highschool pass

हाईस्कूल की परीक्षा और हम  - high school ki pariksha aur hum 




highschool passअभी  पिछले साल की ही  बात है जब गोलुआ हाईस्कूल की परीक्षा में सत्तर  परसेंट  लाके  अपने पुरे गांव में हल्ला मचा दिया था।  इ अलग बात है की उसको अपना नाम भी लिखना नहीं आता। गोलुआ के हाईस्कूल पास होने की अलगे कहानी है , उ  तो स्कूले  नहीं जाना चाहता था पर उसकी अम्मा उसको समझाई की बेटवा लड़की वाले कहे है की कम से कम लड़का हाईस्कूल पास होना चाहिए और तुमको बस स्कूले तो जाना है वहां गुरूजी सब संभाल लेंगे। गोलुआ के रिश्ते की बात उसके मौसी की जेठानी की बहन के ननद की लड़की से चल रही  थी।लड़की वाले चाहते थे की लड़का कम से कम हाईस्कूल पास हो ताकि किसी अच्छे से स्कूल में जुगाड़ से  चपरासी बनवा दिया जाये  । उसके बाद तो गोलुआ फर्राटे से स्कूल की और ऐसा भागा की जैसे उसकी ट्रेन छूटी जा रही हो। 

गोलुआ को देख के बाकि सारे लइका लोग के माई - बाप  भी अपने - अपने होनहार सपूत से अइसे ही आशा लगा लिए थे। पर हम लोगो का दुःख कौन समझेगा की पुरे साल तो गिल्ली - डंडा , सनीमा और रिश्तेदारी निभाने में ही निकल जाता था और जो थोड़ा बहुत समय बचता था उसमे स्कूल चले जाते थे की सारे भाई लोग से मिल सके आखिर याराना भी तो जरुरी है।  

पिछले साल तो व्यवस्था मुलायम थी इसलिए गोलुआ निकल गया इस साल  पूरा योगी बनके साधना करनी पड़ेगी तो हमने भी साधना शुरू कर दी और रोज सुबह गुरु जी लोगो के घर के चक्कर काटना शुरू कर दिए दूध , दही , मट्ठा सब लेके गए पर गुरु जी लोग लेने से मना कर दिए बोले की बेटा ए साल सवाल नौकरी का है हम लोग खुदे कठिन परीक्षा के दौर से गुजर रहे है नही तो तुमको तो पता ही है पुरे साल तुम लोग हमरा कितना हेल्प करते हो और परीक्षा के टाइम हमलोग तुम्हारा। 

आजतक हम जब भी क्लास में सोये है तब  - तब तुम लोग शांति बनाये रखे हो जितने महीना हम नहीं आते थे तुम लोग खुदे हमारा हाजिरी दुसरे गुरु जी से लगवाए हो पर कभी कही शिकायत नहीं किये।  इसीलिए हम भी परीक्षा में पूरा कार्बन कपीये तुम लोगो को दे देते थे , और जो नहीं लिख पाता था उसके  घर से किसी को बुलवा लेते थे ताकि उ  बाहर लिख सके और तुम अंदर आराम से रहो।

सारी खिड़की पे एक - एक थो सीढ़ी लगवा दिए थे ताकि तुम्हरे घर के लोग भी इत्मीनान से देख सके और सवाल फसने पर पर्ची दे सके इसी चक्कर में कई लोग सीढ़ी अपने घरवे उठा ले गए , पानी ,  समोसा, कोल्ड - ड्रिंक सबका व्यवस्था किये रहे की तुम लोगो का मेहनत का पसीना बर्बाद न  जाये।  पर बेटा ये साल  जालिम सरकार नहीं चाह रही है की तुम लोग मेरिट लाके प्राइमरी का मस्टरवो बन सको। फौज में जा सको कुछ नहीं तो  चपरासियो बन सको और हमारे स्कूल का नाम रोशन कर सको । बेटा ई  सरकार चाह रही है की तुम भी चौराहे पे जाके पकौड़ा बेचो , बेरोजगार रहो , बिन ब्याहे रहो   गुरु जी की बातें ख़त्म होती उससे पहले ही हम फफक - फफक के रो पड़े और हमे देख के गुरु जी। 

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बीजेपी की राजनीति की नाव मे जनता द्वारा छेद  bjp ki raajneeti ki naw me janta dwara chhed 




     


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बीजेपी की मौजूदा हार को अगर कोई मामूली हार समझता है तो वो बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है . हार से पहले कम से कम इन दोनो लोकसभा के महत्व को समझना जरूरी है , एक फूलपुर लोकसभा से त्यागपत्र देकर उप मुख्यमंत्री बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे लोकसभा से सांसद और प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र गोरखपुर .

सबसे तेज़ झटका जिस संसदीय क्षेत्र का है वो है गोरखपुर , गोरखपुर एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहा की जनता योगी के सिवा किसी और के बारे मे सोच भी नही सकती जहां हर चुनावो मे योगी की जीत का प्रतिशत बढ़ता ही जाता था , ये वही गोरखपुर हैं जिसके दम पे योगी अपनी राजनीति की हुंकार भरते है , हार की बात तो सपने मे भी नही आती और जिस जातीय समीकरण की बात कही जा रही है वो इतनो दिनो तक योगी की जीत मे कही देखने को नही मिली फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जिससे की पूरी जमीन ही खिसक गई और योगी धड़ाम से गिर पड़े .


दरअसल बीजेपी की हार पहले से ही तय थी , क्योंकि देर ही सही पर जनता को वर्तमान बीजेपी सरकार की कथनी और करनी मे फर्क समझ मे आने लगा है गली - चौराहे पे आम जनता की बातो मे बीजेपी को लेकर वैसा ही गुस्सा शुरु हो चुका है जैसा कांग्रेस के अंतिम दिनो मे हुआ करता था बस मुद्दे को लेकर फर्क है कांग्रेस के समय जो सबसे प्रभावी मुद्दा था वो था भ्रष्टाचार और इस समय जुमलेबाजी .

कहते है ये पब्लिक है सब जानती है , पर कभी काल कुछ समय के लिये इसे भी अपनी अदाकारी और राजनीति के नये तरीको से से भ्रमित किया जा सकता है पर कोई भी राजनेता इस भ्रम मे ना रहे की जनता का भ्रम अधिक दिनो तक बरकरार रखा जा सकता है और अपनी सत्ता चलाई जा सकती है .योगी भी अपनी स्वभाविक राजनीति जिसके लिये वी गोरखपुर मे जाने जाते है को छोड़कर भाजपा के उसी ढर्रे पे चल निकले जिसपे केन्द्र सरकार चल र्ही है .


वर्तमान समय मे केन्द्र की नीतियो से जनता त्रस्त आ चुकी है  भले ही सरकार  इसे लेकर कोई भी तर्क दे दे लेकिन सरकार आधार , गाय , हिन्दू - मुस्लिम , दंगे , भगवा , वंदे मातरम , बैंक मे खाता खुलवाने से लेकर टैक्स लगाने और जुमले बाजी से आगे नही बढ सकी . योगी भी मोदी की तरह ही विकास की बात करते - करते एक साल निकाल चुके थे , यहाँ तक की गोरखपुर की जनता की जो अपेक्षाये थी उनको पूरा करना तो दूर उनपर कभी ध्यान भी नही दिया ,पहले विपक्ष मे रहने के नाते जनता इसको अनदेखा करती रही और उन्हे वोट देती रही .

लेकिन इस बार वे खुद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे और जनता बस इंतजार करती रही विकास का ,  लेकिन एक साल के इंतजार मे उसे समझ मे आ गया की केन्द्र और राज्य सरकार बस अच्छी बातें कर सकती है , लेकिन काम मे इनका मन नही लगता और धीरे - धीरे आक्रोश बढ़ता गया और उसका विस्फोट हुआ इन उप चुनावो मे .

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बहुत कुछ कहती है निगाहे तेरी
कह दे की तुझे मुझपे ऐतबार नहीं

तेरा मुड़ के यूँ देखना , उसपे इस दिल का धड़कना
कह दे की ये प्यार नहीं


मेरी गलियों से तेरा गुजरना कोई तो बात है

मुझे आज भी याद वो पहली मुलाकात है
वो खाली खत वो लाल गुलाब
कुछ तो जरूर होंगे  तेरे ख्वाब

 खत था खाली  पर  था उसमे  प्यार भरा
हसरतो भरा था संसार तेरा

कैद हो चूका था मैं तेरे प्यार में
गुजरती थी सुबह और शाम उन्ही गलियों में मेरी
सिर्फ और सिर्फ तेरे इन्तजार में


हर सांस पे लिख चुका था नाम तेरा

धड़कन करती थी ऐतबार  तेरा

रात कटती थी तन्हाई में मेरी 
और तेरी यादों के सहारे  ही हो जाता था सवेरा 

 बंद क्या हुआ तेरा मेरी गलियों से गुजरना 
धीमी पड़ी धड़कन 
शुरू हुआ आँखों का झरना 

ढूँढा तुझे सारे जहाँ में 
पर तू न जाने कहाँ खो गई 
पता चला की तू अब 
किसी और की हो गई। 

हम भी सुनकर मुस्कुराने लगे 
हंसने लगे और गाने लगे 

सोचा की गम में दर्द दिल में रहता  है
और उसी दिल में तू बसता  है....... ....... .... और उसी दिल में तू बसता  है   

                                                                             
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महज दो सीटों की हार ऐसी हार है जिसने बीजेपी की नींद उड़ा दी है , हो भी क्यों नहीं बीजेपी जिस अति आत्मविशास की नौका पे सवार थी उसमे कही  न कही छेद होना शुरू हो चुका है।

पहले तो इन दो सीटों के महत्व को जानना भी जरुरी है जिनको लेकर बीजेपी के चेहरे पे इतनी शिकन आ चुकी है , इन दो सीटों में एक तो फूलपुर की सीट है जो की वर्तमान उप  मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा खाली की गई है और दूसरी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई गोरखपुर की वो प्रतिष्ठित सीट है जिसपे हर बार उनकी जीत का प्रतिशत बढ़ते ही जाता था। गोरखपुर में होने वाले चुनाव में मुद्द्दा बस यही रहता था की योगी इस बार पिछली बार की अपेक्षा कितने अधिक वोटो  से जीतते है , 29 साल से लगातार मंदिर का ही वर्चस्व इस सीट पर रहता था यहाँ ना जाति  काम आती थी न कोई और चेहरा। 


यही वजह है की बीजेपी इस सीट पर अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई और जनता के मन में सरकार की कार्यप्रणाली से होने वाली नाराजगी को  भाप नहीं पाई।  दरअसल अन्य राज्यों में भी केंद्र की सरकार को लेकर आक्रोश था इसका उदाहरण गुजरात चुनावों से बेहतर कोई और नहीं हो सकता यहाँ बीजेपी जीत  के बाद भी  हार गई। बस थोड़ी बहुत सहानुभूति मोदी का गृह राज्य होने की वजह से मिल पाई जिससे की वो अपनी इज्जत बचा सकी.

सरकार का प्राथमिक उद्देश्य जनता की भलाई होना चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में जहा जनता अपनी रोजमर्रा की समस्याओ से जूझ  रही है. वहां उसे सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए इन्ही अच्छे दिनों की आस में उसने भारी बहुमत केंद्र की सरकार को दिया था परन्तु केंद्र की सरकार गाय ,हिन्दू , मंदिर , मुस्लिम  और ध्रुवीकरण की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सकी. उसी ढर्रे पे मौजूदा राज्य सरकार भी चलने लगी और प्रदेश में बेरोजगारी , गरीबी और आम जनता करो के बोझ के नीचे  दबती चली गई।  विकास के ही नाम पे जनता ने नोटबंदी जैसे निर्णयों में सरकार का साथ दिया परन्तु धीरे धीरे उसे समझ में आने लगा की इतना साथ देने के बाद भी इन चार सालो में उसे कुछ  हासिल नहीं हुआ।  नौकरी के नाम पे केवल जाँच कराइ जाती रही और उसका कीमती समय जाया किया गया। बेरोजगारी के नाम पे उसे पकौड़े तलने को कहा गया ,  विकास के नाम पे उसे आपस में ही लड़ाया जाता रहा , हिन्दूत्व के नाम पे बस वोट लिया जाता रहा और उसके बाद फिर उसे उम्मीद ही लगाए रहने को कहा गया। 

सरकार तब तक ही जनता को भ्रमित कर सकती है जब तक की वो वास्तविकता को न समझे।  अगर ईमानदार होना ही सरकार बनाये रखने का गुण  है तो मनमोहन सिंह से बेहतर कोई और नहीं हो सकता था। 

भारत की अधिकांश जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है और दूसरा वर्ग जो किसी तरह अपनी जीविका चलाता है वो मध्यम वर्ग के अंतर्गत आता है इन्ही दो वर्गो ने बीजेपी को बहुमत से सरकार बनवाने में 
खुलकर समर्थन दिया था , परन्तु सरकार ने न इनके लिए उचित रोजगार की व्यवस्था की न ही मध्यम वर्ग का बोझ ही हल्का किया बदले में देशहित के नाम पर इनका बखूबी इस्तेमाल किया गया और लाभ उस उच्च वर्ग को पहुंचाया गया जिनके वोट से एक संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधि तक न चुना जा सके। जुमलेबाजी भी कुछ ही दिनों तक अच्छी लगती है उसके बाद बिना विकास के सारी  बाते जनता के लिए निरर्थक है। 

इन सीटों पर बीजेपी की हार इसी आक्रोश का नतीजा है अगर अभी भी सरकार किसी ग़लतफ़हमी में है तो आने वाले दिनों में उसे इसका भारी  खामियाजा उठाना पड़  सकता है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार ने जनता की इसी नब्ज को समझ कर अनेक लोककल्याणकारी कार्यो की शुरुआत की थी परन्तु जाति  विशेष को बढ़ावा देने और लचर कानून व्यवस्था  के कारण जनता ने समाजवादी सरकार को नकार दिया था अगर अखिलेश सरकार इन कमियों को वक़्त रहते दुरुस्त कर लेती  तो उसे उत्तर प्रदेश में हराना मुश्किल था , यही वजह है की आम आदमी ने इन उप चुनावों में एक बार फिर सपा को ही मौका दिया , जाति फैक्टर तभी काम आती है जब विकास का मुद्दा ढीला पड़  जाता है , इसका 2014 के लोकसभा चुनावों से बड़ा उदाहरण कोई और नहीं हो सकता जहा केवल वोट मोदी की विकासवादी छवि पर पड़ा था आज वही छवि कही पीछे छूट चुकी है और भाजपा की  कथनी और करनी में एक बहुत बड़ा अंतर आ चूका है। 

मौजूदा सरकारों को समझना चाहिए की जनता भी अब अपनी बात तर्क के माध्यम से रखना जानती है उसे और उसके साथ होने वाले  विश्वासघात पर वो चुप नहीं बैठ सकती।  चुनाव ही एक ऐसा माध्यम है जिनके जरिये वो इन राजनेताओ को आइना दिखाती है।  




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