kuchh baat dilo ki

कुछ बात दिलो की 



कुछ बात दिलो की पढ़ने को
ऐनक है हमने लगा डाली
पढ़ पाए न एक दिल को भी हम
दिल थे सारे खाली  - खाली

भरा न उनमे भाव मगर था
न थी दया की कोई प्याली
अजब गजब थी भाषा उनकी
थी गूढ़ रहस्य की गुफा काली

विस्मित थे ये  नैन देख के
छल प्रपंच की नई  परिभाषा
आशा की कोई ज्योति नहीं थी
जिससे ये जग -जीवन चल पाता 

रिश्तो का कोई मोल नहीं है
मुद्रा से ये तौली जाती 
मातृ और पितृ भक्ति भी
पुत्रो को 
धन लक्ष्मी है सिखलाती

पत्नी हुई प्रधान जग में 
अब  ये बतलाती 
भाई से कितना बोला जाये 
है विनम्र निवेदन अब तो बस ये
राखी को ना  तौला  जाये 

कुछ राज दिलो के छिपे रहे 
इनको ना ढूँढा जाये 
है बची कुछ अब भी मर्यादा 
घूंघट न खोला जाये 

कुछ बात दिलो की पढ़ने को
ऐनक है हमने लगा डाली
पढ़ पाए न एक दिल को भी हम
दिल थे सारे खाली  - खाली


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लिखता हूँ 





gareebi mukt bharat

गरीबी मुक्त भारत 



बहुत दिनो से भारतीय राजनीति मे बहुत ही मजेदार कथन और मुहावरे प्रचलन मे चले आ रहे है जिनमे से अधिकांश महत्वहीन है , हाँ महत्व बस इतना ही है की जनभावनाओ को अपनी राजनीतिक गतिशीलता दी जा सके . नाम बदलने की निरर्थक राजनीति भी अब जनता के किसी काम की नही , कभी किसी स्टेशन का नाम तो कभी किसी अन्य सार्वजनिक स्थलो के नाम , अगर करना ही है तो कुछ काम करिये अगर नारे देने है तो गरीबी मुक्त भारत का नारा दीजिये आप फाइव स्टार होटल मे बैठकर बिसलेरी का पानी पीते हुए नामी अखबारो मे निकलवा देते है गरीबी बढ रही है या घट रही है , दिखावा तो इतना है की गरीब के घर का खाना जाके खा आते है लेकिन कभी उस गरीब को अपने घर दावत का पुछ्ते भी नही , समाचार वाले भी खूब दिखाते है की फलां नेता आज दलित के घर खाना खाने आ रहे है और सौभाग्य से वो दलित हमेशा गरीब ही निकलता है काश की ए जिस गरीब के घर भोजन करते कम से कम उसकी गरीबी त़ो मिटा देते . भाषन बहुत है साहब बहुत सी कलाकारियां है . मध्यम वर्गीय परिवार के रीढ़ की हड्डी टूट चुकी है प्राइवेट नौकरियो मे परिवार चलाने इतना वेतन नही है और सरकारी नौकरी मिलना भगवान मिलने के बराबर है.

राम का आसरा है पर वो खुद ही बिना आसरे के है . विकास और गरीबी मुक्त नारे कहाँ अब तो मुस्लिम पार्टी हिन्दू पार्टी के नारे दिये जा रहे है बस यही हिन्दू – मुस्लिम से गरीबी दूर होगी . सब भावनाओ का बजार है जिसके सहारे वोट खरीदे जा रहे है और बेचारा गरीब और गरीब होते जा रहा है .

maa

माँ 



मेरी हर इन्तेहाँ में माँ की दुआ काम आती है
लाख चढ़ लू सीढ़ियां कामयाबी की मगर
थकने पर मां ही आँचल फैलाती है

उम्र बढ़ती है आँख धुंधलाती है 

पर मेरे चेहरे की शिकन माँ को साफ़ नजर आती है
गम में भी उसे देखकर मैं तो हंस लेता हूँ
पर माँ ही है जो चुपके - चुपके नीर बहाती है
इसीलिए तो वो माँ कहलाती है

सब कहते है की 

माँ की ममता का कोई मोल नहीं होता 

मै कहता हूँ माँ जैसा कोई और नहीं होता


गलतियों पे जो माफ़ करे वो माँ होती है
हर जख्म को जो साफ़ करे वो माँ होती है
अपने खून से सींचे वो माँ होती है 


माँ ना इस जैसी होती है माँ ना उस जैसी होती है
माँ तो बस माँ जैसी होती है


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likhta hun



लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती 

कहने को तो पूरा दिन यूँ ही निकल जाता है 

पर माँ के आँचल में जो गुजरे 

अब वो रात नहीं आती

बहती है जब जब पुरवाई
मिटटी की सोंधी खुशबु तो आती है
पर एक लम्हा नहीं गुजरता
जब बीते लम्हे की याद नहीं आती

सब कुछ तो पा लिया
ए जिंदगी तुझसे
पर वो बचपन वाली बरसात नहीं आती
भीड़ में रहकर भी अब
अपनेपन की एहसास नहीं आती

मैंने देखा है तेरी आँखों में
नीर के दरिया को बहते हुए
पर ये बात जुबां तक नहीं आती 

पीर बहुत है सीने में मेरे भी 

पर शिकन चेहरे पर नजर नहीं आती

खड़ा हूँ साथ तेरा साया बनकर
तेरी नजर कैसे तुझे बतलाती
इसीलिए
लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती

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