preperation of 2019


2019 की तैयारी (व्यंग )



2019  में होने वाले उल्लूसभा  की तैयारी जोरो से शुरू हो चुकी है।  हर तरफ कलियुग के पुण्यात्माओं द्वारा प्रवचनों की बाढ़ आई हुई है।  अभी कल ही एक थो महाराज टीवी पर अपनी पार्टी की मालकिन को भला बुरा कहने पर विरोधी प्रवक्ता का टेटुआ दबा रहे थे। एंकर से लेकर कैमरा मैन तक सब उनको पकड़ने में धराशायी हो गए  बड़ी मुश्किल से उनकी (प्रवक्ता ) जान बची।  लेकिन वो(प्रवक्ता ) भी अपनी आदत से मजबूर थे जाते जाते चिकोटी काट के चले गए।


टीवी पर देखा की एक जगह  एक प्रत्याशी जनता को लुभाने के लिए जादू का खेल दिखा रहे थे।  लेकिन इसमें नया क्या था आज कागज से कबूतर बना रहे है और पहले भी कागज पर सड़के , नहर , अस्पताल और स्कूल बनवाया करते थे। फिर जैसे कबूतर को गायब कर देते वैसे ही ये सब भी गायब हो जाते।

इधर विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष पर तमाम आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर जारी है। सफ़ेद कुर्ता वाला बालक भी हाथ में हवाई जहाज लिए उड़ने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी उड़ान के चक्कर में कई बार नाक के बल गिर भी चुका है।  बड़े साइज का पैजामा और कुर्ता होने की वजह से कुर्ता हाथ की उंगलियों को भी ढँक लेता है जिस कारण उसे बार - बार खींचकर वापस लाना पड़ता है।

राजस्थान , और मध्यप्रदेश में मीडिया द्वारा प्रत्याशियों को कौन बनेगा मुख्यमंत्री का खेल खिलाया जा रहा है , जिसे की 2019 के उल्लू सभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसी बहाने इन प्रदेशो के छोटे जिले भी राष्ट्रिय  मीडिया में छाए हुए है । कल तक जैसे चैनलों के एंकर ,आजकल ,पत्रकारिता के अलावा सब कुछ करते देखे जा सकते है ।  मजा तब और बढ़ जाता है जब इन चैनलों पर होने वाली बहस में भैंस , बकरी से लेकर सब कुछ हो जाता है।

वैसे अभी दूर - दूर तक 2014 के चुनावों की तरह कहीं से भी गोला फेंकने की खबर नहीं आई है , आम आदमी भी ख़ास बनने के बाद बस धक्कामुक्की करने में लगा हुआ है हालाँकि इसी चक्कर में उसे मिर्च भी लग चुकी है । गरीब जनता बस अमीर दिल से तमाशा देखे जा रही है।



mandir and ram



मंदिर और राम 



mandir and ram

रामलला  मंदिर  में कब बैठेंगे, वो भी ना जाने
पूछ रहे है हम से अब वे 
बोलो किसको हितैषी माने

है बारिश में चूता  त्रिपाल
देखके रोये है महाकाल
लक्ष्मण दुखी देख भाई का हाल
बीत गए ना जाने कितने साल  

सीता बोली सर पे जब छत नहीं
जीता लंका पर कौनो गत के नहीं
बोलो भरी गर्मी में क्या ,लू  को सह  पाओगे
तब भटके थे वन - वन  में इधर - उधर
इस कलियुग में भी क्या, अच्छे दिन ना दिखलाओगे

थे  वे भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बोले बात नहीं ये आम
रावण के दस मुख थे बाहर
अंदर यहाँ सबके लालच के जाम
कुछ  धैर्य  धरो  देखो इस जग को
अभी कितना मुझे सतायेंगे
पूछो तो कहते है अब  ये , रामलला हम आएंगे

मुझसे चलता ये जग सारा , फिर भी फिरू मारा - मारा
तकदीर ऐसी खुद ही  लिखवाई है
ठंडी शुरू हुई सीते  ,देखो घर में कहीं रजाई है
ब्रम्हा जी तो बोल रहे थे , कलियुग में प्रभु बस पत्थर की मूरत है
अयोध्या को  राम की नहीं, राजनीति की जरुरत है


तुम रक्षक पर रक्षा को तुम्हारी
पूरी मानव की फौज खड़ी
जय - जय - जय बजरंग बलि
अब ना तोड़ोगे दुश्मन की नली
लंका नहीं जो आग लगा दो
गोवर्धन को तुम हिला दो
कलियुग के सब रावण सारे 
अपनी पूंछ बचाओ प्यारे 

मंदिर - मंदिर , भक्त कहे 
मन के मंदिर में बस छल रहे 
है प्रपंच ये बड़ा निराला 
मंदिर बनवाने चले है आला 
खुद राजा खुद ही फरियादी 
हँसे भगवन, हुए अब आदि 

अपना छत सारा आकाश 
सरयु  से बुझती अब प्यास 
मंदिर की अब  किनसे  आस 
मंदिर  जब  सत्ता की साँस 

ना बने तो मत बनवाओ 
नाम पे मेरे  मत रबड़ी  खावो 
है आना तुमको मेरे पास  
पूछूंगा तुमसे, क्यों की इतनी बकवास 

दुखी भाव से रायजी, अब तो बस ये कह चले 
ना हो हिंसा उनके नाम पे , मर्यादा में ये जग चले



New winding flowing in big cities

बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई 


 New winding flowing in big cities


रिश्तो की मौलिकता के साथ ही महसूस होने वाला अपनापन, बड़े शहरो में बदली हुई परिभाषा के साथ स्वार्थ , पैसा और हित  साधने के एक माध्यम के अलावा कुछ और नहीं।  बड़े शहरो का छोटापन और छोटे शहरो का बड़प्पन   इसकी संवेदनशीलता को  बखूबी बयां करते है। 

मशीनी मानव के पास इतना समय ही कहा की वो दिल से सोच पाए। घर से ऑफिस और ऑफिस से घर की भागमभाग में निकलती जिंदगी के पास जब थोड़ा समय होता है तो वह थके हुए शरीर को राहत देने में निकल जाता है।  अगर कुछ समय  बच गया तो परिवार ,जिसमे सिर्फ बीवी और बच्चे शामिल होते है उनके हिस्से चला जाता है।

ख़ुशियों का पता अब नए - नए पिकनिक स्पॉट , मॉल , रेस्त्रां , फॉरेन ट्रिप , सिनेमा और मोबाईल ने ले लिया है। दादा - दादी और नाना - नानी की कहानियो को  छोड़िये, अब तो इनकी स्वयं की कहानी ही हर घर में मार्मिक होते जा रही है।   लाइफ इन ए मेट्रो और बॉलीवुड की अन्य फिल्मो में बड़े शहरो की सच्चाई अभी उतनी ही दर्शाई गई है जितनी तीन घंटे की फिल्मो  में दिखाई जा सकती है। असल में किस्सा उससे कही आगे बढ़ चुका है।  

रास्ते से लेकर नाश्ते की टेबल तक में ही  इंसान  का धैर्य उसके साथ नहीं रह पाता ,उसे तो बात - बात पर धैर्य खोने की आदत सी पड़ गई है। वह इतना धैर्य कहाँ रख पायेगा की बूढी  माँ जब तक अपनी व्यथा उससे कहे तब - तक वह बैठकर सुनता रहे। 

भारतीय संस्कारो की तिलांजलि(त्याग)  देकर पाश्चात्य सभ्यता का दामन थामना ठीक उसी प्रकार है जैसे पिता को डैडी और माँ को मॉम में बदलना। जिस प्रकार का लाभ  रोटी की जगह पिज्जा खाने से मिलता है उसी प्रकार का लाभ पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने से मिलता है। 


ना अब आप किसी से मजाक कर सकते है , ना अपने दिल की बात को बाहर कर सकते है , अगर आपने ऐसा कर दिया तो आप खुद ही मजाक बन जाएंगे।  एक शब्द है ढीठ जितनी जल्दी इसकी परिभाषा समझ कर इसे अपना ले उतनी जल्दी आशा है की आप भी इस बहने वाले नए बयार में अपनी जगह बना लेंगे। 

छोटे शहरो और गांवो ने ही आज भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की लौ जलाये रखी है। परन्तु वहां के मौसम में  भी पाश्चात्य सभ्यता की हवा के झोंके देखे जा सकते  है। ऊँची एड़ी की सैंडिल पर संभल कर चलती छोटी लड़कियां , बीयर की शॉप पर मॉडल लड़के ,पाउच वाली सेल्फी ,डूड और ब्रो जैसे शब्दों के साथ ही फेसबुक और व्हाट्सअप पर अपडेट होती स्टेटस को देखकर लगता है वह दिन दूर नहीं जब वीडियो कॉलिंग से ही बहन, भाई की कलाई पर राखी बांधेगी और बेटा आजकल के कथित प्रेम विवाह के बाद फेसबुक पर फोटो लगाकर माँ - बाप और दूसरे रिश्तेदारों को टैग करेगा। 



discussion

बहस 


टीटी  - टिकट दिखाइए प्लीज। 

ऊपर की बर्थ  पर सोये हुए आदमी को जगाते हुए टीटी कहता है।  इसके साथ ही अन्य लोग बिना कहे ही अपने - अपने टिकटों को ऐसे ढूंढते है जैसे दो हजार की गड्डी छिपाकर रखी हो। 

गुवाहाटी से जम्मू जाने वाली ट्रेन में आज भीड़ कुछ ज्यादा ही थी।  कारण छठ की छुट्टियों के बाद लोगो की वापसी का सिलसिला जारी था। 

ट्रेन के अंदर चर्चाओ का बाजार राजनीति के प्रोडक्ट पर कुछ ज्यादा ही गर्म हो चुका था।  नीचे की सीट पर बैठे चार सज्जन अपने - अपने विचारो के साथ जंग जीतने की पूरी कोशिश कर रहे थे। 

मूंछ वाले एक भाई साहब देश में एक बार फिर वर्तमान सरकार चाहते थे  जबकि उनके सामने बैठे सज्जन जो की खैनी ठोकने के साथ ही चर्चा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे सरकार के  नोटबंदी  वाले फैसले से काफी दुखी थे और चाहते थे की इस बार विपक्षी दल की सरकार  बने।  हालांकि उनकी खैनी से दिक्कत तो सबको थी लेकिन विषय की महत्ता को देखते हुए  सब अनदेखा कर रहे थे। 

मूंछ वाले भाई साहब  - देखिये मैं आपसे कह देता हूँ  वर्तमान सरकार से ईमानदार सरकार आज तक देश में नहीं आई है। 

दूसरा व्यक्ति - ऐसा ना कहिये सरकार अपने किये कई वादों में असफल भी रही है। 

तीसरा -  आप ही बताइये इतने बड़े मुल्क की समस्या क्या कुछ सालो में हल की जा सकती है। कम से कम सरकार सही राह पर तो चल रही है पूर्वर्ती सरकारों की तरह देश को लूटा तो नहीं जा रहा है । 

खैनी वाले भाई साहब - 'ऐसा ना कहे ' सरकार जब सत्ता से हटती है तब उनकी पोल खुलती है।  बैंको में लाइन लगवा दिया , कई लोगो के ब्लड प्रेशर बढ़ गए और कई लोग ऊपर की ओर  रास्ता नाप लिए। 

मूंछ वाले - अरे तो जिनमे सामर्थ्य नहीं थी वे फिर लाइनों में लगे ही क्यों ?  उसके बाद के चुनावों में फिर जनता ने सरकार का समर्थन क्यों किया ? सब विपक्ष की चाल है वह सत्ता से ज्यादा दूरी बनाकर नहीं रह सकता। उसे बिना घोटालो के घोटाला दिखता है। 

दूसरा व्यक्ति  - परन्तु आजादी के बाद से हुआ विकास आपको नहीं दिखता।  कम्प्यूटर से लेकर शिक्षा संस्थान तक सब पूर्वर्ती सरकार की ही  तो देन है। 

मूंछ वाले भाई साहब   -  हां दिखता है , जातियों में जाति इतने सालो से बढ़ती गई वो दिखता है , अन्य देश कहा से कहा पहुँच गए और हम अभी प्राइमरी की पाठशाला तक नहीं पास कर सके। आईआईटी बने लेकिन उच्च कोटि के मानव जो बना सके ऐसे संस्थान क्यों नहीं बनाई आपकी सरकारों ने । गरीब तब भी थे गरीब अब भी है  शोषित तब भी थे शोषित  अब भी  है । 

कुछ देर सन्नाटे के बाद

खैनी वाले भाई साहब  -  सही कहा आपने भाई साहब  लड़ते तो हम है आपस में , वे तो परदे के पीछे हम पे हँसते है।  लाइन में तो हम लगते है , भरी गर्मी में पूरे  - पूरे  दिन बिजली गुल होने का दंश तो हमने झेला है। सब्जी महँगी हुई तो बाजार पैदल ही चल दिए , पेट्रोल महंगा हुआ तो ऑफिस बस से जाने लगे , कर्फ्यू लगा तो घरो में कैद हो गए  , सीमा पर हमने अपने बेटो की कुर्बानी दी , दंगो में हमारे भाई मारे गए। फिर भी हमे समझ नहीं आई की सब सत्ता का खेल है। 

दूसरा व्यक्ति - उनकी कोठियों की कीमते बढ़ते गई , हमारी ही जमीने हमसे ले ली गई , वे कहते है मुआवजा तो अच्छा दे रहे है , अब आप ही बताइये कौन अपनी माँ को बेचकर मुआवजा चाहेगा। 
बात बात पर कहते है की पकिस्तान को करारा जवाब देंगे।  कब देंगे ?, और इनके जवाब होते कैसे है जो नापाक को समझ में नहीं आता।  पूछिए उस माँ से जिसने अपने बुढ़ापे की लाठी खोई है , पूछिए उस लड़की से जिसका सुहाग चंद दिनों में ही उजड़ गया। कहते है करारा जवाब देंगे  ..... ...... .... ..  

ट्रेन पूरे रफ़्तार में थी और उसके अंदर चलने वाली बहस भी। 




  

shaheed

शहीद 




चढ़ गए सीने पे ,जो वे
दुश्मनो के होश उड़ गए
जीत के जंग देखो कैसे ,बन गए है वे सिकंदर

आग भी बुझ जाती उनके , ह्रदय की ज्वाला को देखकर
वीरो की धरती है ये ,भगत सिंह सबके दिल के अंदर

कारगिल की चोटियों पे, गूंजती है उनकी ही कहानियाँ
किस्से कुछ उनकी वीरता के, सुनाती है बूढी नानियाँ



shaheed


गोलियों से होके  छलनी, लाल फिर भी आगे बढ़ चला
छोड़ दे कैसे उन्हें जो, माँ को उसकी नोचने है चला
बंद होती आँखों से भी ,अचूक  निशाना लगाता  वो भला
आखिरी सांस तक भी, फर्ज पूरा करता चला

माँ को गर्व ऐसे लाल पे, जिसको उसने है जना
भाई बोलो दुश्मनो की टोलिया , बतलाओ बची है कहाँ
हिमालय सी मजबूत छाती बुलंद हौंसले है यहाँ 
तिरंगे को दे सलामी बाप गर्व से है खड़ा 
बहन जिसकी बाँधी राखी , देश रक्षा के काम आई 
दुश्मनो का सीना चीरते ,शहीद हुआ उसका भाई 

गर्व ऐसे भाइयो पे, जिनकी माता भारती 
पूजा की थाल में जो, दुश्मनो के शीश लाये 
वे है जिनसे देश चलता , हम करे उनकी आरती 
ऐसे वीर सपूतो को देखकर ही , शान से तिरंगा लहराए 



politics of religion



धर्म की राजनीति 







यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥८॥


भगवन श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है की जब जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं धरती पर दुष्टो का संहार करने के लिए जन्म लेता रहूँगा। 

भारत के वर्तमान राजनीति परिदृश्य में आप धर्म और राजनीति को अलग करके नहीं देख सकते।  पहले धर्म सिर्फ उपासना का माध्यम हुआ करती थी परन्तु समय के साथ भारतीय इतिहास काल के मध्य से धर्म की राजनीति होने लगी , धर्म का प्रसार और धर्म की रक्षा ही प्रमुख मुद्दे रहे। 

अगर आपको किसी धर्म से लोगो की मानसिकता हटानी है तब आप उस धर्म के मूल पर प्रहार कर सकते है।  कांग्रेस ने अपने शासन काल में हिन्दुस्तान के प्रमुख हिन्दू धर्म के मूल पर प्रहार करना शुरू किया।  किस देश का शासक अपने राज्य के धर्म को कमजोर करता है ? यदि वह उस धर्म को नहीं मानता तभी ऐसा संभव है। 



राम सेतु 


कांग्रेस ने रामसेतु  को मानने से इंकार किया , उस राम सेतु को जिसकी प्रमाणिकता अंतरिक्ष से भी देखी जा सकती है। जिसके साथ ही रामायण के पात्रो पर संदेह नहीं किया जा सकता ,परन्तु कांग्रेस काल में उनपर भी संदेह किया गया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिया न्यायालय पहुंचे। 

हिन्दू धर्म के प्रमुख रंग को ही संदेह की दृष्टि दी गई और उसके लिए एक नए शब्द का अविष्कार कांग्रेस ने कर डाला भगवा आतंकवाद  इसके साथ ही निर्दोष हिन्दुओ को झूठे मुकदमो में फंसाकर जेल में डालने का कार्य शुरू हुआ ताकि इस शब्द की परिभाषा के साथ इसकी प्रयोगात्मक स्थिति को स्पष्ट किया जा सके। 

भगवान् राम के जिस मंदिर पर मुग़ल आक्रमणकारी बाबर ने मस्जिद का निर्माण करवाया था।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में पुष्टि होने के बाद भी कांग्रेस ने इस सन्दर्भ में कोई कदम नहीं उठाया। 

हिन्दू और हिन्दू धर्म एक मानवतावादी धर्म रहा है इसने कभी किसी का विरोध नहीं किया।  परन्तु एक बहुसंख्य आबादी वाले धर्म को कांग्रेस द्वारा परदे के पीछे से उत्पीड़ित करने के बाद इस आबादी ने नए सिरे से विचार करना प्रारम्भ किया तथा  स्प्रिंग के सामान दबाये जाने के बाद इस बहुसंख्य आबादी ने धर्म की रक्षा हेतु छलांग लगाना शुरू किया और एक हिंदूवादी पार्टी भाजपा को इस देश की कमान सौंपी। 

समय के साथ ही केंद्र में स्थापित बीजेपी सरकार ने हिन्दू हितो को सुरक्षित किया जिससे हिन्दुओ की आस्था पार्टी के साथ बढ़ी। 

जाति की राजनीति से ऊपर उठकर शुरू हुई इस धर्म की राजनीति में कांग्रेस मौके की नजाकत को समझते हुए अपने ऊपर लगे धब्बे को छुड़ाने हेतु चोला बदलने के प्रयास में लग गई और इसके मुखिया कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर बैठे। इसके साथ ही मध्यप्रदेश के चुनावी पोस्टरों में शिव भक्त के रूप में देखे गए। भक्ति के नए नए आयामों द्वारा कांग्रेस को भी हिंदूवादी पार्टी बताने के प्रयास जारी है। आगामी चुनावों में भागवान के इस नए भक्त और उसकी पार्टी की कड़ी परीक्षा होने वाली  है। 

2019 के चुनावों में गर्माते राम मंदिर के मुद्दे के साथ ही एक बार फिर धर्म की राजनीति होने की संभावना है। जहाँ विजय श्री उसी को मिलनेवाली है जो राम और काम दोनों में स्वयं को सिद्ध कर सके। 







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