korona and lockdown
कोरोना और लाकडाउन
लॉक होके डाउन होना जिनको पसंद नहीं है उनके लिए लॉकअप की सुविधा आसानी से उपलब्ध है। आसपड़ोस क्या होता है और नए मेहमान का स्वागत हम कैसे करते है लॉकडाउन में पैदा होने वाले बच्चे कभी नहीं जान पाएंगे । कुछ लोग सेहत पर ध्यान दे रहे है तो कुछ नए तरह की पागलपंती करते हुए दिख जायेंगे लेकिन उनका क्या जो बिना कुछ किये ऐसे लम्हो को जाया कर रहे है ।
खैर कोरोना है तो सब खैरियत है , सड़को पर दुर्घटना नहीं हो रही , जालंधर से हिमालय दिखने लगा , यमुना और अन्य नदिया स्वच्छ होने लगी , महानगरों के छोटे बच्चो को दादा - दादी क्या होते है छू कर पता लगाने का मौका मिला और तो और पुरुषो के अंदर के संजीव कपूर ने आलू , बैगन पर करतब दिखाना शुरू कर दिया , बची खुची कसर रामायण ने शुद्ध हिंदी सीखकर पूरी कर दी।
समझ से परे तो यह रहा की महिलाओ ने चुगलियों के इस अथाह सागर को छोटे से उदर में कैसे समाहित कर के रखा हुआ है जिसका आकर समय की धारा में दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। वस्तुओ के आदान प्रदान से सुगन्धित आस पड़ोस के रिश्ते कैसे स्वयं को प्रसार भारती होने से रोके हुए है। उन भक्तो का तो और भी बुरा हाल है जो प्रतिदिन मंदिर की आरती में अपनी उपस्थिति कार्यालय की उपस्थित से ज्यादा सुनिश्चित किये रहते है। चाय की दुकानों के वे रणबांकुरे जो पल भर में इस देश की सरकार गिराने का माद्दा रखते थे खुद की सरकार की निगरानी में घरो में कैद है उनपर तो मानो वज्रपात ही हो गया। पान को ईश्वर का भोग और पंसेरी को ईश्वर का दूत समझ कर दिन भर पान का भोग लगाने वाले पीके सरीखे मानवो की पीक ( थूक ) से दीवारे और सड़के रंगविहीन हो चुकी है।
अब इस रंगविहीन दुनियां को चाइना की छालरो से रंगीन भी नहीं बना सकते। इतने दिनों से सांप सीढ़ी खेलने पर यह समझ में नहीं आया की कैसे सौंवे स्थान पर रहने वाला आदमी विजयी होता है और पहले या दूसरे स्थान पर रहने वाला आदमी हार जाता है ।
जहाँ एक तरफ इस बिमारी के इलाज में डॉक्टरों और पुलिसकर्मियों की संयुक्त टीमें मुस्तैदी से अपनी भूमिका निभा रही है वही दुनियां से हल्के होने के चक्कर में कुछ लोग इसे हल्के में ले रहे है। खैर सरकार के पास इसके हर रूप के इलाज की व्यवस्था है और हमारे पास इससे बचने का उपाय जिसे मानना या ना मानने का असर हमारे और हमारे परिवार के अतिरिक्त सम्पूर्ण समाज पर पड़ सकता है। इसलिए हठधर्मिता छोड़े और बचाव धर्म का पालन करे।
Achha hai
अच्छा है
ख्याल अच्छा है , की शायद ये साल अच्छा है
नाउम्मीदी के परिंदो से तो, उम्मीद का जाल अच्छा है
मन का ना हो तो टीस नहीं , ढंग का ना हो तो खीस नहीं
मिले ना मनमीत तो क्या प्रीत नहीं ? चल रहा है जो कुछ भी
फिलहाल अच्छा है
गुरुर तुम्हारा भला हमे क्यों भाये
छोड़ के भी तुमको , हम कैसे जाये
मन का वहम नहीं ये , बस दिल का जंजाल अच्छा है
मथुरा से लेकर काशी तक , मुझसे लेकर साधू तक
उलझन ही उलझन है मन में , सुलझ गया कुछ ये ख्याल अच्छा है
हुई पराजय , तो क्या गम है
लड़ा जी भरके , क्या ये भी कम है
मन का जीता , जीतूंगा एक दिन
क्योंकि ये साल अच्छा है।
ख्याल अच्छा है , की शायद ये साल अच्छा है
नाउम्मीदी के परिंदो से तो, उम्मीद का जाल अच्छा है
मन का ना हो तो टीस नहीं , ढंग का ना हो तो खीस नहीं
मिले ना मनमीत तो क्या प्रीत नहीं ? चल रहा है जो कुछ भी
फिलहाल अच्छा है
गुरुर तुम्हारा भला हमे क्यों भाये
छोड़ के भी तुमको , हम कैसे जाये
मन का वहम नहीं ये , बस दिल का जंजाल अच्छा है
मथुरा से लेकर काशी तक , मुझसे लेकर साधू तक
उलझन ही उलझन है मन में , सुलझ गया कुछ ये ख्याल अच्छा है
हुई पराजय , तो क्या गम है
लड़ा जी भरके , क्या ये भी कम है
मन का जीता , जीतूंगा एक दिन
क्योंकि ये साल अच्छा है।
You and me
तू अउर हम
का भइल जौन दिल टूट गईल
व्हाट्सएप के खेला में संघतिया छूट गईल
पइसा खातिर घूमले देश-विदेश
अ जाएके बेला पे मांई रूठ गईल
बड़का बनके बड़का भाई छूटल
जाने कौन स्नेह से भौजी रूठल
उ का बूझे लाल बुझक्कड़
कहे के धन्ना दिल से फक्कड़
भरल मिर्चा में प्यार भर के
छोड़े आइल जवार भर के
कौन कमाई सबसे बड़का
सोचींहे कइसे मॉडर्न लड़का
घर पे बाप निहारत बा
लइका रोज चरावत बा
दिन उ आपन भूल गईल
मेहरारू संग झूल गईल
ससुरारी रोज सोहावत बा
सैर सपाटा और दावत बा
सुख के इ कुल झूलौना हउंए
दुख में तहसे भागल फिरिहे
छोड़ा मरदे अब ना समझाइब
मिर्ची लगी तहके जो सच बतलाइब
तहार दुनिया तहके मुबारक
अंग्रेजी बोलब तब पटक के मारब
To be continued....
का भइल जौन दिल टूट गईल
व्हाट्सएप के खेला में संघतिया छूट गईल
पइसा खातिर घूमले देश-विदेश
अ जाएके बेला पे मांई रूठ गईल
बड़का बनके बड़का भाई छूटल
जाने कौन स्नेह से भौजी रूठल
उ का बूझे लाल बुझक्कड़
कहे के धन्ना दिल से फक्कड़
भरल मिर्चा में प्यार भर के
छोड़े आइल जवार भर के
कौन कमाई सबसे बड़का
सोचींहे कइसे मॉडर्न लड़का
घर पे बाप निहारत बा
लइका रोज चरावत बा
दिन उ आपन भूल गईल
मेहरारू संग झूल गईल
ससुरारी रोज सोहावत बा
सैर सपाटा और दावत बा
सुख के इ कुल झूलौना हउंए
दुख में तहसे भागल फिरिहे
छोड़ा मरदे अब ना समझाइब
मिर्ची लगी तहके जो सच बतलाइब
तहार दुनिया तहके मुबारक
अंग्रेजी बोलब तब पटक के मारब
To be continued....
तूँ और मैं
नहीं था तूँ
तो मैं मैं था
था तूँ तो मैं तुमसा
बना जब तुमसा
मैं तूँ पर तूं ना मेरा
तूँ भी वो तूँ ना रहा
मैं बना जिस तूँ जैसा
मैं अब मैं जैसा
तूँ अब ना जाने कैसा
तूँ बना जैसा
रंग जिसमे चढ़े ना ऐसा
क्या तूँ - क्या मैं
लगन ऐसी थी उतरन वैसी
मैं अब आईने जैसा
तूँ एक मुखौटे जैसा
मैं अब ना तुझसा
तूँ ना अब मुझसा
a marriage in bihaar
ए मैरिज इन बिहार
दूल्हे का भाव और दूल्हे के छोटका भाई का ताव देखकर रिश्तेदारों को यह समझते देर न लगी की आज बिहारी दूल्हे और उसके भाइयो का भाव रहर के दाल की तरह बढ़ा हुआ है । खुद को हृत्विक समझने वाले दूल्हे को भले ही पूरा जवार राजपाल यादव समझता हो लेकिन मायावती सरीखी उसकी बुआ और गांव देहात के चढाकू फुफ्फा की नजर में वो कोई मिल गया वाला हृत्विक ही था । लड़के के फूफ्फा मुंहबोले धन्ना सेठ थे जिनकी पूरी जिंदाई दूसरो को नीचा और खुद को बबूल के पेड़ जितना ऊँचा दिखाने में निकल गई और फुआ , मिसरी जितनी मीठी और सेवन ओ क्लॉक ब्लेड जितनी धारदार ।
दरवाजे पर पहुँचते ही तिलक की व्यवस्था देखकर ऐसा लगा जैसे सब कुछ राम भरोसे हो , अरे राम भरोसे गांव के कैटरिंग वाले का नाम था जिस पर गांव के समृद्ध और बड़का लोग कम ही लोग भरोसा किया करते थे। किन्तु किफायती और बचतशील होने के नाते लड़के के इंजीनियर पिता ने पी डब्लू डी के टेंडर की तरह ही शादी का टेंडर 50 % डिस्काउंट के भरोसे राम भरोसे को दे दिया था । पूरे गांव की जनसँख्या को ध्यान में रखते हुए आधे लोगो की व्यवस्था की गई , भाई अब राम भरोसे की व्यवस्था थी तो इस इस पर शक कैसे किया जा सकता था। प्रत्येक स्टाल पर एक - एक मुश्तंडे को बैठा दिया गया , जो किसी भी मेहमान और गांव वाले को जाने पर एक ही जवाब देता " तिलकहरू के आने पर ही स्टाल खुलेगा " और जब तिलकहरू आ गए तब जवाब में परिवर्तन कर दिया जाता " अबहिन मालिक मना किये है " . बेचारा चाट का स्टाल छोले के वियोग में ही दुखी था उधर पूड़ियाँ भी डालडे को कब तक बर्दाश्त करती। हालाँकि कई रिश्तेदार यह बताने में असमर्थ रहे की आखिरकार स्टाल में पकवान क्या थे , कइयों की तो शंका यही थी की शायद ईंट पत्थर सजाकर रख दिए हो।
गांव वाले ठहरे भाई पटीदार वो तो बीप ... बीप की गालियां देते निकल गए परन्तु वे रिश्तेदार जो शादियों में अपने अपने साथ एक स्टेपनी लेकर चलते है वे क्या मुंह दिखाते। साथ ही समय से घर पहुँचने की मजबूरी अलग। रुकने वाले रिश्तेदारो को ऐसा लगने लगा था जैसे उन्हें किसी जेल में बंद कर दिया गया हो और खाना जेलर के आने के बाद ही मिलेगा । दूल्हे के घर वालो के भाव देखकर नारद जी को भी विश्वास हो गया था की पूरे ब्रम्हांड में दिग्विजय सिंह की शादी के बाद कोई खुश है तो यही परिवार ।
आखिरकार कई मेहमान स्टाल का मुंह देखे बगैर ही अपने - अपने घरो को लौट गए , कष्ट तो तब बढ़ा जब घरवालों ने यह कहा की " आ गए पनीर - पूड़ी चाप के " . अब बेचारे किसे बताते की कितनी पूड़ी खाकर आये है और कितनी इज्जत से मिठाई परोसी गई ।
खैर दूल्हे का तिलक शुरू होता है और जून की गर्मी से बचती - बचाती मामी , मौसी , फुआ ( बुआ ), भौजाइयां और गांव जवार की वे लड़कियाँ और औरते जिन्हे समारोह से ज्यादा चढ़ने वाले चढ़ावे की गिनती और क्वालिटी में नाक नुक्स निकालना आता है ने गीत कम गालियों की जो बौछार कि , की दूल्हे के साले और ससुर यह नहीं समझ पाए की वे तिलक चढाने आये है या फिर पूरे गांव से पटिदारी का मार करने।
गर्मी अगर कहीं पड़ रही थी तो वो जगह थी दूल्हे के भाई और पिता जी के दिमाग में। खैर रिश्तेदारों ने अपनी इज्जत खुद ही मेंटेन की और गांव वालो ने इनकी इज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । हां, समारोह में मिठाई और स्टाल के आइटम अगर किसी ने देखा था तो उससे बढ़कर दुनियां में खुशनसीब कोई भी नहीं ।
मैं तो यहाँ दूर बैठा कोल्ड कॉफी और पनीर रोल के साथ शादी का आँखों देखा हाल सुन रहा था । लालू के जमाने से ही मुझे बिहार से डर लगता है ।
jewan mantr
जीवन मन्त्र
शब्दों के जाल बिछाने वाले
कुछ कर्मो के करतब दिखलाओ
वाणी से मिसरी घोलने वाले
तुम मर्म किसी का क्या जानो
अर्थ का अनर्थ बनाने वाले, कुछ विषधरों को तुम अब पहचानो
है स्पष्ट ,सरल , गूढ़ मन्त्र जीवन का ये
तुम मानो या ना मानो
कुछ निंदा करके क्या पाया
सिर्फ जिन्दा रहके क्या पाया
क्यों उचित को अनुचित में बदला
रिश्तो को विचलित करके क्या पाया
कुछ दम्भ भरा खुद का यूँ
कुछ अहम् हृदय में समाया
ज्ञान का दीपक बुझा दिया कब
देर समझ में ये आया
कब विवेक को छोड़ दिया तूने
कब धैर्य तुझे ना रास आया
लोभ ने छीनी अन्तः ज्योति
मोह में तूं है अंधराया
कब छूटे तुझसे ये धरा
क्या जग को तूं दे पाया
यहाँ जन्म ना तेरी चाह से
मृत्यु तक तूं ये ना समझ पाया
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें
-
राफेल विमान सौदा - राफेल विमान आइये पहले तो राफेल डील की शुरुआत पे एक संछिप्त नजर डालते है (क्योंकि जवाब विषय को देखते हुए थोड़ा...
-
उफ्फ ये बेरोजगारी - uff ye berojgari कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...
-
देशवा (भोजपुरी कविता ) साहब साहब कहके पुकार मत बाबू जेके देहले रहले वोट उहे ना बा काबू खेल बा सब सत्ता के और नेता हो गईल बाड़े बेकाब...
-
मन की बात - 2 साहब आज एक बार हम फिर आप से अपने मन की बात करने वाले है पिछली बार तो उ आधार लिंक करवाने जाना था तो थोड़ा सा कहके निकल लिए इ...
-
झगड़ा प्रायः दो व्यक्तियों के बीच होने वाले आपसी तनाव और हिंसा पूर्ण गतिविधियों की वह संलिप्तता है जिसमे भाषा और व्याकरण का ध्...
-
आम आदमी -गंवई aam aadmi गाँव मे दो लोग आपस मे बात करते हुए. पहला -भैया ये मोदी और योगी का करत है आजकल, कुछ समझे मे नही आ रहा दूसरा –...
-
अटल बिहारी बाजपेयी की अस्थियाँ और मोदी सरकार अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय राजनीति का वो प्रथम चेहरा जिसने पहली बार बिना पूर्...
-
अध्यात्म की शुरुआत अध्यात्म हमारे भीतर की वह चेतना है जो की निष्काम है उसी चेतना को जगाने का प्रयास ही अध्यात्म कहलाता। मनुष्य जन...
-
गरीब और सरकार मीडिया सब कुछ दिखाती है , उसे चटपटी खबरे दिखाने में मजा आता है। लेकिन गरीब की जिंदगी में शायद कुछ चटपटा नहीं होता। ज...
-
रोमियो का इश्क़ ये जो मोहब्बत है सब उनकी ही सोहबत है चाँद पर आशियाना बनाएंगे वे कहते है इस जहां में इश्क़ से ज्यादा नफरत है वहाँ...
SPECIAL POST
uff ye berojgaari
उफ्फ ये बेरोजगारी - uff ye berojgari कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...