after valentine

किस्सा वैलेंटाइन डे के बाद का -  




हाँ तो आप लोगो को  वैलेंटाइन दिन वाले दिन तो हमारी और कमला की कहानी पता चली  थी , पर उसके बाद क्या हुआ इसको बताने में इतनी देर इस  वजह से हुई की भैया  अस्पताल से ठीक होने में थोड़ा टाइम लग गया। 

अब आप ये सोच रहे है  की हमारी कुटाई हो गई थी  तो बिलकुल सही सोच रहे है।  दरअसल वैलेंटाइन डे वाले दिन कमला को  देखते ही हमरे प्यार का थर्मामीटर इतना हाइ हो गया था की कमला को  सीट पे बैठाने  के बाद हमारी साइकिल की स्पीड 60 किलोमीटर / घंटा हो गई थी , और हम कुछ ही देर में शहर के गुरमुटिआ पार्क आ पहुंचे। पार्क लैला - मजनुओं से खचाखच  भरा हुआ था ,तरह - तरह के दिल के आकर वाले गुब्बारे हाथ में लेके लइका - लईकी  घूम रहे थे , हम तो सीधे कलेजा हथेली पे रखके आये थे अब  इतना तगड़ा बंदोबस्त होने के बाद इस तरह के पार्क में आना कलेजा हाथ में रखके आना ही तो  हुआ। हां तो पार्क में तरह - तरह के नमूने भी देखने को मिले कई ठो  ऐसे मिले की विश्वास हो गया की प्यार अँधा होता है अब हो काहे न एक खूबे सुन्दर लईकी बानर जइसे लइका के हाथ में हाथ डाले घूम रही थी देखे तो लइका का किनारे का बाल पूरा सफाचट था सिर्फ बीच में कुछ बचा था वो भी खड़ा। मेकअप तो इतना पोत के घूम रहीं  थी लोग की अगर भगवान् बरस जाते तो  हरी - हर घांस सफ़ेद हो जाती और चेहरा यूपी के सड़क जैसा। 

मुंह से जानू  - सोना  करके चाशनी इतना झर  रहा था की लगा की आज  के बाद प्यार  करने को ही नहीं मिलेगा। खैर हमको दुसरे से क्या करना था हमको लगा इहा ज्यादा देर रहना सुरक्षित नहीं इसलिए हम अपनी बुद्धि पे भरोसा करके उहा  से खिसक लिए और पहुँच गए गोलगप्पा खाने वहाँ पे भी उहे हाल जल्दी - जल्दी गोलगप्पा खाने के बाद  निरहुआ का एक ठो सिनेमा देखे चल दिए टिकट हम पहले ही खरीद लिए थे वो भी किनारे वाला। आज के दिन का पूरा प्लानिंग हम पहले ही कर लिए थे हाँ सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए  एक ठो  बुरका भी साथ लाये थे। फिलम शुरू होते ही हाल में सीटी और ताली का  आवाज शुरू हो गया  हम भी निश्चिंत होक कमला से बतियाने  लगे। लगा की आज पूरा   मेहनत स्वार्थ हो गया।


 तभी पता नहीं कहा से जोर - जोर से आवाज आने लगी देखे तो हमारी सिट्टी - पिट्टी  गुम , हाल पे बजरंग दल वाले पूरी बटालियन लेके आ गए थे उधर परदे पे निरहुआ का एक्शन सीन शुरू हुआ और  इहा हकीकत में ,बुर्का पहिनने का मौका भी नहीं मिला। सीन जबतक ख़तम हुआ तब - तक हमरा पुर्जा - पुर्जा हिल चुका था और मुंह से बस इहे  निकला  -  हे राम ...... 


मजेदार पढ़े    -  #वैलेंटाइन दिवस के पटाखे

 

main aur wo


main aur wo
मैं और वो 



हमारे वास्तविक जीवन में कई घटनाये ऐसी होती है जो अपनी छाप हमारे जीवन में छोड़ जाती है और कुछ ऐसी होती है जो हमारी दिशा ही बदल देती है। अक्सर इस बदलाव का कारण कोई और होता है और जब बदलाव का कारण कोई  लड़की  होती है तो  उसे हम वो से सम्बोधित करते है।  


main aur wo
main aur wo

इन्ही सारी  कश्मकश के बीच कुछ रूहानी यादें रह जाती है और कहानी शुरू होती है , इन कहानियो  में अक्सर ही दो पात्र प्रमुख होते है एक मैं और एक वो यानी " मैं और वो "


जल्द ही इस ब्लॉग पे  " मैं और वो " नामक एक नई कहानी सीरीज शुरू होने जा रही है । आप भी अपनी रचनाये मैं और वो सीरीज में भेज सकते है।  सोमवार को इस सीरीज की पहली कहानी प्रकाशित होगी. उम्मीद है आप सब को अवश्य पसंद आएगी अपनी प्रतिक्रियाएं इस सीरीज और ब्लॉग के प्रति अवश्य दे।  आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है।                                             


                                                                                                             रायजी 


मजेदार  -  

#वैलेंटाइन दिवस के पटाखे 


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modi vs modi

# नरेन्द्र मोदी बनाम ब्रांड मोदी - 2019 


कुछ भी कह दो पर पर बंदे मे है दम , जी हाँ  हम बात कर रहे है अपने वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी की वैसे तो मैं ना किसी दल का पक्ष लेता हू ना ही किसी भी दल के प्रति मेरी विशेष निष्ठा है , मैने कई मोर्चो पे मोदी जी से लेकर राहुल गाँधी तक सबकी आलोचना भी की है , पर आलोचना का मूल उद्देश्य किसी के प्रति दुराग्रह नही होता एक अच्छा आलोचक ही एक अच्छा हिमायती भी होता है .

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 चित्र साभार इंडियन एक्सप्रेस 

और लेखक को चाहिये की उसकी लेखनी मे किसी प्रकार का दुराग्रह और और अंधभक्ति ना हो , ये बात अलग है की किसी विषय मे जनता का क्या मत होता है और हमारे देश मे जहा अलग अलग विचार धारा के लोग है उनका किसी भी विषय मे अलग अलग मत हो सकता है . किसी को कुछ पसंद होता है और किसी को कुछ , आते है अब अपनी बात पे समाचर चैनलो पे देख रहा था की मोदी ओमान मे भारतीय समुदाय को संबोधित कर रहे थे उनका भव्य स्वागत और भारतीयो के बीच का उत्साह बताता है की बंदे मे कितना दम है . लाख आलोचनाओ के बाद भी अभी से 2019 मे मोदी की जीत पक्की है शंका केवल वही कर सकते है जिन्होने सच्चाई से मुंह मोड रखा है .

कारण मोदी के सापेक्ष मौजूदा परिदृश्य मे कोई ऐसा नेता नही दिखाई देता जिसपे जनता विश्वास कर सके भले ही लोग कहे की मोदी की लोकप्रियता कम हुई है फिर भी कुछ सीटे कम हो सकती है लेकिन 2019 मे भी मोदी सरकार ही रहेगी कारण सरकार की छवि पे एक भी दाग का ना होना , जिसमे संप्रग सरकार ने रिकॉर्ड तोड दिया था .

अन्य कारणो मे विदेशो मे भारत की बढ़ती धमक , हिन्दूवादी एजेंडा , कमजोर विपक्ष , और सरकार की निर्णय क्षमता ऐसे मुद्दे है जिनका लाभ मोदी सरकार को मिलेगा हालांकि बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पे सरकार को नुकसान हो सकता है . मोदी सरकार के कुछ मंत्रियो और नेताओ का बड़बोलापन भी सरकार के हित मे नही है .पिच्छ्लि बार की तरह वोटो का ध्रुवीकरण कितना होगा और इसका लाभ किसे मिलेगा ए अभी कुछ कहा नही जा सकता . पर इन सबके बाद जो सबसे बड़ा मुद्दा है वो है मोदी .

इस बार के चुनाव मे विपक्ष मे कोई और नही मोदी खुद है , मोदी का मुकाबला कमजोर विपक्ष से ना होकर ब्रांड मोदी से है आज भी मोदी हारे हुए गुजरात को जीतकर भाजपा की झोली मे दे देते है उत्तर प्रदेश मे जहा राजनीतिक विश्लेक्षण धरे के धरे रह जाते है और और मोदी पे विश्वास करके जनता भाजपा की झोली मे उत्तर प्रदेश भी डाल देती है ए मोदी नही ब्रांड मोदी है. आने वाले चुनाव भी इसी ब्रांड को प्रचारित करके लड़े जाएं इससे इंकार नही किया जा सकता कर्नाटका , मध्यप्रदेश और राजस्थान ऐसे राज्य है जहा ब्रांड मोदी की एक बार फिर परीक्षा है . अभी लोकसभा चुनावो मे एक साल का समय और है .हो सकता है तबतक फिर हर घर मे ब्रांड मोदी देखने को मिले और हमे फिर से सुनाई दे।
             ” हर हर मोदी घर घर मोदी “

narendra modi vs rahul gandhi

नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी  narendra modi aur rahul gandhi 



                       
narendra modi vs rahul gandhi

modi vs gandhi








ऐसा कौन सा नेता होता होगा जो अपने देश की मीडिया की तुलना मे अमेरिका की मीडिया मे ज्यादा सहज होता है वहा भी उसे अपनी छवि बदलने के लिये काफी मेहनत करनी पड़ी . कभी उसे अपनी ही सरकार के बिल जनता के सामने फाड़ने पड़े बाद मे पता चला की वो बिल ना होकर अपनी ही पार्टी का पर्चा था . कभी संसद मे खर्राटे लेना तो कभी अपनी ही पार्टी को बिना बताये गायब हो जाना . अब तक तो आप समझ गये होंगे की सारी भूमिका इस देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रतीक संसद मे विपक्ष के नेता और सबसे पुराने दल कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गाँधी जी के बारे मे .

 राहुल गाँधी के विषय मे समझ मे नही आता ऐसी क्या मजबूरी है की पूरी कांग्रेस छानने के बाद अध्यक्ष की कुर्सी के लिये उनसे बेहतर उम्मीदवार नही मिला , जवाब सबको पता है राहुल गाँधी उसी वृक्ष की शाखा है जो प्रारंभ से ही इस देश पर राज करता आया है . वर्ना आजकल तो काबिलियत ना हो तो आप किसी निजी कम्पनी मे क्लर्क की नौकरी भी नही पा सकते प्रधानमंत्री बनना तो मुँगेरीलाल के सपने देखना है .




अब यदि आपको प्रधानमंत्री बनना है तो आप उम्मीदवार तो हो सकते है पर काबिलियत तो दिखानी ही होगी और आप की वजह से जहा दूसरे अनुभवी और काबिल नेता उम्मीदवार नही बन पाते इसका भरपूर लाभ विपक्ष को मिलता है जो उसे अत्यधिक मजबूत बनाता है . और जनता को उपलब्ध विकल्पो से ही काम चलाना पड़ता है . 
भाजपा के बाद कॉंग्रेस ही वर्तमान समय मे सर्वमान्य राष्‍ट्रीय पार्टी है जिसका अस्तित्व देश के प्रत्येक राज्य मे है पर एक मजबूत नेता के अभाव मे और परिवार के प्रति अन्य नेताओ की श्रद्धा इस पार्टी को दीमक की तरह खाती जा रही है समय है परिवारवाद से उपर उठ के सोचने का . एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है वर्ना सत्ता के निरंकुश होने का भय बना रहता है . संप्रग-2 के शासन काल मे हुए घोटालो को जनता आज भी नही भूल पायी है रिमोट से सरकार को नियंत्रित करना किसी भी स्वस्थ समाज की जनता बर्दाश्त नही कर पाती है वैसा ही यहा भी हुआ और जनता ने एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने मे जोर - शोर से भागीदारी की और उसे मोदी की बातो मे एक ऐसे नेता की छवि दिखाई दी जो की जनता के तमाम दुखो को दूर कर अच्छे - दिन दिखला सकता है.

 लेकिन चार साल बीत जाने के बाद क्या विपक्ष मे इस बात का माद्दा है की वो जनता को समझा सके की वर्तमान सरकार ऐसा क्या कर रही है जिससे देश का खजाना खाली हो रहा है या खजाना भरने के चक्कर मे आम आदमी महंगाई और करो के बोझ से दबता चला जा रहा है, सरकार कितने वादो पर खरी उतरी है, शायद कमजोर विपक्ष को सरकार अपनी उंगलियों पे नचा रही है और विपक्ष के पास मुद्दे होकर भी नही है .  


valentine day

#वैलेंटाइन दिवस के पटाखे  ( crackers of valentine day)


एक महीने से जिसका इन्तजार किये रहे और एक हफ्ते से जिसका  रोज छोटी दीपावली की तरह कोई न कोई डे रहता था ऊ  वेलेंटाइन डे आज आ ही गया।बेरोजगारी में   कसम से पैसा बचावे खातिर खैनी तक खाया छोड़ दिए रहे कितना बार त भन्सारी के दूकान के सामने से निकले पर खैनी की तरफ देखे भी नहीं। बस कमला का गेंदा की फूल की तरह खिला चेहरा देख के मन हरिहरा  जाता था। आजे  अपनी साइकिल में आगे एगो छोटका सीट लगवाए हैं  एही पे बैठाके  कमला को नहरी से लेके शहर वाला पारक में घुमाएंगे सुने है उहा तो मेला लगता है गुब्बारा से लेके चाट - गोलगप्पा सब मिलता है।  हमरी कमला को भी गोलगप्पा बहुत पसंद है उहो तीखा। 


काल्हिए साइकिल से शहर जाके कमला के लिए बढ़िया सा गिफ्ट लाये है अब बताएँगे नहीं की हम का लाये है 
इ बस हमरे और कमला के बीच की  बात है। हाँ पर  गिफ्ट के साथ चेंगु हलवाई की इमरती जरूर लाये है चेंगा की दूकान पे आज के दिन गजबे  का भीड़ था , हो काहे  नहीं उ से अच्छा मिठाई पूरा इलाका में कौन बनावत  है।  धक्का मुक्की में जरूर एक थो दांत निकल गया हमारा पर वो भी हमारी कमला से बढ़ के थोड़ी न था।  


पता नहीं काहे आज सुबह से इ फोनवे नहीं मिल रहा है और इ वैलेंटाइन डे का मुहूरत भी निकला जा रहा है। सोच रहे है एक बार साडी पहन के कमला के घरवे चले जाये कह देंगे अंकल आज शिवरात्रि पे मंदिर जाना है जल चढाने। पर इ मूंछ का का करेंगे कमला कही थी इ मूंछ ही त हमारी शान है और हमारे करिया चेहरे में एक मूंछ ही तो उसको पसंद है।  न .. थोड़ा देर और इन्तजार कर लेते है प्यार में इन्तजार का अलगे मजा है। 

valentine day rose
valentine day rose


हां पर आज बड़ा सावधानियों बरतना पड़ेगा पिछली बार तो खाली बजरंग दाल वाले ही हाथ में दू - दू  गो डंडा लेके घूम रहे थे इस बार तो जोगी एंटी रोमिओ वालो को ही लगा दिए है।  हमको लगता है की इन लोगो को तो कौनो लड़की पूछी नहीं , अब पूछती कईसे कंठी माला देख के तो इहे लगेगा की इ लोग साधू है  और शादियों के बाद मोदी जी जैसे संन्यास ले लिए तो हमरा  का होगा। एक थो महात्मा बड़ा ठीके कहे है " पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया  न कोई ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होई " . 

लगता है कमला आ रही है अब हम चलते है क्योंकि हम नहीं चाहते की उ  इन्तजार करे जिससे प्यार किये है उसको कौनो तकलीफ हो तो कसम से कलेजा से रोआई छूटता है। और हां अपना भी ध्यान रखियेगा और हॉलमेट साथे लेके चलिएगा क्योंकि कौनो दल और कौनो सेना अरे भारतीय सेना नहीं करणी सेना टाइप 
आज के दिन हमरा और आपके ऊपर पटाखा फोड़ सकती है और हाँ  



              HAPPY VALENTINE DAY 

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population

भारत की जनसँख्या (population of India)






 स्टेशन पे खचाखच भरी रेल गाड़ी आते ही धक्का – मुक्की , गाली गलौच और झगड़े का दौर शुरु हो जाता है , दरवाजे तक लटके लोग और उसी डिब्बे मे चढ़ने के लिये लगी कतार , अंदर सांस लेने की जगह नही एक दूसरे के उपर चढ़े लोग . ये आम नजारा आपमे से अधिकांश लोगो ने देखा होगा महसूस इसलिये नही किया होगा की भई हमारे पास तो पैसा है .पहले से ही वातानुकूलित या शयनयान श्रेणी मे सीट आरक्षित करा रखी है . पर क्या चार दिन बाद या महीने बाद का आरक्षण भी आपको आसानी से मिल जाता है. 

crowd in india
bheed 

अब सडको को ही ले लीजिये हर साल लगभग 5 लाख दुर्घटनाए होती है और लगभग 1.5 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है . मैं खुद घर से बाहर निकलने पर भगवान से अपनी सलामती की दुआ मांगकर निकलता हूँ , क्योंकि हम अपनी गलती तो छोड़ दीजिये दूसरो की गलती का ज्यादा शिकार होते है . कल जिस सिंगल रोड पे आराम  से यात्रा हो जाती थी आज फोरलेन होने के बाद भी गाडियाँ जाम मे अपना समय और संसाधन दोनो बर्बाद कर रही है . देश की क्रियाशील जनसंख्या का अधिकांश समय जाम मे ही निकल जाता है . 

हर साल बढ़ती बेरोजगारो की फ़ौज , कृषि योग्य भूमि मे होती कमी , कंक्रीट के छतो की बढ़ती मांग , प्राकृतिक संसाधनो का तेजी से दोहन , मांग और पूर्ति मे बढ़ता अंतर , अधिकांश क्षेत्रो मे जल का अकाल क्या ये जनसंख्या विस्फोट का संकेत है या शायद होना शुरु हो चुका है .

एक घर मे यदि सद्स्यो की संख्या बढ़ने लगती है तो उसमे नये कक्ष का निर्माण या दूसरे जगह नया घर ही बना लिया जाता है . पर हम इस नयर धरा का निर्माण कहा से करेंगे . बांग्लादेश जनसंख्या विस्फोट का प्रमुख उदाहरण है रोहिन्ग्या शरणार्थी इसी का परिणाम थे . बांग्लादेश मे सडको पे पैदल चलने वालो की इतनी भीड़ रहती है की उनके लिये रेड और ग्रीन सिग्नल बने है . अभी तो संचार क्रांति ने कई जगहो पर लगने वाली कतार को कम कर दिया नही तो ज़िंदगी का 1/3 हिस्सा लाइनो मे ही निकल जाता .दिल्ली जैसे महानगरो मे तो सांस लेना भी दुश्वार हो गया है.

यही हाल रहा तो पूरे देश मे दिल्ली जैसी भयावह स्थिति होगी.बढ़ती जनसँख्या से हम अपने देश में प्रति व्यक्ति भोजन की गुणवत्ता को नहीं दे पाते जिस कारण  व्यक्ति के काम करने की क्षमता में कमी आती है। हमारे देश के संसाधन सीमित है तथा जनसँख्या बढ़ने पर उनपर दबाव पड़ना लाजिमी है ,उपलब्ध जनसँख्या भी रोजगार से लेकर संसाधनों को जुटाने तक तनाव ग्रस्त रहती है। एक तरफ जहा राजनीतिक पार्टियों द्वारा स्वयं की  स्वार्थ सिद्धि  और अपने - अपने वोट बैंक बढ़ाने हेतु इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है वही आने वाले चंद  सालो में ही इसके भीषण परिणाम देखने को मिलेंगे। 

फिलहाल मौजूदा महंगाई को देखते हुए एक बच्चे का भरण पोषण बेहतर तरीके से हो जाये वर्तमान समय में यही बेहतर है , सरकार करे चाहे न करे लेकिन आम आदमी अपनी समस्या को देखते हुए और होने वाले बच्चे के उज्जवल भविष्य हेतु वही कार्य करेगा जो उसके हित  में है। 

"क्योंकि छोटा परिवार सुखी परिवार "

इन्हे भी पढ़े - बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 
             

spirituality part2

Adhyatmikta -  jeewan ki aawashyakta   

आध्यात्मिकता -  जीवन की आवश्यकता 

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में सर्वप्रथम आध्यात्मिकता के विषय में विस्तार से चर्चा की थी  . वर्तमान जीवन की भागदौड़ , रिश्तो की आपाधापी  और जीवन की अस्थिरता मानसिक विचलन का प्रमुख कारण है। आध्यात्मिकता एक ऐसा माध्यम है जिससे इन सारी  समस्याओ का निवारण हो सकता है।  अगर हम अध्यात्म में कच्चे है तो अनेक ऐसे श्रेष्ठ गुरु है जिनकी शरण में और मार्गदर्शन लेकर हम इस पथ पर आगे बढ़ सकते है। 



adhyatmikta
adhyatmikta 


क्या है आध्यात्मिकता (what is spirituality) -  

आध्यात्मिकता ज्ञान की वह शाखा है  जो संसार की वास्तविकता से हमारा साक्षात्कार कराती है और ईश्वर और हमारे बीच समबन्ध स्थापित करती है। आध्यात्मिकता को किसी धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।  अध्यात्म में समूर्ण सृष्टि का  संचालन कर्ता एक ही सर्वशक्ति को माना  गया है. अध्यात्म का प्रारम्भ मन की चेतना से  होता है. जिसमे सर्वप्रथम मन के विकारो को दूर करना और सांसारिक या भौतिक निश्चेतना से  परलौकिक चेतना   की ओर बढ़ना है। 

आध्यात्मिकता और मनोविज्ञान (spirituality and psychology) - 

आधुनिक वैज्ञानिको ने आध्यात्मिकता को मनोविज्ञान से जोड़कर देखा है उनका मानना है की अध्यात्म एक सकारात्मक मनोविज्ञान है जो मनुष्य को निराशा के छड़ो से निकालकर आशा को ओर ले जाता है , जीवन के कठिन छड़ो  में उसका विश्वास ईश्वर और उसके न्याय व्यवस्था पे बनाये रखता है जिससे वह कठिन छड़ो में  भी सकारात्मकता के साथ  खड़ा रहता है। उसे संसार का  भौतिक ज्ञान हो जाता है। अगर मनुष्य के कठिन क्षड़ों  में पूरा संसार उसके विपरीत खड़ा हो या उसका साथ छोड के चला जाये तो यही विश्वास उसकी ताकत बनता है. 

अध्यात्म हमें भौतिक ज्ञान से आत्मीय ज्ञान का अनुभव कराता  है जिसमे हम अपनी आत्मा से भली भांति परिचित होते है। 
शेष अगले अंश में। ....  

   

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