gyan yog


अध्यात्म और ज्ञान योग adhyatm aur gyan yog - 


ज्ञानयोग सांसारिक माया और उसके भ्रम को समझने की उच्च अवस्था है।  वास्तव में हमारे  ध्यान , ज्ञान और वास्तविकता को समझने की चेतन अवस्था जिसमे हम सांसारिक दृश्यों और भौतिक अवस्था की सत्यता का चेतन मन से अवलोकन करते है ज्ञान योग कहलाता है। 

ऐसा ज्ञान स्वयं के माध्यम से अर्जित किया जाता है इसके लिए भौतिकता के आवेश को स्वयं से दूर रखना आवश्यक है।  माया ज्ञान योग के वास्तविक स्वरुप को समझने में बाधक है।  

ज्ञान योग की पहली अवस्था गूढ़ अध्ययन की अवस्था  होती है इसमें पुस्तकों यथा  धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन  किया जाता है  .  अवस्था चिंतन और मनन की अवस्था होती है और अंत में ध्यान द्वारा आत्मा को सांसारिक तत्वों से अलग करना होता है।

ध्यान योग में मनुष्य को संसार की वास्तविकता का ज्ञान होता है उसे नश्वर और अमरत्व का ज्ञान होता है और इतने ज्ञान के पश्चात ह्रदय की पवित्रता आने पर ईश्वर का वास होता है।  ज्ञान योग का रास्ता अत्यंत ही जटिल है इसके लिए संयम का होना आवश्यक है क्रोध और ईर्ष्या जैसे तमाम आसुरिक प्रवित्तियों के गुणों का त्याग करना पड़ता है मन को ईश्वर की प्रेरणा से पवित्र बनाना पड़ता है।

वर्तमान समय में मची आपाधापी और अशांति के वातावरण में एक अध्यात्म ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें  शांति के पथ पर ले जाता है और ज्ञान योग जीवन की वास्तविकता को समझने में हमारी मदद करता है ताकि हम निरर्थक और सार्थक जीवन को समझ सके और ईश्वर द्वारा प्रदत्त बहुमूल्य मनुष्य योनि का सदुपयोग करते हुए अपने चारो और प्रकाश फैला सके। 



akhilesh ki maya



अखिलेश की माया  akhilesh ki maya - 



akhilesh ki maya
न्यूज़ चैनलों पे इन दिनों होने वाले कॉन्क्लेव की बाढ़ सी आई हुई है। जिसमे हर जगह योगी जी उपस्थित है और उत्तर प्रदेश में होने वाली हार पे अपनी राय जाहिर करते हुए दिखते है।  अचानक से इन चैनलों पे इस तरह के प्रोग्राम और भाजपा की हिस्सेदारी साफ़ तौर  पे अपनी छवि सुधरने की कोशिश है।  गोरखपुर की हार कही न कही भाजपा में योगी का कद घटाने वाली ऐसी घटना है जिसकी चिंता खुद योगी के चेहरे पे साफ झलकती है। 

इस हार के पीछे भाजपा की अपनी करनी जो भी हो चाहे वो जनता के बीच अपनी पकड़ खोती  जा रही हो या योगी  के कद को बड़े नेताओ द्वारा छोटा करने की कोशिश हो जिसमे उम्मीदवार के चयन से लेकर मोदी का प्रचार न करना और भी तमाम बातें है लेकिन जो बात स्पष्ट है वो है सपा और बसपा की आपसी सांठ गाँठ। 

उत्तर - प्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है जिसके बारे में कहा जाता है की दिल्ली का रास्ता यही से होकर गुजरता है इसीलिए 2014 के चुनावों में भाजपा ने यहाँ से गठबंधन के साथ 73 सीटों पे जीत हासिल की और केंद्र में सरकार बनाई। ऐसे में मुख्यमंत्री का अपनी ही सीट गवाना कही न कही बीजेपी के माथे पर भी शिकन लाता है। अगले ही साल केंद्र के लिए चुनाव होने वाले है और ऐसे में उत्तर प्रदेश की अहमियत एक बार फिर बढ़ जाती है। 

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टिया है जिनकी सरकार यहाँ बनती रही है पर 2017 के विधानसभा चुनावो में बीजेपी ने यहाँ भारी बहुमत से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।  पर कहते है माहौल बदलने में समय नहीं लगता।  अपने भारी भरकम फैसलों से सरकार के शुरूआती दिनों में ऐसा लगता था की जैसे काफी कुछ बदलने वाला है , लम्बे अर्से  से उत्तर प्रदेश में इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों ने विकास से अपना नाता तोड़ लिया था और उत्तर प्रदेश पिछड़ेपन का शिकार हो गया था। पर अपने शासन के अंतिम दिनों में  अखिलेश यादव इस बात को समझते हुए दिखे  की जातिय समीकरण के साथ चुनाव जितने के लिए विकास और प्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ पहुंचाने वाली योजनाए भी आवश्यक है इसलिए उन्होंने समाजवादी पेंशन से लेकर कन्या विद्याधन और लैपटॉप वितरण जैसी अनेक योजनाए चलाई परन्तु बीच में ही पारिवारिक कलह के चलते और परिवार द्वारा प्रदेश में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते उनके सरकार की छवि ख़राब हुई परन्तु एक बात जो स्पष्ट है  वो ये है की इन सब के बावजूद वे अपनी छवि जनता के दिमाग में गढ़ने में कामयाब हुए।  निश्चित तौर पे वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  के रूप में विकास की इबारत लिखने में कामयाब हुए। 


इन्ही सब के बीच वे पार्टी से पारिवारिक हस्तक्षेप दूर करने में भी सफल भी हुए और खुद पार्टी के अध्यक्ष बन बैठे।  अब एक बार फिर भाजपा की सरकार जिस प्रकार आम जनमानस से दूर होती दिख रही है उनके लिए खुद को साबित करने का सुनहरा अवसर है जिसे वे खोना नहीं चाहते।  यही कारण  है की उप चुनावों में जनता ने विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी का ही चुनाव किया। और दूसरा अहम् समीकरण बसपा का साथ जिसकी कल्पना शायद बीजेपी ने भी नहीं की थी क्योंकि गेस्ट हॉउस कांड के बाद इन दोनों पार्टियों का भविष्य में एक साथ आना लगभग असंभव था।

 परन्तु अखिलेश यादव ने अपनी रणनीतिक कुशलता से इसमें भी कामयाबी ही पाई। और अगर यह गठबंधन आगे भी जारी रहता है तो इसमें संदेह नहीं है की भाजपा का मिशन 2019 भी खतरे में पड़  सकता है।  मायावती के शासन को लोग मजबूत क़ानून व्यवस्था के तौर पे जानते है और बसपा  का निचले तबके का मजबूत वोटबैंक बहन जी के लिए सदैव समर्पित रहता है उसी प्रकार  समाजवादी पार्टी का पिछड़ी जाति  का एक वर्ग। उत्तर प्रदेश में इन  दोनों ही वर्ग का वोट प्रतिशत यदि आपस में मिल जाये तो आगामी लोकसभा चुनावों में काफी सीटे इन दोनों पार्टियों की झोली में आ गिरेंगी और भाजपा के मिशन को तगड़ा झटका लग सकता है। इसलिए भाजपा का प्रयास रहेगा की इनका गठबंधन हर हाल में न होने पाए क्योंकि फूलपुर और गोरखपुर की हार उसके लिए उसके मिशन 2019 के लिए खतरे की घंटी है। 

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highschool pass

हाईस्कूल की परीक्षा और हम  - high school ki pariksha aur hum 




highschool passअभी  पिछले साल की ही  बात है जब गोलुआ हाईस्कूल की परीक्षा में सत्तर  परसेंट  लाके  अपने पुरे गांव में हल्ला मचा दिया था।  इ अलग बात है की उसको अपना नाम भी लिखना नहीं आता। गोलुआ के हाईस्कूल पास होने की अलगे कहानी है , उ  तो स्कूले  नहीं जाना चाहता था पर उसकी अम्मा उसको समझाई की बेटवा लड़की वाले कहे है की कम से कम लड़का हाईस्कूल पास होना चाहिए और तुमको बस स्कूले तो जाना है वहां गुरूजी सब संभाल लेंगे। गोलुआ के रिश्ते की बात उसके मौसी की जेठानी की बहन के ननद की लड़की से चल रही  थी।लड़की वाले चाहते थे की लड़का कम से कम हाईस्कूल पास हो ताकि किसी अच्छे से स्कूल में जुगाड़ से  चपरासी बनवा दिया जाये  । उसके बाद तो गोलुआ फर्राटे से स्कूल की और ऐसा भागा की जैसे उसकी ट्रेन छूटी जा रही हो। 

गोलुआ को देख के बाकि सारे लइका लोग के माई - बाप  भी अपने - अपने होनहार सपूत से अइसे ही आशा लगा लिए थे। पर हम लोगो का दुःख कौन समझेगा की पुरे साल तो गिल्ली - डंडा , सनीमा और रिश्तेदारी निभाने में ही निकल जाता था और जो थोड़ा बहुत समय बचता था उसमे स्कूल चले जाते थे की सारे भाई लोग से मिल सके आखिर याराना भी तो जरुरी है।  

पिछले साल तो व्यवस्था मुलायम थी इसलिए गोलुआ निकल गया इस साल  पूरा योगी बनके साधना करनी पड़ेगी तो हमने भी साधना शुरू कर दी और रोज सुबह गुरु जी लोगो के घर के चक्कर काटना शुरू कर दिए दूध , दही , मट्ठा सब लेके गए पर गुरु जी लोग लेने से मना कर दिए बोले की बेटा ए साल सवाल नौकरी का है हम लोग खुदे कठिन परीक्षा के दौर से गुजर रहे है नही तो तुमको तो पता ही है पुरे साल तुम लोग हमरा कितना हेल्प करते हो और परीक्षा के टाइम हमलोग तुम्हारा। 

आजतक हम जब भी क्लास में सोये है तब  - तब तुम लोग शांति बनाये रखे हो जितने महीना हम नहीं आते थे तुम लोग खुदे हमारा हाजिरी दुसरे गुरु जी से लगवाए हो पर कभी कही शिकायत नहीं किये।  इसीलिए हम भी परीक्षा में पूरा कार्बन कपीये तुम लोगो को दे देते थे , और जो नहीं लिख पाता था उसके  घर से किसी को बुलवा लेते थे ताकि उ  बाहर लिख सके और तुम अंदर आराम से रहो।

सारी खिड़की पे एक - एक थो सीढ़ी लगवा दिए थे ताकि तुम्हरे घर के लोग भी इत्मीनान से देख सके और सवाल फसने पर पर्ची दे सके इसी चक्कर में कई लोग सीढ़ी अपने घरवे उठा ले गए , पानी ,  समोसा, कोल्ड - ड्रिंक सबका व्यवस्था किये रहे की तुम लोगो का मेहनत का पसीना बर्बाद न  जाये।  पर बेटा ये साल  जालिम सरकार नहीं चाह रही है की तुम लोग मेरिट लाके प्राइमरी का मस्टरवो बन सको। फौज में जा सको कुछ नहीं तो  चपरासियो बन सको और हमारे स्कूल का नाम रोशन कर सको । बेटा ई  सरकार चाह रही है की तुम भी चौराहे पे जाके पकौड़ा बेचो , बेरोजगार रहो , बिन ब्याहे रहो   गुरु जी की बातें ख़त्म होती उससे पहले ही हम फफक - फफक के रो पड़े और हमे देख के गुरु जी। 

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bjp and up election

बीजेपी की राजनीति की नाव मे जनता द्वारा छेद  bjp ki raajneeti ki naw me janta dwara chhed 




     


bjp and up election
बीजेपी की मौजूदा हार को अगर कोई मामूली हार समझता है तो वो बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है . हार से पहले कम से कम इन दोनो लोकसभा के महत्व को समझना जरूरी है , एक फूलपुर लोकसभा से त्यागपत्र देकर उप मुख्यमंत्री बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे लोकसभा से सांसद और प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र गोरखपुर .

सबसे तेज़ झटका जिस संसदीय क्षेत्र का है वो है गोरखपुर , गोरखपुर एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहा की जनता योगी के सिवा किसी और के बारे मे सोच भी नही सकती जहां हर चुनावो मे योगी की जीत का प्रतिशत बढ़ता ही जाता था , ये वही गोरखपुर हैं जिसके दम पे योगी अपनी राजनीति की हुंकार भरते है , हार की बात तो सपने मे भी नही आती और जिस जातीय समीकरण की बात कही जा रही है वो इतनो दिनो तक योगी की जीत मे कही देखने को नही मिली फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जिससे की पूरी जमीन ही खिसक गई और योगी धड़ाम से गिर पड़े .


दरअसल बीजेपी की हार पहले से ही तय थी , क्योंकि देर ही सही पर जनता को वर्तमान बीजेपी सरकार की कथनी और करनी मे फर्क समझ मे आने लगा है गली - चौराहे पे आम जनता की बातो मे बीजेपी को लेकर वैसा ही गुस्सा शुरु हो चुका है जैसा कांग्रेस के अंतिम दिनो मे हुआ करता था बस मुद्दे को लेकर फर्क है कांग्रेस के समय जो सबसे प्रभावी मुद्दा था वो था भ्रष्टाचार और इस समय जुमलेबाजी .

कहते है ये पब्लिक है सब जानती है , पर कभी काल कुछ समय के लिये इसे भी अपनी अदाकारी और राजनीति के नये तरीको से से भ्रमित किया जा सकता है पर कोई भी राजनेता इस भ्रम मे ना रहे की जनता का भ्रम अधिक दिनो तक बरकरार रखा जा सकता है और अपनी सत्ता चलाई जा सकती है .योगी भी अपनी स्वभाविक राजनीति जिसके लिये वी गोरखपुर मे जाने जाते है को छोड़कर भाजपा के उसी ढर्रे पे चल निकले जिसपे केन्द्र सरकार चल र्ही है .


वर्तमान समय मे केन्द्र की नीतियो से जनता त्रस्त आ चुकी है  भले ही सरकार  इसे लेकर कोई भी तर्क दे दे लेकिन सरकार आधार , गाय , हिन्दू - मुस्लिम , दंगे , भगवा , वंदे मातरम , बैंक मे खाता खुलवाने से लेकर टैक्स लगाने और जुमले बाजी से आगे नही बढ सकी . योगी भी मोदी की तरह ही विकास की बात करते - करते एक साल निकाल चुके थे , यहाँ तक की गोरखपुर की जनता की जो अपेक्षाये थी उनको पूरा करना तो दूर उनपर कभी ध्यान भी नही दिया ,पहले विपक्ष मे रहने के नाते जनता इसको अनदेखा करती रही और उन्हे वोट देती रही .

लेकिन इस बार वे खुद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे और जनता बस इंतजार करती रही विकास का ,  लेकिन एक साल के इंतजार मे उसे समझ मे आ गया की केन्द्र और राज्य सरकार बस अच्छी बातें कर सकती है , लेकिन काम मे इनका मन नही लगता और धीरे - धीरे आक्रोश बढ़ता गया और उसका विस्फोट हुआ इन उप चुनावो मे .

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मोदी राजा

ye dil

ये दिल 



ye dil


बहुत कुछ कहती है निगाहे तेरी
कह दे की तुझे मुझपे ऐतबार नहीं

तेरा मुड़ के यूँ देखना , उसपे इस दिल का धड़कना
कह दे की ये प्यार नहीं


मेरी गलियों से तेरा गुजरना कोई तो बात है

मुझे आज भी याद वो पहली मुलाकात है
वो खाली खत वो लाल गुलाब
कुछ तो जरूर होंगे  तेरे ख्वाब

 खत था खाली  पर  था उसमे  प्यार भरा
हसरतो भरा था संसार तेरा

कैद हो चूका था मैं तेरे प्यार में
गुजरती थी सुबह और शाम उन्ही गलियों में मेरी
सिर्फ और सिर्फ तेरे इन्तजार में


हर सांस पे लिख चुका था नाम तेरा

धड़कन करती थी ऐतबार  तेरा

रात कटती थी तन्हाई में मेरी 
और तेरी यादों के सहारे  ही हो जाता था सवेरा 

 बंद क्या हुआ तेरा मेरी गलियों से गुजरना 
धीमी पड़ी धड़कन 
शुरू हुआ आँखों का झरना 

ढूँढा तुझे सारे जहाँ में 
पर तू न जाने कहाँ खो गई 
पता चला की तू अब 
किसी और की हो गई। 

हम भी सुनकर मुस्कुराने लगे 
हंसने लगे और गाने लगे 

सोचा की गम में दर्द दिल में रहता  है
और उसी दिल में तू बसता  है....... ....... .... और उसी दिल में तू बसता  है   

                                                                             
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खामोश लब 
नया दौर 

up chunawo me bjp ki haar ki samiksha

उप चुनावों में भाजपा की हार की समीक्षा up chunawo me bjp ki haar ki samiksha  


up chunawo me bjp ki haar ki samiksha


महज दो सीटों की हार ऐसी हार है जिसने बीजेपी की नींद उड़ा दी है , हो भी क्यों नहीं बीजेपी जिस अति आत्मविशास की नौका पे सवार थी उसमे कही  न कही छेद होना शुरू हो चुका है।

पहले तो इन दो सीटों के महत्व को जानना भी जरुरी है जिनको लेकर बीजेपी के चेहरे पे इतनी शिकन आ चुकी है , इन दो सीटों में एक तो फूलपुर की सीट है जो की वर्तमान उप  मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा खाली की गई है और दूसरी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई गोरखपुर की वो प्रतिष्ठित सीट है जिसपे हर बार उनकी जीत का प्रतिशत बढ़ते ही जाता था। गोरखपुर में होने वाले चुनाव में मुद्द्दा बस यही रहता था की योगी इस बार पिछली बार की अपेक्षा कितने अधिक वोटो  से जीतते है , 29 साल से लगातार मंदिर का ही वर्चस्व इस सीट पर रहता था यहाँ ना जाति  काम आती थी न कोई और चेहरा। 


यही वजह है की बीजेपी इस सीट पर अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई और जनता के मन में सरकार की कार्यप्रणाली से होने वाली नाराजगी को  भाप नहीं पाई।  दरअसल अन्य राज्यों में भी केंद्र की सरकार को लेकर आक्रोश था इसका उदाहरण गुजरात चुनावों से बेहतर कोई और नहीं हो सकता यहाँ बीजेपी जीत  के बाद भी  हार गई। बस थोड़ी बहुत सहानुभूति मोदी का गृह राज्य होने की वजह से मिल पाई जिससे की वो अपनी इज्जत बचा सकी.

सरकार का प्राथमिक उद्देश्य जनता की भलाई होना चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में जहा जनता अपनी रोजमर्रा की समस्याओ से जूझ  रही है. वहां उसे सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए इन्ही अच्छे दिनों की आस में उसने भारी बहुमत केंद्र की सरकार को दिया था परन्तु केंद्र की सरकार गाय ,हिन्दू , मंदिर , मुस्लिम  और ध्रुवीकरण की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सकी. उसी ढर्रे पे मौजूदा राज्य सरकार भी चलने लगी और प्रदेश में बेरोजगारी , गरीबी और आम जनता करो के बोझ के नीचे  दबती चली गई।  विकास के ही नाम पे जनता ने नोटबंदी जैसे निर्णयों में सरकार का साथ दिया परन्तु धीरे धीरे उसे समझ में आने लगा की इतना साथ देने के बाद भी इन चार सालो में उसे कुछ  हासिल नहीं हुआ।  नौकरी के नाम पे केवल जाँच कराइ जाती रही और उसका कीमती समय जाया किया गया। बेरोजगारी के नाम पे उसे पकौड़े तलने को कहा गया ,  विकास के नाम पे उसे आपस में ही लड़ाया जाता रहा , हिन्दूत्व के नाम पे बस वोट लिया जाता रहा और उसके बाद फिर उसे उम्मीद ही लगाए रहने को कहा गया। 

सरकार तब तक ही जनता को भ्रमित कर सकती है जब तक की वो वास्तविकता को न समझे।  अगर ईमानदार होना ही सरकार बनाये रखने का गुण  है तो मनमोहन सिंह से बेहतर कोई और नहीं हो सकता था। 

भारत की अधिकांश जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है और दूसरा वर्ग जो किसी तरह अपनी जीविका चलाता है वो मध्यम वर्ग के अंतर्गत आता है इन्ही दो वर्गो ने बीजेपी को बहुमत से सरकार बनवाने में 
खुलकर समर्थन दिया था , परन्तु सरकार ने न इनके लिए उचित रोजगार की व्यवस्था की न ही मध्यम वर्ग का बोझ ही हल्का किया बदले में देशहित के नाम पर इनका बखूबी इस्तेमाल किया गया और लाभ उस उच्च वर्ग को पहुंचाया गया जिनके वोट से एक संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधि तक न चुना जा सके। जुमलेबाजी भी कुछ ही दिनों तक अच्छी लगती है उसके बाद बिना विकास के सारी  बाते जनता के लिए निरर्थक है। 

इन सीटों पर बीजेपी की हार इसी आक्रोश का नतीजा है अगर अभी भी सरकार किसी ग़लतफ़हमी में है तो आने वाले दिनों में उसे इसका भारी  खामियाजा उठाना पड़  सकता है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार ने जनता की इसी नब्ज को समझ कर अनेक लोककल्याणकारी कार्यो की शुरुआत की थी परन्तु जाति  विशेष को बढ़ावा देने और लचर कानून व्यवस्था  के कारण जनता ने समाजवादी सरकार को नकार दिया था अगर अखिलेश सरकार इन कमियों को वक़्त रहते दुरुस्त कर लेती  तो उसे उत्तर प्रदेश में हराना मुश्किल था , यही वजह है की आम आदमी ने इन उप चुनावों में एक बार फिर सपा को ही मौका दिया , जाति फैक्टर तभी काम आती है जब विकास का मुद्दा ढीला पड़  जाता है , इसका 2014 के लोकसभा चुनावों से बड़ा उदाहरण कोई और नहीं हो सकता जहा केवल वोट मोदी की विकासवादी छवि पर पड़ा था आज वही छवि कही पीछे छूट चुकी है और भाजपा की  कथनी और करनी में एक बहुत बड़ा अंतर आ चूका है। 

मौजूदा सरकारों को समझना चाहिए की जनता भी अब अपनी बात तर्क के माध्यम से रखना जानती है उसे और उसके साथ होने वाले  विश्वासघात पर वो चुप नहीं बैठ सकती।  चुनाव ही एक ऐसा माध्यम है जिनके जरिये वो इन राजनेताओ को आइना दिखाती है।  




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रोहित राय


कहते हैं कि मन का हो तो अच्छा न हो तो ज्यादा अच्छा। यही विचार करते हुए मेरे कदम स्टेशन की ओर बढ़ चले, आज चार साल की नौकरी के बाद जिंदगी किस करवट जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता, सुबह से ही सोच के बैठे थे की आज माँ को रिश्ते की बात आगे बढ़ाने को बोल देंगे, सरकारी नौकरी वो भी पुलिस की नौकरी में लगातार होते तबादलों से मैं परेशान हो उठा था। अनेक ब्राम्हण परिवारों से कई सारे रिश्ते आये पर नौकरी की वजह से माँ को रोके रखा।

पर कुछ दिनों से उसकी तबीयत इसी चिंता से ख़राब होते देख आज मैंने ये तय कर लिया था की माँ से बात बढ़ाने को बोल ही दूंगा।

तभी रेलवे स्टेशन से फ़ोन आया की वहाँ कुछ अराजक तत्वों ने उत्पात मचा रखा है तथा स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। रेलवे स्टेशन का एरिया मेरे ही अधिकार क्षेत्र में था और मैंने वहां कुछ दिन पहले ही पुलिस उपाधीक्षक के रूप में अपना कार्यभार ग्रहण किया था। मैं सादी वर्दी में ही घर से नियंत्रण कक्ष पर अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की सूचना देकर निकल पड़ा। हां साथ में हर समय सुरक्षा के लिए रहने वाले दो कांस्टेबल जरूर थे।

स्टेशन पे बाहर गाडी लगाकर हम पैदल ही मुख्य मार्ग से अंदर की और बढ़ चले। रास्ते में ही मैंने घटित होने वाली सारी स्थितियों पर विचार करके अपनी तैयारियां पूरी कर ली थी। स्टेशन के अंदर कदम रखते ही एक अलग तरह का नजारा था वैसे तो हम पुलिस वालों के लिए ये आम बात थी और समझने में देर नहीं लगी कि ये किसी राजनीतिक पार्टी विशेष का काम है और अपने हित के लिए चारों तरह धार्मिक उन्माद फ़ैलाने की कोशिश की जा रही थी, जिसमें विशेष धर्म के लोगो को निशाना बनाया जा रहा था। मैं बस इसी बात को लेकर हैरान था की अभी तक इनके किसी आका का मेरे पास फोन क्यों नहीं आया। मैंने तुरंत ही कांस्टेबल से लाउडस्पीकर लेकर शांति की अपील की और उन्मादियों को पुलिस के आगे सरेंडर करने को कहा परन्तु वे तो बात सुनने को ही तैयार नहीं थे , अनेक लोगों को उन्होने लहूलुहान कर दिया था। कई तो इस कदर जख्मी थे की आम आदमी की रूह काँप जाये।

मौके की नजाकत को देखते हुए मैंने रिवाल्वर निकाल कर हवा में दो राउंड फायरिंग कर डाली, इस पर भी कोई असर न होने तथा अतिरिक्त पुलिस बल आने में समय को देखते हुए मैं होने वाले जानमाल के नुकसान  की कल्पना से खुद ही उन्मादियों के बीच घुस गया और उन्हें इस बार पुलिसिया डंडे से समझाने का प्रयास करने लगा, मैं जानता था की इनके आकाओं ने इन्हें जितना हुक्म दिया है ये उसका अक्षरशः पालन करेंगे। लेकिन सबसे आवश्यक आम जनता की हिफाजत करना और सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान से बचाना था।

इन्हीं सबके बीच मेरी निगाह एक छोटी सी बच्ची पर पड़ी लगभग चार या पांच साल उम्र होगी उसकी जो कि शायद अपने माँ बाप से बिछड़ गई थी और सहमी हुई सी स्टेशन के एक कूड़ेदान के पीछे खड़ी थी, सलामत इसलिए थी की शायद अब तक किसी की निगाह वहां तक नहीं पहुंची होगी। मैने सबसे पहले उस बच्ची को सुरक्षित करना जरुरी समझा और उसकी तरफ बढ़ने लगा, तभी पता नहीं कहा से एक काफिला हथियारों से लैस मेरी तरफ बढ़ने लगा ,मैं उस वक़्त बच्ची के करीब पहुँच चुका था, सादी वर्दी की वजह से उन्हें ये नहीं मालूम था की मैं पुलिस वाला हूं।

मैं भी एक हाथ में डंडा और दूसरे हाथ में अपनी रिवाल्वर निकाल चुका था उनमें से कुछ रिवाल्वर देखते ही खिसक लिए परन्तु कुछ जिनके चेहरे पे रक्त पिपासा साफ़ झलक रही थी मेरी और बच्ची की तरफ हाथों में तलवार और हॉकी लेकर तेजी से आने लगे। दिमाग में खुद से ज्यादा बच्ची की चिंता हो उठी सोचा शायद ईश्वर ने मुझे यहाँ इसी उद्देश्य से भेजा होगा।

बच्ची को तुरंत ही खाली कचरे के डब्बे में बैठाकर, ताकि झटके में भी उसे किसी तरह की चोट ना पहुंचे मै मुकाबला करने थोड़ा सा आगे बढ़ गया, तलवार वाले दो शख्शों के पैर पे मैंने गोली मार दी जिससे की वो वही गिर पड़े बाकी के लिए मेरा डंडा ही काफी था। पता नहीं उस वक़्त कहां से मुझमें इतनी ताकत आ गई या किसी ईश्वरीय शक्ति की प्रेरणा थी जिससे की मैं इतने लोगों का मुकाबला करने लगा, तभी अतिरिक्त पुलिस बल भी आ गई जिसको देखते ही वे भागने लगे। मैंने तुरंत ही सबको पकड़ने का आदेश दिया वो भी अच्छी खातिरदारी के साथ क्योंकि पता नहीं पुलिस स्टेशन पहुंचने तक इनके ना जाने कितने सुबह चिंतक आ जाये।

अब मैं बच्ची के पास पहुंचा और उसे निकाल कर अपने साथ लेकर चलने लगा। बच्ची बहुत डर गई थी इसलिए मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया बच्ची ने भी अब तक हुए घटनाक्रम से अंदाजा लगा लिया था की मैं उसे बचाने की कोशिश कर रहा था, इसलिए वो मेरे साथ काफी सहज थी और धीरे - धीरे सामान्य होने की कोशिश करने लगी। मैं भी उससे बातचीत में उसका नाम जानने की कोशिश करने लगा जिससे की उसके माता - पिता को खोज सकूँ। उसने कई बार प्रयास करने के बाद अपना नाम आसिया बताया और पिता का नाम मजहर अली मां को वो अम्मी ही कहती थी।

मैं बच्ची को लेकर स्टेशन के पूछताछ कार्यालय पहुंचा ताकि बच्ची के माता - पिता को इसकी सूचना प्रसारित करवा सकूं, लेकिन तभी एक अभिभावक बच्ची को देखते ही रोते हुए भाग के मेरे पास आये। महिला को देखते ही बच्ची अम्मी - अम्मी कहते हुए उससे लिपट गई, मैं समझ गया की यही बच्ची के माता - पिता है। महिला रोते हुए मेरे पैरो पे गिर गई, मैंने तुरंत ही उन्हें उठाते हुए सांत्वना दी व पुलिसिया आदत से मजबूर उनकी पूरी जानकारी और बच्ची द्वारा शिनाख्त किये जाने पर बच्ची को उन्हें सौंप कर आगे की घटना की जानकारी लेने और निर्देश देने बढ़ चला।.

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