jewan mantr



जीवन मन्त्र  

jewan mantr


शब्दों के जाल बिछाने वाले 
कुछ कर्मो के  करतब दिखलाओ 
वाणी से मिसरी घोलने वाले 
तुम मर्म किसी का क्या जानो 
अर्थ का अनर्थ बनाने वाले, कुछ विषधरों को तुम अब पहचानो 
है स्पष्ट ,सरल , गूढ़  मन्त्र जीवन का ये 
तुम मानो या ना मानो 

कुछ निंदा करके क्या पाया 
सिर्फ जिन्दा रहके क्या पाया 
क्यों उचित को अनुचित में बदला 
रिश्तो को विचलित करके क्या पाया 

कुछ दम्भ भरा खुद का यूँ 
कुछ अहम् हृदय में समाया 
ज्ञान का दीपक बुझा दिया कब 
देर समझ में ये आया 

कब विवेक को छोड़ दिया तूने 
कब धैर्य तुझे ना रास आया 
लोभ ने छीनी अन्तः ज्योति 
मोह में तूं है अंधराया 

कब छूटे तुझसे ये धरा 
क्या जग को तूं दे पाया 
यहाँ जन्म ना तेरी चाह से 
मृत्यु तक तूं ये ना समझ पाया 




hoshiyar ki talash


होशियार की तलाश 


शरीफ आदमी की तलाश करते - करते ना जाने कितने ही  शराफत वालो के असली रंग देखने को मिले।  शरीफ दिखना और शरीफ होना इस फर्क को समझने में दिमाग  की कई नसों ने काम करना बंद कर दिया । वास्तव में आज बेवकूफ कोई भी नहीं है , लेकिन फिर भी होशियार लोगो की कमी देखने को मिलती है ।  होशियारी की परिभाषा जानने के लिए जब बुजुर्गो का अनुभव लेने पहुंचे तो पता चला की , आज के युग में जो पैसा कमा रहा है ,चाहे माध्यम कोई भी और कैसा भी क्यों ना हो वो सबसे होशियार है।  हालांकि ऐसे अनुभव बांटने वाले खुद अपने बेटे - बहु पर आश्रित थे । कुछ के अनुसार दूसरो से चालाकी पूर्वक काम निकालने वाला भी आज के युग में होशियार की उपाधि धारण करता है। 


कुछ सज्जनो ने आपस में विचार विमर्श के फलस्वरूप  ऐसे लोगो को होशियार बताया जो सरकारी नौकरी करते हुए घर से दूर एकांत में परिवार ( धर्मपत्नी ) के साथ जीवन यापन कर रहे है । ना घर पर रहेंगे ना रिश्तेदारों से लेकर नातेदारों का कोई चक्कर रहेगा । 

महिलाओं की राय इतर थी।  उनके अनुसार वह बहु ज्यादा होशियार है जो शादी के बाद बेटे के साथ चली जाती है और घर पर सास - ससुर का हाल - चाल लेने के लिए हफ्ते में एक बार जिओ के मोबाईल से आमने - सामने बतिया लेती है , हाँ दिखावटी मिठास में कोई  कमी नहीं करती । 

इन तथ्यों से मुझे यह समझ में आ गया की होशियार वही है जिसने अपनापन , दया , मर्यादा , लज्जा , सेवा , मृदुता ,फर्ज और कर्तव्य जैसे अवगुणो का त्याग करते हुए अवसरवादिता , घमंड , लालच , निष्ठुरता , कटुता या कठोरता के साथ धोखा देने जैसे सद्गुणों को अपना लिया है। 

मैंने इतिहास को थोड़ा टटोलने की कोशिश की तो पता चला कबीर गरीब होते हुए भी होशियार थे और सिकंदर विश्व विजेता होने के बावजूद भी नासमझ था। 
अपना काम किसी भी सूरत में निकलने वाले को इतिहास ने मतलबी और और इसकी हद पार करने वाले जयचंद जैसो को गद्दार कहा है।
पारिवारिक  जीवन में ऐसी बहुओं को समाज में कोई इज्जत नहीं दी जाती थी जो अपने घर की मान मर्यादा के साथ बड़ो की सेवा ना करती हो।  इन बड़ो में चचेरे सास - ससुर से लेकर सम्पूर्ण कुटुंबवासी आते थे। 

इतिहास और वर्तमान की बदली हुई यह परिभाषा कहीं  ना कहीं समाज की उस बदलती सोच को दिखाती  है जिसमे जाने - अनजाने खुशियों की नई परिभाषा गढ़ी गई है। और हमरा  मन उसी को पाने की लालसा कर बैठता है।  समाज, परिवार से मिलकर बनता है और परिवार उसके सदस्यों से , सदस्यों को तोड़ कर परिवार का विघटन जारी है और इसी के साथ ही समाज का खोखलापन भी। 

मेरी होशियार की परिभाषा की तलाश जारी है क्योंकि समाज का जो अंश बचा हुआ है, वो निश्चित तौर पर किसी बेवकूफ के भरोसे तो नहीं चल रहा होगा। 




jhandu baam jindagi

झंडू बाम जिंदगी 


गोविन्द चार साल से जिस सामने वाली को लइनिया रहा था , आज बाजार में उ लड़की उसके भाई के साथ लेमन जूस पी रही थी , उ भी पूरा मुस्की ( हंसकर ) मारकर । उधर कॉलेज वाली रोज उससे अपना प्रोजेक्ट पूरा करवाती थी । गोविन्द भी इसी चक्कर में अपने अंदर हाई क्वालिटी ला कर , पूरा मेहनत और लगन से प्रोजेक्ट पूरा कर रहा था जैसे यूपीएससी का मेंस हो और इंटरव्यू में उसे इ लड़की प्रपोज करने वाली है । लेकिन जैसे ही प्रोजेक्ट पूरा हुआ इहो लड़की थैंक्यू भैया बोल कर निकल ली।
गोविन्द को लगा की जिंदगी में कुछो अच्छा नहीं हो रहा है , सारा मेहनत बर्बाद है । तभी उसके कॉलेज का रिजल्ट आता है और वो पूरे कॉलेज में दुसरे स्थान पर रहता है। गोविन्द सोचता है चलो कुछ तो अच्छा हुआ , तभी उसे सामने बोर्ड पर पहला स्थान पाने वाले का फोटो दिखाई दिया , यह वही लड़की थी जिसका प्रोजेक्ट गोविन्द पूरा कर रहा था , सारा ख़ुशी एकदमे से गायब हो गया ।
गोविन्द निराश होकर घर पहुंचा , लगा आँगन की छावं में कुछ आराम मिलेगा , तभी पता चलता है सबकी रजामंदी से उसके भाई की शादी सामने वाली लड़की से तय हो गई है और आज अंगूठी पहनाई की रसम है । अब तक गोविन्द को लगने लगता है की वाकई में उसकी जिंदगी झंड हो गई है । तभी सामने से एक सुन्दर सी लड़की आती है जिसे देखकर गोविन्द मुंह फेर लेता है। लेकिन वह गोविन्द के पास जाकर , उसका हाथ पकड़कर , पूछती है मुझसे शादी करेंगे ?, गोविन्द को सहसा विश्वास नहीं होता। गोविन्द को ऐसे देखकर वह दुबारा पूछती है , इस बार गोविन्द हाँ बोल देता है , तभी सारे लोग हंसने लगते है ,, क्योंकि गोविन्द आँगन में बंधी भैंस से कुछ बड़बड़ा रहा था।

लेखक के क्वोरा पर दिए एक जवाब से  साभार 

laal musafir

लाल मुसाफिर 


दोपहर के तीन बजे मुंबई सेन्ट्रल स्टेशन पर उतरने के बाद एहसास होता है की की शायद यह सपना तो नहीं , क्योंकि देश और दुनिया के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक मुंबई सेंट्रल पर सिवाय मोटे , बिल्ले जैसे चूहों के सिवा किसी एक  प्राणी का नामोनिशान तक नहीं था ।

परन्तु कुछ ही देर में पता चल जाता है यह सपना नहीं हकीकत है।  घबराहट के साथ डर भी लग रहा था , शायद ऐसी कल्पना हॉलीवुड की फिल्मो में की जाती होगी , परन्तु वीरान पड़ा स्टेशन शहर में किसी अनहोनी  की पुष्टि कर रहा था। आखिर एकाएक सारे के सारे मनुष्य चले कहा गए ।  ट्रेन जिससे मैं उतरा था पिछले स्टेशन पर ही खाली हो गई थी और इंजन के पास जाने पर पैरो के नीचे की जमीन भी खिसक गई क्योंकि इसमें तो इंजन था ही नहीं  । 

मेरी नई कहानी का एक छोटा सा अंश पूरी कहानी श्रृंखलाबद्ध जल्द ही आपके सामने होगी - 

Hindu has become the most violent religion

हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है



पहले तो यह बता दूँ की उर्मिला मार्तोडकर का पूरा बयां क्या था। उर्मिला मार्तोडकर ने कहा है की " नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया है " .

अब आते है इस बयां के विश्लेषण पे। चूँकि उर्मिला मार्तोडकर ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया है और उससे पहले एक मुस्लिम कश्मीरी व्यवसाई से शादी करके इस्लाम ज्वाइन कर लिया है। यहाँ दोनों के लिए ज्वाइन शब्द इसलिए क्योंकि वर्तमान समय में राजनीति का आधार धर्म पर आकर टिक जाता है। वैसे आजतक का इतिहास उठाकर देखे तो राजनीति और धर्म , शासन के लिए एक दूसरे के पूरक रहे है , और सत्ता में शामिल होने का एक माध्यम भी। यही कारण है की उर्मिला मार्तोडकर ने पहले इस्लाम ज्वाइन किया फिर निश्चित रूप से उन्हें कांग्रेस ज्वाइन करना ही था।

अब यहाँ से हम उनको उनके नए चोले के अनुसार बेगम अख्तर मीर के नाम से सम्बोधित करेंगे । बेगम अख्तर मीर अपने समय की एक बेहतरीन अदाकारा थी और उर्मिला मार्तोडकर के नाम से जानी जाती थी । हर अदाकारा ( महिला ) का एक समय होता है और उसके पश्चात वह मुख्य भूमिका से सहायक भूमिका या किसी अन्य किरदार ( व्यक्तिगत जीवन में भी ) में नजर आने लगती है। बेगम मरियम अख्तर मीर ने बड़े परदे से उतरने के पश्चात घर - गृहस्थी बसाना उचित समझा , उनके अंदर अभी भी कहीं ना कहीं स्टारडम की महत्वकांक्षा हिलोरे मार रही थी इसलिए उन्होंने राजनीति में उचित अवसर देखकर टिकट की उम्मीद से कांग्रेस से नाता जोड़ लिया ।
अब पहली फिल्म की तरह पहला स्टेटमेंट भी ब्लॉकबस्टर होना ही चाहिए इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू आबादी और सर्वाधिक लोकप्रिय नेता का मिश्रण करते हुए यह स्टेटमेंट की "नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू सबसे हिंसक धर्म बन गया " दे ही दिया । हिन्दुओ को इससे आघात लगा और मोदी समर्थको को गहरा धक्का , हालांकि वर्तमान समय में बहुसंख्य हिन्दुओ की आस्था मोदी में केंद्रित है । हिन्दू एक ऐसा धर्म रहा है जिसने वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को अपनाया , जिसने मुस्लिम शासको के साथ ईसाइयो का भी साथ दिया। यह अलग बात थी की इनके शासन में हिन्दुओ के साथ ना जाने क्या - क्या हुआ । मुस्लिम शासन में निश्चित तौर पर हिन्दुओ का मनोबल गिरा और साथ ही ईसाई शासन में भी , क्योंकि इन शासको ने जैसा मैंने पहले कहा है धर्म आधारित राजनीति को प्रश्रय दिया। और हिन्दू धर्म की बुनियाद पर आघात किया।
समय के साथ आजादी के बाद हिन्दू धर्म को कांग्रेस ने जाति आधारित राजनीति से विभाजित कर सत्ता अपने पास बरकरार रखी 

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का अंदरूनी झुकाव किसी से छिपा नहीं है , परन्तु यह तथ्य आजादी के बाद जिनको पता थी वह इसे जनता के सम्मुख नहीं रख पाए इंटरनेट क्रांति के बाद इस तरह की सूचनाओ का आदान प्रदान तेजी से हुआ और कांग्रेस के दोहरे आचरण की पोल खुलती गई । कांग्रेस के अलावा हिन्दू हितो की बात किसी ने खुलकर नहीं की सिवाय मोदी के , आडवाणी भी जिन्ना के बयान के बाद अपने राजनीतिक करियर पर कुल्हाड़ी मार बैठे । मोदी उदय के साथ हिंदुत्व ने एक नई परिभाषा को जन्म दिया जिसमे राष्ट्रवाद का भी मिश्रण था। एक बार फिर हिन्दुमानस अपने इतिहास को याद करने लगा और मोदी के नेतृत्व में स्वयं को सहज पाने लगा। इसके अलावा वह हिन्दू धर्म की मूल भावना के इतर हिंसक कभी नहीं हुआ। दो चार घटनाये राजनीति से प्रेरित अवश्य थी जिसे मीडिया ने मिर्च मसाले के साथ पेश किया । हां उसका मनोबल कुछ ऊँचा जरूर हुआ है और इस बढे हुए मनोबल की व्याख्या अलग - अलग रूपों में अवश्य हो सकती है।
बेगम मरियम अख्तर मीर कांग्रेस की उसी विचारधारा से प्रभावित है जिसका पोषण उनके अंदर हुआ है। मैं किसी धर्म पर टिपण्णी नहीं कर सकता क्योंकि धर्म हमें भेद करना नहीं सिखाता , मैं उस व्यक्तिगत धर्म के खिलाफ हूँ जिसका पोषण दूसरे धर्म को ठेस और क्षति पहुँचाने के लिए किया जाता है । उनके चुनावी क्षेत्र में में भी इस तरह के बयान की आवश्यकता थी जिससे उनके राजनीतिक किरदार को समझने में आवश्यकता हो । और इस एक स्टेटमेंट से उन्होंने बता दिया की भविष्य में उनका किरदार क्या होगा।

Gandhi is a seductive surname



गाँधी एक बहकावे वाला उपनाम - 



महात्मा गाँधी जैसी शख्शियत के उपनाम से प्रसिद्ध गाँधी शब्द आज राजनीति में बेहद ही मजबूत शब्द माना जाता है।  यहाँ बात केवल शब्द की है नाकि इसको लगाने वाले शख्श  की । लोग अक्सर ही आपके उपनाम को गंभीरता से लेते है , यही उपनाम आपकी पहचान का मूलस्त्रोत होता है।  कभी -  कभी यह उपनाम जातिगत और क्षेत्रगत बंधनो से ऊपर उठता हुआ राष्ट्रिय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करता है । ऐसा ही करिश्मा मोहनदास करमचंद्र  " गाँधी  "  ने किया था ।

 Gandhi is a seductive surname

देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले गांधी के प्रति तत्कालीन भारतीय समाज का बड़ा वर्ग अत्यंत ही संवेदनशील था और उसकी नजरो में महात्मा गांधी एक देवतुल्य पुरुष थे। 

नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और गाँधी उनकी वैशाखी । इंदिरा गाँधी द्वारा फिरोज खान के साथ प्रेम विवाह करने पर जवाहरलाल नेहरू को अपना और अपने परिवार का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ा उन्होंने फिरोज खान  के " खान "   को हटाकर गांधी कर दिया जिससे इंदिरा खान ना होकर इंदिरा गांधी के नाम से पहचानी जाये।  
 Gandhi is a seductive surname

वैसे इस बारे में यह भी कहा जाता है की गांधी जी ने फिरोज खान को अपना दत्तक पुत्र माना था परन्तु इस प्रकार के तथ्यों की पुष्टि नहीं की जा सकती। फिरोज खान वैसे तो पारसी थे परन्तु  उनका खान उपनाम प्रथम दृष्टया मुस्लिम प्रतीत होता और तत्कालीन समय में संचार क्रांति के इतने प्रगतिशील ना होने की वजह से आम जनता प्रथम दृष्टि को ही सत्य मान बैठती । इस प्रकार भारतीय इतिहास पुरुष महात्मा गाँधी के उपनाम का अधिग्रहण  बहुत ही सफाई पूर्वक नेहरू - खान परिवारों द्वारा कर लिया गया और भारतीय जनता के विश्वास का भी । इस प्रकार नेहरू - खान परिवार नेहरू - गांधी  परिवार के नाम से जाना जाने लगा। 


इंदिरा गाँधी ने नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाया और उपनाम लगाया  "गांधी " का । सत्ता का केन्द्रीकरण करने की शुरुआत इंदिरा गांधी के शासन से शुरू हुई । राजीव गाँधी और फिर वर्तमान में राहुल गाँधी खुद से ज्यादा  इसी नेहरू - गाँधी खानदान के वंशज के तौर पर जाने जाते है। अभी जाति  सम्बंधित एक विवाद पर राहुल ने अपने गोत्र की पुष्टि भी की थी । परन्तु यह उतना ही आश्चर्य जनक है की  "खान "  उपनाम के साथ ही  फिरोज खान भी वक़्त की आंधी में कहीं सिर्फ इसलिए खो गए है की उनका उपनाम खान था , जो की नेहरू के वंशजो और भारतीय राजनीति दोनों के अनुकूल नहीं था। उपनाम की महत्ता इससे ज्यादा कहीं और नहीं देखी जा सकती। 


अब बात असली गांधी के हक़दारो की तो जैसा की सब जानते है उनके चार बेटे थे , हरिलाल , मनीलाल , रामदास और देवदास परन्तु महात्मा गाँधी ने कभी उन्हें राजनीति में स्थापित करने की कोशिश नहीं की।  वैसे तो आज महात्मा गाँधी की वंशवृक्ष बेहद विशाल है परन्तु किसी ने भी उनके गांधी उपनाम और राजनीतिक विरासत पर दावा नहीं किया।  जैसा की नकली उपनाम वाले करते है। 



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मोदी 

सच कहूं तो मैं एक आम भारतीय की तरह कांग्रेस से काफी निराश हो चुका था। मैं भाजपा को भी पूरी तरह सही नहीं मानता था। तभी अरविंद केजरीवाल आये लगा बंदा कुछ हट के है। फिर उनका पहला झूठ पकड़ा जब उन्होंने अपने बच्चो की कसम खाई और कभी कांग्रेस और बीजेपी का समर्थन ना लेने की बात कही। ईश्वर उनके बच्चो को दीर्घायु प्रदान करे। आम आदमी की तरह प्लेटफार्म पर सोने वाली फोटो खूब भाई, फिर उनकी तानाशाही देखने को मिली। जिन सबूतों से वह शीला सरकार पर कार्यवाही की बात करते थे अचानक ही वह गायब हो गए। झूठ पर झूठ और कुछ हद तक उनके देश के प्रति विचार रास नहीं आये।









मुझे कांग्रेस के इरादे नेक नहीं लगते , मुझे ये समझ नहीं आता की वंशवाद की ऐसी कौन सी मज़बूरी है की राजनीति के अनुकूल ना होते हुए भी कांग्रेस भारत जैसे विशाल देश के लिए राहुल गाँधी को अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने पर तुली हुई है । मनमोहन सिंह ने सोनिया गाँधी के हाथो की कठपुतली बनना क्यों मंजूर किया। हर देश विरोधी तत्वों का कांग्रेस का समर्थन स्वतः ही क्यों मिल जाता है । कांग्रेस के भ्रष्टाचार , हिन्दू और देश विरोधी रवैये से जनता घुट चुकी थी।








ऐसे में गुजरात से उठकर राष्ट्रिय पटल पर मोदी जी का उभार हुआ , जी इसलिए की अभी तक सम्मान बरकरार है क्योंकि राजनीति में व्यक्तित्व में कब बदलाव हो जाये पता नहीं । कुछ हिंदूवादी बातें हुई , मैं सांप्रदायिक नहीं हूँ परन्तु इस देश की अन्य पार्टियों द्वारा हिन्दुओ को अनदेखा किया गया। जैसे हमारे पूर्वजो ने छोटी जातियों को अनदेखा किया था। जिसका दर्द उनके सीने में अभी तक है , और हमारे संविधान ने उनकी इसी स्थिति का आंकलन करते हुए उन्हें आरक्षण प्रदान किया। हालांकि वर्तमान में मैं मैं आरक्षण दिए जाने का पक्षधर नहीं। उन्ही में से कुछ लोगो को मोदी ने सम्मान क्या दे दिया अन्य लोगो ने इसे चुनावी स्टंट बता दिया। चलिए यह काम आप भी सारे पार्टी के मुखिया राहुल से लेकर ममता तक से करवा लीजिये बात बराबर हो जाएगी ।



उनका स्वच्छता अभियान पहले मेरे लिए किसी महत्व का नहीं था मुझे लगा कुछ दिन बाद यह स्वतः ही चर्चा से गायब हो जायेगा जैसा आजतक भारत में होते आया है। परन्तु मैंने देखा धीरे - धीरे इसकी शाखाये विशाल होते जा रही है घर से लेकर बाहर तक लोगो की इस पर चर्चा जारी है , जहाँ तक मेरा मानना है कोई भी काम तब सफल है जब वह लोगो के जेहन में घर कर जाए ।


दरअसल 2014 के बाद मैंने देश के उन चेहरों को अपने असली रंग में आते देखा है जो उससे पहले फेयर एंड लवली लगा कर अपने असली चेहरे को ढके हुए थे। मैंने राहुल गांधी को सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करते देखा है। मैंने ममता बनर्जी को देश हित से पहले स्वयं की सत्ता बरक़रार रखने के लिए जमीर को बेचते देखा है। मैंने " भारत तेरे टुकड़े होंगे " जैसे नारे भारत की राजधानी और देश के सबसे बड़े शैक्षणिक संस्थान में सुने है। मैंने पकिस्तान के सेना प्रमुख से भारतीय मंत्री को गले मिलते देखा है । मैंने इमरान खान के लिए शांति के नोबल की पुकार सुनी है ।



मेरे लिए देश सर्वपरि है इसलिए मै " हमारा सिद्धांत है हम घर में घुस के मारेंगे " बार - बार सुनना और देखना चाहूंगा। मैं मोदी को वर्तमान राजनीति में सबसे श्रेष्ठ तब तक मानता रहूँगा जब तक वह ऐसे ही ईमानदार रहेंगे। तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार प्रधानमंत्री रहने के बाद भी उन पर एक रूपये का भ्रष्टाचार कोई सिद्ध नहीं कर सकता । वे देशहित के मुद्दों पर खुलकर बोलते और फैसले लेते है। वे कुशल राजनीतिज्ञ और कुशल वक्ता भी है । उन्होंने विश्व में भारत का मान और भारतीयों का अभिमान दोनों ही बढ़ाया है ।


लेखक  द्वारा  क्वोरा पर दिए गए एक जवाब से साभार - 

2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी के प्रति आपकी धारणा कैसे बदल गई है?

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