झगड़ा
प्रायः दो व्यक्तियों के बीच होने वाले आपसी तनाव और हिंसा पूर्ण गतिविधियों की वह संलिप्तता है जिसमे भाषा और व्याकरण का ध्यान नहीं रखा जाता है। रखने को तो शारीरिक हानि का भी ध्यान नहीं रखा जाता है परन्तु स्वयं की नहीं बल्कि प्रतिपक्षी की।
झगडे का बीज प्रायः मन मस्तिष्क के किसी कोने से जड़ो में परिवर्तित होने का प्रयास करता है , विद्वान पुरुषो द्वारा इस प्रकार के पौधो का दमन अंकुरण के समय ही ठीक उसी प्रकार कर दिया जाता है जैसे लाभकारी फसलों के बीच जमने वाले खरपतवारो का किया जाता है परन्तु जिस मन मस्तिष्क में सालो से कोई उपजाऊ फसल ना बोई गई हो वहां इस तरह की पौध जीवन की मायावी ऊर्जा में संतुलन का कार्य करती है।
झगडे को लेकर विद्वान पुरुषो द्धारा अक्सर ही उनसे दुरी बनाये जाने की बात कही जाती है क्योंकि झगड़ा अगर एक बार गड गया तो उसे उखाड़ना इतना आसान नहीं होता और उसे उखाड़ने के चक्कर में हम अपना अमूल्य छण व्यर्थ में ही जाया कर देते है जिसका उपयोग हम स्वयं के विकास में लगा सकते थे। यदि आप एक नन्हे पौधे है और आपके बगल में कोई दीवार खड़ा कर देता है तो भलाई उससे लड़ने में नहीं है बल्कि अपनी दिशा थोड़ी सी बदल कर निकलने में है। समय आने पर पौधा जब विशाल पेड़ में परिवर्तित होता है तो वह दीवार स्वयं ही गिर जाती है।
झगडे का बीज ज्यों - ज्यों बड़ा होते जाता है उसी प्रकार वह मस्तिष्क में लगे अन्य सुकोमल पौधो (मानवीय विचारो )को हानि पहुंचाने लगता है। बीज को मस्तिष्क में रोपित होने से बचाने के लिए आवश्यक है की हम अहम् का त्याग कर दे वास्तव में झगडे के प्रधान कारणों में से अहम् का प्रथम स्थान है। जहाँ मैं है वहां कोई और आ ही नहीं सकता और जहा मैं नहीं है वहा प्रत्येक विचार और व्यक्ति का स्वागत है।
NOTE - झगडे की औषधि अगर कोई है तो वह है आपकी एक मुस्कान।
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