gyan yog


अध्यात्म और ज्ञान योग adhyatm aur gyan yog - 


ज्ञानयोग सांसारिक माया और उसके भ्रम को समझने की उच्च अवस्था है।  वास्तव में हमारे  ध्यान , ज्ञान और वास्तविकता को समझने की चेतन अवस्था जिसमे हम सांसारिक दृश्यों और भौतिक अवस्था की सत्यता का चेतन मन से अवलोकन करते है ज्ञान योग कहलाता है। 

ऐसा ज्ञान स्वयं के माध्यम से अर्जित किया जाता है इसके लिए भौतिकता के आवेश को स्वयं से दूर रखना आवश्यक है।  माया ज्ञान योग के वास्तविक स्वरुप को समझने में बाधक है।  

ज्ञान योग की पहली अवस्था गूढ़ अध्ययन की अवस्था  होती है इसमें पुस्तकों यथा  धार्मिक ग्रंथो का अध्ययन  किया जाता है  .  अवस्था चिंतन और मनन की अवस्था होती है और अंत में ध्यान द्वारा आत्मा को सांसारिक तत्वों से अलग करना होता है।

ध्यान योग में मनुष्य को संसार की वास्तविकता का ज्ञान होता है उसे नश्वर और अमरत्व का ज्ञान होता है और इतने ज्ञान के पश्चात ह्रदय की पवित्रता आने पर ईश्वर का वास होता है।  ज्ञान योग का रास्ता अत्यंत ही जटिल है इसके लिए संयम का होना आवश्यक है क्रोध और ईर्ष्या जैसे तमाम आसुरिक प्रवित्तियों के गुणों का त्याग करना पड़ता है मन को ईश्वर की प्रेरणा से पवित्र बनाना पड़ता है।

वर्तमान समय में मची आपाधापी और अशांति के वातावरण में एक अध्यात्म ही एक ऐसा माध्यम है जो हमें  शांति के पथ पर ले जाता है और ज्ञान योग जीवन की वास्तविकता को समझने में हमारी मदद करता है ताकि हम निरर्थक और सार्थक जीवन को समझ सके और ईश्वर द्वारा प्रदत्त बहुमूल्य मनुष्य योनि का सदुपयोग करते हुए अपने चारो और प्रकाश फैला सके। 



akhilesh ki maya



अखिलेश की माया  akhilesh ki maya - 



akhilesh ki maya
न्यूज़ चैनलों पे इन दिनों होने वाले कॉन्क्लेव की बाढ़ सी आई हुई है। जिसमे हर जगह योगी जी उपस्थित है और उत्तर प्रदेश में होने वाली हार पे अपनी राय जाहिर करते हुए दिखते है।  अचानक से इन चैनलों पे इस तरह के प्रोग्राम और भाजपा की हिस्सेदारी साफ़ तौर  पे अपनी छवि सुधरने की कोशिश है।  गोरखपुर की हार कही न कही भाजपा में योगी का कद घटाने वाली ऐसी घटना है जिसकी चिंता खुद योगी के चेहरे पे साफ झलकती है। 

इस हार के पीछे भाजपा की अपनी करनी जो भी हो चाहे वो जनता के बीच अपनी पकड़ खोती  जा रही हो या योगी  के कद को बड़े नेताओ द्वारा छोटा करने की कोशिश हो जिसमे उम्मीदवार के चयन से लेकर मोदी का प्रचार न करना और भी तमाम बातें है लेकिन जो बात स्पष्ट है वो है सपा और बसपा की आपसी सांठ गाँठ। 

उत्तर - प्रदेश देश का एक ऐसा राज्य है जिसके बारे में कहा जाता है की दिल्ली का रास्ता यही से होकर गुजरता है इसीलिए 2014 के चुनावों में भाजपा ने यहाँ से गठबंधन के साथ 73 सीटों पे जीत हासिल की और केंद्र में सरकार बनाई। ऐसे में मुख्यमंत्री का अपनी ही सीट गवाना कही न कही बीजेपी के माथे पर भी शिकन लाता है। अगले ही साल केंद्र के लिए चुनाव होने वाले है और ऐसे में उत्तर प्रदेश की अहमियत एक बार फिर बढ़ जाती है। 

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टिया है जिनकी सरकार यहाँ बनती रही है पर 2017 के विधानसभा चुनावो में बीजेपी ने यहाँ भारी बहुमत से सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।  पर कहते है माहौल बदलने में समय नहीं लगता।  अपने भारी भरकम फैसलों से सरकार के शुरूआती दिनों में ऐसा लगता था की जैसे काफी कुछ बदलने वाला है , लम्बे अर्से  से उत्तर प्रदेश में इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों ने विकास से अपना नाता तोड़ लिया था और उत्तर प्रदेश पिछड़ेपन का शिकार हो गया था। पर अपने शासन के अंतिम दिनों में  अखिलेश यादव इस बात को समझते हुए दिखे  की जातिय समीकरण के साथ चुनाव जितने के लिए विकास और प्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ पहुंचाने वाली योजनाए भी आवश्यक है इसलिए उन्होंने समाजवादी पेंशन से लेकर कन्या विद्याधन और लैपटॉप वितरण जैसी अनेक योजनाए चलाई परन्तु बीच में ही पारिवारिक कलह के चलते और परिवार द्वारा प्रदेश में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते उनके सरकार की छवि ख़राब हुई परन्तु एक बात जो स्पष्ट है  वो ये है की इन सब के बावजूद वे अपनी छवि जनता के दिमाग में गढ़ने में कामयाब हुए।  निश्चित तौर पे वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  के रूप में विकास की इबारत लिखने में कामयाब हुए। 


इन्ही सब के बीच वे पार्टी से पारिवारिक हस्तक्षेप दूर करने में भी सफल भी हुए और खुद पार्टी के अध्यक्ष बन बैठे।  अब एक बार फिर भाजपा की सरकार जिस प्रकार आम जनमानस से दूर होती दिख रही है उनके लिए खुद को साबित करने का सुनहरा अवसर है जिसे वे खोना नहीं चाहते।  यही कारण  है की उप चुनावों में जनता ने विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी का ही चुनाव किया। और दूसरा अहम् समीकरण बसपा का साथ जिसकी कल्पना शायद बीजेपी ने भी नहीं की थी क्योंकि गेस्ट हॉउस कांड के बाद इन दोनों पार्टियों का भविष्य में एक साथ आना लगभग असंभव था।

 परन्तु अखिलेश यादव ने अपनी रणनीतिक कुशलता से इसमें भी कामयाबी ही पाई। और अगर यह गठबंधन आगे भी जारी रहता है तो इसमें संदेह नहीं है की भाजपा का मिशन 2019 भी खतरे में पड़  सकता है।  मायावती के शासन को लोग मजबूत क़ानून व्यवस्था के तौर पे जानते है और बसपा  का निचले तबके का मजबूत वोटबैंक बहन जी के लिए सदैव समर्पित रहता है उसी प्रकार  समाजवादी पार्टी का पिछड़ी जाति  का एक वर्ग। उत्तर प्रदेश में इन  दोनों ही वर्ग का वोट प्रतिशत यदि आपस में मिल जाये तो आगामी लोकसभा चुनावों में काफी सीटे इन दोनों पार्टियों की झोली में आ गिरेंगी और भाजपा के मिशन को तगड़ा झटका लग सकता है। इसलिए भाजपा का प्रयास रहेगा की इनका गठबंधन हर हाल में न होने पाए क्योंकि फूलपुर और गोरखपुर की हार उसके लिए उसके मिशन 2019 के लिए खतरे की घंटी है। 

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हाईस्कूल की परीक्षा और हम  - high school ki pariksha aur hum 




highschool passअभी  पिछले साल की ही  बात है जब गोलुआ हाईस्कूल की परीक्षा में सत्तर  परसेंट  लाके  अपने पुरे गांव में हल्ला मचा दिया था।  इ अलग बात है की उसको अपना नाम भी लिखना नहीं आता। गोलुआ के हाईस्कूल पास होने की अलगे कहानी है , उ  तो स्कूले  नहीं जाना चाहता था पर उसकी अम्मा उसको समझाई की बेटवा लड़की वाले कहे है की कम से कम लड़का हाईस्कूल पास होना चाहिए और तुमको बस स्कूले तो जाना है वहां गुरूजी सब संभाल लेंगे। गोलुआ के रिश्ते की बात उसके मौसी की जेठानी की बहन के ननद की लड़की से चल रही  थी।लड़की वाले चाहते थे की लड़का कम से कम हाईस्कूल पास हो ताकि किसी अच्छे से स्कूल में जुगाड़ से  चपरासी बनवा दिया जाये  । उसके बाद तो गोलुआ फर्राटे से स्कूल की और ऐसा भागा की जैसे उसकी ट्रेन छूटी जा रही हो। 

गोलुआ को देख के बाकि सारे लइका लोग के माई - बाप  भी अपने - अपने होनहार सपूत से अइसे ही आशा लगा लिए थे। पर हम लोगो का दुःख कौन समझेगा की पुरे साल तो गिल्ली - डंडा , सनीमा और रिश्तेदारी निभाने में ही निकल जाता था और जो थोड़ा बहुत समय बचता था उसमे स्कूल चले जाते थे की सारे भाई लोग से मिल सके आखिर याराना भी तो जरुरी है।  

पिछले साल तो व्यवस्था मुलायम थी इसलिए गोलुआ निकल गया इस साल  पूरा योगी बनके साधना करनी पड़ेगी तो हमने भी साधना शुरू कर दी और रोज सुबह गुरु जी लोगो के घर के चक्कर काटना शुरू कर दिए दूध , दही , मट्ठा सब लेके गए पर गुरु जी लोग लेने से मना कर दिए बोले की बेटा ए साल सवाल नौकरी का है हम लोग खुदे कठिन परीक्षा के दौर से गुजर रहे है नही तो तुमको तो पता ही है पुरे साल तुम लोग हमरा कितना हेल्प करते हो और परीक्षा के टाइम हमलोग तुम्हारा। 

आजतक हम जब भी क्लास में सोये है तब  - तब तुम लोग शांति बनाये रखे हो जितने महीना हम नहीं आते थे तुम लोग खुदे हमारा हाजिरी दुसरे गुरु जी से लगवाए हो पर कभी कही शिकायत नहीं किये।  इसीलिए हम भी परीक्षा में पूरा कार्बन कपीये तुम लोगो को दे देते थे , और जो नहीं लिख पाता था उसके  घर से किसी को बुलवा लेते थे ताकि उ  बाहर लिख सके और तुम अंदर आराम से रहो।

सारी खिड़की पे एक - एक थो सीढ़ी लगवा दिए थे ताकि तुम्हरे घर के लोग भी इत्मीनान से देख सके और सवाल फसने पर पर्ची दे सके इसी चक्कर में कई लोग सीढ़ी अपने घरवे उठा ले गए , पानी ,  समोसा, कोल्ड - ड्रिंक सबका व्यवस्था किये रहे की तुम लोगो का मेहनत का पसीना बर्बाद न  जाये।  पर बेटा ये साल  जालिम सरकार नहीं चाह रही है की तुम लोग मेरिट लाके प्राइमरी का मस्टरवो बन सको। फौज में जा सको कुछ नहीं तो  चपरासियो बन सको और हमारे स्कूल का नाम रोशन कर सको । बेटा ई  सरकार चाह रही है की तुम भी चौराहे पे जाके पकौड़ा बेचो , बेरोजगार रहो , बिन ब्याहे रहो   गुरु जी की बातें ख़त्म होती उससे पहले ही हम फफक - फफक के रो पड़े और हमे देख के गुरु जी। 

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बीजेपी की राजनीति की नाव मे जनता द्वारा छेद  bjp ki raajneeti ki naw me janta dwara chhed 




     


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बीजेपी की मौजूदा हार को अगर कोई मामूली हार समझता है तो वो बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार है . हार से पहले कम से कम इन दोनो लोकसभा के महत्व को समझना जरूरी है , एक फूलपुर लोकसभा से त्यागपत्र देकर उप मुख्यमंत्री बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य और दूसरे लोकसभा से सांसद और प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का संसदीय क्षेत्र गोरखपुर .

सबसे तेज़ झटका जिस संसदीय क्षेत्र का है वो है गोरखपुर , गोरखपुर एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहा की जनता योगी के सिवा किसी और के बारे मे सोच भी नही सकती जहां हर चुनावो मे योगी की जीत का प्रतिशत बढ़ता ही जाता था , ये वही गोरखपुर हैं जिसके दम पे योगी अपनी राजनीति की हुंकार भरते है , हार की बात तो सपने मे भी नही आती और जिस जातीय समीकरण की बात कही जा रही है वो इतनो दिनो तक योगी की जीत मे कही देखने को नही मिली फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया जिससे की पूरी जमीन ही खिसक गई और योगी धड़ाम से गिर पड़े .


दरअसल बीजेपी की हार पहले से ही तय थी , क्योंकि देर ही सही पर जनता को वर्तमान बीजेपी सरकार की कथनी और करनी मे फर्क समझ मे आने लगा है गली - चौराहे पे आम जनता की बातो मे बीजेपी को लेकर वैसा ही गुस्सा शुरु हो चुका है जैसा कांग्रेस के अंतिम दिनो मे हुआ करता था बस मुद्दे को लेकर फर्क है कांग्रेस के समय जो सबसे प्रभावी मुद्दा था वो था भ्रष्टाचार और इस समय जुमलेबाजी .

कहते है ये पब्लिक है सब जानती है , पर कभी काल कुछ समय के लिये इसे भी अपनी अदाकारी और राजनीति के नये तरीको से से भ्रमित किया जा सकता है पर कोई भी राजनेता इस भ्रम मे ना रहे की जनता का भ्रम अधिक दिनो तक बरकरार रखा जा सकता है और अपनी सत्ता चलाई जा सकती है .योगी भी अपनी स्वभाविक राजनीति जिसके लिये वी गोरखपुर मे जाने जाते है को छोड़कर भाजपा के उसी ढर्रे पे चल निकले जिसपे केन्द्र सरकार चल र्ही है .


वर्तमान समय मे केन्द्र की नीतियो से जनता त्रस्त आ चुकी है  भले ही सरकार  इसे लेकर कोई भी तर्क दे दे लेकिन सरकार आधार , गाय , हिन्दू - मुस्लिम , दंगे , भगवा , वंदे मातरम , बैंक मे खाता खुलवाने से लेकर टैक्स लगाने और जुमले बाजी से आगे नही बढ सकी . योगी भी मोदी की तरह ही विकास की बात करते - करते एक साल निकाल चुके थे , यहाँ तक की गोरखपुर की जनता की जो अपेक्षाये थी उनको पूरा करना तो दूर उनपर कभी ध्यान भी नही दिया ,पहले विपक्ष मे रहने के नाते जनता इसको अनदेखा करती रही और उन्हे वोट देती रही .

लेकिन इस बार वे खुद तो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचे और जनता बस इंतजार करती रही विकास का ,  लेकिन एक साल के इंतजार मे उसे समझ मे आ गया की केन्द्र और राज्य सरकार बस अच्छी बातें कर सकती है , लेकिन काम मे इनका मन नही लगता और धीरे - धीरे आक्रोश बढ़ता गया और उसका विस्फोट हुआ इन उप चुनावो मे .

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