राजनीति पे कविता poem on politics
जबसे आप मशहूर हुए कई अपने आप से दूर हुए
अब तो आप ही आप है दिल्ली मे
जिक्र होता है आपका अक्सर लोगो की खिल्ली मे
काला धन और भ्रष्टाचार अब हो गई इनकी बातें बेकार
सफेद धन है सदाबहार
लेके भागो सात समंदर पार
सेवक अपना छोड़ तिजोरी घूमे देश विदेश
जनता बोले त्राहिमाम चोरो की तो हो गई है ऐश
जनहित के नाम पे जन - जन को देखो रोना आया है
अच्छे दिनो की आस मे तूने बहुत छकाया है.
पकौड़ा तो छनवा चुका ,बी ए - एम ए पास को
अब क्या मुंह दिखलाउंगा ,घर पे जाके अपनी सास को
पप्पू पास नही होता राजनीति के इम्तिहान मे
इसके सिवा कोई और नही मिलता इनको सारे जहाँ मे
खूब लूटा इनकी मम्मी ने अपने देश को
मन करता है भेज दे इनको अब तो परदेश को
विकास मिले तुम लोगो को तो कही से ढूंढ लाना
बची हो इंसानियत तुममे तो उसे
भारत मा का पता बताना
लहूलुहान ना करना इस भारत मां को
उसके ही बच्चो के खून से
ताज रखो तुम्ही
हमे रहने दो बस सुकून से ........
लेखक |
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