारतीय जनता पार्टी इसी राग को गाते हुए सन 2014 मे सत्ता मे आई थी . और आज अपनी हर गलती पर इसी राग का सहारा लेकर जनता का मनोरंजन करती है . जिस भाजपा ने काग्रेस के शासन काल मे तेल के मूल्यो मे वृद्धि का विरोध किया था , जिसने तेल मूल्य का बाजार के अनुसार निर्धारण का भी विरोध किया था वह आज गरीबो का तेल निकालने पर तुली हुई है . अंतराष्ट्रीय बजार मे तेल के दाम लगातार घटने के बावजूद भारत मे खुदरा मूल्यो मे वृद्धि निरंतर जारी है .

सरकार से पूछने पर उसका वही कांग्रेसी राग शुरु हो जाता है की कांग्रेस के समय भी कीमते 80 के पार गई थी . परंतु यह नही बताया जाता की जिस तेल का मूल्य अंतराष्ट्रीय बजार मे आज 75 डॉलर प्रति बैरल के आस - पास है , कांग्रेस के समय 144 पर पहुंच गई थी . एक तरफ जहां आपको राम मंदिर के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय का इंतजार है वही उसी उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया की एससी /एसटी एक्ट मे सवर्णो के खिलाफ अधिकतर मामले फर्जी होते है इस कारण प्राथमिकी दर्ज होते ही उनकी तत्काल गिरफ्तारी ना की जाये लेकिन आपको उच्चतम न्यायालय का न्याय पसंद नही आता है और सवर्णो के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय को नीचा दिखाने के लिये संसद मे बिल पारित करवा दिया .


उच्चतम न्यायालय ने सिर्फ इतना ही कहा था की जांच के बाद ही दोषी पाये जाने पर गिरफ्तारी हो अर्थात पीड़ित को न्याय मिले लेकिन कही किसी के झूठ के चक्कर मे कोई दूसरा प्रताडित ना हो जाये . जिस जीएसटी का आप 12 % पर विरोध कर रहे थे उसे आप 5 ,, 12 , 18 और 28 % की दर से लेते आये . अभी भी व्यापारी जीएसटी को समझने मे अपना माथा खपा रहे है .

आपकी बातो मे पहले 70 साल अब 60 साल देश की दुर्दशा के लिये कांग्रेस जिम्मेदार होती है .और 60 सालो से देश का विकास ठप्प है . और आपने आकर 4 सालो मे देश की अर्थव्यवस्था को नया मुकाम दे दिया है , आप ने ही देश मे डिजिटल क्रांति लाई है , आपने ही रेल से लेकर दिल्ली मेट्रो तक की नीव रखी है .


आप के अनुसार इंदिरा गाँधी बहुत ही लचर प्रशासक थी . परंतु क्या कोई जिम्मेदारी आपके चुनावी घोषणा पत्रो मे किये गये वादो के लिये नही बनती . आप चार साल से सत्ता मे रहने के बाद भी कॉंग्रेस को पानी पी पी कर कोसते है , आप स्थानो जैसे सड़क ,रेलवे स्टेशन इत्यादि के नाम सिर्फ इसलिये बदलते है की कांग्रेस भी ऐसा करती थी . आप ने अटल की अस्थि यात्रा सिर्फ इसलिये निकाली की कांग्रेस भी ऐसा करती थी , वैसे यह काम आपलोगो ने भले ही कांग्रेस की नकल कर के किया हो लेकिन अच्छा ही किया वर्ना जिस अटल जी की सुध आप लोग नही लेते थे कम से कम कांग्रेस के कारण मरणोपरांत ही सही थोड़ी इज्जत तो अटल जी को दी . फिर तो आपके अनुसार कांग्रेस जो करती थी वो सब सही है क्योंकि आप भी तो उसी रास्ते पर चल रहे है . अगर आपने इन चार सालो मे सिर्फ कांग्रेस को कोसना छोड़कर कोई और काम किया है तो वो है सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण अभी एक साल और बाकी है , कुछ बचा हो तो उसे भी देख लीजिये , घबडाइए मत इसका रिकार्ड आप ही के नाम रहेगा नाकी कांग्रेस के .

और लौटने के बाद एक नजर क्योटो बनी काशी पर और देश के बाकी स्मार्ट शहरो पर पर भी जरूर डालियेगा . उसके बाद उस गंगा मा से भी जरूर मिलिएगा जो आपको बुलाती रही है और जिसे आपने गंदगी के दामन से मुक्ति का वादा किया था .

देश का किसान भी आपसे अपनी दुगनी आय का तरीका पूछने के लिये कतार मे खड़ा है और साथ मे वे करोड़ो युवा भी आपसे अपने मन की बात करने वाले है जिनको आपने पकौड़ी बेचने के काम पर लगाया था . कतार से बाहर ऐसे लोगो की भी भीड़ है जो देशभक्ति के प्रमाणपत्रो के वितरण का इंतजार कर रहे है . और खाली बैंक खातो , खाली सिलेंडर और खाली पेट के साथ ही इस देश के गरीब भी .


atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


अटल बिहारी बाजपेयी की अस्थियाँ और मोदी सरकार 



atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय राजनीति का वो प्रथम चेहरा जिसने पहली बार बिना पूर्ण बहुमत के पांच साल गैर कांग्रेसी सरकार का संचालन किया।  दो सीटों से शुरू उनका सफर उनके मजबूत इरादों और वाकपटुता की  कौशल की बदौलत  केंद्र में सरकार बनाने तक एक ऐसा मुकाम तक पहुँच चुका  था जहाँ वे सीधे तौर पर   लोगो के दिलो में जगह बनाने में कामयाब हुए। यह बाजपेयी जी की स्वच्छ  और उदारवादी  छवि का ही  परिणाम है की जिस भारतीय जनता  पार्टी ने  राजनीति से सन्यास लेने के बाद उनकी कोई खबर नहीं ली आज उनकी अस्थियो से  भी राजनीतिक लाभ लेने से बाज नहीं आ रही है , वो भी ऐसे समय जब पार्टी द्वारा मोदी को पार्टी और देश का  सबसे लोकप्रिय नेता बताया जा रहा है।

atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


आखिर ऐसा कुछ तो हुआ होगा जिससे भारतीय जनता पार्टी और  उसकी पार्टी के सबसे बड़े और लोकप्रिय  नेता  भी आज एक मृत व्यक्ति की लोकप्रियता और उसके आचरण को भुनाने में लगे हुए है।

कारण जानने के लिए हमें दोनों का तुलनात्मक रूप से अध्ययन करना पड़ेगा।
माना जाता है की बाजपेयी पार्टी का वह उदारवादी चेहरा थे जिनकी देशभक्ति पर विपक्ष भी विश्वास करता था इसी कारण  नरसिम्हा राव की सरकार ने विश्व के मंच पे विपक्ष में रहते हुए भी बाजपेयी जी को भारत का पक्ष रखने को भेजा था।
जबकि मोदी को  खुद उनकी पार्टी के ही कई नेता  शक की नजरो से देखते है। इसका कारण यह है की  लालकृष्ण आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी  और यशवंत सिंह समेत तमाम ऐसे बड़े नेता है,  जिन्होंने पार्टी को इस मुकाम तक पहुँचाया की उसे संसद में विपक्ष का दर्जा मिल सके।  और बाजपेयी जी ने पहली बार गठबंधन की राजनीति में भाजपा  सरकार का पांच वर्षो का कार्यकाल पूरा किया।  आज वही नेता मोदी द्वारा किनारे लगा दिए गए।  कभी आडवाणी के ही कहने पर अटल जी ने मोदी को अभयदान दिया था , वही आडवाणी आज राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लायक भी नहीं समझे गए।
अटल जी ने हर चुनावी दौरों में जो सत्य था उसी को आधार बनाते हुए अपने भाषण दिए जबकि मोदी द्वारा दिए  आंकड़े ही गई बार गलत होते रहे है भाषण की तो बात अभी दूर है। 

अटल ने कभी सत्ता का मोह नहीं किया उनके लिए देशहित सर्वोपरि था।  इसलिए विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने सरकार की उन बातो का न केवल समर्थन किया बल्कि धन्यवाद भी दिया जो राष्ट्रहित में थी , यही वजह थी की सरकार भी उनसे अनेक मुद्दों पर सलाह लिया करती थी। अटल जी ने कभी देशभक्ति का दिखावा नहीं किया और नाहीं अपने हिन्दू होने का।


वहीं  वर्तमान सरकार सत्ता की चाहत में हिन्दू और मुसलमानो में वैमनस्य की भावना भरने में लगी हुई है।  अगर सरकार को देश की चिंता होती तो वह इन मुद्दों को हवा देने की बजाय इनको शान्त करने में अपना योगदान देती। सत्ता की चाह ने प्रेस को भी नहीं छोड़ा और उनपर भी नियंत्रण की कोशिशे  होती रही ।


atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


मोदी सरकार  यदि  गुजरात मॉडल के बलबूते सत्ता पर आई है तो उसे इन चार सालो में किये गए विकास कार्यो को जनता के सामने रखना चाहिए नाकि अटल जी जैसे महान इंसान की अस्थियो को , जिनको जनता एक नेता से ऊपर उठकर देखने लगी है। सरकार को अपने चुनावी घोषणापत्र को जो उसने 2014 के चुनावों में छपवाए थे उनका वितरण हर क्षेत्र में करना चाहिए  अटल जी की अस्थियों का। और अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाती तो उसे अपने गिरेबां में जरूर एक बार झाकना चाहिए।



महान नेता और महान कवि श्री  अटल बिहारी बाजपेयी जी की कुछ अटल पंक्तियाँ आपसे जरूर साँझा करना चहूंगां। 



बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।




इन्हे भी पढ़े - हिंदुत्व 

                         मोदी बनाम विपक्ष 




navjot singh siddhu - imran khan



नवजोत सिंह सिद्धू - इमरान खान 

navjot singh siddhu - imran khan

पाकिस्तान में इस माह होने वाले चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक - ए - इन्साफ (p t i ) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इमरान खान उस पार्टी के सबसे बड़े नेता। इमरान खान क्रिकेट की दुनिया को अलविदा कहने के बाद से ही राजनीति में सक्रिय  थे। और उन्होंने तहरीक - ए - इन्साफ नामक पार्टी का गठन किया। जैसा की सबको पता है खान अपने व्यक्तिगत जीवन में काफी विवादित रहे , उनकी पूर्व  पत्नियों ने उनपर कई आरोप  लगाए परन्तु इससे उनकी लोकप्रियता पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा। 


क्रिकेट में भी खान ने पाकिस्तान को इकलौता विश्वकप 1992 में अपनी कप्तानी में दिलाया था। क्रिकेट जगत में कई उपलब्धियां उनके नाम पर आज भी दर्ज है। सिद्धू से लेकर गावस्कर तक उनके मित्र हुआ करते थे यही वजह है की अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने सिद्धू , कपिलदेव और गावस्कर को आमंत्रित किया था। 

गावस्कर और कपिलदेव तो नहीं जा पाए किन्तु सिद्धू अपने मित्र के शपथ ग्रहण समारोह में खुद को जाने से नहीं रोक पाए। गावस्कर और कपिलदेव ने अलग - अलग कारणों का हवाला देते हुए जाने से इंकार कर दिया। 
इसको लेकर भारत में काफी हो हल्ला  मचा की क्या सिद्धू का जाना सही था।  सिद्धू ने भी वापस आकर कहा की उनका जो आजतक यहाँ  नहीं मिला वह पाकिस्तान में दो दिन में ही मिल गया। सिद्धू ने भी इमरान खान की तरह राजनीतिक महारत हासिल कर ली है इसी वजह से चर्चा होना लाजिमी है। 

भारत और पकिस्तान के सम्बन्ध जग जाहिर है।  इधर कश्मीर को लेकर कुछ अर्से से दोनों देशो में तनाव देखा जा सकता है , इमरान खान ने भी आते ही यह साफ़ कर दिया की वह कश्मीर मुद्दे पर कोई नरमी नहीं बरतने वाले। मोदी सरकार की भांति ही उन्होंने पाकिस्तान के लोगो से वादों की झड़ी लगा दी  , उन्होंने सादगी दिखाते हुए प्रधानमंत्री आवास में रहने से मना कर दिया जहाँ सैकड़ो कर्मचारी और गाड़ियाँ है ,वो तो अपने घर में ही रहना चाहते थे किन्तु सुरक्षा कारणों से सैन्य आवास को ही अपना घर बना लिया।  


पाकिस्तान के अन्य हुकुमरानों से भले ही इमरान खान अलग हो या खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हो परन्तु कश्मीर मसले पर वे पूर्वर्ती  सरकारों के बनाये राह पर ही चलते हुए दिख रहे है। यही वजह है की सिद्धू  के पकिस्तान मेहमाननवाजी के अलग - अलग अर्थ लगाए जा रहे है।  कइयों का मानना है की इमरान खान ने भारतीय प्रधानमंत्री को न्यौता नहीं दिया था जबकि सिद्धू पूर्व में भाजपा में उपेक्षित  होने  की अपनी भड़ास निकालने और भारतीय प्रधानमंत्री को नीचा  दिखाने पाकिस्तान पहुँच गए। वैसे सिद्धू ने इसे सियासी रंग ना देते हुए  दोस्ताना बताया और शांति का पैगाम देने वाला बताया है । किन्तु विवाद यही तक होता तो गनीमत थी  उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी सेना प्रमुख को गले भी लगा लिया  इसके पीछे सिद्धू की भावना जो भी रही हो  किन्तु जब आप सियासत में होते है तो सब कुछ सियासी ही हो जाता है। 

navjot singh siddhu - imran khan


सोशल मीडिया पर सिद्धू पाकिस्तान जाने को लेकर काफी ट्रोल हो चुके है कइयों ने तो उन्हें भारत विरोधी भी बता डाला है , अनेक राजनीतिक दलों ने सिद्धू पर निशाना साधा है शिवसेना ने तो इसे राष्ट्रविरोधी तक करार दे दिया है। खैर विवाद तो चलता ही रहेगा किन्तु दोस्ती और देश में सिद्धू के लिए क्या जरुरी था यह तो वही जाने। 



man ki baat 2


मन की बात - 2 

man ki baat 2


साहब आज एक बार हम फिर आप से अपने मन की बात करने वाले है पिछली बार तो उ आधार लिंक करवाने जाना था तो थोड़ा सा कहके निकल लिए इस बार साहब हमको लागत  है की आप पिछली बार से भी कम सोने लगे है तभी तो दिन रात एक करके सबके घर में चूल्हा लगवा दिए पर उ रामवृक्षवा के घर एक बार सिलेंडरवा ख़त्म हो गया तो उ फिर से  गोइंठा  पर बनाने लगा , हम पूछे तो झुट्ठे बोल दिया की सरकार  खाने का बेवत लायक छोड़े ही नहीं हमका   गैसवा  कहा से भरवाएंगे जौने मनई के दूकान पर ठेला चलात रहे उ नोटबंदी और जीएसटीये समझे  खातिर परेशान  रहा ये ही चक्कर में  दुकानदारी चौपट रही। व्यापारी तो खुदे कर्जा में चला गया  , आप उसकी बाती पे एकदम विश्वास मत कीजियेगा सरकार एक नंबर का झूठा है अभी पिछले ही महीने देखे थे चौधरी की दुकान से बड़का  नहाने वाला साबुन खरीदा था , इंहा  तो जमाना गुजर गया साबुन खरीदे। 



सुने है सरकार उ चाइना वाले डोकलाम में फिर से घुस आये है , इसीलिए हम कहते है थोड़ा आप भी अब विदेशवा  जाना  कम कर दीजिये इहा रहेंगे तो डर - भय बना रहेगा। वैसे भी आपको चाइना के माल और बात पर कम ही भरोसा करना चाहिए, ई सब हमेशा आपको भाउक करके फायदा उठा ले जाते है। 


सरकार  आप के काम से हम पूरा खुश है ,सुने थे सुप्रीम कोरट  उ छोट जात वाला कानून में कुछ करे रही। .... उ त अच्छा रहा की आप कानून ना बदले दिहे , इ ठकुरवा और पंडितवा  इतने से ही इतरा गए थे की अब कोई उनको झूठ मुठ में नहीं फंसा सकता। इनके पक्ष में सरकार कोई कानून मत बनाइयेगा नहीं तो इ फिर उतरा जायेंगे। एक तो पहले ही नौकरी में अरक्षणवा से जलते थे अब तो अउरी बउरा गए है बुझते थे की सरकार केवल उन्ही के है। अरे उ 200 में से 200 ला देंगे तब्बो सरकार नौकरी हमही को देंगे चाहे हम 50ए  नंबर काहे  ना लाये। 


एक थो हमारा पर्सनल रेक़ुएस्ट था सरकार आप से.......  अब हम गरीब मनई का जानी की आप उ स्मार्ट सिटी कहा बनाये है , और कहा से टिकट कटवाई आप ही दुगो  टिकटवा  निकलवा दीजिये ना.......  उ कलुआ के अम्मा भी कह रही थी की उसको भी देखना है की सरकार कैसा सुन्दर शहर बसाये है। और हाँ  ड्रइवरवा से कह दीजियेगा की ट्रेनवा टाइम पर लेते आएगा। कल्हिये भिनसारे रामखेलावन के लइका को छोड़े स्टेशन गए थे ट्रेन पकड़ाते - पकड़ाते  अगला दिन का दतुअन स्टेशनवे पे करना पड़ा. 
अच्छा सरकार अब हम चलते है अब तो आप भी आइयेगा ही अपने भाइयो और बहनो से मिलने  चुनाव में । ........ 


लेखक की इससे पहले की  प्रसिद्द रचना  -  मन की बात 

rajneetik sunyata


राजनीतिक शून्यता 



विगत कुछ दिनों से भारतीय राजनीति में एक शून्यता की स्थिति आ गई है।  भारतीय जनता पार्टी भी केवल इसी शून्य में समाहित होते दिख रही है। बिहार जैसे राज्य में जहाँ बीजेपी की सहयोगी पार्टी के मंत्री पर मुजफ्फरपुर काण्ड में संलिप्तता के आरोप लगने पर बीजेपी खामोश है वही दिन प्रतिदिन बढ़ने वाली दुष्कर्म की घटनाओ में ढिलाई बरतना अब बीजेपी की भी आदत बन चुकी है।


विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने जहाँ ऐसे मुद्दों को जोर शोर से उठाया था वहीँ सत्ता पक्ष में रहते हुए ख़ामोशी बनाये रखना उसके राजनीतिक सेहत के लिए घातक सिद्ध  हो सकता है।

दूसरी प्रमुख बात अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के मामले में जहाँ शीर्ष कोर्ट ने स्वीकार किया था की देश में इस क़ानून के दुरूपयोग के  मामले बढ़ते ही जा रहे है। वही बीजेपी ने इस अध्यादेश को उच्च सदन में पास करवाकर यह दिखा दिया की वह अभी जाती की राजनीति में सबसे आगे खड़ी है।  इस विधेयक को पास करवाने के साथ ही भाजपा ने शायद अगड़ी जातियों के प्रति यह मान लिया है की वह इस एक्ट से प्रताड़ित नहीं होते। बल्कि सुप्रीम कोर्ट के इस तथ्य को भी नकारा है की इसका दुरूपयोग नहीं होता।


2019  के चुनावों को देखते  हुए इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता की अगर फायदे और नुक़्सान को निकाला जाये तो एक और जहा भाजपा को फायदा हो सकता है तो दूसरी तरफ अगड़ी जातियों से उसे नुकसान भी सहना पड़ सकता है। 

मोदी की लोकप्रियता 2014 के अनुरूप तो नहीं है परन्तु  राहुल गाँधी के विपक्ष में होने के नाते छवि स्वतः ही बन जाती है।  राहुल गाँधी को लेकर अभी कांग्रेस की ग़लतफ़हमी दूर नहीं हुई है तो 2019 के चुनावों के बाद वो भी दूर हो जाएगी।  फिलहाल जनता ने जिस सरकार को 2014 में पूरी उम्मीद के साथ चुना था सरकार उस उम्मीद पर कितनी खरी उतरी है उप चुनावों में जनता ने उसे बता दिया और जनता के सामने उचित विकल्प  का ना होना उसका दुर्भाग्य ही है और राजनीतिक पार्टियों का सौभाग्य। 



rahul aur pappu

राहुल और पप्पू 



आज सुबह - सुबह ही प्रिय प्रकाश राज से मुलाकात हो गई ..... बड़ी परेशान थी बेचारी जबसे उसका नैन पिचकाऊ वाला सीन प्रसिद्द हुआ है तबसे जो भी बड़ी हस्ती यह काम करती है बगल की तस्वीर में उसे भी डाल दिया जाता है। जवान की तो बात ठीक थी पर बुड्ढों के साथ कैसी तुलना।  अभी कुछ दिन पहले ही अपने देश के एक होनहार बालक देश के सबसे बड़े क्लास रूम में आँख मारते दिखे , वैसे मारा बड़ा गजब का था स्माइल के साथ , ऐसा प्रदर्शन बिना अथक प्रयास के नहीं किया जा सकता। 

rahul aur pappu


उनकी मम्मी को भी अब समझना चाहिए की हर कोई सलमान खान नहीं होता , जल्दी से एक सुन्दर सुशील  कन्या देखकर उनके हाथ पीले कर दे वर्ना  जिस तरह से वे संसद में गले मिल रहे है उसको देख के लगता है की कही घर में  ही  जमाई न लाना पड़े। बाबू ने तो खुले आम स्वीकार भी कर लिया की लोग उन्हें पप्पू भी कहते है  . वैसे बालक है बड़ा नादान। ऐसी बातो पर सबके सामने मुहर नहीं लगाना चाहिए। 

वैसे जबसे राहुल गाँधी का गले मिलने वाला प्रकरण हुआ है तबसे भाजपा के सांसद उनसे दूर रहने लगे है ,कारण वही की कोई रिश्तेदारी न हो जाये न तो राजनीति में बड़ी भारी पड़ेगी। 

" सोते हुए को जगा दिया तुमने 
   आज किसको गले लगा लिया तुमने  "

मेरी कक्षा में एक बड़ा ही  हंश्मुख लड़का था उसे हमेशा  ही  मॉनिटर बनने का शौक लगा रहता था। पर पढाई में निल बटा सन्नाटा और हरकते अजीबो गरीब होने के कारण  उसका शौक कभी हकीकत में न बदल सका.कर्मठी वह बहुत था परन्तु उसे यह कभी समझ में नहीं आया की उसके अंदर मॉनिटर बनने के एक भी गुण विद्यमान  नहीं थे और नाहीं उसने उन आवश्यक गुणों को कभी ग्रहण करने की कोशिश की।वो तो बस बाकि लोगो का मनोरंजन ही करता रह गया।  और एक बात मेरा इशारा बिलकुल भी राहुल गाँधी की तरफ नहीं है। 

मेरा मोदी जी से विनम्र निवेदन है राजनीति अपनी जगह है और प्रेम व्यवहार अपनी जगह।  आखिर है तो अपने ही देश का एक  बच्चा कृपया आप इस बालक को राजनीति के कुछ गुण ही सीखा दीजिये वर्ना कांग्रेस में बैठे बालक के चचा लोग इसे ऐसी ही उलटी सीढ़ी हरकते सीखाते रहेंगे आखिर ये कहावत इसीलिए तो बनी है की


 " मुर्ख दोस्त से तो अच्छा होशियार दुश्मन होता है"

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नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी




gareebi mukt bharat

गरीबी मुक्त भारत 



बहुत दिनो से भारतीय राजनीति मे बहुत ही मजेदार कथन और मुहावरे प्रचलन मे चले आ रहे है जिनमे से अधिकांश महत्वहीन है , हाँ महत्व बस इतना ही है की जनभावनाओ को अपनी राजनीतिक गतिशीलता दी जा सके . नाम बदलने की निरर्थक राजनीति भी अब जनता के किसी काम की नही , कभी किसी स्टेशन का नाम तो कभी किसी अन्य सार्वजनिक स्थलो के नाम , अगर करना ही है तो कुछ काम करिये अगर नारे देने है तो गरीबी मुक्त भारत का नारा दीजिये आप फाइव स्टार होटल मे बैठकर बिसलेरी का पानी पीते हुए नामी अखबारो मे निकलवा देते है गरीबी बढ रही है या घट रही है , दिखावा तो इतना है की गरीब के घर का खाना जाके खा आते है लेकिन कभी उस गरीब को अपने घर दावत का पुछ्ते भी नही , समाचार वाले भी खूब दिखाते है की फलां नेता आज दलित के घर खाना खाने आ रहे है और सौभाग्य से वो दलित हमेशा गरीब ही निकलता है काश की ए जिस गरीब के घर भोजन करते कम से कम उसकी गरीबी त़ो मिटा देते . भाषन बहुत है साहब बहुत सी कलाकारियां है . मध्यम वर्गीय परिवार के रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है प्राइवेट नौकरियो मे परिवार चलाने इतना वेतन नही है और सरकारी नौकरी मिलना भगवान मिलने के बराबर है.

राम का आसरा है पर वो खुद ही बिना आसरे के है . विकास और गरीबी मुक्त नारे कहाँ अब तो मुस्लिम पार्टी हिन्दू पार्टी के नारे दिये जा रहे है बस यही हिन्दू – मुस्लिम से गरीबी दूर होगी . सब भावनाओ का बजार है जिसके सहारे वोट खरीदे जा रहे है और बेचारा गरीब और गरीब होते जा रहा है .

love and politics

प्यार और सियासत 




कल ही देखा था उसको ....हरी साड़ी पहनकर बजार मे गोलगप्पे खाते हुए ..
अभी पिछले बरस की ही बात है जब वो हमारे पड़ोस मे दो मकान छोड़ मिश्रा जी के घर किरायेदार बनकर आई थी , उसके साथ उसका पूरा कुनबा था जिसके मुखिया उसके पिता जी थे जो की शहर मे दरोगा थे.
परिवार मे मां के अलावा एक छोटी बहन और दो बड़े भाई भी थे , भाइयो मे एक की शादी हो चुकी थी और भाभी की गोद मे एक साल भर की लड़की थी नाम था अर्पिता .
गोलगप्पा खाने के दौरान ही उसने मुझे देख लिया था पर देखकर अनदेखा करना शायद नियती की मजबूरी थी ऐसी मजबूरी जिसे पति कहते है जो की उसके साथ मे ही खड़ा था . गोलगाप्पे का स्वाद जो भी हो पर इस मुलाकात ने उन यादों और उन जख्मो को हरा कर दिया था जो वक़्त ने दिये थे .

नये किरायेदार के बारे मे उत्सुकता तब और बढ जाती है जब परिवार की कोई सदस्या अपनी खूबसूरती की छाप आते ही छोड़ देती है , मुहल्लो के लौंडो के बीच चर्चा का विषय राजनीति से बदलकर अचानक ही प्रेमनीति हो जाती है और जिन्होने आजतक प्रेम का ककहरा भी ना सीखा हो वे अपने ज्ञान का प्रदर्शन ऐसे करते है जैसे प्रेमशास्त्र की रचना उन्ही के द्वारा की गई हो .....उसपर से आजकल के नये लौंडे जिनके सिर् पर चारो तरफ रेगिस्तान नजर आता है और बीच मे कपास की फसल उनकी शुरुआत प्रेमशास्त्र के आखिरी पन्ने से होते हुये सीधे रिज़ल्ट तक पहुंच जाती है


मुझे कभी भी अपने मुहल्ले की इस तरह के समुदाय पसंद नही आए थे , मेरी दिनचर्या सीधा यूनिवर्सिटी से घर और घर से यूनिवर्सिटी बस यहीं तक सीमित थी . बीच मे मित्र आसिफ़ के घर पर जरूर कुछ ज्ञान की बाते हो जाया करती थी .
उसका पति पुलिस विभाग मे ही कांस्टेबल था . तथा उसके पिता जी उसके सीनियर हुआ करते थे . मुहल्ले मे अब बात के अलावा आगे की रणनीति पर विचार किया जाने लगा पहली छोटी सी समस्या उसके बाप के आगे सिर् झुकाने की थी जिससे आगे का पथ सुलभ हो जाता.

पर समस्या यह थी की आखिर बिल्ली के गले मे घंटी बांधेगा कौन . शाम के समय अक्सर ही चर्चा करते करते देर हो जाया करती थी ऐसे ही एक शाम मे पैदल ही आसिफ़ के घर से लौट रहा था तभी रास्ते मे लोगो का झुंड एक आदमी को दौड़ाते हुए चला आ रहा था भीड़ के पास आने पर पता चला की वो कोई पत्रकार था जिसने किसी समुदाय विशेष के खिलाफ अपने अखबार मे कुछ लिख दिया था इससे पहले की भीड़ एक ग़ली के घुमावदार रास्ते मे घूमति मैने उस पत्रकार को इशारे से एक घर के अंदर जाने को कहा . वो घर आसिफ़ का था .गजब का खून सवार था उस भीड़ पर जैसे कानून नाम की वस्तु उनके लिये कोई मायने नही रखती उसमे से कुछ लडको को में जानता था जो की पैसे के लिये कुछ भी करने को तैयार रहते थे , उनका सारे राजनीतिक दलो के साथ उतना बैठना था , खैर भीड़ अपने मंसूबो मे नाकाम रही और उसके हाने के बाद मैने पत्रकार जी से पूरी जानकारी ली , पता चला की उनके लेख मे कुछ ऐसा नही था जिससे तनाव का बीज अंकुरित होता , वे  मेरे साथ ही थाने गये और उन्होने पुलिस को सारी बात बताई वही मेरी मुलाकात शेखर अंकल से हुई .... यही नाम था उसके पिता जी का उनसे मिलने पर पता चला की पुलिस मे होते हुए भी उनके अंदर कितनी सौम्यता थी बस उनका चेहरा ही अमरीश पुरी की तरह था पर दिल अंदर से एकदम मुलायम . यही से उनके घर आने जाने का सिलसिला चालू हो गया जिसने धीरे - धीरे  परिवारिक मित्रता का रूप ले लिया . और यही से उससे पहली मुलाकात हुई ....झुकी नजरे, सरल स्वभाव और गुड़ से भी ज्यादा मीठी बोली जो की सामने वाले को मन्त्र मुग्ध कर देती थी .

उसकी नजरे भी सभा से कुछ वक़्त निकाल कर हमारी नजरो को अपने होने का अहसास करा देती थी . बातों मे पता चला की उसकी गणित बहुत ही कमजोर है और मैं  ठहरा गणित से बीससी बस मिल गया हमको भी मौका अपनी काबिलियत दिखाने का हर रोज शम को बस दिक्कत यही थी की आसिफ़ भाई का साथ जरूर छूट गया . इधर आसिफ़ भाई का साथ छूटा उधर हर शाम नये नये पकवानो से रिश्ता जुड़ गया , उसकी भाभी पाककला मे निपुण थी और उन्हे नित नये - नये पकवान बनाने का शौक था हमने भी सोच लिया की दामाद बनेंगे तो इसी घर के.

इधर आती रुझानो ने संकेत देना शुरु कर दिया की अब सही वक़्त आ गया है अपने अंदर के ज़ज्बातो को बाहर निकलने का बस हमने भी एक अच्छा सा मुहूरत देखकर बोल ही दिया जवाब तो पहले से नही मालूम था पर जो कुछ आया उसकी हमने कल्पना भी नही की थी पता चला की उसने दो दिन पहले ही हमारी पुस्तक मे एक पन्ने पर अपना इजहार कर दिया था यहा भी हम पीछे रह गये .

यूनिवर्सिटी मे अभी कक्षाये प्रारंभ ही हुई थी की बाहर शोरगुल मचने लगा पता चला की शहर मे दंगे शुरु हो चुके है . सब अपनी अपनी जान बचाने को भागने लगे . मैं  भी अपने घर तेजी से साइकल चलता हुआ निकल पड़ा रास्ते का नजारा वर्णन करने लायक नही था घर पहुचने से कुछ दूर पहले ही दो लोग मेरी तरफ तलवार लेकर आते हुए दिखाई दिये अचानक उनमे से एक के कदम दौड़ते दौड़ते रुक गये .... आसिफ़ मियां थे वो ............

घर पर सबकी निगाहे मुझे ही ढूंढ रही थी , मुहल्ले के लौंडो ने अपनी अलग टीम बना ली थी जो की 24 घंटे पहरा देते थे . कुछ सियासतदारो ने अपने स्वार्थ के लिये पूरा शहर ही जला दिया और हम सोचते रहे की ये धुंआ सा क्यो है . अगले दिन मुहल्ले मे बड़ी शान्ती थी कुछ के चेहरे बता रहे थे की ए बिजली अपने आस पास ही गिरि है . चढ़ा दी थी बलि सियासत के हकुमराणो ने कुछ ईमानदार पुलिसवालो और निर्दोष इंसानो की .
बस वो आखिरी सुबह थी उसको देखे हुए कुछ अरमान थे जल गये चिता मे कुछ अरमान थे चिता मे जलने वाले के उन्हे पूरा करने के लिये .........ना हमे कुछ मिला ना तुम्हे कुछ मिला फिर भी ना जाने आपस मे कितना है गिला ...सत्ता के जादूगर है वो इस जादू ने जाने कितनो को लीला ....

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राजनीति का खेल (कविता )

desh ko kranti ki jarurat



देश को क्रांति की जरुरत



देश के मौजूदा हालात कुछ ऐसे हो चुके है जहाँ लोग अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार है।  यहाँ कोई  देशवासी से ज्यादा भाजपाई , कांग्रेसी  और अन्य पार्टियों के नाम से अपनी पहचान पहले बना चुका है , बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जो धैर्य पूर्वक सत्य को ग्रहण कर सके ,लोग सिर्फ दूसरी पार्टियों से खुद की पार्टी का तुलनात्मक अध्ययन करने पर ज्यादा जोर देने लगे है ,अगर पिछली सरकार ने एक लाख करोड़ का घोटाला किया है तो इनका तर्क रहता है की हमारी सरकार  में मात्र चंद करोड़ का घोटाला ही हुआ है ऐसे ही यदि कोई बड़ी दुर्घटना, दुराचार तथा जघन्य अपराध  हो जाती या उनका ग्राफ बढ़ जाता  है तो उसके तार भी ऐसे ही जोड़े जाते है  , की पिछली सरकर में सिर्फ इतनी हत्याएं हुई और हमारी सरकार में उससे कुछ कम हुई।
desh ko kranti ki jarurat

कुछ तो हमको भी आदत डाल  दी गई है की सरकार को थोड़ा वक़्त देना चाहिए। इसी आदत को जब तक हम समझते है तब तक ट्रेन छूट चुकी होती है।  एक शख्स ईमानदारी से बता सके की अमुक सरकार सिर्फ जनता की भलाई के लिए सत्ता प्राप्त करना चाहती है।  इस हमाम में सब नंगे हो चुके है सारे एक ही थाली के चट्टे  बट्टे है। आम आदमी कल भी त्रस्त  था और आज भी त्रस्त  है , सीमा पर आज भी जवान मर रहे है  और कल भी, कई खबरे तो आप और हम तक न पहुँच पाती  है और न पहुँचने दिया जाता है। 


नेता एक ऐसी बिरादरी है जो कभी भी आपस में गंभीर होकर नहीं लड़ते उनकी लड़ाई कभी भी वास्तविक नहीं होती है। सिर्फ आम जनता को दिखाने के लिए होती है लड़ते तो हम है उनके अनुयायी बनकर उनकी ताकत उनके समर्थको से होती है। प्रत्येक नेता अपनी अपनी जरूरतों के अनुसार समर्थक वर्ग खड़ा करता है , आजकल तो इस खेल में मीडिया का भी समर्थन हासिल है जो की स्वार्थ और सत्ता में हिस्सेदारी पाने हेतु उन्हें प्रमोट करता है। बदलते समय के साथ जनता को गुमराह किये जाने वाले शब्द रूपी बाणो में भी बदलाव आया है जिनमे कही भी विकास की बाते न होकर जातीय वैमनस्य , धार्मिक उन्माद रूपी  जहर से बुझे तीर होते है। 


देश इस समय एक बार फिर अपनी दिशा खोते दिख रहा है अगर इसमें किसी को विकास दिखता हो तो उसकी संतुष्टि के लिए मैं कुछ नहीं कर सकता।  आज कोई भी पार्टी अपनी कथनी के अनुरूप करनी करने में सक्षम नहीं है।  आज जरुरत इस देश की मूल व्यवस्था बदलने की है जिसके लिए आवश्यक है की इस देश का युवा वर्ग नए क्रांतिकारी विचारो को जन्म दे और उनपर अमल करे। भ्रष्टाचार  रूपी व्यवहार के हम इतने आदि हो चुके है की प्रत्येक सरकारों में इसको ख़त्म करने की बात की जाती है परन्तु सरकार ही इसके दलदल में फंसती दिखती है। 

मंत्री , विधायक , सांसद  जैसे माननीयो का मूल उद्देश्य जनसेवा न होकर धनसेवा बन चुका है , अधिकारी वर्ग अपनी राजनीतिक पहुंच से मलाईदार पदों पर काबिज है और जो थोड़े बहुत ईमानदार है वे राजनीतिक प्रताड़ना का शिकार है। समाचारो में दिखाई जाने वाली खबरे पूरी तरह से नाप तौल कर दिखाई जाती है , पूर्व निर्धारित डिबेट होते है ,चंद  उद्योगपतियों के हाथो में अधिकाँश संसाधनों की हिस्सेदारी है ,
 आखिर क्रांति क्यों ना हो। ........   


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न्यूज़  चैनलों पे होने वाली डिबेट  और उनकी प्रासंगिकता




man ki baat

मन  की बात 


हम क्या बोलेंगे साहब आप ही इतना कुछ सुना देते है की मन खुश हो जाता है , आपके पास तो बड़का बड़का माइक है ,लाखो लोगो की भीड़ है हम तो उस भीड़ का हिस्सा मात्र है ,


आपने कह दिया की आप अच्छे दिन लाएंगे हम इसी उम्मीद पर आपको लेते आये। अभी कल की ही बात है हमारी घरवाली हमसे बोली अब तो छोटका लोगो पे तुम्हारी सरकार ज्यादा ध्यान देगी तुमको अपने दुकान के लिए भी आसानी से लोन मिल जायेगा , अब हम उसको कैसे समझाते की सरकार तो हर जगह नहीं जा सकते , कही बैंक का मैनेजर जालिम निकला तो सरकार उसको कैसे सबक सीखाएंगे और हम गरीब मनई अपनी फ़रियाद लेकर कहां - कहाँ तक दौड़ेंगे हाँ सरकार बोले है तो अच्छे दिन जरूर आएंगे सरकार के मंत्री तो है वो तो सरकार के आदेश पर काम करेंगे और उनके आदेश पर बैंक से लेकर हर विभाग के अधिकारी भी ढंग से काम करना शुरू कर देंगे आखिर कुछ तो डर होगा हमारे नए सरकार का।

पहले के सरकार तो कुछ बोलते ही नहीं थे और अबकी सरकार खूब बोलते है अरे रेडियो  पर भी तो अपने मन की बात करते है पर कभी हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनते हम भी क्या क्या सोचते है सरकार के पास इतना टाइम कहा होता है की अपने देश  के मनई लोगो की बात सुन सके वो तो विदेश में जाकर ऊ ट्रम्प  के साथ  देश को आगे बढ़ाने की चर्चा  में ही बिजी रहते है , लेकिन देश का क्या उसके लिए सरकार जरूर कुछ आदेश देकर जाते होंगे । अब पिछले ही साल सरकार से शिकायत करनी थी  की हमारे इलाके के सांसद और विधायक जी कभी दर्शन ही नहीं देते , वो भी तो सरकार की ही पार्टी के है उनके अंदर भी तो सरकार का खौफ होना ही चाहिए , हमारे सरकार तो  इतने अच्छे है 18 घंटा तक तो खाली काम करते है और उनकी पार्टी के लोगो का इ हाल है , इहे लोग सरकार को बदनाम करते है।

अभी पिछले ही महीने पढ़ा था एगो भगोड़ा बैंक का पैसा लेकर विदेश भाग गया और लोग हमारे सरकार को सुना रहे है , अब हम क्या कहे मतलब सरकार थोड़ी ना जानते है कौन आदमी ईमानदार है और कौन बेईमान अगर इतना ही पता होता तो हमारे सरकार एक -  एक को जेल नहीं भिजवा दिए होते , आप मत सोचियेगा सरकार ये बैंक वाले भी कम धूर्त नहीं होते अभी छह महीने से हमारी ही अर्जी दबाकर रखे हुए है चार महीने में तो आधार से लिंक किये है कह रहे थे सब की सरकार की योजना है कोई भी आदमी अब फर्जी काम नहीं करवा पायेगा बताइये जैसे हम समझ ही नहीं रहे है की सब कैसे हमको चुतिया बना रहे है अगर ऐसा होता तो उ नीरव मोदी कैसे उल्लू बना देता।

man ki baat

ऐसे ही सब हमको नोटबंदी में उल्लू बनाये थे कह रहे थे सरकार नोट बॅंद कर दी है हम भी उनसे कहे हमरी सरकार जनता की सरकार है अगर नोटबंद की होगी तो जरूर पहले उतना नोटछाप ली होगी इतनी बुरबक नहीं है सब नोट तुम्ही लोग ब्लैक कर दिए होंगे देखे नहीं कितना करोड़ लेके लोग पकड़ा रहे है।  बात तो बहुत है सरकार पर पर उ  खाद की दुकान पर भी जाना है आधार से लिंक करवाने नहीं तो सब खाद ही नहीं देंगे।अब आप से क्या छुपाये सरकार  1000  रुपया के खाद के लिए आज हम महाजन के यहाँ से 2000 उधार लेकर आये है काहे से लोग बोल रहे थे बाकी का एक हजार वापस हमरे खाता में आएगा  तब हम सूद सहित महाजन को लौटा देंगे इहे गरीबी मिटाये खातिर तो हम आपको वोट दिए रहे की   एक थो आप ही है जो हमरा अच्छा दिन जरूर लाएंगे ऊ टीबी  पर आपका अच्छा दिन वाला प्रचार भी देखे रहे जिसमे किसान लोग आपस में बतिया रहे थे की अच्छा दिन आने वाला है , आप भले ही भूल गए होंगे सरकार लेकिन हमको आज भी ऊ प्रचार याद है आप निश्चिंत होकर अपना काम करते रहिये सरकार ऐसे ही हम आगे भी आपको अपनी मन की बात बताते रहेंगे आखिर आप सच्ची में कहा मिलने वाले।


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गिरगिट की बेचैनी



modi erosion



 मोदी की घटती लोकप्रियता 


कर्नाटका चुनाव के बाद सरकार  बनाने के लिए होने वाली जी तोड़ कोशिश करने के बाद भी बीजेपी सदन में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई जिस तोड़ - फोड़ की राजनीति के लिए वह जानी जाती है उसमे कही न कही फेल हो गई।  हालांकि बीजेपी ने राज्य में सबसे ज्यादा सीट जितने में कामयाबी जरूर हासिल की थी  परन्तु स्पष्ट बहुमत से बस चंद कदम दूर रह गई।

अगर स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो राज्यों में पूर्ण बहुमत ना मिलना कहीं ना कहीं मोदी सरकार की घटती लोकप्रियता का संकेत देती है , कर्नाटका में तो सत्ता विरोधी रुझान भी थे तभी तो जेडीएस भी सीटे निकालने में कामयाब रही। अगर कहा जाये की मोदी विरोधी रुझान इधर कुछ महीनो से बनना शुरू हुए है तो ज्यादा उचित होगा , इसको समझने के  लिए हमको कुछ तथ्यों पर बेबाक रूप से चर्चा करनी होगी। 

कांग्रेस अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के बाद से लगातार 10 सालो से सत्ता में बनी हुई थी , जाहिर है सत्ता विरोधी रुझान होगा ही दूसरी बात कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के लिए कार्य तो कुछ नहीं क्या परन्तु उनको इस झूठे दिलासे में अवश्य रखा की उनका हित कांग्रेस पार्टी तक ही है , प्रदेश स्तर पर यही कार्य सपा और बसपा ने भी किया जिसमे बाजी मारी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने।
विकास से कही दूर उत्तर प्रदेश जैसो राज्यों में भी जनता ने क्रांतिकारी तरीके से वोट किया। कारण मुजफ्फरपुर जैसे दंगो ने ध्रुवीकरण की ऐसी राजनीतिक शुरुआत की जो आज भी थमने का नाम नहीं ले रही। वस्तुए और विचार जब नए होते है तब वे लोगो को ज्यादा प्रभावित करते है लोग जबतक उनकी असलियत समझते है तबतक वह उनके हाथ से निकल चुका होता है। 

भारत की राजनीति में भी यही हुआ एक ओर कांग्रेस पार्टी में नित नए घोटालो की पोटली खुलती जाती थी और जनता का आक्रोश अपने परवान चढ़ते जाता दूसरी ओर ध्रुवीकरण की नकारात्मक राजनीति समाज को बांटते हुए अपने - अपने पार्टियों के वोट बैंक मजबूत करती। बीजेपी ऐसे समय में खुल कर सामने आती है और अपने आपको सच्चा हिंदूवादी पार्टी घोषित करती है क्योंकि उसे पता था अल्पसंख्यक वोट उसे कभी मिलने वाला नहीं , वह गोरक्षा , भगवा हिंदुत्ववादी मुद्दों पर अपनी राय बेहिचक रखती है जनता के लिए यह एक तरह से नई  राजनीति थी क्योंकि अभी तक सारी पार्टियों जिन मुद्दों पर चर्चा मात्र से डरती थी  बीजेपी उन मुद्दों पर काम की और खुलकर बातें करने लगी
जैसे धारा 370 , पाकिस्तान और चीन के खिलाफ जोशीले भाषण, हिंदुत्व , हर साल दो करोड़ युवाओ को रोजगार ,राष्ट्रभक्ति ,सरहद पर एक के बदले दस सिर काटकर लाना ,अल्पसंख्यकों के खिलाफ बातें, किसानो की आय दुगनी करने के सपने , बुलेट ट्रेन , स्मार्ट सिटी , स्विस बैंक, काला धन , गरीबी हटाओ , पेट्रोल के दाम ,स्वच्छ गंगा मिशन ऐसे ही बातों की बड़ी लम्बी चौड़ी अनुक्रमणिका  है. और इसके साथ ही बीजेपी ने कुछ नारे भी प्रचलित करवाए जैसे सबका साथ सबका विकास , अबकी बार मोदी सरकार , हर - हर मोदी घर - घर मोदी, प्रधान सेवक  इत्यादि। 

शुरूआती दौर में जनता ने सरकार बनवाने से लेकर सरकार बनने के बाद लिए गए हर निर्णयों में मोदी सरकार का साथ दिया चाहे वो नोटबंदी हो या जीएसटी  या फिर एफडीआइ जनता को लगा की सरकार को कुछ समय अवश्य देना चाहिए परन्तु समय बीतने के साथ ही सम्पूर्ण कथानक की विषयवस्तु उसे समझ में आने लगी उसे समझ में आने   लगा की असली परेशानी उसके मुस्लिम भाइयो से बैर नहीं बल्कि इस बैर को आगामी चुनावों में एक बार फिर मुद्दा बनाने वालो से है। इन चार सालो में सरकार की यदि कोई उपलब्धि रही है तो कांग्रेस राज में बनने वाले आधार कार्ड को बैंक से लेकर सिम कार्ड , पैन कार्ड , गैस पासबुक , ड्राइविंग लाइसेंस , इत्यादि से लिंक करने की रही है। कुछ कार्य सरकार ने बैंकिंग सेक्टर में भी किये है जैसे कितनी बार पैसा निकालना है कितनी बार जमा करना है , खाते में निर्धारित राशि से कम होने पर लगने वाला अर्थ दंड कितना होना चाहिए इत्यादि। 

मोदी सरकार में गरीब और गरीब होते गया और अमीर और अमीर होते गया अब इसके बारे में विस्तार से कभी फिर चर्चा होगी की कैसे। परन्तु यहाँ यह समझना आवश्यक है की सरकार का कोई भी वास्तविक एजेंडा आजतक लोगो के समझ में नहीं आया भले ही सरकार ने इसपर प्रचार स्वरुप कई हजार करोड़ क्यों न खर्च कर दिए।
लेकिन एक बात अब धीरे धीरे लोगो के समझ में आने लगी है की सरकार का भी एजेंडा विकासवादी नहीं है वरन विकास सरकार द्वारा नियंत्रित और स्वार्थी मीडिया तक ही सीमित है। बाकि मोदी सरकार ने अपने पूर्व कथित वादों में कितनो को पूरा किया और जिन राज्यों में उसकी सरकार है क्या आने वाले दिनों में वो भी पंजाब की तरह ही हाथ से निकल जायेंगे। देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अभी तक जिन राज्यों में चुनाव हुए है वहा  पूर्व में अन्य सरकारे  थी।  वैसे उप चुनावों में होने वाली हार ख़ास तौर पर गोरखपुर और फूलपुर  इशारा तो मोदी क्षरण का ही करते है।  



  


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