game of politics

राजनीति  का खेल 



हिन्दू-  मुस्लिम ना कर बंदे
खेल है उनके सारे गन्दे
विकास की आस बस तेरे पास
तेरे खून से बुझेगी अब उनकी प्यास

उनके घर मंदिर मस्जिद
उनके घर मे सारी जात
तेरे लिये जतियो मे जात
तेरे लिये बस लव जेहाद

क्या कांग्रेस और क्या बीजेपी
क्या माया और क्या मुलायम
राज करेंगे सारे नेता
जबतक जाति और धर्म है कायम

तेरी समझ का खेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है
मानवता का मेल नही ये
जिसको कहते राजनीति है

बातें करते ये बार - बार
काम ना करते एक भी बार

मुद्दे है इनके सारे बेकार
जनता से कहे ये हर बार

मौका दे हमको बस एक बार
अबकी बार मैं  कहूँ सारे बेकार
है बस अब उसका इंतजार
जो  मिटा दे नफरत करे सबसे प्यार
ना कराये विकास को लम्बा इंतजार



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relampel


रेलमपेल 


मेरा अनुरोध है सारे भारतीय राजनेताओं से की वो अपनी यात्रा रेलवे की सामान्य बोगियों मे  करें खास तौर पर माननीय प्रधानमंत्री जी से यदि वी देश से वीआईपी कल्चर खत्म करना चाहते है तो डिब्बो मे आम आदमी की तरह चढकर ही दिखा दे वर्ना तो इनके आने पर आम आदमी को सड़कों के किनारे खड़ा कर दिया जाता है . एक तरफ जहां ओवरलोडिंग मे दोपहिया से लेकर चर पहिया वाहनो का चालान काटा जाता है वही दूसरी तरफ ट्रेनो मे बाहर तक लटकते लोगो को देखकर क्या सरकार रेलवे का चालान काट सकती है , यह इस देश की कैसी नीति है . सामान्य टिकट खिड़कियॉ पर लगी लम्बी लाइन ,आपस मे लड़ते झगड़ते लोग और आम आदमी के समय की बर्बादी वाकई हम निरर्थक होते जा रहे है .


जनरल डिब्बो मे भेड़  बकरी की तरह ठुंसे लोग घंटो विलंब से चलती रेल , शौचालय से आती भीषण दुर्गन्ध यही है भारतीय रेल की पहचान . कहने को तो इस देश मे राजधानी से लेकर शताब्दी तक चलती है परंतु उनमे मजदूर , कामकाजी वर्ग और गरीब जनता तो नही चलती पैसे वालो के लिये तो हवाई जहाज तक है . परंतु आम आदमी के लिये मशक्कत और दुर्व्यवस्था रूपी इस दानव से निजात दिलाने मे कोई भी सरकार सक्षम नही दिखती सिर्फ वादे होते है , दिलासे होते है और मिलती है सिर्फ झूठी उम्मीद के दिलासे .बाकी जिंदगी तो रेलगाड़ी के पहियो की तरह चलती ही रहती है .

jinna karenge des ka vikas

जिन्ना करेंगे देश का विकास -


जिन्ना करेंगे देश का विकास



भारतीय राजनीति आजकल विकासवादी ना होकर इतिहासवादी होते जा रही है . मुझे नही पता था भारतीय राजनेताओ का इतिहास ज्ञान ही उनके चुने जाने की काबिलियत है . वैसे कभी नेहरू कभी पटेल कभी श्यामा प्रसाद तो कभी गाँधी छाये रहते है . आजकल तो भई जिन्ना जी धूम मचा रहे है , एक इतिहासकर होने के नाते में इस विषय पर लम्बी चर्चा कर सकता हूँ . लेकिन असल मे मुद्दा यह  नही है की जिन्ना ने क्या किया मुद्दा तो यह  है की हमारे राजनेता क्या कर रहे है क्या जिन्ना पर चर्चा करके हम विलंब से चलने वाली ट्रेनो को नियत समय पर ला सकते है . क्या जिन्ना देश मे बढ़ती बेरोजगारी की प्रमुख वजह है ,आज जिन्ना कुछ नही है, जिन्ना थे और जो था उसके लिये तो में इतना कहना चाहूंगा की जब हम लाखो करोड़ो की संपत्ती छोड़कर जाने वाले अपने परदादा को नही याद करते तो जिन्ना को लेकर इतने ज्यादा चिंतित क्यो नजर आते है . 

हो सकता है जिन्ना की वजह से पाकिस्तान जैसे नापाक राष्ट्र का निर्माण हुआ हो पर क्या जिन्ना को याद करके हम इस बात का समर्थन नही करते की उन्होने जो किया वो सही था या गलत . अगर लोगो को इतिहास मे जाने का इतना ही शौक है तो कम से कम शुरुआत तो प्राचीन इतिहास मे हड़प्पा सभ्यता से करते की 5000 साल पहले हमारे पास इतनी विकसित और सुव्यवस्थित सभ्यता थी जितनी आज नही है . आज बस तकनीकीयो मे इजाफा हुआ है पर हम सभ्यता तो भूलते जा रहे है . उसके बाद वैदिक सभ्यता मे आते जहा वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा दी गई , जहा स्त्रियो को समान अधिकार दिये गये , जहा स्त्रिया निडर होकर आवगमन करती थी . जहा महान वेदो की रचना हुई . पूरे इतिहास मे घूम फिर के सीखने के लिये नेहरू और जिन्ना ही मिलते है .

 जिन्ना के जिन्‍न को बोतल से निकलने के पीछे इन राजनेताओ की मंशा समाज मे जहर घोलती राजनीति के सिवा कुछ नही है . अगर जिन्ना का जिन्‍न गड्ढा युक्त सडको को भर सकता है तो बेशक उसे बोतल से निकालिये . अगर जिन्ना का भूत भ्रष्टाचारियो को डरा  सकता है तो उसकी पूजा कीजिये . अगर जिन्ना की आत्मा समाज मे फैलती अशान्ति को शांत कर सकती है तो उसके लिये मोमबत्तियाँ जलाईये . हम इस पर चर्चा करके कुछ नही पा सकते सिवा खुराफाती दिमाग के सुकून के की भारत विभाजन के लिये जिम्मेदार कौन था . सदियाँ निकल जायेंगी परंतु हम सबको संतुष्ट नही कर पायेंगे . परंतु अगर हम आज एक अच्छी सरकार चुनकर लाते है तो आने वाली पीढियाँ अपनी जिंदगी सुकून से जी सकती है और हम पर गर्व कर सकती है . हमे जरूरत है अब सवाल करने की जब तक हम सवाल नही करते तब तक हमे ऐसे ही मुफ्त के बेमतलब वाले मुद्दो मे उलझाकर रखा जायेगा , जब हम सवाल करेंगे तब शुरुआत होगी बदलाव की तब मुद्दे होंगे बिजली, पानी , सड़क , स्वास्थ ,शिक्षा , नारी सुरक्षा ऐसे ही अनेक और मुद्दे जिनकी तकलीफ हमे और आपको अपनी छोटी सी जिंदगी मे उठानी पड़ती है ना की हमारे राजनेताओ को .

deshwa

देशवा  (भोजपुरी कविता )


साहब साहब कहके पुकार मत बाबू
जेके देहले रहले वोट उहे ना बा काबू
खेल बा सब सत्ता के और
नेता हो गईल बाड़े बेकाबू

बोली बोलला मे आगे बाड़े देश के ई नेता
माई के आंख मे आंशु बा और
खून से लथपथ बा बेटा
रोज तमाशा चलअता देश मे ई का होता

हिन्दू , मुस्लिम रहलें इंहा बनके देखअ भाई भाई
मरलें नेता बांट देहले देखअ पाई पाई
अ जतियो मे जात बटलें अब केहके समझाई


अरे बिजली भइल महन्गा देख , सड़क मे अब मछलि पलाई
गरीब रोअता खून के आंशु बढअता महंगाई
की सुनत हई अब हिन्दू कहला से पेट भर जाई

अरे का भइल जो लईका आपन पढके घूमतारें
अरे कुछ ना करिहें त चौराहे पे पकौड़ी त बेचाइ

अब का बोली , का कही और केकरा के समझाइ
खोज अ कौनो और रास्ता जेसे देश सुधर जाई
नेता पे भरोसा नईखे कुलहि बाड़े मौसेरा भाई
राम के जे ना भइल उ जनता के का मुंह दिखलाई










meri muhabbat


मेरी मुहब्बत 


तेरी मासूम मुहब्बत पे दिल  है मेरा ठहरा सा
बहुत सोचा तुझे भुलूँ
पर इश्क़ है गहरा सा

मुहब्बत में जो दिल टूटा
तो आवाज नहीं होती
जो होता है वो कह नहीं सकता
उसकी कहीं फ़रियाद नहीं होती
हमें मालूम था एक दिन ऐसा भी आएगा
जो था खुदा मेरा
वही   तडपायेगा

चाहत है तू मेरी
तुझे कैसे भला भूलूँ
की जी करता है एक बार,  तुझे जरा  छू लूँ

तुझ बिन रात नहीं गुजरती
दिन भी काट खाता है
अब तेरे बिना मुझको
कोई और न भाता है

पारो है तू मेरी, मैं तेरा देवदास हूँ
तेरे बिना  देखो , कितना उदास हूँ
तू मेरी हो जाये , बता वो लकीर कहाँ खींचू
तू कहे तो मुहब्बत के बगिया को
अपने खून से सींचू

तेरी गुस्ताख़ मुहब्बत में दिल ये मेरा ठहरा सा
जाने कौन सी है बंदिशे
है तुझपे कौन पहरा सा

है पहचान नहीं तुझको मेरी मुहब्बत की
जाने कौन सी है दुनिया तेरी जरुरत  की
इन्तजार है तेरा, जब तक जिंदगानी है
यही मेरी  मुहब्बत की, छोटी सी कहानी है .........



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इश्क़ 


इश्क़ के समंदर में डूबते  है  आशिक़ कई 

बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई 

इश्क़ के रोग  का इलाज नहीं 

फिर भी  इस रोग में  पड़ते है कई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना रांझे को हीर मिली, ना शीरी को मिला फरहाद 

इस इश्क़ - मुश्क़ के चक्कर  में ,ना जाने कितने हुए बर्बाद 
ना जाने कितने हुए बर्बाद ,  देखो फिर भी ना  छूटी आशिकी 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

जख्म  मिलता है, मिलती है देखो रुसवाई 

बैरी हो जाते है अपने , और जमाना हो जाता है हरजाई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना  जाने कौन सी दिल्लगी होती है इस इश्क़ में 

जाने  मिलता है कैसा सुकून 
नजरे ढूंढती है दीदार - ए - मुहब्बत 
हम नासमझ क्या जाने , होता है क्या इश्क़ - ए - जूनून 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

नैनो की भाषा है , इनायत है रब की 

दिल में चाहत है ,और है आशिकी
हँसते वे बहुत हैं,
हँसते वे बहुत हैं ,जिसे लगा ये रोग नहीं 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई


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indian rail a journey


भारतीय रेल एक सुहाना सफर 


शादियों के इस मौसम में यदि किसी ने भारतीय रेल का मजा न लिया हो तो मजा कुछ फीका हो जाता है। ऐसे ही एक शादी में मुझे लौटते समय भारतीय रेल की वो सुखद अनुभूति हुई जो अधिकांश भारतीय सालो से करते आ रहे है। 


यात्रा थी बनारस से गोरखपुर के बीच की बहुत ही छोटी सी और संक्षिप्त यात्रा।  सर्वप्रथम तो यह बता दूँ की यह वही बनारस है जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है और जहा की जनता उन्हें आज भी उनके किये वादो के लिए ढूंढ रही है पर उन्हें विदेश यात्राओं से फुर्सत हो तब वे देश की कुछ सुध ले सके खैर वे सुध क्या लेंगे जहाँ वे कहते है की वे वी आई पी कल्चर को नहीं मानते और गाड़ियों पर से बत्तिया हटा दी गई है वही एक बार उनके आगमन के समय मैं bhu कैंपस में ही था जहाँ सड़को पर बैरिकेटिंग के माध्यम से आम जनता की गाड़ियों को घंटो रोक दिया गया यहाँ तक की एम्बुलेंस सेवाओं को भी। इसलिए बनारसवासी 2019 के चुनावों का इन्तजार कर रहे है। ताकि कही वे दिखलाई दे। 


हा तो बनारस की सड़को पे कूदते फांदते (क्योंकि वहा  की कोई भी सड़क समतल नहीं ) हम पहुंचे मंडुआडीह स्टेशन ट्रेन थी मंडुआडीह - गोरखपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस चूँकि ट्रेन में चढ़ने से पहले टिकट लेना आवश्यक था इसलिए टिकट लेने खिड़की की और चल पड़े।

 वहा पहुंचा तो देखा की टिकट खिड़की से शुरू लाइन दीवार ख़त्म होने के बाद घूमकर u  आकार में लगी हुई थी सोचा जाना तो जरुरी है और दोपहर तक कोई ट्रेन भी नहीं है इसलिए हम भी लाइन में लग गए। अभी ट्रेन खुलने में एक घंटा का समय बाकि था सोचा टिकट मिल ही जाएगी। परन्तु लाइन थी जो खिसकने का नाम ही नहीं ले रही थी आगे देखा तो बगल से काफी महिलाये लगी हुई थी और पीछे उनके घर वाले कुछ ऐसे लोग भी थे जो खिड़की पे सीधे जाके  अपना रौब दिखाते हुए टिकट लेने की कोशिश कर रहे थे और हम पीछे वाले पीछे ही रह गए। खैर तभी सूचना मिली की ट्रेन चलने वाली है इस कारण कई लोग काउंटर छोड़ कर ट्रेन पकड़ने निकल लिए   अवसर देखकर हम भी  टिकट के लिए डटे  रहे  और   टिकट लेने में कामयाब रहे। 
indian railway
अब बारी थी ट्रेन के अंदर  घुसने की जिसपर  दरवाजे तक लटकने वालो की अच्छी संख्या थी  जुगाड़ पद्धति के द्वारा आपातकालीन खिड़की से ट्रेन में प्रवेश करने में  कामयाब हुए। अंदर का नजारा और मुर्गे के बाड़े में कोई विशेष अंतर नहीं था बाहर भी कई लोग ऐसे थे जिनसे अब सुपाड़ी न कूची जाये और वे दरवाजे पे बाहर की ओर अपनी जान जोखिम में डालकर  लटके हुए थे।   
   
कभी सोचता हूँ सरकार की मोटर साइकिल पर तीन सवारियों पर ओवरलोडिंग में   चालान काटती है  परन्तु इसका क्या। 

खैर ट्रेन अपने निर्धारित समय से प्रारम्भ स्थान से ही खुलने में दो घंटे ले लेती है। और लोग अंदर  राहत की सांस लेते है। वैसे राहत के नाम पर बस एक दुसरे के ऊपर चढ़े लोग स्टेशनो का नाम  बताने और पूछने  में मशगूल थे। आने वाले स्टेशनो पर ट्रेन के अंदर घुसने के लिए होने वाली  धक्कामुक्की और न घुस पाने  वाले बेबस चेहरे ही थे। बाकि बहुत से नज़ारे ऐसे थे जो सोचने पे मजबूर करते थे की क्या वाकई हमारी सरकार हमें इंसान समझती है या वोट देने वाले जानवर। 


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