रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 58 : ...

रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 58 : ...: प्रविष्टि क्र. 58 फर्ज़ रोहित राय कहते हैं कि मन का हो तो अच्छा न हो तो ज्यादा अच्छा। यही विचार करते हुए मेरे कदम स्टेशन की ओर बढ़ चले, आज चा..
रोहित राय


कहते हैं कि मन का हो तो अच्छा न हो तो ज्यादा अच्छा। यही विचार करते हुए मेरे कदम स्टेशन की ओर बढ़ चले, आज चार साल की नौकरी के बाद जिंदगी किस करवट जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता, सुबह से ही सोच के बैठे थे की आज माँ को रिश्ते की बात आगे बढ़ाने को बोल देंगे, सरकारी नौकरी वो भी पुलिस की नौकरी में लगातार होते तबादलों से मैं परेशान हो उठा था। अनेक ब्राम्हण परिवारों से कई सारे रिश्ते आये पर नौकरी की वजह से माँ को रोके रखा।

पर कुछ दिनों से उसकी तबीयत इसी चिंता से ख़राब होते देख आज मैंने ये तय कर लिया था की माँ से बात बढ़ाने को बोल ही दूंगा।

तभी रेलवे स्टेशन से फ़ोन आया की वहाँ कुछ अराजक तत्वों ने उत्पात मचा रखा है तथा स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। रेलवे स्टेशन का एरिया मेरे ही अधिकार क्षेत्र में था और मैंने वहां कुछ दिन पहले ही पुलिस उपाधीक्षक के रूप में अपना कार्यभार ग्रहण किया था। मैं सादी वर्दी में ही घर से नियंत्रण कक्ष पर अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की सूचना देकर निकल पड़ा। हां साथ में हर समय सुरक्षा के लिए रहने वाले दो कांस्टेबल जरूर थे।

स्टेशन पे बाहर गाडी लगाकर हम पैदल ही मुख्य मार्ग से अंदर की और बढ़ चले। रास्ते में ही मैंने घटित होने वाली सारी स्थितियों पर विचार करके अपनी तैयारियां पूरी कर ली थी। स्टेशन के अंदर कदम रखते ही एक अलग तरह का नजारा था वैसे तो हम पुलिस वालों के लिए ये आम बात थी और समझने में देर नहीं लगी कि ये किसी राजनीतिक पार्टी विशेष का काम है और अपने हित के लिए चारों तरह धार्मिक उन्माद फ़ैलाने की कोशिश की जा रही थी, जिसमें विशेष धर्म के लोगो को निशाना बनाया जा रहा था। मैं बस इसी बात को लेकर हैरान था की अभी तक इनके किसी आका का मेरे पास फोन क्यों नहीं आया। मैंने तुरंत ही कांस्टेबल से लाउडस्पीकर लेकर शांति की अपील की और उन्मादियों को पुलिस के आगे सरेंडर करने को कहा परन्तु वे तो बात सुनने को ही तैयार नहीं थे , अनेक लोगों को उन्होने लहूलुहान कर दिया था। कई तो इस कदर जख्मी थे की आम आदमी की रूह काँप जाये।

मौके की नजाकत को देखते हुए मैंने रिवाल्वर निकाल कर हवा में दो राउंड फायरिंग कर डाली, इस पर भी कोई असर न होने तथा अतिरिक्त पुलिस बल आने में समय को देखते हुए मैं होने वाले जानमाल के नुकसान  की कल्पना से खुद ही उन्मादियों के बीच घुस गया और उन्हें इस बार पुलिसिया डंडे से समझाने का प्रयास करने लगा, मैं जानता था की इनके आकाओं ने इन्हें जितना हुक्म दिया है ये उसका अक्षरशः पालन करेंगे। लेकिन सबसे आवश्यक आम जनता की हिफाजत करना और सार्वजनिक संपत्ति को होने वाले नुकसान से बचाना था।

इन्हीं सबके बीच मेरी निगाह एक छोटी सी बच्ची पर पड़ी लगभग चार या पांच साल उम्र होगी उसकी जो कि शायद अपने माँ बाप से बिछड़ गई थी और सहमी हुई सी स्टेशन के एक कूड़ेदान के पीछे खड़ी थी, सलामत इसलिए थी की शायद अब तक किसी की निगाह वहां तक नहीं पहुंची होगी। मैने सबसे पहले उस बच्ची को सुरक्षित करना जरुरी समझा और उसकी तरफ बढ़ने लगा, तभी पता नहीं कहा से एक काफिला हथियारों से लैस मेरी तरफ बढ़ने लगा ,मैं उस वक़्त बच्ची के करीब पहुँच चुका था, सादी वर्दी की वजह से उन्हें ये नहीं मालूम था की मैं पुलिस वाला हूं।

मैं भी एक हाथ में डंडा और दूसरे हाथ में अपनी रिवाल्वर निकाल चुका था उनमें से कुछ रिवाल्वर देखते ही खिसक लिए परन्तु कुछ जिनके चेहरे पे रक्त पिपासा साफ़ झलक रही थी मेरी और बच्ची की तरफ हाथों में तलवार और हॉकी लेकर तेजी से आने लगे। दिमाग में खुद से ज्यादा बच्ची की चिंता हो उठी सोचा शायद ईश्वर ने मुझे यहाँ इसी उद्देश्य से भेजा होगा।

बच्ची को तुरंत ही खाली कचरे के डब्बे में बैठाकर, ताकि झटके में भी उसे किसी तरह की चोट ना पहुंचे मै मुकाबला करने थोड़ा सा आगे बढ़ गया, तलवार वाले दो शख्शों के पैर पे मैंने गोली मार दी जिससे की वो वही गिर पड़े बाकी के लिए मेरा डंडा ही काफी था। पता नहीं उस वक़्त कहां से मुझमें इतनी ताकत आ गई या किसी ईश्वरीय शक्ति की प्रेरणा थी जिससे की मैं इतने लोगों का मुकाबला करने लगा, तभी अतिरिक्त पुलिस बल भी आ गई जिसको देखते ही वे भागने लगे। मैंने तुरंत ही सबको पकड़ने का आदेश दिया वो भी अच्छी खातिरदारी के साथ क्योंकि पता नहीं पुलिस स्टेशन पहुंचने तक इनके ना जाने कितने सुबह चिंतक आ जाये।

अब मैं बच्ची के पास पहुंचा और उसे निकाल कर अपने साथ लेकर चलने लगा। बच्ची बहुत डर गई थी इसलिए मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया बच्ची ने भी अब तक हुए घटनाक्रम से अंदाजा लगा लिया था की मैं उसे बचाने की कोशिश कर रहा था, इसलिए वो मेरे साथ काफी सहज थी और धीरे - धीरे सामान्य होने की कोशिश करने लगी। मैं भी उससे बातचीत में उसका नाम जानने की कोशिश करने लगा जिससे की उसके माता - पिता को खोज सकूँ। उसने कई बार प्रयास करने के बाद अपना नाम आसिया बताया और पिता का नाम मजहर अली मां को वो अम्मी ही कहती थी।

मैं बच्ची को लेकर स्टेशन के पूछताछ कार्यालय पहुंचा ताकि बच्ची के माता - पिता को इसकी सूचना प्रसारित करवा सकूं, लेकिन तभी एक अभिभावक बच्ची को देखते ही रोते हुए भाग के मेरे पास आये। महिला को देखते ही बच्ची अम्मी - अम्मी कहते हुए उससे लिपट गई, मैं समझ गया की यही बच्ची के माता - पिता है। महिला रोते हुए मेरे पैरो पे गिर गई, मैंने तुरंत ही उन्हें उठाते हुए सांत्वना दी व पुलिसिया आदत से मजबूर उनकी पूरी जानकारी और बच्ची द्वारा शिनाख्त किये जाने पर बच्ची को उन्हें सौंप कर आगे की घटना की जानकारी लेने और निर्देश देने बढ़ चला।.

khamosh lub



खामोश लब khmosh lub


खामोश लबो से बोलते क्यों नहीं  ?
दिलो के दरवाजे खोलते  क्यों नहीं  ? 


माना की डरते हो अब लहरों से भी तुम  
तो क्या हुआ , जो बारिशो में अब भींगते क्यों नहीं  ?


जलाते थे आँधियो में भी चिराग तुम 
फिर बैठे हुए अब थकते क्यों नहीं ?


तन्हाई से बेशक मुहब्बत है अब तुम्हे 
कभी ज़िन्दगी से मुहब्बत करते क्यों नहीं ?
देखते हो बैठ के लम्हो  को गुजरते हुए 
कभी इन पलो  में गुजरते क्यों नहीं ?

जिंदगी लेती है इम्तहान हर कदम पर 
फिर अपने कदमो को बढ़ाते क्यों नहीं  ?

कदम दर कदम मंजिल पास आती जाएगी तुम्हारे 
फिर  मंजिलो को पाकर भी मुस्कुराते क्यों नहीं ?

क्या राज है क्या  दर्द है तुम्हारा 
कभी इस जहाँ को बताते क्यों नहीं ?

खामोश ............  
                                                                                                                                                                                      रायजी 
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चेतना  (कविता)





rahul gabdhi and singapur's truth


राहुल गाँधी और सिंगापुर का सच  rahul gandhi aur singapur ka sach - 




राहुल गाँधी कब कहा पहुँच जाते है ये किसी को नहीं पता रहता , फिलहाल उन्होंने इस बार सिंगापुर से बीजेपी पे हमला किया है। 
राहुल गाँधी सिंगापुर के ली कुआन यिवु स्कूल की परिचर्चा में भाग ले रहे थे , यह सिंगापुर के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक है जिसकी परिचर्चा में उन्हें आमंत्रित किया गया था , कार्यक्रम का संचालन प्रतिष्ठित लेखक प्रसेनजित के बसु कर रहे थे। परिचर्चा में  राहुल गाँधी कहते है की भारत में इस समय एक अलग तरह की राजनीति हो रही है। जिसमे लोगो को बांटा जा रहा है और उनके अंदर गुस्सा पैदा किया जा रहा है ताकि यह गुस्सा वोट बैंक  में बदल सके।  हालांकि वे ये भी कहते है की इस तरह की राजनीति विश्व के कई अन्य देशो में भी हो रही है। 

राहुल इससे पहले अमेरिका में भी एक प्रेस कांफ्रेंस में नए अवतार में दिखाई दिए थे , पता नहीं इनको अपने देश की मीडिया से क्या दिक्कत है जो हमेशा विदेशी मीडिया में जाकर विपक्ष पर अत्यधिक हमलावर हो जाते है। 
या उन्हें लगता है इस देश की मीडिया हर बात पे उनकी गलत छवि पेश करती है। 

राहुल गाँधी ने इस परिचर्चा में उच्चतम न्यायलय के चार वरिष्ठ न्यायधीशों का भी जिक्र किया, उन्होंने जस्टिस लोया मामले में सीधे - सीधे अमित शाह का नाम लिया राहुल गांधी ने यह भी  कहा की भारत में इस समय एक तरह के  डर का माहौल है , आज अगर महात्मा गाँधी जीवित होते तो वे भी दुखी होते। 

प्रसेनजीत बसु ने कांग्रेस के  वीडियो  को फर्जी करार दिया -  



इस वीडियो को कांग्रेस के ट्विटर हैंडलर पे डाला गया है। जिसको देखने के बाद लेखक प्रसेनजीत बसु ने ही इसमें  गलत तरीके से एडिटिंग करने का आरोप लगाया है , उनके अनुसार सवालों और जवाबो की इस कड़ी में काफी कांट - छांट की गई है , जिससे की मूल वीडियो ही बदल गया है।  कांग्रेस पार्टी पर इस तरह का यह कोई पहला आरोप  नहीं है इससे पहले भी इस तरह के कई आरोप  लगते आये है , पर जिसने सवाल पूछा वही अगर इस विडियो  पर सवालिया निशान  लगाता है तो प्रश्न कांग्रेस की सुचिता और राजनीति के गिरते स्तर पर आना स्वाभाविक है। प्रसेनजीत बसु ने इस वीडियो  को कांग्रेस द्वारा जल्द से जल्द अपने ट्विटर हैंडलर से हटाने को कहा है। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो उसे सिंगापुर की अदालत  में आने के लिया तैयार रहना होगा। 

महत्वपूर्ण सवाल - 


प्रसेनजीत के जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल राहुल गाँधी से थे उनमे वंशवाद को लेकर सीधा प्रश्न यह था  की उनकी पार्टी  भारत में 62 साल सत्ता में रही और इतने दिनों में जब परिवार से कोई प्रधानमंत्री रहा तब - तब  भारत में आम आदमी की औसत आमदनी विश्व की अपेक्षा कम  रही यानि आम आदमी गरीब ही रहा जबकि  परिवार अमीर  होते गया , वही जब सत्ता परिवार से इतर कांग्रेस में ही या अन्य दलों में  दुसरे व्यक्ति के हाथ में रही जैसे नरसिम्हा राव, अटल बिहारी बाजपेयी  तो आम आदमी की जीडीपी संसार के अन्य देशो की तुलना में ज्यादा तेजी से बढ़ी। नेहरू के समय तो जीडीपी स्वाभाविक रूप से जितनी बढ़नी चाहिए उससे भी कम रही। इसका अर्थ यह है की परिवार  भारत को एक गरीब देश बनाकर रखना चाहता  था । 
कांग्रेस इन 62 सालो में भारत को गरीबी से मुक्ति क्यों नहीं दिला पाई जबकि वर्तमान सरकार के केवल चार साल पुरे होने पर उससे हिसाब माँगा जाता है। 

ऐसे ही कई सवालों के जवाब जो उस समय राहुल गांधी नहीं दे पाए उनको इस वीडियो में एडिटिंग के जरिये दर्शाया या हटाया  गया है। 
एक सवाल मेरा भी कांग्रेस से था जो मैं बार -  बार पूछता हूँ की अगर परिवारवाद न होता तो क्या राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष पद के सबसे योग्य  उम्मीदवार है , और क्या इतनी नाकामियों के बाद भी  वे इस कुर्सी और कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी पर टिके  रह पाते  ?

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wah re sharma jee

वाह रे शर्मा जी wah re sharma jee 


बीवी और टीवी ये दोनों दूर से ही चले तो अच्छी है पास से देखने पे एक आँखों के लिए नुकसानदायक है और दूसरा मन की शांति के लिए।और इसीलिए लगता है की दोनों ही रिमोट से चलती तो कितना अच्छा होता।  

शर्मा जी आज सुबह ऑफिस के लिए तैयार होते वक़्त यही सोच रहे थे की आज सुबह उनसे ऐसी कौन सी खता हो गई की उनकी बीवी उनपे ट्रक के हार्न की तरह बजती ही जा रही है। सुबह उन्होंने बस इतना ही तो कहा था की आज नाश्ते में आलू के पराठें की  जगह मूली के परांठे बन जाये तो  उन्होंने ऐसा कौन सा गुनाह कर  दिया ये अलग बात है की शर्मा जी को गैस की प्रॉब्लम है पर बीवी को क्या समस्या  थी, नहीं बनाना था तो एक बार बोल ही  दी होती सर पे आसमां उठाने की क्या जरुरत थी। 

अभी कल ही मुंह से बस गलती से ही निकल गया की कानपुर भारत  के सबसे गंदे शहरो में से एक है वहा  स्वच्छ भारत अभियान की धज्जिया उड़ रही है   फिर क्या  फिर तो ना जाने कितनी बुराइया मुझमे और नैनीताल शहर में निकल आई दोपहर के खाने तक से महरूम होना पड़ा  वो अलग , अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की  शर्मा जी नैनीताल के थे और उनकी श्रीमती जी कानपूर की। भला कानपुर की बुराई करना उनके मायके की बुराई करने से कम थोड़ी न था। 

खैर शर्मा जी ने अपना ध्यान सामने आई मुसीबत से हटाकर डाइनिंग टेबल पर रखे आलू के परांठे , धनिया और टमाटर की चटनी पे लगाया। नाश्ता खत्म होते ही वे घर के जरुरी कामों की सूची मांगने ,हिम्मत करके श्रीमती जी के पास पहुंचे, देखे तो श्रीमती जी के चेहरे पे कुटिल मुस्कान झलक रही थी ,वे  मन ही मन सोचने लगे  इतनी जल्दी तो गिरगिट भी  अपना रंग नहीं बदलता  जरूर दाल में कुछ काला है।  

श्रीमती जी बोली - " सुना है आपका प्रमोशन होने वाला है "
शर्मा जी - " हाँ तो "
श्रीमती जी  - " मैं सोच रही थी की आपके प्रमोशन के बाद हम कुछ दिनों के लिए कानपुर  घूमने चले "
शर्मा जी - " ठीक है देखता हूँ। " कहकर शर्मा जी ने वह से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। 

wah re sharma jee


शर्मा जी रास्ते में यही सोच रहे थे की पिछले हफ्ते   बाबू जी का फ़ोन आने पर घर में कैसे तहलका मच गया था। मां की तबियत अचानक ही ख़राब हो गई थी और उनकी देख रेख करने वाला वहा  पर कोई नहीं था।  बड़े भाई साहब परिवार समेत विदेश में जा बसे थे और उन्हें सबसे कोई मतलब ही नहीं था और छोटा भाई आई आई टी से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहा था। एक मैं ही था जिनसे उनकी उम्मीद कायम थी , मैंने भी कई बार उनको अपने पास लाने की कोशिश की पर वे अपना पुश्तैनी मकान  छोड़ने को तैयार ही  नहीं थे। आखिर होते भी क्यों वो मकान नहीं  घर था हमारा जिससे हमारी अनेक यादें जुडी थी , ये यादें ही तो थी जिनके सहारे उनकी जिंदगी गुजर रही थी। 

अगले दिन ही शर्मा जी घर से ऑफिस के किसी काम का बहाना लेकर अपने गांव निकल लिए , आखिर उस मां  के लिए उनके भी कुछ फर्ज थे जिसका अंश वे है। जिसकी ऊँगली पकड़ के वे इतने बड़े हुए और जिसकी ममता की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती।  एक अजीब सी शांति और संतोष था शर्मा जी के चेहरे पर क्योंकि वे परिवार में संतुलन बनाना जान गए थे। और अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से  निभाना भी। 




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