wah re sharma jee

वाह रे शर्मा जी wah re sharma jee 


बीवी और टीवी ये दोनों दूर से ही चले तो अच्छी है पास से देखने पे एक आँखों के लिए नुकसानदायक है और दूसरा मन की शांति के लिए।और इसीलिए लगता है की दोनों ही रिमोट से चलती तो कितना अच्छा होता।  

शर्मा जी आज सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते वक़्त यही सोच रहे थे की आज सुबह उनसे ऐसी कौन सी खता हो गई की उनकी बीवी उनपे ट्रक के हार्न की तरह बजती ही जा रही है। सुबह उन्होंने बस इतना ही तो कहा था की आज नाश्ते में आलू के पराठें की  जगह मूली के परांठे बन जाये तो  उन्होंने ऐसा कौन सा गुनाह कर  दिया ये अलग बात है की शर्मा जी को गैस की प्रॉब्लम है पर बीवी को क्या समस्या  थी, नहीं बनाना था तो एक बार बोल ही  दी होती सर पे आसमां उठाने की क्या जरुरत थी। 

अभी कल ही मुंह से बस गलती से ही निकल गया की कानपुर भारत  के सबसे गंदे शहरो में से एक है वहा  स्वच्छ भारत अभियान की धज्जिया उड़ रही है   फिर क्या  फिर तो ना जाने कितनी बुराइया मुझमे और नैनीताल शहर में निकल आई दोपहर के खाने तक से महरूम होना पड़ा  वो अलग , अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की  शर्मा जी नैनीताल के थे और उनकी श्रीमती जी कानपूर की। भला कानपुर की बुराई करना उनके मायके की बुराई करने से कम थोड़ी न था। 

खैर शर्मा जी ने अपना ध्यान सामने आई मुसीबत से हटाकर डाइनिंग टेबल पर रखे आलू के परांठे , धनिया और टमाटर की चटनी पे लगाया। नाश्ता खत्म होते ही वे घर के जरुरी कामों की सूची मांगने ,हिम्मत करके श्रीमती जी के पास पहुंचे, देखे तो श्रीमती जी के चेहरे पे कुटिल मुस्कान झलक रही थी ,वे  मन ही मन सोचने लगे  इतनी जल्दी तो गिरगिट भी  अपना रंग नहीं बदलता  जरूर दाल में कुछ काला है।  

श्रीमती जी बोली - " सुना है आपका प्रमोशन होने वाला है "
शर्मा जी - " हाँ तो "
श्रीमती जी  - " मैं सोच रही थी की आपके प्रमोशन के बाद हम कुछ दिनों के लिए कानपुर  घूमने चले "
शर्मा जी - " ठीक है देखता हूँ। " कहकर शर्मा जी ने वह से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। 

wah re sharma jee


शर्मा जी रास्ते में यही सोच रहे थे की पिछले हफ्ते   बाबू जी का फ़ोन आने पर घर में कैसे तहलका मच गया था। मां की तबियत अचानक ही ख़राब हो गई थी और उनकी देख रेख करने वाला वहा  पर कोई नहीं था।  बड़े भाई साहब परिवार समेत विदेश में जा बसे थे और उन्हें सबसे कोई मतलब ही नहीं था और छोटा भाई आई आई टी से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था। एक मैं ही था जिनसे उनकी उम्मीद कायम थी , मैंने भी कई बार उनको अपने पास लाने की कोशिश की पर वे अपना पुश्तैनी मकान  छोड़ने को तैयार ही  नहीं थे। आखिर होते भी क्यों वो मकान नहीं  घर था हमारा जिससे हमारी अनेक यादें जुडी थी , ये यादें ही तो थी जिनके सहारे उनकी जिंदगी गुजर रही थी। 

अगले दिन ही शर्मा जी घर से ऑफिस के किसी काम का बहाना लेकर अपने गांव निकल लिए , आखिर उस मां  के लिए उनके भी कुछ फर्ज थे जिसका अंश वे है। जिसकी ऊँगली पकड़ के वे इतने बड़े हुए और जिसकी ममता की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती।  एक अजीब सी शांति और संतोष था शर्मा जी के चेहरे पर क्योंकि वे परिवार में संतुलन बनाना जान गए थे। और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से  निभाना भी। 




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bada kasht hai jindagi me


बड़ा कष्ट है जिंदगी में  bada kasht hai jindagi me - 


भाई जिंदगी में आजकल बड़ा कष्ट हो गया है पहले जिस रात में हम बड़े आराम से सोते थे उसका भी चैन  इस  मोबाइल ने छीन लिया उठ - उठ के देखते है, तकिया के नीचे से निकाल के देखते है 5 मिनट के लिए आँखों से ओझल हो जाये तो बैचेन हो उठते है। सोचिये जब एक अदने से वस्तु को लेकर जिंदगी कष्टकारक हो जाती है तो अभी तो तमाम मुश्किलें है। 


स्कूल गए तो सीखने से ज्यादा नंबर लाने की टेंशन , भारी भरकम बस्ते को नाजुक कंधो पर उठाने की टेंशन 
टाई पहनेंगे तभी हाई - फाई स्टूडेंट लगेंगे , पता नहीं इस टाई में पढाई से सम्बंधित ऐसा कौन सा गुण  होता है जो गले को कस  कर हमें पढ़ना सीखा देता है। बेल्ट तो खैर पैंट ढीली होने पर उसको रोकने के काम आ सकती है , पर ये शर्ट कहा भागी जा रही है। पहले तो साल में केवल 2 परीक्षाये होती थी अर्धवार्षिक और सालाना यानि halfyearly और yearly . पर अब हर महीने न जाने कितनी परीक्षाएं होती रहती है। 

bada kasht hai jindagi me


स्कूल ख़त्म तो कॉलेज में एड्मिशन और कॅरिअर को लेकर टेंशन उसके लिए भी तैयारी। उद्देश्य केवल एक ही नाम और पैसा। मुझे ये समझ में नहीं आता की जब पूरी ज़िन्दगी का उद्देश्य इन्ही दोनों चीजों पर आकर ख़त्म हो जाता है तो शुरू से इतना कष्ट उठाने पर मजबूर क्यों किया जाता है। कॉलेज तक नंबर लाने और अव्वल आने का प्रेशर बरकरार रहता है। फिर शुरू होती है नौकरी को लेकर जंग जिसमे सरकारी का तो हाल ही मत पूछिए एक अनार सौ  बीमार वाली हालत हो गई है , प्राइवेट में ही इतनी  दिक्कत है नौकरी मिलने से लेकर उसको बरक़रार रखने की दिक्कत , सीनियर की बिना मतलब की फटकार , अत्यधिक काम का तनाव ऊपर से नाम मात्र का वेतन और अगर कोई नौकरी नहीं मिली तो बेरोजगारी का दंश मतलब कष्ट ही कष्ट। 

नौकरी के बाद बात आती है शादी पे ,आपकी शादी बहुत हद तक आपकी नौकरी पर ही निर्भर करती है नौकरी अच्छी रहेगी तो कहते है छोकरी भी अच्छी मिलेगी नहीं तो मुझे थ्री इडियट फिल्म का एक डायलॉक याद आता है की अगर अच्छी नौकरी नहीं रहेगी तो कोई बैंक क्रेडिट कार्ड नहीं देगा , लोग रिसपेक्ट नहीं देंगे और कोई बाप अपनी बेटी नहीं देगा। एक चुटकुला भी काफी प्रचलित है की एक बार एक गुरूजी अपने विद्यार्थी को परीक्षा के प्रति लगाव न देखते हुए कहते है की हे शिष्य परीक्षा हाल में तुम्हारे द्वारा किया गया एक भी गलत प्रश्न भविष्य में होने वाले तुम्हारे हमीमून को स्विट्जरलैंड से लखनऊ शिफ्ट कर सकता है तबसे वो बालक आजतक कक्षा  में अव्वल आ रहा है। 


शादी का लड्डू ऐसा होता है की जो खाये वो पछताए और जो न खाये वो भी पछताए। बडे कष्टों की शुरुआत तो होती है शादी के बाद जिसके लक्षण शादी के एक महीने बाद ही परिलक्षित होने लगते है और शुरुआत होती है रोज के तू - तू ,मैं - मैं से लेकर रोज मिलने वाले नाना प्रकार के तानो से । और बेलन ,झाड़ू से लेकर शब्दों के कौन से जाल नहीं चलते मत पूछिए वेदो में सत्य ही कहा गया है हे नारी तू सब पर भारी और आज के  पुरुष कहते है हे नारी तू अत्याचारी । अब नारी व्यथा और पुरुष प्रताड़ना प्रथा की कहानी सब को पता  है उसके बारे में कभी विस्तार से चर्चा होगी क्योंकि  समाज का कोई ही ऐसा पुरुष होगा जो खुल के और ईमानदारी से कह सकता है की वो अपनी बीवी से सुखी है और पत्नी भी अपने पति के बारे में ये झूठ बोलने से पीछे नहीं रहती। 
अभी तक जो शादी नाम की दुर्घटना से बचे हुए है उनसे निवेदन है की जान जोखिम में डालने से पहले शादी को लेकर अपना रिसर्च अच्छे से कर ले तथा बाद में किसी पर दोषारोपण न करे। 

शादी के कष्ट के साथ - साथ आपकी शरारतो के परिणाम भी सामने आने लगते है जो की अत्यंत ही शरारती होते है।  लालन - पालन पहले की अपेक्षा आसान नहीं रहे , जिस संयुक्त परिवार को हम अपने लालच वश ख़त्म करते जा रहे है उस संयुक्त परिवार की महत्ता को हम नकार नहीं सकते।  आज एक बच्चे की परवरिश में अनेक कष्टों को उठाना पड़  जाता है वही संयुक्त(joint family) परिवार में  चार - चार बच्चो की परिवरिश आसानी से हो जाती थी। दादी बच्चो की मालिश करती  तो दादा कहानिया सुनाते , चाची या बुआ सुबह का टिफिन तैयार करती तो चाचा स्कूल छोड़के आते लेकिन अब इतने सारे कामो का बोझ खुद ही उठाना पड़ता है ऊपर से ऑफिस अलग से समय पे पहुंचना। 

बच्चे बड़े हुए तो उनके कॅरियर सवारने  की टेंशन दिन - रात एक करके पैसा जमा करो और फिर किसी लायक न हुए तो सब व्यर्थ फिर कष्ट , और बुढ़ापे की तो पूछिए ही मत आज - कल के जो हालात  है उसको देखते हुए तो लगता है जैसे हमारे पूर्वज हमसे कह रहे है अपनी तो जैसे - तैसे कट गई आपका क्या होगा जनाबे अली। क्योंकि आज की नई पीढ़ी के सामाजिक सरोकार केवल नाममात्र के रह गए है , कभी सोचता हू  की समाज और विज्ञान की इतनी तरक्की हमारे किस काम की पूरी दुनिया घूमने के बाद भी इंसान तन्हा  है, लाखो रूपये की नौकरी मिलने के बाद भी कंगाल है उसके पास खुद के लिए समय नहीं बचता उसके अपने बच्चे उसकी बातो को अनदेखा या भार समझते है बीवी दिन रात खरीदारी में व्यस्त है या उसको प्रताड़ना देती है। माँ - बाप को तो वो कही दूर  गांव में छोड़ आया , अपने भाई - बहन तो अब रिश्तेदारों की श्रेणी में आ गए है , रिश्तो से  वो मिठास न जाने कहा चली गई और कहने को  हम तरक्की कर रहे है पर  इस संसार के बनाये नए भौतिक मायाजाल में फंसकर जिंदगी को कष्टदायक बनाते जा रहे है। 


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naya dour(poetry)

main aur wo

नया दौर naya dour 



हम भी नए थे कभी इस शहर में फरबरी माह में 
वो मिली थी कभी बीच राह  में

मुंह का ढक्कन खुल गया था 
और आँखों से ऐनक हट  गया था 

देखा  उनको तो दिल की धड़कन बढ़ने लगी
 और नजरो से नजरे लड़ने लगी 

हमने भी आंव न देखा न ताव 
लेके पहुँच गए बड़ा पाव 

और बोल दिया उनसे 
की इश्क़ हो गया है तुमसे 

तोहफा करो कबूल 
क्योंकि इश्क़ का ये है पहला उसूल 

शर्मा के मुस्कुरा दी वो 
और एक ही झटके में पूरा बड़ा पाँव खा गई वो 

और फिर लेकर डकार 
बोली आई लव यू  मेरे यार 

फिर क्या था 
लेके अपनी फटफटिया 
घूमे छपरा से लेकर हटिया 

तभी सामने आ गए पप्पा 
दिया खिंच के एक लप्पा 

जी भर के दिया  हमको  गाली 
नालायक , कमीना,लोफर  और मवाली 

देखा हमको पीटते 
वो भी चुपके से खिसके 

हमने कहा यही था साथ तुम्हारा 
पल भर में जीने मरने की कसमे  खाई थी 
और पल में साथ छोड़ गई हमारा

वो बोली कैसी कसमे  कैसा प्यार
ये तो है बाते बेकार 

ना  मैं हीर ना  तू रांझा
प्यार नहीं अब किसी का सच्चा 

आज तू कल कोई और है 
यही नया दौर है 

हमने भी बोल  दिया उससे
दौर चाहे कोई हो चाहे ये आँखे रोइ हो
आज भी हीर है आज भी है रांझा 
बस मैं ही थोड़ी देर से समझा।   


lekhak
लेखक 



congress mukt bharat ki or

कांग्रेस मुक्त भारत की ओर   congress mukt bharat की ओर - 

                                         
congress mukt bharat ki or
मोदी रैली 
                   


त्रिपुरा ,मेघालय और नागालैंड एक बार फिर से बीजेपी इन तीन  राज्यों में भी सरकार  बनाने में कामयाब हुई। 
इन तीनो राज्यों में मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भी कांग्रेस सरकार बनाने में चूक गई।  वैसे इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि  कांग्रेस पार्टी इस समय कमजोर नेतृत्व के दौर से गुजर रही  है.राहुल गाँधी  एक बार फिर अपनी नानी से मिलने इटली जा चुके है वैसे उन्हें अपनी नानी को ही इंडिया बुला लेना चाहिए था , मुझे लगता है पार्टी से ज्यादा उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में सहजता महसूस होती है , सोनिया गांधी को भी समझ लेना चाहिए की किसी को भी उसके रूचि के अनुसार ही काम देना चाहिए नहीं तो वो उस काम का पूरा बंटाधार कर सकता है।  

इन तीन राज्यों में बीजेपी को उम्मीद  से बढ़कर समर्थन मिला है  जोकि साबित करता है की बीजेपी और मोदी का जलवा कायम है और वे कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ते दिख रहे है। वर्तमान समय में 21 राज्यों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों  की सरकार  है जिनमे से 15 राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्री है ,कांग्रेस केवल 3 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में  सिमट के रह गई है जिनमे से पंजाब और कर्नाटका बड़े  राज्य है बाकि मिजोरम और  एक केंद्र शासित प्रदेश पॉन्डिचेरी है। 


यह कहना कबीले तारीफ़ होगा की बीजेपी ने इन राज्यों के लिए विशेष रणनीति बनाई थी इन राज्यों में चर्च का प्रभाव भी रहता है जिसके लिए बीजेपी ने अपना हिंदुत्व वादी चेहरा छोड़कर नई रणनीति बनाई और आम आदमी का विश्वास जितने में कामयाबी हासिल की। कांग्रेस अपनी आपसी गुटबाजी का शिकार हुई और आलाकमान उस पर कोई नियंत्रण नहीं कर पाया अब तो लगता है बीजेपी को कांग्रेस मुक्त भारत बनाने में खुद कांग्रेस और उसका कमजोर नेतृत्व ही एक सहायक के तौर  पे काम कर रहे है।क्योंकि कांग्रेस के पास मुद्दे होते हुए भी वो उनका इस्तेमाल नहीं कर पाती , संघठन में भी निराशा घर करते जा रही है जो की कमजोर नायकवाद या  यू  कहे की परिवारवाद  को आगे बढ़ाने  का ही फल है , नहीं तो कांग्रेस पार्टी में अभी कई ऐसे नेता है जो एक कुशल नेतृत्व देने में सक्षम है परन्तु उनके आगे आने पर पार्टी से परिवार का नियंत्रण क्षीण हो जायेगा। इसीलिए बीजेपी को वर्तमान में कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को पूरा करने से रोकने  वाला कोई दिखाई नहीं देता। 

मोदी लहर  इसलिए और बढ़ती जा रही है की किसी  भी पार्टी में नरेंद्र  मोदी  जैसा विश्वसनीय चेहरा नहीं है यही कारण है की अगले चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम ब्रांड मोदी  के बीच होंगे जहा इतने सालो में मोदी के समक्ष चुनौती उनके द्वारा किये गए वादे ही होंगे।  फिलहाल इन चुनावों के नतीजे बीजेपी  के लिए 2019  की  पृष्ठभुमि तैयार करने में काफी हद तक सहायता प्रदान करेंगे। 


मौजूदा समय में कांग्रेस को अपना अस्तित्व बचाने  के लिए संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि बीजेपी ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखा था वो कही न कही पूरा होते दिख रहा है , हर राज्य में होने वाले चुनाव में प्रमुख चेहरा मोदी का ही होता है  इसीलिए जीत का सेहरा भी किंग मोदी के सर ही बंधता है। 




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