सामजिक मुद्दे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सामजिक मुद्दे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

indian rail a journey


भारतीय रेल एक सुहाना सफर 


शादियों के इस मौसम में यदि किसी ने भारतीय रेल का मजा न लिया हो तो मजा कुछ फीका हो जाता है। ऐसे ही एक शादी में मुझे लौटते समय भारतीय रेल की वो सुखद अनुभूति हुई जो अधिकांश भारतीय सालो से करते आ रहे है। 


यात्रा थी बनारस से गोरखपुर के बीच की बहुत ही छोटी सी और संक्षिप्त यात्रा।  सर्वप्रथम तो यह बता दूँ की यह वही बनारस है जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है और जहा की जनता उन्हें आज भी उनके किये वादो के लिए ढूंढ रही है पर उन्हें विदेश यात्राओं से फुर्सत हो तब वे देश की कुछ सुध ले सके खैर वे सुध क्या लेंगे जहाँ वे कहते है की वे वी आई पी कल्चर को नहीं मानते और गाड़ियों पर से बत्तिया हटा दी गई है वही एक बार उनके आगमन के समय मैं bhu कैंपस में ही था जहाँ सड़को पर बैरिकेटिंग के माध्यम से आम जनता की गाड़ियों को घंटो रोक दिया गया यहाँ तक की एम्बुलेंस सेवाओं को भी। इसलिए बनारसवासी 2019 के चुनावों का इन्तजार कर रहे है। ताकि कही वे दिखलाई दे। 


हा तो बनारस की सड़को पे कूदते फांदते (क्योंकि वहा  की कोई भी सड़क समतल नहीं ) हम पहुंचे मंडुआडीह स्टेशन ट्रेन थी मंडुआडीह - गोरखपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस चूँकि ट्रेन में चढ़ने से पहले टिकट लेना आवश्यक था इसलिए टिकट लेने खिड़की की और चल पड़े।

 वहा पहुंचा तो देखा की टिकट खिड़की से शुरू लाइन दीवार ख़त्म होने के बाद घूमकर u  आकार में लगी हुई थी सोचा जाना तो जरुरी है और दोपहर तक कोई ट्रेन भी नहीं है इसलिए हम भी लाइन में लग गए। अभी ट्रेन खुलने में एक घंटा का समय बाकि था सोचा टिकट मिल ही जाएगी। परन्तु लाइन थी जो खिसकने का नाम ही नहीं ले रही थी आगे देखा तो बगल से काफी महिलाये लगी हुई थी और पीछे उनके घर वाले कुछ ऐसे लोग भी थे जो खिड़की पे सीधे जाके  अपना रौब दिखाते हुए टिकट लेने की कोशिश कर रहे थे और हम पीछे वाले पीछे ही रह गए। खैर तभी सूचना मिली की ट्रेन चलने वाली है इस कारण कई लोग काउंटर छोड़ कर ट्रेन पकड़ने निकल लिए   अवसर देखकर हम भी  टिकट के लिए डटे  रहे  और   टिकट लेने में कामयाब रहे। 
indian railway
अब बारी थी ट्रेन के अंदर  घुसने की जिसपर  दरवाजे तक लटकने वालो की अच्छी संख्या थी  जुगाड़ पद्धति के द्वारा आपातकालीन खिड़की से ट्रेन में प्रवेश करने में  कामयाब हुए। अंदर का नजारा और मुर्गे के बाड़े में कोई विशेष अंतर नहीं था बाहर भी कई लोग ऐसे थे जिनसे अब सुपाड़ी न कूची जाये और वे दरवाजे पे बाहर की ओर अपनी जान जोखिम में डालकर  लटके हुए थे।   
   
कभी सोचता हूँ सरकार की मोटर साइकिल पर तीन सवारियों पर ओवरलोडिंग में   चालान काटती है  परन्तु इसका क्या। 

खैर ट्रेन अपने निर्धारित समय से प्रारम्भ स्थान से ही खुलने में दो घंटे ले लेती है। और लोग अंदर  राहत की सांस लेते है। वैसे राहत के नाम पर बस एक दुसरे के ऊपर चढ़े लोग स्टेशनो का नाम  बताने और पूछने  में मशगूल थे। आने वाले स्टेशनो पर ट्रेन के अंदर घुसने के लिए होने वाली  धक्कामुक्की और न घुस पाने  वाले बेबस चेहरे ही थे। बाकि बहुत से नज़ारे ऐसे थे जो सोचने पे मजबूर करते थे की क्या वाकई हमारी सरकार हमें इंसान समझती है या वोट देने वाले जानवर। 


इन्हे भी पढ़े - 

हम जातिवादी हो चुके है






  

congress family and country

कांग्रेस, परिवारवाद और देश


congress family and country


देश की सबसे बड़ी राष्‍ट्रीय पार्टीयो मे से एक कांग्रेस आज एक बार फिर अपने बुरे दौर से गुजर रही है . कांग्रेस पार्टी और उसके आलाकमान को आवश्यकता है की एक बार फिर से अपनी सम्पूर्ण राजनीतिक गतिविधियो की निस्पक्ष रूप से समीक्षा करे और कुछ बेहतरीन चेहरो को महत्वपूर्ण जिम्मेदारिया देकर आगे करे .
कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यह है की वह एक परिवार विशेष तक सिमट कर रह गई है और अपने राजनीतिक स्वार्थ हेतु पार्टी मे किसी के अंदर इतनी हिमाकत नही है की वह इस बात को स्वीकार करे और परिवार का बर्चस्व पार्टी से समाप्त करे . एक अच्छी सरकार के साथ एक मजबूत विपक्ष का होना भी आवश्यक है जिससे सरकार से संसद से लेकर सड़क तक मजबूती से सवाल किया जा सके . परंतु कहते है न सत्ता का नशा ऐसा है जिसके आगे सारे नशे फेल हो जाते है . वैसा ही नशा विदेश से आई एक महिला के अंदर भी समाहित हो चुका है जिसकी परिणिती आज कांग्रेस पार्टी भुगत रही है .
यदि आप वास्तव मे एक ऐसे देश का भला चाहते है जिसने आपको स्वीकार करते हुए देश को आगे ले जाने का मौका दिया है तो आप का फर्ज है की वास्तविकता को समझते हुए देशहित मे कार्य करे . अगर आप ऐसा नही करते तो कही ना कही आपकी महत्वाकांक्षा सामने आती है .पर्दे के पीछे से सत्ता नियंत्रण वही करते है जो जनता के प्रति जिम्मेदार नही होते और अपनी लूट खसोट की नीति को आगे बढ़ाते  है.  आज सरकार मे कुछ भी घटित होने पर जिस प्रकार मोदी को जिम्मेदार ठहराया जाता है संप्रग शासन काल मे पहला निशाना मनमोहन सिंह की चुप्पी होती थी परंतु उस चुप्पी के पीछे की वजह बताने कोई आगे नही आता था .

2014 का परिणाम उसी चुप्पी का नतीजा है जिसका खामियाजा आज भी कांग्रेस भुगत रही है . कांग्रेस आज केवल सरकार  की कमजोरी और सत्ता विरोधी लहर के सपने देख रही है जिसके बूते वो अपनी वापसी कर सके नाकी अपने नेतृत्व के भरोसे आज उसे छोटी - छोटी क्षेत्रीय पार्टीयो का पिछ्ल्गु बनने मे भी गुरेज नही है . सोनिया गाँधी ने सरकार को कठपुतली की तरह नचाया और सत्ता बरकरार रखने के लिये देश की साख से भी खिलवाड़ किया उसी का परिणाम है की जनता कांग्रेस को विपक्ष के रूप मे भी नही देखना चाहती . उपचुनावो मे भी कांग्रेस आज अपनी जमानत नही बचा पा रही है . आखिर बाप दादा के नाम पर देश कब तक कांग्रेस को ढोती रहेगी . कांग्रेस की चर्चा होने पर अक्सर ही इंदिरा से लेकर राजीव ,नेहरू का जिक्र होता है क्या भविष्य मे जनता सोनिया या राहुल का जिक्र भी उसी अनुसार करेगी .
कांग्रेस मे आज भी नेताओ की कमी नही है परंतु नेहरू काल से ही विकसित वफादारी की परम्परा आजतक कायम है . कांग्रेसी नेताओ को समझना चाहिये की वफादारी पार्टी से और देश की जनता के प्रति होनी चाहिये ना की परिवार से . आज अगर उन्होने थोड़ी सी भी वफादारी देश के प्रति दिखाई होती तो जनता एक बार उनके विषय मे अवश्य ही  चिंतन करती . परंतु आज यदि कांग्रेस अपने हर बात मे अतीत का जिक्र करना छोड़ दे और वर्तमान के मुद्दो को लेकर चले तो भ्रस्टाचार से लेकर तुष्टिकरण तक की नीति मे उसके पास कोई जवाब नही रह जाता . बांटो और राज करो की नीति से जिस पार्टी की शुरुआत हुई थी वह आज उसी को लेकर भाजपा पर इल्जाम लगाती दिख रही है आखिर कांग्रेस ने कुछ तो ऐसा जरूर किया होगा जिसकी वजह से विश्व के सबसे बड़े हिन्दू राष्ट्र का हिन्दू भी उससे कतराने लगा है . आज राहुल गाँधी मंदिरो के चक्कर लगाने पे मजबूर है आखिर किसी ना किसी प्रकार का सर्वे उनके पास जरूर आया होगा जिससे वे  ऐसा करने पर मजबूर है .


इन्हे भी पढ़े - 

राहुल गाँधी और सिंगापुर का सच

hindutw


हिंदुत्व का मतलब समझा दो मुझे  hindutw ka matlab samjha do mujhe 

hindutw

आज अगर में हिन्दुत्व की बात करू तो मुझे किसी न किसी पार्टी से जरूर जोड़कर देखा जायेगा चाहे मेरी बात सकारात्मक हो या नकारात्मक . दरअसल आज हर धर्म अपने राजनीतिक रंग मे रंग चुका है ऐसा इसलिये संभव हुआ है क्योकी धर्म ही एक ऐसा माध्यम है  जो व्यक्ति की आस्था और अटूट विश्‍वास से जुड़ा हुआ है  जिसके फलस्वरूप वो अपना कीमती वोट भी धर्म के नाम पे अनुचित रुख अख्तियार करनेवाली पार्टीयो को दे सकता है . यही कारण है की  राजनीतिक पार्टीयो ने समाज को बरगलाने के लिये सर्वप्रथम धर्म को हथियार बनाया है उसके बाद जाति को . एक और बड़ी चीज जो पहले से विद्यमान थी और जो हमारी रग- रग  मे बसती है उस देशभक्ति और भारत मां का भी कापीराइट करा लिया गया है , यानी की अब धर्म से लेकर देशभक्ति तक सब मे  राजनीति समाहित हो चुकी है .


इन सब के साथ साथ रंग भी राजनीति की चासनी मे डूब चुके है और अलग - अलग पार्टीयो ने इसपर भी अधिकार जमा लिया है .

आप सोच रहे होंगे की हिन्दुत्व की बात करने से पहले इतनी भूमिका क्यो ? तो बात सॉफ है की हम भी पाक सॉफ है और साथ मे एक सच्चे हिन्दू भी जो की मानवतावादी है , जिसका धर्म उसे उन्माद फैलाने को नही कहता जिसके धर्म ने भारत माता  का कापीराइट नही कराया है और इस देश पे उतना ही सबका हक है जितना की मेरा .  देशभक्त होने के लिये मुझे अब इन राजनीतिक पार्टीयो के प्रमाणपत्र की जरूरत नही जिनका खुद का कोई ईमान नही होता जो अपनी भारत माँ  का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक हित  के लिये करते है बल्कि इनसे बड़ा देश द्रोही तो कोई और नही हो सकता जो अपनी माँ  का सौदा करते है जो  उस मां का दामन उसके  ही सपूतो को आपस मे लड़वा कर  खून से लाल करते हो  .

हिदुत्व हमे ये शिक्षा नही देता की हम उसमे राजनीति का मिश्रण करे , जिस हिन्दू धर्म के संस्कार का हम पालन करते है , हम उसकी विशेषताओ और सम्पूर्ण समाज के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर कहते है की हमे ऐसे धर्म पे गर्व है जो की हमे शिक्षा देता है की संसार के कल्याण हेतु यदि प्राणो का न्योछावर भी करना पड़े तो हम हर्ष के साथ  उसका त्याग करदे जैसे की महर्षि दधीचि ने किया था . नाकी धर्म के नाम पर अपने ही भाई  - बन्धुओ  से बैर रखे . हिन्दू धर्म मे ही वसुधैव - कुटुम्बकम की अवधारणा दी गई है और इसी हिन्दू धर्म मे हमे सभी धर्मो का आदर करना भी सिखाया गया है . लेकिन अब हम अपने धार्मिक ग्रंथो को कहा पढ़ते है अब तो हमे जैसा दिखाया जाता है वैसा देखते है और जैसा सिखाया जाता है वैसा सीखते  है . अब तो बस हम हिन्दुत्व पे इसलिये गर्व करते है की हम बहुसंख्यक है , हम सरकार बनाते है वास्तविक गर्व का कारण  तो हमे पता ही नही है नही तो कई लोग हिन्दू कहलाने के लायक भी नही है . 


इन्हे भी पढ़े  - 

wah re sharma jee

वाह रे शर्मा जी wah re sharma jee 


बीवी और टीवी ये दोनों दूर से ही चले तो अच्छी है पास से देखने पे एक आँखों के लिए नुकसानदायक है और दूसरा मन की शांति के लिए।और इसीलिए लगता है की दोनों ही रिमोट से चलती तो कितना अच्छा होता।  

शर्मा जी आज सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते वक़्त यही सोच रहे थे की आज सुबह उनसे ऐसी कौन सी खता हो गई की उनकी बीवी उनपे ट्रक के हार्न की तरह बजती ही जा रही है। सुबह उन्होंने बस इतना ही तो कहा था की आज नाश्ते में आलू के पराठें की  जगह मूली के परांठे बन जाये तो  उन्होंने ऐसा कौन सा गुनाह कर  दिया ये अलग बात है की शर्मा जी को गैस की प्रॉब्लम है पर बीवी को क्या समस्या  थी, नहीं बनाना था तो एक बार बोल ही  दी होती सर पे आसमां उठाने की क्या जरुरत थी। 

अभी कल ही मुंह से बस गलती से ही निकल गया की कानपुर भारत  के सबसे गंदे शहरो में से एक है वहा  स्वच्छ भारत अभियान की धज्जिया उड़ रही है   फिर क्या  फिर तो ना जाने कितनी बुराइया मुझमे और नैनीताल शहर में निकल आई दोपहर के खाने तक से महरूम होना पड़ा  वो अलग , अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की  शर्मा जी नैनीताल के थे और उनकी श्रीमती जी कानपूर की। भला कानपुर की बुराई करना उनके मायके की बुराई करने से कम थोड़ी न था। 

खैर शर्मा जी ने अपना ध्यान सामने आई मुसीबत से हटाकर डाइनिंग टेबल पर रखे आलू के परांठे , धनिया और टमाटर की चटनी पे लगाया। नाश्ता खत्म होते ही वे घर के जरुरी कामों की सूची मांगने ,हिम्मत करके श्रीमती जी के पास पहुंचे, देखे तो श्रीमती जी के चेहरे पे कुटिल मुस्कान झलक रही थी ,वे  मन ही मन सोचने लगे  इतनी जल्दी तो गिरगिट भी  अपना रंग नहीं बदलता  जरूर दाल में कुछ काला है।  

श्रीमती जी बोली - " सुना है आपका प्रमोशन होने वाला है "
शर्मा जी - " हाँ तो "
श्रीमती जी  - " मैं सोच रही थी की आपके प्रमोशन के बाद हम कुछ दिनों के लिए कानपुर  घूमने चले "
शर्मा जी - " ठीक है देखता हूँ। " कहकर शर्मा जी ने वह से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। 

wah re sharma jee


शर्मा जी रास्ते में यही सोच रहे थे की पिछले हफ्ते   बाबू जी का फ़ोन आने पर घर में कैसे तहलका मच गया था। मां की तबियत अचानक ही ख़राब हो गई थी और उनकी देख रेख करने वाला वहा  पर कोई नहीं था।  बड़े भाई साहब परिवार समेत विदेश में जा बसे थे और उन्हें सबसे कोई मतलब ही नहीं था और छोटा भाई आई आई टी से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था। एक मैं ही था जिनसे उनकी उम्मीद कायम थी , मैंने भी कई बार उनको अपने पास लाने की कोशिश की पर वे अपना पुश्तैनी मकान  छोड़ने को तैयार ही  नहीं थे। आखिर होते भी क्यों वो मकान नहीं  घर था हमारा जिससे हमारी अनेक यादें जुडी थी , ये यादें ही तो थी जिनके सहारे उनकी जिंदगी गुजर रही थी। 

अगले दिन ही शर्मा जी घर से ऑफिस के किसी काम का बहाना लेकर अपने गांव निकल लिए , आखिर उस मां  के लिए उनके भी कुछ फर्ज थे जिसका अंश वे है। जिसकी ऊँगली पकड़ के वे इतने बड़े हुए और जिसकी ममता की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती।  एक अजीब सी शांति और संतोष था शर्मा जी के चेहरे पर क्योंकि वे परिवार में संतुलन बनाना जान गए थे। और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से  निभाना भी। 




इन्हे भी पढ़े - 

कानपुर वाले पांडेय जी 




population

भारत की जनसँख्या (population of India)






 स्टेशन पे खचाखच भरी रेल गाड़ी आते ही धक्का – मुक्की , गाली गलौच और झगड़े का दौर शुरु हो जाता है , दरवाजे तक लटके लोग और उसी डिब्बे मे चढ़ने के लिये लगी कतार , अंदर सांस लेने की जगह नही एक दूसरे के उपर चढ़े लोग . ये आम नजारा आपमे से अधिकांश लोगो ने देखा होगा महसूस इसलिये नही किया होगा की भई हमारे पास तो पैसा है .पहले से ही वातानुकूलित या शयनयान श्रेणी मे सीट आरक्षित करा रखी है . पर क्या चार दिन बाद या महीने बाद का आरक्षण भी आपको आसानी से मिल जाता है. 

crowd in india
bheed 

अब सडको को ही ले लीजिये हर साल लगभग 5 लाख दुर्घटनाए होती है और लगभग 1.5 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है . मैं खुद घर से बाहर निकलने पर भगवान से अपनी सलामती की दुआ मांगकर निकलता हूँ , क्योंकि हम अपनी गलती तो छोड़ दीजिये दूसरो की गलती का ज्यादा शिकार होते है . कल जिस सिंगल रोड पे आराम  से यात्रा हो जाती थी आज फोरलेन होने के बाद भी गाडियाँ जाम मे अपना समय और संसाधन दोनो बर्बाद कर रही है . देश की क्रियाशील जनसंख्या का अधिकांश समय जाम मे ही निकल जाता है . 

हर साल बढ़ती बेरोजगारो की फ़ौज , कृषि योग्य भूमि मे होती कमी , कंक्रीट के छतो की बढ़ती मांग , प्राकृतिक संसाधनो का तेजी से दोहन , मांग और पूर्ति मे बढ़ता अंतर , अधिकांश क्षेत्रो मे जल का अकाल क्या ये जनसंख्या विस्फोट का संकेत है या शायद होना शुरु हो चुका है .

एक घर मे यदि सद्स्यो की संख्या बढ़ने लगती है तो उसमे नये कक्ष का निर्माण या दूसरे जगह नया घर ही बना लिया जाता है . पर हम इस नयर धरा का निर्माण कहा से करेंगे . बांग्लादेश जनसंख्या विस्फोट का प्रमुख उदाहरण है रोहिन्ग्या शरणार्थी इसी का परिणाम थे . बांग्लादेश मे सडको पे पैदल चलने वालो की इतनी भीड़ रहती है की उनके लिये रेड और ग्रीन सिग्नल बने है . अभी तो संचार क्रांति ने कई जगहो पर लगने वाली कतार को कम कर दिया नही तो ज़िंदगी का 1/3 हिस्सा लाइनो मे ही निकल जाता .दिल्ली जैसे महानगरो मे तो सांस लेना भी दुश्वार हो गया है.

यही हाल रहा तो पूरे देश मे दिल्ली जैसी भयावह स्थिति होगी.बढ़ती जनसँख्या से हम अपने देश में प्रति व्यक्ति भोजन की गुणवत्ता को नहीं दे पाते जिस कारण  व्यक्ति के काम करने की क्षमता में कमी आती है। हमारे देश के संसाधन सीमित है तथा जनसँख्या बढ़ने पर उनपर दबाव पड़ना लाजिमी है ,उपलब्ध जनसँख्या भी रोजगार से लेकर संसाधनों को जुटाने तक तनाव ग्रस्त रहती है। एक तरफ जहा राजनीतिक पार्टियों द्वारा स्वयं की  स्वार्थ सिद्धि  और अपने - अपने वोट बैंक बढ़ाने हेतु इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है वही आने वाले चंद  सालो में ही इसके भीषण परिणाम देखने को मिलेंगे। 

फिलहाल मौजूदा महंगाई को देखते हुए एक बच्चे का भरण पोषण बेहतर तरीके से हो जाये वर्तमान समय में यही बेहतर है , सरकार करे चाहे न करे लेकिन आम आदमी अपनी समस्या को देखते हुए और होने वाले बच्चे के उज्जवल भविष्य हेतु वही कार्य करेगा जो उसके हित  में है। 

"क्योंकि छोटा परिवार सुखी परिवार "

इन्हे भी पढ़े - बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 
             

vinashkale

vinash kale vipreet buddhi in hindi

विनाश काले  विपरीत बुद्धि  

आज से 200 साल पहले समाज मे बाल विवाह , सती प्रथा जैसी अनेक कुप्रथायें विद्यमान थी . राजा राम मोहन राय द्वारा इन कुप्रथाओ के खिलाफ आवाज उठाई गई . उन्हे भारी विरोध का सामना करना पड़ा ,अनेक धर्मगुरुओ ने उन्हे जान से मरवाने की धमकी तक दे डाली पर पर उन्होने वही किया जो समाज और मानवता के लिये आवश्यक था . 
kaliyug
अँधेरा 

भारतीय समाज अपने विकास की ओर अग्रसर है . पर एक विकसित समाज ऐसी सत्ता के लिये घातक है . जिसका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियो और स्वार्थी समूहो के सहयोग से अपनी सत्ता बनाये रखना है . संसार मे प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है . जो परिवर्तित नही होता है वो अपनी महत्ता खो बैठता है. आर्यो के आगमन से लेकर अंग्रेजो की ग़ुलामी तक भारत ने अनेको उतार चढाव देखे है , हर काल एक विशेष नाम से जाना जाता है . जो उस काल की विशेषता इंगित करता है .

वर्तमान भारतीय समाज के लिये मुझे कुछ कहना होगा तो में सिर्फ यही कहूँगा "चाहे वो परिवार हो या सरकार सब स्वार्थ , धन और सत्ता के खेल मे लीन है " .

सहयोग , भाईचारा , अपनत्व , दया , क्षमा सहनशीलता जैसे गुणो का समाज से निरंतर हास् होते जा रहा है. रिश्ते शर्मशार हो रहे है . वास्तव मे पुराणो के अनुसार कलियुग की शुरुआत हो चुकी है तो इसका अंत कितना भयावह होगा कल्पना से परे है . यदि समाज विकास की ओर अग्रसर है तो ये कैसा सामाजिक विकास है जहां घर के बुजुर्गो को एक बोझ की तरह समझा जाने लगा है , जहां पड़ोस मे रहने वाले एक अजनबी है , जहां रिश्ते ही रिश्तो को कलंकित करते जा रहे है , जहा बहू बेटिया घर के बाहर से लेकर अंदर तक असुरक्षित है . जहां बेटा खुद बाप बन बैठा है . जहां पैसा ही ईमान ,धर्म और आदमी की पहचान बन चुका है और इंसान एक मशीन . और मशीन सोचा कहा करती है , कहते है की इंसान के  अंदर क्रोध की भावना जितना अधिक बढ़ते जाएगी कलियुग उतना ही करीब आते जायेगा। इंसान और मशीन में फर्क करना मुश्किल हो जायेगा उसकी बुद्धि और विवेक दोनों ही निष्क्रिय हो जायेंगे। 

पति और पत्नी का  सम्बन्ध नाम मात्र का रह जायेगा दोनों ही एक दुसरे के विश्वास पात्र नहीं रह जायेंगे। बुद्धि ही इंसान को भ्रमित करने लगेगी और अपनी बुद्धि से नियंत्रण खो देगा.पुराणों में कुछ इसी प्रकार कलियुग की शुरुआत की बात कही गई है और कहा गया है की इसी समय भगवान् श्रीकृष्ण का कल्कि अवतार धरती पर अवतरित होगा।  उसके पश्चात् सम्पूर्ण धरती जलमग्न हो जाएगी। और १५००० वर्ष की रिक्ति के बाद धरती पे सतयुग की शुरुआत होगी। 
वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है की जिस प्रकार मनुष्य छोटी छोटी बातों में अपना आप खोते जा रहा है धन के पीछे अपनों का ही गाला काटने को आतुर है और उसकी सारी  चारित्रिक विशेषताएं नष्ट होते जा रही है कलियुग की शुरुआत  हो चुकी  है। अब तो बस इस विनाश काल की शुरुआत में ईश्वर भक्ति में लीन  होकर दुषग्रहो के प्रभाव से अपनी बुद्धि और  विवेक की सलामती की दुआ ईश्वर से मांगनी चाहिए।    

ये भी पढ़े - 

अध्यात्म की शुरुआत 


castism



जाति क्यों नहीं जाती


ज़िन्दा थे तो बे बेनूर थे और मारके कोहिनूर बना दिया हुक्मराणो ने रायजी. . सब तो चले गये जहाँन से पर स्वर्ग मे दरबारियों ने जाति ना पुच्छी .


अंग्रेजो को जब लग गया की भारत मे रहना अब उनके बस की बात नही है और व़े अधिक दिनो तक अपना नियंत्रण नही बनाये रख सकते तो उन्होने सामरिक महत्व की इस धरती को बांटने का फैसला किया . भारत की जनता से बड़ा और ताकतवर विरोधी उसके सामने कोई नही था . उन्होने उसमे सेध लगाने के लिये अपने अधिकरिओ से रिपोर्ट मांगी उन्होने बताया की धर्म ही ऐसा एक मुद्दा है जो की भारतीय समाज की जडो मे गहराई तक विद्यमान है. यहाँ के लोग धर्म गुरुओ की बातों पर आंख मूंद कर विस्वास करते है . डाक्टरो से ज्यादा भीड़ ओझओ और सोखाओ के पास रहती है .


पर यहाँ जातियॉ मे कोई वैमनस्य नही है सबके कार्य क्षेत्र बंटे हुए है और सब अपना त्योहार मिलजुल कर मानते है . यहाँ दरगाहो पे हिन्दू और मुस्लिम दोनो ही सजदे मे सिर् झुकते है. एक दूसरे की शादियों से लेकर गांवो मे पड़ने वाले हर सामूहिक समारोहो मे भी भाग लेते है .


 अंगेरेजो ने अपना पूरा शोध करने के बाद पाया की केवल धर्म ही ऐसा मुद्दा है जिससे इनमे फुट डाला जा सकता है . उस समय संचार के साधन नही के बराबर होते थे. पत्रकारिता व्यापार ना होकर समाज सेवा का माध्यम थी जिसे अनुदान द्वारा संचालित किया जाता था . उस पर भी अंग्रेज़ी सरकार द्वारा कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये जाते थे. जिनसे समाचर पात्रो का चोरी – चुपके संचालन होता था . 

लोग भी शिक्षित नही होते थे गाँव मे कोई एक ही ऐसा आदमी होता था जो अखबार पढ पाता था इस करण सब लोग एक जगह इकट्ठा होकर समाचर सुना करते थे और उस पर चर्चा किया करते थे . ग़ुलाम भारत केवल अंग्रेजो का ग़ुलाम था ना की अपनी घृणित मानसिकता का . 


अग्रेजो ने भारतीयो की धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वासो का भरपूर फायदा उठाया और उनमे फुट डालने मे कामयाब हो गये जाते जाते उन्होने दुनिया मे अहिंसा के जनक गाँधी के भारत मे ऐसी हिंसा को जन्म दिया जिसने सम्पूर्ण मानवता को शर्मशार कर दिया . अंग्रेजो द्वारा बोयो गये इस बीज को भारतीय राजनेताओ ने अपने अपने तरीके से सींचा और उसकी अनेको नई प्रजातियाँ तैयार की किसी ने दलित का पौधा बनाया तो किसी ने सवर्ण का तो किसी ने पिछड़ी का ,

हिन्दू और मुसलमान का तो विशालकाय वृक्ष ही खड़ा कर दिया , और हम कहते है ” एक भारत अखंड भारत "


must read - .kanpur 

Beti Bachao Beti Padhao

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  beti bachao beti padhao


logo
बेटी बचाओ 

जाते जाते कल्लू आज अपने सातवे बच्चे (लड़के)के सत्ताइसा का न्योता देता गया . छह लड़कियों के बाद उसे एक लड़का हुआ था. दो बार उसकी पत्नी मरते मरते बची उसकी बड़ी लड़की 15 साल की हो गई थी पर लड़के की चाह न छूटी .

 बगल के शर्मा जी दो बार अपनी बहू का गर्भपात करवा चुके है दोनो ही लड़कियां थी, शर्मा जी पेशे से शिक्षक है और एक बालिका इंटर कॉलेज मे अध्यापन कार्य करते है उनके विद्यालय की ही एक छात्रा ने आई आई टी प्रवेश परीक्षा मे परीक्षा मे प्रथम स्थान प्राप्त किया था.


शर्मा जी और मेरे घर काम करने वाली बाई एक ही है नाम है मालती . इस कारण शर्मा जी के घर होने वाली बाते अक्सर अपनी मालकिन से बताया करती थी , उसकी खुद की दो बेटियाँ थी तथा एक बेटा, बेटा सबसे बड़ा था व गलत संगति और बुरी आदतो का शिकार था, वो मेहनत मजदूरी करके अपनी दोनो लड़कियों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया करती थी.


 वो कहती थी की साहब सब अपने सोचने की बात है भगवान ने धन और विद्या दोनो के लिये देविओ को ही चुना देवताओ को क्यो नही ? क्योंकि उन्हे पता था दोनो को संभालने की छ्मता केवल इन्ही के पास है.


 लड़कियां मालविका और नेहा दोनो शर्मा जी के विद्यालय की ही छात्रा थी कोचिंग की फीस ना होने के कारण दोनो ही शाम के समय मुझसे पढ़ा करती थी नेहा का इंटर फाइनल था. मेरी श्रीमती जी आज सुबह से परेशान थी तबियत खराब होने की वजह से घर का काम कर पाने वो असमर्थ थी तथा मालती का आज सुबह से ही कुछ पता नही था.


 वैसे तो वो अपने ना आने की सूचना दे देती थी पर जाने क्यो आज कोई खबर नही आई इस कारण काम का सारा बोझ मुझ पर आ पड़ा ,सुबह का अखबार तक नही पढ सका. शाम को घर आने पे पता चला की मालती की कोई खबर नही


 अब तो चिंता बढ गई तथा मैं किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित हो उठा तभी अचानक से घंटी बजी श्रीमती जी ने दरवाज़ा खोला - मालती के साथ उसकी बड़ी बेटी थी और उसके हाथ मे एक डब्बा और अखबार था और आंखो मे अश्रु की धारा .


 अंदर आते ही नेहा मेरा पेर छुने लगी . हम कुछ पूछते उससे पहले ही वो बताने लगी की कैसे आज सुबह अखबार आते है आस - पड़ोस के लोगो का उसके घर पे जमावड़ा लग गया था उन लोगो ने उसे अखबार

 Beti Bachao Beti Padhao

दिखाया और बताया की उसकी बेटी ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा मे अव्वल स्थान प्राप्त किया है


 वे अखबार के पहले पन्ने पर छपी उसकी बेटी की फोटो दिखाने लगे और बताने लगे की अगले हफ्ते मुख्यमन्त्री द्वारा उसकी बेटी के लिये एक सम्मान समारोह भी है.


 सब उसकी बेटी से मिलकर उसे बधाई देना चाह रहे थे जिसने उनके मुहल्ले का नाम रोशन कर दिया जो की आजतक किसी का बेटा नही कर सका.



अवश्य पढ़े - 


zindaagi ki saarthakta

इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें

SPECIAL POST

uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...