tumse
तुमसे
तुम कहते हो की सावन की रिमझिम बुँदे
मेरी याद दिलाती हैतुम कहते हो की घनघोर घटा
राग मल्हारी गाती है
तुम कहते हो की मेरी पैजनिया की आहट
तुम्हे प्रफ्फुलित कर जाती है
मैं कहती हूँ तुम सावन के इंद्र धनुष जैसे
जीवन में खुशियों के रंग भर जाते हो
तुम एक मधुर साज मैं जीवन गीत तुम्हारी प्रियतम
है साँस तुम्हारी इस धड़कन में
रहे साथ जीवन में हरदम
तुम कहते हो की दुःख की काली रातो में
मैं उजियारी सुबह लाती हूँ
मैं कहती हूँ इन स्याह रातों में
तुमसे मिलने चली आती हूँ
अपने बगियाँ में सावन के झूले
उस पर मंद - मंद बर्षा की बुँदे
मैं क्या झुलू सब कुछ भूलूँ
जब प्रतिक्षण साथ तुम्हारा हो
तुम ही बसंत तुम ही सावन
तुम प्रेम की सुगन्धित फुलवारी हो
सब कुछ तुमसे , तुममे सबकुछ
मैं कहती हो तुम मेरे कृष्ण मुरारी होइन्हे भी पढ़े - मेरी मुहब्बत
nakhda
नखड़ा
नई नवेली बहु ने ससुराल आते ही नखड़ो की लाइन लगा दी , लम्बी चौड़ी फरमाइशों के साथ मायके में गुड़िया की तरह रहने की कहानियाँ सुना डाली। बेचारी सास यह सोचकर हैरत में थी की ये आजकल की पीढ़ी को हो क्या गया है जहाँ जाओ वहा यही कहानी सुनने को मिलती है आखिर इनकी माँ ने भी तो मेहनत कर के ही पाला होगा बेचारी इनके पैदा होने से लेकर ससुराल में जाने तक इनका ख्याल रखा है और साथ में अपने घर के बूढ़े बुजुर्गो का ध्यान भी जिम्मेदारी पूर्वक निभाया है। फिर इनको ऐसा क्या हो जाता है की जवान होने पर भी इनका बचपना नहीं जाता। हमारी तो जैसे तैसे निकल जाएगी लेकिन इनका गुजारा कैसे होगा , खुद के खाने के लिए तो मेहनत करनी ही पड़ेगी। नौकर चाकर का क्या भरोसा अगर भरोसा कर भी लिया जाये तो बच्चे उनका क्या ? ...... अभी सास इसी उधेड़ बुन में थी की लड़के और बहु की आवाजें उसके कानो में गूंजने लगी।
बहु ने आते ही नए घर की मांग कर दी थी और लड़का अपने माँ - बाप को छोड़ने को तैयार नहीं था उसने साफ़ तौर पर कह दिया की अगर उसे सबके साथ रहना है तो रहे नहीं तो वापस अपने मायके जा सकती है। जिस माँ ने उसे जन्म दिया बचपन से लेकर आज तक बिना स्वार्थ के पालन किया , जिस पिता ने सालो एक ही कपडे में गुजार दिए की उसके बेटे की परवरिश में कोई कमी ना रह जाये उनसे जुदा होने की बात वो सपने में भी नहीं सोच सकता
माँ को कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ , बहु की हरकते देखकर भविष्य की हरकतों का अंदाजा हो गया था। बल्कि उसे अपने संस्कार पर गर्व था जो उसने अपने बेटे को दिए थे और साथ ही अपने बेटे पर भी।
बहु अब तक समझ गई थी की इस घर की बुनियाद जिस संस्कार पर टिकी हुई है वहां उसके नखड़े का कोई स्थान नहीं ....
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sang tere
संग तेरे
तेरी तन्हाईया अब भी ये सवाल करती है
मरता था तू जिस पे वही ये हाल करती है
बड़ी नाजुक थी तेरी मुहब्बत
जो दर्दे - खास देती है
की तेरी हर एक याद
जिस्म को सांस देती है
हुआ करते थे, हम भी कभी रांझा
की उसको हीर कहते थे
की बदल सके न जिसको हम
उसे तकदीर कहते थे
जमाना है ये बड़ा कातिल
जो दिलो को तोड़ देता है
जो चल सके न संग इसके
उसे ये छोड़ देता है
हमने देखे थे जो सपने, संग साथ जीने के
टूटे गए वो सपने तेरे मेरे सीने के
सोचे ये दिल अब मेरा
मेरी जान जरा सुन ले
बहुत हुआ जीना अब तो, मौत ही चुन ले
तू धड़कन में था यूँ समाया
जैसे सीप में मोती
अगर संग तेरा जो होता, तो क्या जिंदगी होती
तेरी जुल्फों में शाम होती
तेरी आँखों में सुबह होती
कभी तू मुझमे खो जाती
कभी मैं तुझमे खो जाता। ...
लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/axibfjtu/sng-tere
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barsaat
बरसात
घर से निकले थे तभी रात हो गईकदम लड़खड़ाये अँधेरे में
संभलते ही उनसे मुलाकात हो गई
संभलना याद ना रहा
फिर से वही वारदात हो गई
भीगे सारी रात हम
इश्क़ के दरिया में
बरसात तो अब पुरानी बात हो गईबादलो से चाँद आज जमीं पर उतर आया था
पूर्णिमा की रात तो मेरी थी
ना जाने कितने घरो में अँधेरा छाया था
वो बेपनाह खूबसूरत सी इश्क़ की एक मूरत थी
और मेरी वीरान दुनिया की जरुरत थी
इश्क़ में आज फरमा बहुत रहे थे हम
पर चुपके से शरमा भी बहुत रहे थे हम
सावन और मुहब्बत दोनों की शुरुआत हो चुकी थी
उम्र भर साथ चलने की बात हो चुकी थी
सोचा कही ये ख्वाब तो नहीं
पर गालो पर सुर्ख गुलाबी मखमली अहसास हो चुकी थी
शायद ये निश्छल प्यार था मेरा
और उसको समझने वाला यार था मेरा
बारिश ने भी आज सारी रात जगा दिया
और दो प्यार करने वालो की कश्ती को किनारे लगा दिया .......
लेखक की स्टोरी मिरर पर प्रकाशित एक कविता -
https://storymirror.com/read/poem/hindi/4kafvoxj/brsaat
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ishq me
इश्क़ में
तड़प ,जूनून ,दर्द ,दिल्लगी
सिर्फ इश्क़ में ही मिलेगी
गर इश्क़ ना मिला तो तूं
और मिल गया तो दुनिया जलेगी
निकम्मा बनाता इश्क़ नहीं हैइश्क़ करने वाले होते ही निकम्मे है
इश्क़ की छुरियाँ चलती है जब दिल परआह तो नहीं निकलती
पर जाने क्या - क्या निकल जाता है
एक चेहरे के पीछे भागे हम बहुत है
सारी - सारी रात जागे हम बहुत है
सोये तो पुरे दिन भर थे हम
पर उस बेवफा के लिए रोये बहुत है
इश्क़ करना तो पूरी हिफाजत के साथ
दिल को थोड़ा संभाल के पूरी इनायत के साथ
टूटे हैं दिल बहुत यहाँ
बचे है थोड़े - थोड़ी मिलावट के साथ
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इश्क़
jhagda
झगड़ा
प्रायः दो व्यक्तियों के बीच होने वाले आपसी तनाव और हिंसा पूर्ण गतिविधियों की वह संलिप्तता है जिसमे भाषा और व्याकरण का ध्यान नहीं रखा जाता है। रखने को तो शारीरिक हानि का भी ध्यान नहीं रखा जाता है परन्तु स्वयं की नहीं बल्कि प्रतिपक्षी की।
झगडे का बीज प्रायः मन मस्तिष्क के किसी कोने से जड़ो में परिवर्तित होने का प्रयास करता है , विद्वान पुरुषो द्वारा इस प्रकार के पौधो का दमन अंकुरण के समय ही ठीक उसी प्रकार कर दिया जाता है जैसे लाभकारी फसलों के बीच जमने वाले खरपतवारो का किया जाता है परन्तु जिस मन मस्तिष्क में सालो से कोई उपजाऊ फसल ना बोई गई हो वहां इस तरह की पौध जीवन की मायावी ऊर्जा में संतुलन का कार्य करती है।
झगडे को लेकर विद्वान पुरुषो द्धारा अक्सर ही उनसे दुरी बनाये जाने की बात कही जाती है क्योंकि झगड़ा अगर एक बार गड गया तो उसे उखाड़ना इतना आसान नहीं होता और उसे उखाड़ने के चक्कर में हम अपना अमूल्य छण व्यर्थ में ही जाया कर देते है जिसका उपयोग हम स्वयं के विकास में लगा सकते थे। यदि आप एक नन्हे पौधे है और आपके बगल में कोई दीवार खड़ा कर देता है तो भलाई उससे लड़ने में नहीं है बल्कि अपनी दिशा थोड़ी सी बदल कर निकलने में है। समय आने पर पौधा जब विशाल पेड़ में परिवर्तित होता है तो वह दीवार स्वयं ही गिर जाती है।
झगडे का बीज ज्यों - ज्यों बड़ा होते जाता है उसी प्रकार वह मस्तिष्क में लगे अन्य सुकोमल पौधो (मानवीय विचारो )को हानि पहुंचाने लगता है। बीज को मस्तिष्क में रोपित होने से बचाने के लिए आवश्यक है की हम अहम् का त्याग कर दे वास्तव में झगडे के प्रधान कारणों में से अहम् का प्रथम स्थान है। जहाँ मैं है वहां कोई और आ ही नहीं सकता और जहा मैं नहीं है वहा प्रत्येक विचार और व्यक्ति का स्वागत है।
NOTE - झगडे की औषधि अगर कोई है तो वह है आपकी एक मुस्कान।
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