up chunawo me bjp ki haar ki samiksha

उप चुनावों में भाजपा की हार की समीक्षा up chunawo me bjp ki haar ki samiksha  


up chunawo me bjp ki haar ki samiksha


महज दो सीटों की हार ऐसी हार है जिसने बीजेपी की नींद उड़ा दी है , हो भी क्यों नहीं बीजेपी जिस अति आत्मविशास की नौका पे सवार थी उसमे कही  न कही छेद होना शुरू हो चुका है।

पहले तो इन दो सीटों के महत्व को जानना भी जरुरी है जिनको लेकर बीजेपी के चेहरे पे इतनी शिकन आ चुकी है , इन दो सीटों में एक तो फूलपुर की सीट है जो की वर्तमान उप  मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य द्वारा खाली की गई है और दूसरी वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा खाली की गई गोरखपुर की वो प्रतिष्ठित सीट है जिसपे हर बार उनकी जीत का प्रतिशत बढ़ते ही जाता था। गोरखपुर में होने वाले चुनाव में मुद्द्दा बस यही रहता था की योगी इस बार पिछली बार की अपेक्षा कितने अधिक वोटो  से जीतते है , 29 साल से लगातार मंदिर का ही वर्चस्व इस सीट पर रहता था यहाँ ना जाति  काम आती थी न कोई और चेहरा। 


यही वजह है की बीजेपी इस सीट पर अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई और जनता के मन में सरकार की कार्यप्रणाली से होने वाली नाराजगी को  भाप नहीं पाई।  दरअसल अन्य राज्यों में भी केंद्र की सरकार को लेकर आक्रोश था इसका उदाहरण गुजरात चुनावों से बेहतर कोई और नहीं हो सकता यहाँ बीजेपी जीत  के बाद भी  हार गई। बस थोड़ी बहुत सहानुभूति मोदी का गृह राज्य होने की वजह से मिल पाई जिससे की वो अपनी इज्जत बचा सकी.

सरकार का प्राथमिक उद्देश्य जनता की भलाई होना चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में जहा जनता अपनी रोजमर्रा की समस्याओ से जूझ  रही है. वहां उसे सिर्फ और सिर्फ विकास चाहिए इन्ही अच्छे दिनों की आस में उसने भारी बहुमत केंद्र की सरकार को दिया था परन्तु केंद्र की सरकार गाय ,हिन्दू , मंदिर , मुस्लिम  और ध्रुवीकरण की राजनीति से आगे नहीं बढ़ सकी. उसी ढर्रे पे मौजूदा राज्य सरकार भी चलने लगी और प्रदेश में बेरोजगारी , गरीबी और आम जनता करो के बोझ के नीचे  दबती चली गई।  विकास के ही नाम पे जनता ने नोटबंदी जैसे निर्णयों में सरकार का साथ दिया परन्तु धीरे धीरे उसे समझ में आने लगा की इतना साथ देने के बाद भी इन चार सालो में उसे कुछ  हासिल नहीं हुआ।  नौकरी के नाम पे केवल जाँच कराइ जाती रही और उसका कीमती समय जाया किया गया। बेरोजगारी के नाम पे उसे पकौड़े तलने को कहा गया ,  विकास के नाम पे उसे आपस में ही लड़ाया जाता रहा , हिन्दूत्व के नाम पे बस वोट लिया जाता रहा और उसके बाद फिर उसे उम्मीद ही लगाए रहने को कहा गया। 

सरकार तब तक ही जनता को भ्रमित कर सकती है जब तक की वो वास्तविकता को न समझे।  अगर ईमानदार होना ही सरकार बनाये रखने का गुण  है तो मनमोहन सिंह से बेहतर कोई और नहीं हो सकता था। 

भारत की अधिकांश जनता गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करती है और दूसरा वर्ग जो किसी तरह अपनी जीविका चलाता है वो मध्यम वर्ग के अंतर्गत आता है इन्ही दो वर्गो ने बीजेपी को बहुमत से सरकार बनवाने में 
खुलकर समर्थन दिया था , परन्तु सरकार ने न इनके लिए उचित रोजगार की व्यवस्था की न ही मध्यम वर्ग का बोझ ही हल्का किया बदले में देशहित के नाम पर इनका बखूबी इस्तेमाल किया गया और लाभ उस उच्च वर्ग को पहुंचाया गया जिनके वोट से एक संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधि तक न चुना जा सके। जुमलेबाजी भी कुछ ही दिनों तक अच्छी लगती है उसके बाद बिना विकास के सारी  बाते जनता के लिए निरर्थक है। 

इन सीटों पर बीजेपी की हार इसी आक्रोश का नतीजा है अगर अभी भी सरकार किसी ग़लतफ़हमी में है तो आने वाले दिनों में उसे इसका भारी  खामियाजा उठाना पड़  सकता है। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार ने जनता की इसी नब्ज को समझ कर अनेक लोककल्याणकारी कार्यो की शुरुआत की थी परन्तु जाति  विशेष को बढ़ावा देने और लचर कानून व्यवस्था  के कारण जनता ने समाजवादी सरकार को नकार दिया था अगर अखिलेश सरकार इन कमियों को वक़्त रहते दुरुस्त कर लेती  तो उसे उत्तर प्रदेश में हराना मुश्किल था , यही वजह है की आम आदमी ने इन उप चुनावों में एक बार फिर सपा को ही मौका दिया , जाति फैक्टर तभी काम आती है जब विकास का मुद्दा ढीला पड़  जाता है , इसका 2014 के लोकसभा चुनावों से बड़ा उदाहरण कोई और नहीं हो सकता जहा केवल वोट मोदी की विकासवादी छवि पर पड़ा था आज वही छवि कही पीछे छूट चुकी है और भाजपा की  कथनी और करनी में एक बहुत बड़ा अंतर आ चूका है। 

मौजूदा सरकारों को समझना चाहिए की जनता भी अब अपनी बात तर्क के माध्यम से रखना जानती है उसे और उसके साथ होने वाले  विश्वासघात पर वो चुप नहीं बैठ सकती।  चुनाव ही एक ऐसा माध्यम है जिनके जरिये वो इन राजनेताओ को आइना दिखाती है।  




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रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 58 : ...: प्रविष्टि क्र. 58 फर्ज़ रोहित राय कहते हैं कि मन का हो तो अच्छा न हो तो ज्यादा अच्छा। यही विचार करते हुए मेरे कदम स्टेशन की ओर बढ़ चले, आज चा..
रोहित राय


कहते हैं कि मन का हो तो अच्छा न हो तो ज्यादा अच्छा। यही विचार करते हुए मेरे कदम स्टेशन की ओर बढ़ चले, आज चार साल की नौकरी के बाद जिंदगी किस करवट जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता, सुबह से ही सोच के बैठे थे की आज माँ को रिश्ते की बात आगे बढ़ाने को बोल देंगे, सरकारी नौकरी वो भी पुलिस की नौकरी में लगातार होते तबादलों से मैं परेशान हो उठा था। अनेक ब्राम्हण परिवारों से कई सारे रिश्ते आये पर नौकरी की वजह से माँ को रोके रखा।

पर कुछ दिनों से उसकी तबीयत इसी चिंता से ख़राब होते देख आज मैंने ये तय कर लिया था की माँ से बात बढ़ाने को बोल ही दूंगा।

तभी रेलवे स्टेशन से फ़ोन आया की वहाँ कुछ अराजक तत्वों ने उत्पात मचा रखा है तथा स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। रेलवे स्टेशन का एरिया मेरे ही अधिकार क्षेत्र में था और मैंने वहां कुछ दिन पहले ही पुलिस उपाधीक्षक के रूप में अपना कार्यभार ग्रहण किया था। मैं सादी वर्दी में ही घर से नियंत्रण कक्ष पर अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की सूचना देकर निकल पड़ा। हां साथ में हर समय सुरक्षा के लिए रहने वाले दो कांस्टेबल जरूर थे।

स्टेशन पे बाहर गाडी लगाकर हम पैदल ही मुख्य मार्ग से अंदर की और बढ़ चले। रास्ते में ही मैंने घटित होने वाली सारी स्थितियों पर विचार करके अपनी तैयारियां पूरी कर ली थी। स्टेशन के अंदर कदम रखते ही एक अलग तरह का नजारा था वैसे तो हम पुलिस वालों के लिए ये आम बात थी और समझने में देर नहीं लगी कि ये किसी राजनीतिक पार्टी विशेष का काम है और अपने हित के लिए चारों तरह धार्मिक उन्माद फ़ैलाने की कोशिश की जा रही थी, जिसमें विशेष धर्म के लोगो को निशाना बनाया जा रहा था। मैं बस इसी बात को लेकर हैरान था की अभी तक इनके किसी आका का मेरे पास फोन क्यों नहीं आया। मैंने तुरंत ही कांस्टेबल से लाउडस्पीकर लेकर शांति की अपील की और उन्मादियों को पुलिस के आगे सरेंडर करने को कहा परन्तु वे तो बात सुनने को ही तैयार नहीं थे , अनेक लोगों को उन्होने लहूलुहान कर दिया था। कई तो इस कदर जख्मी थे की आम आदमी की रूह काँप जाये।

मौके की नजाकत को देखते हुए मैंने रिवाल्वर निकाल कर हवा में दो राउंड फायरिंग कर डाली, इस पर भी कोई असर न होने तथा अतिरिक्त पुलिस बल आने में समय को देखते हुए मैं होने वाले जानमाल के नुकसान  की कल्पना से खुद ही उन्मादियों के बीच घुस गया और उन्हें इस बार पुलिसिया डंडे से समझाने का प्रयास करने लगा, मैं जानता था की इनके आकाओं ने इन्हें जितना हुक्म दिया है ये उसका अक्षरशः पालन करेंगे। लेकिन सबसे आवश्यक आम जनता की हिफाजत करना और सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान से बचाना था।

इन्हीं सबके बीच मेरी निगाह एक छोटी सी बच्ची पर पड़ी लगभग चार या पांच साल उम्र होगी उसकी जो कि शायद अपने माँ बाप से बिछड़ गई थी और सहमी हुई सी स्टेशन के एक कूड़ेदान के पीछे खड़ी थी, सलामत इसलिए थी की शायद अब तक किसी की निगाह वहां तक नहीं पहुंची होगी। मैने सबसे पहले उस बच्ची को सुरक्षित करना जरुरी समझा और उसकी तरफ बढ़ने लगा, तभी पता नहीं कहा से एक काफिला हथियारों से लैस मेरी तरफ बढ़ने लगा ,मैं उस वक़्त बच्ची के करीब पहुँच चुका था, सादी वर्दी की वजह से उन्हें ये नहीं मालूम था की मैं पुलिस वाला हूं।

मैं भी एक हाथ में डंडा और दूसरे हाथ में अपनी रिवाल्वर निकाल चुका था उनमें से कुछ रिवाल्वर देखते ही खिसक लिए परन्तु कुछ जिनके चेहरे पे रक्त पिपासा साफ़ झलक रही थी मेरी और बच्ची की तरफ हाथों में तलवार और हॉकी लेकर तेजी से आने लगे। दिमाग में खुद से ज्यादा बच्ची की चिंता हो उठी सोचा शायद ईश्वर ने मुझे यहाँ इसी उद्देश्य से भेजा होगा।

बच्ची को तुरंत ही खाली कचरे के डब्बे में बैठाकर, ताकि झटके में भी उसे किसी तरह की चोट ना पहुंचे मै मुकाबला करने थोड़ा सा आगे बढ़ गया, तलवार वाले दो शख्शों के पैर पे मैंने गोली मार दी जिससे की वो वही गिर पड़े बाकी के लिए मेरा डंडा ही काफी था। पता नहीं उस वक़्त कहां से मुझमें इतनी ताकत आ गई या किसी ईश्वरीय शक्ति की प्रेरणा थी जिससे की मैं इतने लोगों का मुकाबला करने लगा, तभी अतिरिक्त पुलिस बल भी आ गई जिसको देखते ही वे भागने लगे। मैंने तुरंत ही सबको पकड़ने का आदेश दिया वो भी अच्छी खातिरदारी के साथ क्योंकि पता नहीं पुलिस स्टेशन पहुंचने तक इनके ना जाने कितने सुबह चिंतक आ जाये।

अब मैं बच्ची के पास पहुंचा और उसे निकाल कर अपने साथ लेकर चलने लगा। बच्ची बहुत डर गई थी इसलिए मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया बच्ची ने भी अब तक हुए घटनाक्रम से अंदाजा लगा लिया था की मैं उसे बचाने की कोशिश कर रहा था, इसलिए वो मेरे साथ काफी सहज थी और धीरे - धीरे सामान्य होने की कोशिश करने लगी। मैं भी उससे बातचीत में उसका नाम जानने की कोशिश करने लगा जिससे की उसके माता - पिता को खोज सकूँ। उसने कई बार प्रयास करने के बाद अपना नाम आसिया बताया और पिता का नाम मजहर अली मां को वो अम्मी ही कहती थी।

मैं बच्ची को लेकर स्टेशन के पूछताछ कार्यालय पहुंचा ताकि बच्ची के माता - पिता को इसकी सूचना प्रसारित करवा सकूं, लेकिन तभी एक अभिभावक बच्ची को देखते ही रोते हुए भाग के मेरे पास आये। महिला को देखते ही बच्ची अम्मी - अम्मी कहते हुए उससे लिपट गई, मैं समझ गया की यही बच्ची के माता - पिता है। महिला रोते हुए मेरे पैरो पे गिर गई, मैंने तुरंत ही उन्हें उठाते हुए सांत्वना दी व पुलिसिया आदत से मजबूर उनकी पूरी जानकारी और बच्ची द्वारा शिनाख्त किये जाने पर बच्ची को उन्हें सौंप कर आगे की घटना की जानकारी लेने और निर्देश देने बढ़ चला।.

khamosh lub



खामोश लब khmosh lub


खामोश लबो से बोलते क्यों नहीं  ?
दिलो के दरवाजे खोलते  क्यों नहीं  ? 


माना की डरते हो अब लहरों से भी तुम  
तो क्या हुआ , जो बारिशो में अब भींगते क्यों नहीं  ?


जलाते थे आँधियो में भी चिराग तुम 
फिर बैठे हुए अब थकते क्यों नहीं ?


तन्हाई से बेशक मुहब्बत है अब तुम्हे 
कभी ज़िन्दगी से मुहब्बत करते क्यों नहीं ?
देखते हो बैठ के लम्हो  को गुजरते हुए 
कभी इन पलो  में गुजरते क्यों नहीं ?

जिंदगी लेती है इम्तहान हर कदम पर 
फिर अपने कदमो को बढ़ाते क्यों नहीं  ?

कदम दर कदम मंजिल पास आती जाएगी तुम्हारे 
फिर  मंजिलो को पाकर भी मुस्कुराते क्यों नहीं ?

क्या राज है क्या  दर्द है तुम्हारा 
कभी इस जहाँ को बताते क्यों नहीं ?

खामोश ............  
                                                                                                                                                                                      रायजी 
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rahul gabdhi and singapur's truth


राहुल गाँधी और सिंगापुर का सच  rahul gandhi aur singapur ka sach - 




राहुल गाँधी कब कहा पहुँच जाते है ये किसी को नहीं पता रहता , फिलहाल उन्होंने इस बार सिंगापुर से बीजेपी पे हमला किया है। 
राहुल गाँधी सिंगापुर के ली कुआन यिवु स्कूल की परिचर्चा में भाग ले रहे थे , यह सिंगापुर के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है जिसकी परिचर्चा में उन्हें आमंत्रित किया गया था , कार्यक्रम का संचालन प्रतिष्ठित लेखक प्रसेनजित के बसु कर रहे थे। परिचर्चा में  राहुल गाँधी कहते है की भारत में इस समय एक अलग तरह की राजनीति हो रही है। जिसमे लोगो को बांटा जा रहा है और उनके अंदर गुस्सा पैदा किया जा रहा है ताकि यह गुस्सा वोट बैंक  में बदल सके।  हालांकि वे ये भी कहते है की इस तरह की राजनीति विश्व के कई अन्य देशो में भी हो रही है। 

राहुल इससे पहले अमेरिका में भी एक प्रेस कांफ्रेंस में नए अवतार में दिखाई दिए थे , पता नहीं इनको अपने देश की मीडिया से क्या दिक्कत है जो हमेशा विदेशी मीडिया में जाकर विपक्ष पर अत्यधिक हमलावर हो जाते है। 
या उन्हें लगता है इस देश की मीडिया हर बात पे उनकी गलत छवि पेश करती है। 

राहुल गाँधी ने इस परिचर्चा में उच्चतम न्यायलय के चार वरिष्ठ न्यायधीशों का भी जिक्र किया, उन्होंने जस्टिस लोया मामले में सीधे - सीधे अमित शाह का नाम लिया राहुल गांधी ने यह भी  कहा की भारत में इस समय एक तरह के  डर का माहौल है , आज अगर महात्मा गाँधी जीवित होते तो वे भी दुखी होते। 

प्रसेनजीत बसु ने कांग्रेस के  वीडियो  को फर्जी करार दिया -  



इस वीडियो को कांग्रेस के ट्विटर हैंडलर पे डाला गया है। जिसको देखने के बाद लेखक प्रसेनजीत बसु ने ही इसमें  गलत तरीके से एडिटिंग करने का आरोप लगाया है , उनके अनुसार सवालों और जवाबो की इस कड़ी में काफी कांट - छांट की गई है , जिससे की मूल वीडियो ही बदल गया है।  कांग्रेस पार्टी पर इस तरह का यह कोई पहला आरोप  नहीं है इससे पहले भी इस तरह के कई आरोप  लगते आये है , पर जिसने सवाल पूछा वही अगर इस विडियो  पर सवालिया निशान  लगाता है तो प्रश्न कांग्रेस की सुचिता और राजनीति के गिरते स्तर पर आना स्वाभाविक है। प्रसेनजीत बसु ने इस वीडियो  को कांग्रेस द्वारा जल्द से जल्द अपने ट्विटर हैंडलर से हटाने को कहा है। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो उसे सिंगापुर की अदालत  में आने के लिया तैयार रहना होगा। 

महत्वपूर्ण सवाल - 


प्रसेनजीत के जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल राहुल गाँधी से थे उनमे वंशवाद को लेकर सीधा प्रश्न यह था  की उनकी पार्टी  भारत में 62 साल सत्ता में रही और इतने दिनों में जब परिवार से कोई प्रधानमंत्री रहा तब - तब  भारत में आम आदमी की औसत आमदनी विश्व की अपेक्षा कम  रही यानि आम आदमी गरीब ही रहा जबकि  परिवार अमीर  होते गया , वही जब सत्ता परिवार से इतर कांग्रेस में ही या अन्य दलों में  दुसरे व्यक्ति के हाथ में रही जैसे नरसिम्हा राव, अटल बिहारी बाजपेयी  तो आम आदमी की जीडीपी संसार के अन्य देशो की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ी। नेहरू के समय तो जीडीपी स्वाभाविक रूप से जितनी बढ़नी चाहिए उससे भी कम रही। इसका अर्थ यह है की परिवार  भारत को एक गरीब देश बनाकर रखना चाहता  था । 
कांग्रेस इन 62 सालो में भारत को गरीबी से मुक्ति क्यों नहीं दिला पाई जबकि वर्तमान सरकार के केवल चार साल पुरे होने पर उससे हिसाब माँगा जाता है। 

ऐसे ही कई सवालों के जवाब जो उस समय राहुल गांधी नहीं दे पाए उनको इस वीडियो में एडिटिंग के जरिये दर्शाया या हटाया  गया है। 
एक सवाल मेरा भी कांग्रेस से था जो मैं बार -  बार पूछता हूँ की अगर परिवारवाद न होता तो क्या राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद के सबसे योग्य  उम्मीदवार है , और क्या इतनी नाकामियों के बाद भी  वे इस कुर्सी और कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी पर टिके  रह पाते  ?

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