raani padmawati


रानी पद्मावती 


एक इतिहास के प्रवक्ता के तौर पे जब पद्मावती का जिक्र आया तो मैं खुद को रोक नही सका . पद्मावती मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत का एक पात्र है, अनेक इतिहासकारो ने अपने शोध से यह प्रमाणित किया है की पद्मावत एक काल्पनिक पात्र है जिसका वास्तविकता से कोई दूर दूर तक का वास्ता नही है, लेकिन एक सच्चाई यह भी है की मलिक मुहम्मद जायसी या अन्य साहित्यो मे पद्मावती एक प्रेरणादायक चरित्र का प्रतिनिधित्व करती है जो की भारतीय संस्कृति को गोर्वान्वित करती है . सचाई यह भी है की अपनी आन के लिये राजा रतन सिंह की पत्नी तथा महल मे रहनी वाली अन्य स्त्रियो ने जौहर किया था. किसी भी विशेष व्यक्ति की उपलब्धियो से ना केवल उसका समुदाय वरन पूरा देश गौरवान्वित होता है.


RAANI PADMAWATI
रायजी 




 हर देश और समुदाय को अपने इतिहास पे गर्व होता है. चाहे वो काल्पनिक , वास्तविक या जनश्रुतीयो वाला ही क्यो न हो . चूंकि रानी पद्मावती का सम्बंध राजस्थान के राजपूत समुदाय से है इस कारण इसका असर इनपर पड़ना स्वभाविक था . परंतु विरोध भी जब ऐसे फ़िल्मकार का होता है जिसका इस तरह के विवादो से पुराना नाता रहा है तो यह प्रश्न स्वभाविक हो जाता है की फिल्म बनाने का वास्तविक उद्देश्य क्या है . विरोध का केन्द्र बिंदु क्या है और फ़िल्मकार द्वारा इतिहास और फिल्म की पटकथा मे कितना अंतर है , इन सबके पीछे लाभ किसे हो रहा है . और अहिंसावादी देश मे अपनी बात क्या हिंसा द्वारा की जा सकती है , क्या जनता की भावनाये आहत करना इतना आसन है . ऐसे कई प्रश्न है जिनका जवाब आने वाले दिनो मे मिलने की संभावनाये है . बाकी ये पब्लिक है सब जानती है . . . . . . . . .


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KANPUR

कानपुर वाले पांडेय जी kanpur wale pandey jee

आज सुबह सुबह उठते ही फोन आया
kanpur station
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की कानपुर वाले पाण्डेय जी गुजर गये, अचानक से पाण्डेय जी के विषय मे अनेक यादे ताजा हो गई. पाण्डेय जी हमारे खास मित्रो मे से एक थे , वे वही यूनिवर्सिटी मे समाजशास्त्र के प्रोफेसर थे.हालांकि हम लोगो की उम्र मे एक पीढी का फासला था पर कोई ऐसी चीज थी जिसने हम दोनो को आपस मे बाँध रखा था. पाण्डेय जी एक खुशमिजाज और मजाकिया इंसान थे मुझे उदास देखकर वो अक्सर कहा करते थे ” यार तुम तो 61 साल के बुड्ढे हो गये मुझे देखो मैं तो अभी 16 साल का जवान हूँ “.

कभी कभी वो मुझसे कहा करते थे रायजी जिंदगी मे इंसान को वो सारी चीजे मिले जो इंसान चाहता है ये जरूरी नही जरूरी ये है की जो जिंदगी देती है उसका इस्तेमाल इंसान कैसे करता है. पाण्डेय जी की श्रीमती जी से कभी नही बनी सन्तान शायद किस्मत मे नही थी. पर पाण्डेय जी इस बारे मे कभी सोच नही करते थे . वे अक्सर सेमिनार मे दूर दूर तक जाया करते थे उनके बोलने की शैली लाजवाब थी. कॉलेज मे ज्ञान बांटने के बाद बचा खुछ ग्यान मुझे दे दिया करते थे. और में उनके एक आग्याकारी विद्यार्थी की तरह सारा ज्ञान चुपचाप ग्रहन कर लिया करता था.

शायद यह एक रोजमर्रा की आदत सी बन गई थी, मेरे कही बाहर जाने पर वी बेसब्री से मेरा इंतजार किया करते थे तथा वापस आने पर ढेर सारे उपहार दिया करते थे. जैसे मैं उनका कोई खास रिश्तेदार हूँ. उनकी आधी तनख्वाह केवल गरीब बच्चो की फीस भरने मे चली जाती थी वे कहते थे रायजी जिंदगी ने हमे बहुत कुछ दिया तो हमारा भी फ़र्ज़ है किसी और की जिंदगी को काबिल बनाया जाये. ध्यान से सोचिये तो हम क्या लेके जायेंगे आपनो के साथ जो जी लिया वही ज़िंदगी है दूसरो की सेवा ही ईश्वर की सेवा है. कानपुर से मेरे तबादले की खबर सुनकर मुझसे ज्यादा वो दुखी थे, उन्होने दो दिन से कॉलेज से अवकाश ले रखा था . विदा होते समय पहली बार मैने उनकी आंखो मे आंशु की धारा देखी .

वहा से आने के बाद भी वी अक्सर टेलीफोन पर हालचाल लिया करते थे. अभी कल ही उन्होने मुझसे टेलीफोन पर कहा था की रायजी अगले हफ्ते आपके शहर मे एक सेमिनार मे भाग लेने आना है कहिये तो आपके लिये कुछ लेते आऊ और मैने बस इतना कहा था की आपसे मुलाकात सारी मीठाइयो से बढ़कर है………

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