this is not rahul gandhi's victory



यह राहुल गाँधी की जीत नहीं  - 




राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है । जहाँ छत्तीसगढ़ में इसे स्पष्ट बहुमत प्राप्त है वही राजस्थान और मध्यप्रदेश में महज सीटों की आवश्यकता सरकार बनांने में पड़ेगी । इसके साथ ही हम आंकड़ों पर एक नजर डालते है जहाँ विधानसभा में मध्यप्रदेश की 230  सीटे है वही भाजपा ने 109 सीटों पर अपनी प्रतिष्ठा बरकरार रखी और कांग्रेस 114 सीट जीतने में सफल रही । वहीँ 2 सीट मायावती, 1 सीट समाजवादी पार्टी और 4 सीटों पर निर्दलीयों ने विजय हासिल की। कांग्रेस जहा राज्य के 40.9 %  वोटरो को अपने पक्ष में करने में सफल रही वही  बीजेपी  41 % वोटरों को। ऐसे में दोनों के बीच महज .1 % वोटो का ही अंतर रहा। मध्यप्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या 7 थी जहाँ पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच जीत का अंतर सिर्फ 100 से 1000 वोटो के बीच था तो क्या क्या कहेंगे ऐसे में। 

15 साल के शासन के पश्चात सत्ता विरोधी लहर का होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है। ऐसे में यह सत्ता विरोधी लहर महज चार सीटों और .1 प्रतिशत वोटो के अंतर से सिमट जाती है वह भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत दिए बगैर। 

क्या कह सकते है इसको की यह राज्य सरकार की नाकामी है या फिर जनता का एक  वर्ग  बस इसलिए सत्ता परिवर्तित करता है की उसे सिर्फ इतने सालो से चली आ रही  पुरानी सरकार के बदले एक नई सरकार देखने की इच्छा मात्र थी, कांग्रेस के चुनाव का कारण मात्र यह था की  विकल्प में मध्यप्रदेश जैसे राज्य में उत्तर प्रदेश और अन्य प्रदेशो की तरह कोई क्षेत्रीय पार्टियाँ नहीं थी।  जमीन से जुड़े लोग बताते है की अभी भी बिना चेहरे वाली कांग्रेस की अपेक्षा बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश का सबसे लोकप्रिय चेहरा है। 

 कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की अपेक्षा शिवराज सिंह मध्यप्रदेश की राजनीति में  आज भी उतने विश्वसनीय और लोकप्रिय है जितना वे पहले हुआ करते थे। लड़ाई यहाँ ना राहुल गाँधी और मोदी में थी ना कांग्रेस और भाजपा में ,लड़ाई सिर्फ 15 साल पुरानी सरकार को सिर्फ स्वाभाविक तौर पर जनता द्वारा बदलने की मानसिकता की थी। जिसे सम्पूर्ण जनता ने तो नहीं स्वीकार किया लेकिन कुछ ने माना की एक बार किसी अन्य को मौका इसलिए दिया जाए ताकि सत्ता का हस्तांतरण होता रहे।  

अब बारी राजस्थान की -  राजस्थान  का हाल तो वैसे भी  किसी से नहीं छुपा।  यहाँ लगातार दो बार सरकार बनाना यानि जनता को इस परिस्थिति में ला देना की वह इस मिथक को तोड़ सकती है लगभग असंभव है। फिर भी आंकड़ों पर गौर करना बेहद जरुरी है। 

यहाँ भी कांग्रेस अपने बलबूते सरकार बनांने की स्थिति में नहीं है। लेकिन ढिंढोरा पीटा जा रहा है की राहुल गाँधी की लहर शुरू हो चुकी है। 49. 5 प्रतिशत वोटो के साथ कांग्रेस यहाँ 99 सीटे जीतने में कामयाब रही है। हालाँकि सरकार बनाने के लिए उसे दो सीटों की और आवश्यकता होगी परन्तु बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी  द्वारा कांग्रेस को समर्थन की घोषणा के बाद दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। 

दरअसल लड़ाई यहाँ भी मोदी और राहुल गाँधी की नहीं बल्कि यहाँ की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और जनता के बीच थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिला ।  200 सीटों की  विधानसभा  वाली यहाँ की जनता ने इसके बावजूद बीजेपी की झोली में 36.5 प्रतिशत वोटो के साथ 73 सीटे डाल दी। जनता द्वारा दिए गए नारो से इस लड़ाई को साफ़ समझा जा सकता है।  " मोदी जी से वैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं "   , "After 8 PM no CM  "यानि आठ बजे रात्रि के बाद यह मुख्यमंत्री नहीं रहती। नाराजगी काम से ज्यादा वसुंधरा के व्यवहार से थी जनता कभी भी उन्हें अपने बीच नहीं पाती , जिस वजह से अपने मुख्यमंत्री से उसका जुड़ाव ख़त्म हो चुका था ।  

ऐसे में अगर भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद हेतु किसी अन्य प्रत्याशी को उतरा जाता तो परिणाम कुछ और ही होते। इस कारण राजस्थान में मिली जीत राहुल गाँधी की जीत नहीं बल्कि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के चेहरे की हार थी। 


अब आते है छत्तीसगढ़ की तरफ -  गरीबी और अशिक्षा से जूझता यह राज्य 15 सालो से भाजपा द्वारा शासित था कहानी कुछ मध्य प्रदेश जैसी ही थी , परन्तु यंहा कांग्रेस का सिर्फ एक चुनावी वादा दस दिनों में कर्जमाफी का ने कहानी में बड़ा अंतर ला दिया फलस्वरूप खेती किसानी और आदिवासी बहुल वाले  इस राज्य ने  75.6 प्रतिशत वोटो के साथ कांग्रेस को 68 और 16.7 प्रतिशत वोटो के साथ भाजपा को महज 15 सीटों पर ला दिया। 


इन सारे रुझानों में कही भी राहुल गाँधी के व्यक्तित्व की चर्चा नहीं होती। अगर उनका कोई योगदान है तो वह सिर्फ एक ही है और वो है की राजस्थान में सचिन पायलट तथा अशोक गहलोत और मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओ  का उनकी पार्टी में होना।  अगर इसे 2019 के लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा है तो यह बिल्कुल सही है , परन्तु आवश्यक है इन परिणामो को बारीकी से समझना, आंकड़ों में जनता के सवालो और जवाबो को ढूंढना क्योंकि विधानसभा और लोकसभा दोनों के चुनावों में जनता का मत और मुद्दे दोनों ही अलग - अलग होते  है। 

राहुल गाँधी के लिए आवश्यक है की वे स्वयं के बलबूते ऐसी लड़ाई जीतकर दिखाए जिसमे उनकी सीधी टक्कर मोदी से हो नाकि सत्ता विरोधी थोड़ी सी लहर को मिडिया द्वारा प्रचारित राहुल उदय समझने की भूल करना। नहीं तो मिजोरम  में  सत्ता हाथ से जाना और तेलांगना जैसे दक्षिण भारतीय राज्य में इसकी बुरी गति का होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है की बाकि के तीन राज्यों में कांग्रेस का चुनाव जीतना महज सत्ता और राज्य के नेता विरोधी रुझान के सिवा कुछ नहीं। 


भाजपा के लिए भी यह आवश्यक है की वह जनता की नब्ज समझे और मंदिर , गाय, हनुमान  जैसे  अनावश्यक मुद्दों को ज्यादा तरहीज ना दे क्योंकि तमाम तरह की  दुश्वारियों और कठिनाइयों से परेशान इस देश की जनता इस तरह के मुद्दों से अब ज्यादा प्रभावित नहीं होती । बल्कि रोजगार , सड़क , बिजली ,पानी तथा स्थानीय मुद्दे ही उसके लिए प्रमुख होते है।

 बाकी यह पब्लिक है सब जानती है। 





kambakht neend

कम्बख्त नींद




कुछ करने की सोचूं तो कम्बख्त नींद आने लगती है
नींद जब आती है, तो वो सताने लगती है
उसको जो भगाता हूँ तो, जाग जाता हूँ
जाग जब जाता हूँ तो, उसे बुलाता हूँ
उसे जब बुलाता हूँ ,तब वो नहीं आती है
वो भी गई नींद भी गई, सोचूं कुछ कर ही लेता हूँ
और कुछ करने की सोचूं तो ........



mind we and the changing season



मन , हम  और बदलता मौसम 


mind we and the changing season



नौकरी का झमेला और शहरो में परिवार चलाने की कशमकश में मन हमेशा इसी उधेड़बुन में लगा रहता है की, क्या वह समय भी आएगा जब घडी की सुइयों में  9 - 6  के बीच खून और दिमाग दोनों को जलाने के बाद  तनाव रहित फुर्सत के पल  इस शरीर में वास करने वाली आत्मा को भी  मिल पायेगा। 

शरीर तो चूँकि एक ऐसी  मशीन बन चुकी  है जो की धन को साधने हेतु  होने वाली प्रक्रिया से नियंत्रित होती  है। भावनावो के विसर्जन के फलस्वरूप ही प्रभु प्रदत्त काया का ऐसा विनिर्माण संभव हुआ है जिसमे प्रभु भी आस्था का माध्यम ना होकर दिखावटी  फैशन का नया आयाम बन चुके है।  समय के साथ  मनुष्यो ने एक नई संस्कृति का विकास कर लिया है जिसको हम दोहरे आचरण के रूप में जानते है।

पहला  चरण  वाह्य चरण का है , जिसमे वह अपनी ऐसी काया का निर्माण करता है जोकि सामाजिक रूप से जानी जाये ( केवल पहचानी जाए )  नाकि वह कार्यसंगत हो। 

दूसरा चरण अंदरूनी चरण है जोकि मनुष्य का वास्तविक स्वरुप है और इसको ज्ञात करना ब्रह्मा  के पेट के रहस्य को ज्ञात करने से ज्यादा दुष्कर है। और सारे कार्य इसी चरण के अनुसार क्रियाशील होते है। 

पेट के  पापी होने के  सवाल की लम्बाई अब पापी मन तक बढ़ चुकी है।  पापी मन को अब पेट भरने के साथ - साथ अन्य कई कार्यो में लगना पड़ता है। जावेद हबीब के सैलून  से लेकर मैकडोनाल्ड  के बर्गर तक और एप्पल से लेकर फ्लिपकार्ट के फैशन तक  ना जाने पापी मन कहाँ - कहाँ तक पहुँच चुका है । 


कुछ सीधे सादे मन अभी भी 20 - 30  रूपये में दाढ़ी  और बाल बनवाने के बाद नाक और मूंछ के बाल कटवाना नहीं भूलते। हालंकि इस प्रकार के मन, छोटे शहरो और गांव की दहलीज को पार करना ठीक उसी प्रकार समझते है  जैसे बाबर हिन्दुस्तान के वैभव को देखकर यंहा खिंचा तो जरूर चला आया था, परन्तु  इस बात से अनजान था की  गैर मुल्क में उसकी हैसियत एक खानाबदोश के सिवा कुछ नहीं। 

ये मन अभी भी इस बात पर यकीं करते है की चौराहे की वह  सियासत जिसमे धनिया की चटनी के साथ  गरमागरम गोभी और प्याज के पकौड़े  हो ,का मुकाबला नौटंकी से दिखने वाले  न्यूज़ चैनलों के कानफाडू डिबेट कभी  नहीं कर सकते  जिसमे एंकर कॉफी की चुस्की के साथ दी गई स्क्रिप्ट को अमल करवाने का प्रयास करते है । 

खुद को धुरंधर समझने वाले संबित पात्रा से लेकर राजबब्बर तक  और प्रियंका चतुर्वेदी से लेकर सुधांशु द्धिवेदी तक के पास उनके सवालों के जवाब मिलना नामुमकिन है। पकौड़ी के बाद मिट्टी के  भरूके में मिलने वाली चाय, सभा के अंतिम चरण का ईशारा करती  है।  जिसके साथ ही घरेलु समस्याओ के निराकरण की व्यवस्था पर चर्चा होती है । फैशन के नाम पर मिश्रा जी के  नए कुर्ते का रंग और शर्मा जी के नए चश्मे के सजीले फ्रेम पर कुछ चर्चा ठिठोली स्वरुप अवश्य हो जाती है। इन सब के बीच तनाव रूपी खरपतवार के वह  बीज जिनकी बड़े शहरो में पूरी फसल पक कर तैयार रहती है ,के कही भी अंकुरित होने की गुंजाईश नहीं रहती। 

उधर पापी मन शाम को थकेहारे शरीर के साथ झूलता चौखट में प्रवेश करता है , और आरामदायक कुर्सी पर गिरते उम्मीद करता है की कहीं से एक प्याली चाय की मिल जाये ।  कहीं से इसलिए क्योंकि घर की एकलौती महिला सदस्य भी  इस देश की कार्यशील वर्ग में शामिल हो चुकी होती है ।  दोस्तों के नाम पर कुछ स्वार्थसिद्ध लोगो के समूह से  चर्चा  या विमर्श हेतु समय माँगना यानी ना सुनना  । मनोरंजन हेतु  टेलीविजन के माध्यम से समाचार सुनना और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को सुनना कुछ एक सा लगता है। डिबेट में तो सारे तथ्य(औचित्यहीन ) निकलकर सामने आ जाते है सिवा निष्कर्ष के। 

अंत में शरीर को धकेलते हुए रसोई की चौखट में प्रवेश कर चाय बनाते हुए जीवन के इस एकाकी स्वरुप में भी उसे समझ में नहीं आता की क्या वह जिंदगी को जी रहा है या फिर मशीन बनने के उस अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है जहाँ से उसका वापस आना असंभव है। 

  
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बड़े शहरो में बहती नई पुरवाई  


rahul gandhi and chanaky neeti


राहुल गाँधी और चाणक्य नीति 


rahul gandhi and chanaky neeti


चाणक्य ने कहा था की  किसी विदेशी महिला की कोख से उत्पन्न संतान उस देश का हित  कभी नहीं सोच सकती । 

राहुल गाँधी कांग्रेस का वो चेहरा है जिसे राजनीति में नहीं होना चाहिए था। परन्तु वंशवाद और गाँधी परिवार के सदस्य होने के नाते वह स्वाभाविक तौर पर पार्टी की कमान सँभालने के योग्य है। हालांकि पार्टी में योग्य नेताओ की कमी बिलकुल भी नहीं है , परन्तु उनके पास  गाँधी परिवार का जन्म प्रमाणपत्र नहीं है। इस कारण वे सिर्फ परिवार से वफादारी दिखाकर दूध के ऊपर की मलाई खाने में ही मगन है। 

एक कल्पना आप भी कीजिये की यदि अमेरिका जैसे देश की कमान वहां पर बहु बनी आपकी माँ के पास आ जाये तो वे क्या करेंगी।  क्या वे पूर्ण रूप से उस देश  की प्रगति के लिए कार्य कर पाएंगी या फिर अपने मूल देश के उद्देश्यों की पूर्ति का साधन बनेंगी।  क्या वे अमेरिका जैसे देश की जमीनी हकीकत समझ पाएंगी , जबकि वे जन्म से लेकर युवावस्था तक भारत की संस्कृति और परिवेश में पली - बढ़ी होंगी । इन सबके बाद भी सम्भावनाओ से इंकार नहीं किया जा सकता की वे अमेरिका जैसे देश को आगे बढ़ाने का काम करती यदि उनकी नियत, धर्म , वहाँ के परिवार की कार्यशैली और जन्म से मिलने वाले संस्कार उत्तम कोटि के होते , और उनका मूल देश भारत होता ना कि इटली जैसा वह  देश जिसके नाविक तक भारतीय मछुआरों की बिना वजह हत्या कर देते है। 

राहुल गांधी  इस तथ्य को नकार नहीं सकते की वे पूर्ण रूप से भारतीय नस्ल के नहीं  है। उनका जुड़ाव आज भी इटली से है ,बोफोर्स के क्वात्रोची  से लेकर वाड्रा  तक उनके विदेशी और धार्मिक पक्ष को मजबूती से बयां करते है । क्वात्रोची की प्रधानमंत्री आवास से लेकर कार्यालय तक बेरोकटोक आवाजाही किसी से छिपी नहीं थी ।  उसी प्रकार राबर्ट वाड्रा  का बिना किसी पद के  सिर्फ  परिवार के बूते वीवीआईपी  बनना भी  कांग्रेस सरकार में  एक आम बात थी । 

फिलहाल राहुल गाँधी अपने गोत्र से लेकर उपनाम तक के सन्दर्भ में सुर्खियों में रहने वाले है।  इतिहास सिर्फ पढ़ा जा सकता है उसे बदला नहीं जा सकता ,और नाही उसे झुठलाया जा सकता है।  खुद को नाना के गोत्र का बताने वाले राहुल गाँधी यह भूल जाते है की यदि गोत्र माँ के पक्ष का लिया जाता तो उनकी माँ को सर्वप्रथम हिन्दू धर्म स्वीकार करना पड़ता।  यदि दादा के पक्ष का लिया जाता तो पारसियों का कोई गोत्र नहीं होता। 

यहाँ इन सारे तथ्यों की चर्चा आवश्यक इसलिए है की भारतीय इतिहास के सबसे ज्ञानी और विद्वान पुरुष चाणक्य की उस उक्ति को झूठलान जिसमे उन्होंने कहा था की -


"विदेशी माँ की कोख से उत्पन्न संतान कभी इस देश का भला नहीं सोच सकती  "

इस देश को  रसातल में पहुंचा सकता है और इसके देशवासियो को भिखारी। 



Princes and country


शहजादा और देश 


  Princes and country


वंशवाद की बेली में 
एक फूल खिला है, हवेली में 
बेला , गुलाब,गुड़हल  और गेंदा 
विलक्षण फूल, नहीं इन जैसा 

मात  करे हर पल रखवाली 
हो ना पूत ,कही मवाली 
पाणी को ग्रहण करे ना 
अधेड़ उम्र का ,बालक सयाना 

राजतिलक को चिंतित माता 
बुझे , इसको कुछ नहीं आता 
जनता के हास्य का साधन

माने खुद को सच्चा बाभन  


चाटुकारो की कथा का नायक 
राजनीति के यह नहीं लायक 
चले जब गुजरात की  आंधी 

संभल ना पावे नकली गांधी 


देशहित में इसे नकारो 
स्वदेशी से देश संवारो 
भूल हुई गर यदि तुमसे 
लूटेगा देश  , एक बार फिरसे 



preperation of 2019


2019 की तैयारी (व्यंग )



2019  में होने वाले उल्लूसभा  की तैयारी जोरो से शुरू हो चुकी है।  हर तरफ कलियुग के पुण्यात्माओं द्वारा प्रवचनों की बाढ़ आई हुई है।  अभी कल ही एक थो महाराज टीवी पर अपनी पार्टी की मालकिन को भला बुरा कहने पर विरोधी प्रवक्ता का टेटुआ दबा रहे थे। एंकर से लेकर कैमरा मैन तक सब उनको पकड़ने में धराशायी हो गए  बड़ी मुश्किल से उनकी (प्रवक्ता ) जान बची।  लेकिन वो(प्रवक्ता ) भी अपनी आदत से मजबूर थे जाते जाते चिकोटी काट के चले गए।


टीवी पर देखा की एक जगह  एक प्रत्याशी जनता को लुभाने के लिए जादू का खेल दिखा रहे थे।  लेकिन इसमें नया क्या था आज कागज से कबूतर बना रहे है और पहले भी कागज पर सड़के , नहर , अस्पताल और स्कूल बनवाया करते थे। फिर जैसे कबूतर को गायब कर देते वैसे ही ये सब भी गायब हो जाते।

इधर विपक्ष द्वारा सत्ता पक्ष पर तमाम आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर जारी है। सफ़ेद कुर्ता वाला बालक भी हाथ में हवाई जहाज लिए उड़ने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी उड़ान के चक्कर में कई बार नाक के बल गिर भी चुका है।  बड़े साइज का पैजामा और कुर्ता होने की वजह से कुर्ता हाथ की उंगलियों को भी ढँक लेता है जिस कारण उसे बार - बार खींचकर वापस लाना पड़ता है।

राजस्थान , और मध्यप्रदेश में मीडिया द्वारा प्रत्याशियों को कौन बनेगा मुख्यमंत्री का खेल खिलाया जा रहा है , जिसे की 2019 के उल्लू सभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसी बहाने इन प्रदेशो के छोटे जिले भी राष्ट्रिय  मीडिया में छाए हुए है । कल तक जैसे चैनलों के एंकर ,आजकल ,पत्रकारिता के अलावा सब कुछ करते देखे जा सकते है ।  मजा तब और बढ़ जाता है जब इन चैनलों पर होने वाली बहस में भैंस , बकरी से लेकर सब कुछ हो जाता है।

वैसे अभी दूर - दूर तक 2014 के चुनावों की तरह कहीं से भी गोला फेंकने की खबर नहीं आई है , आम आदमी भी ख़ास बनने के बाद बस धक्कामुक्की करने में लगा हुआ है हालाँकि इसी चक्कर में उसे मिर्च भी लग चुकी है । गरीब जनता बस अमीर दिल से तमाशा देखे जा रही है।



mandir and ram



मंदिर और राम 



mandir and ram

रामलला  मंदिर  में कब बैठेंगे, वो भी ना जाने
पूछ रहे है हम से अब वे 
बोलो किसको हितैषी माने

है बारिश में चूता  त्रिपाल
देखके रोये है महाकाल
लक्ष्मण दुखी देख भाई का हाल
बीत गए ना जाने कितने साल  

सीता बोली सर पे जब छत नहीं
जीता लंका पर कौनो गत के नहीं
बोलो भरी गर्मी में क्या ,लू  को सह  पाओगे
तब भटके थे वन - वन  में इधर - उधर
इस कलियुग में भी क्या, अच्छे दिन ना दिखलाओगे

थे  वे भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम
बोले बात नहीं ये आम
रावण के दस मुख थे बाहर
अंदर यहाँ सबके लालच के जाम
कुछ  धैर्य  धरो  देखो इस जग को
अभी कितना मुझे सतायेंगे
पूछो तो कहते है अब  ये , रामलला हम आएंगे

मुझसे चलता ये जग सारा , फिर भी फिरू मारा - मारा
तकदीर ऐसी खुद ही  लिखवाई है
ठंडी शुरू हुई सीते  ,देखो घर में कहीं रजाई है
ब्रम्हा जी तो बोल रहे थे , कलियुग में प्रभु बस पत्थर की मूरत है
अयोध्या को  राम की नहीं, राजनीति की जरुरत है


तुम रक्षक पर रक्षा को तुम्हारी
पूरी मानव की फौज खड़ी
जय - जय - जय बजरंग बलि
अब ना तोड़ोगे दुश्मन की नली
लंका नहीं जो आग लगा दो
गोवर्धन को तुम हिला दो
कलियुग के सब रावण सारे 
अपनी पूंछ बचाओ प्यारे 

मंदिर - मंदिर , भक्त कहे 
मन के मंदिर में बस छल रहे 
है प्रपंच ये बड़ा निराला 
मंदिर बनवाने चले है आला 
खुद राजा खुद ही फरियादी 
हँसे भगवन, हुए अब आदि 

अपना छत सारा आकाश 
सरयु  से बुझती अब प्यास 
मंदिर की अब  किनसे  आस 
मंदिर  जब  सत्ता की साँस 

ना बने तो मत बनवाओ 
नाम पे मेरे  मत रबड़ी  खावो 
है आना तुमको मेरे पास  
पूछूंगा तुमसे, क्यों की इतनी बकवास 

दुखी भाव से रायजी, अब तो बस ये कह चले 
ना हो हिंसा उनके नाम पे , मर्यादा में ये जग चले



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