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आम आदमी पार्टी  aam aadmi party

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अगर कहा जाये की कम  समय में किसी पार्टी का सबसे ज्यादा विवादों से नाता रहा हो तो वो है आम आदमी पार्टी।  आम आदमी पार्टी अपनी स्थापना के समय से ही विवादों में रही है।  अन्ना के आंदोलन में अरविन्द केजरीवाल का शामिल होना और उस आंदोलन के माध्यम से जनता को अपनी उपस्थिति का अहसास करना ही अरविन्द केजरीवाल की शुरूआती रणनीति थी जिसमे वे सौ प्रतिशत कामयाब हुए।  उन्होंने आम जनता पे अपनी छाप छोड़ने के लिए आम जनता की वेशभूषा और और रहन - सहन पे विशेष ध्यान दिया ,जिसमे स्टेशन में अखबार बिछा के सोने से लेकर ठण्ड के दिनों में मफलर पहनने तक सब - कुछ शामिल था।  मैंने इतिहास की किताब में पढ़ा था की गांधी जी अपने शुरुआती दिनों में जब भाषण देने जाते तो कोट और पैंट  धारण किया करते थे। एक बार जब उन्होंने एक सभा में वस्त्र के विषय में टिपण्णी की तो उन्हें प्रथम स्वयं के वस्त्रो का ज्ञान हुआ उन्हें लगा की जबतक आम आदमी की वेशभूषा नहीं धारण करते तब तक  आम आदमी उनसे जुड़ाव नहीं महसूस कर सकता उस समय धोती भारत में पुरुषो की प्रमुख परिधान हुआ करती थी परन्तु उसमे भी कई किस्म थे जो की अत्यंत महंगे थे ,चरखा एक प्रसिद्ध वस्त्र  उत्पादक यंत्र था जो की घर - घर में उपलब्ध था। इसलिए गांधी जी ने निश्चय किया की वे खुद के चरखे से बनाया हुआ धोती ही पहनेंगे व वही उनका एक मात्र वस्त्र होगा। क्योंकि भारत जैसे विशाल देश में जहा की अधिकाँश जनता गरीबी में अपना जीवन यापन करती है और जिन्हे तन पे लपेटने हेतु पूर्ण वस्त्र भी उपलब्ध नहीं है वहा वह कैसे पूर्ण वस्त्र पहन सकते है। 

हालांकि अरविन्द केजरीवाल और गांधी जी में दूर दूर तक कोई समानता नहीं है फिर भी आम जनमानस को वस्त्र से जुड़े इस तथ्य को जानना आवश्यक है। और जो लोग गांधी जी को लेकर प्रश्नचिन्ह खड़ा किये रहते है उनसे मैं इतना ही कहना चाहूंगा की एक बार फेसबुक और व्हाट्सअप छोड़ के इतिहास की प्रामाणिक किताबों का अध्ययन करले। 
अन्ना के आंदोलन में अरविन्द केजरीवाल के साथ उनका एन जी ओ - इंडिया अगेंस्ट करप्शन भी सुर्खियों में था इसके नाम ने भी जनता पर सकारात्मक असर डाला मोदी  के उदय की संभावना को इस आंदोलन ने जैसे रोक ही दिया था और इसका सारा श्रेय भुनाने में अरविन्द केजरीवाल सफल हुए।  उन्होंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों को एक जैसी बताया उनकी बातों में आम आदमी की झलक मिली और उन्होंने इसी नाम से पार्टी की स्थापना की घोषणा कर दी। 

हालांकि अन्ना ने उनकी मंशा पे शंका जाहिर की परन्तु फिर भी वे अन्ना को विश्वास में लेने में कामयाब हुए।  उन्होंने अपनी पार्टी और उसके प्रतिनिधियों के विषय में राजनीति से इतर बातें की और आम आदमी से दिखने वाले चेहरे को उम्मीदवार बनाया और खुद भी खड़े हुए चुनावों में पूर्ण बहुमत तो नहीं मिला पर पार्टी ने उम्मीद से ज्यादा सीट हासिल की दिल्ली का चुनाव होने के कारण सन्देश देश के कोने - कोने में गया।
बीजेपी  के हाथ से लोकसभा चुनाव खिसकते हुए दिखाई दिया। परन्तु कहते है सत्ता  अच्छे - अच्छो का मतिभ्रम कर देती है। और अरविन्द केजरीवाल  ने कांग्रेस से समर्थन लेकर जनता को आप की नीयत और अरविन्द केजरीवाल की कथनी और करनी के विषय में सोचने पे मजबूर किया क्योंकि कांग्रेस के समर्थन का प्रश्न पूछे जाने पर अरविन्द केजरीवाल ने अपने बच्चो तक की कसमे  खा ली थी।  लोकसभा चुनाव में हुई हार से जल्द ही उन्हें इस बात की समझ आ गई और उन्होंने 45 दिनों में अनिल कपूर के नायक फिल्म की तरह एक बार फिर अपनी छाप जनता पर छोड़ी और 45 दिन बाद कांग्रेस को भी छोड़ दिया।  उनके कामो से दिल्ली  के निचले तबके के लोगो ने पुलिस और प्रशासन के उत्पीड़न से राहत महसूस किया और अगली बार उनको एक बार फिर दिल्ली का ताज सौंप दिया। 

परन्तु सत्ता और लालच   के खेल में अरविन्द केजरीवाल के विधायक से लेकर मंत्री तक  लगातार विवादों में बने हुए है। दूसरो पे आरोप लगाने वाली पार्टी  पे इस समय एक के बाद एक इतने आरोप है की पिछ्ला आरोप छोटा पड़ जाये और यदि यहां उन आरोपों का जिक्र किया जाए तो शायद कई पृष्ठ लग जाए। फिलहाल ताजा आरोपों में २० विधायकों का निलंबन और इन सीटों पर होने वाले चुनाव ही आप पार्टी का राजनीतिक भविष्य तय करेंगी की पार्टी पर जनता का विश्वास कितना बना हुआ है।  

इन्हे भी पढ़े - narendra modi vs rahul gandhi

mudaa and life


      मुद्दा और ज़िन्दगी 


                           
mudda
रायजी 


  • Kya hua fir raat ho gai Bina kisi baat ki.mudde wo nahi rahte jinse Zindagi aasan hoti hai.mudde wo rahte Hai jinke hone se Zindagi aasan ho jayegi.jo kabhi pure nahi hote.

  • mudde he to Hai hamari Zindagi me Baki Zindagi kaha bachti hai ab.paida hue tab se mudde suru ho jate Hai marne ke baad bhi mudde peechha nahi chhodte ab Mahatma Gandhi se leker Nehru tak ko dekh lijiye.bechare Mahatma Gandhi ki murder ki file dubara khul rahi Hai.nehru ke decision ko galat sahi bataya ja Raha Hai per apne kuch nahi Kiya ja Raha Hai.koi pappu ban baitha to koi fenku per enke siwa koi gental man bhi to nahi dikhai deta maidan me.kaam to enhi se chalana padta Hai bechari Bharat MAA ko.aakhir koi n koi mudda to chahiye jeene ke liye.aur.......



  • .हम भारत के लोग

gorakhpur to lucknow

gorakhpur to lucknow
गोरखपुर से लखनऊ 

गोरखपुर से लखनऊ  - gorakhpur to lucknow


स्टेशन  पे गाड़ी की सीटी के साथ ही मेरी ट्रेन भी   धीरे - धीरे रफ़्तार पकड़ने लगी। घर से बाहर ये मेरा पहला कदम था कारण लखनऊ में मेरा एडमिशन एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था और कल उसकी रिपोर्टिंग है। घर पे अकेले होने और पिता जी की तबियत ख़राब होने के कारण गोरखपुर से लखनऊ तक का सफर मुझे अकेले ही तय करना पड़ा। पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण सबकी उम्मीदे मुझी से थी। फिलहाल ट्रेन के जनरल कम्पार्टमेंट में सवार मैं खड़ा - खड़ा ही अपने भविष्य  के सपने बुनने में व्यस्त था तभी पीछे से किसी  की आवाज आई पीछे मुड़के देखा तो एक लड़की आगे बढ़ने का रास्ता मांग  रही थी। 

काली आँखे ,गुलाबी गोरापन और सुंदर मुखड़े को मैं अनायास ही   ध्यान से देखने लगा उसके चेहरे की सादगी देख के अचानक मुझे लगा की जैसे ज़िन्दगी कुछ कह रही है और मैं ध्यान से सुन रहा हूँ मैं उसको रास्ता देते हुए  किनारे   हो  गया।  अब तो गोरखपुर से लखनऊ का सफर सुहाना सा लगने लगा था। दिल में एक अलग ही उमंग थी कई तरह के सपने भी देखने चालू हो गए। थोड़ी देर बाद वो लड़की वापस आई और बगल से होते हुए मेरे पीछे वाली सीट पे ही बैठ गई ,शायद मैंने पहले पीछे मुड़  के देखा ही नहीं था नहीं तो पहले ही  उसे देख लेता खैर अभी ट्रेन की रवानगी हुए कुछ ही समय हुआ था।  फिर तो मैंने भी अपनी दिशा बदल ली और अपनी नजरे उसकी ओर कर ली , कई बार हमारी नजरे आपस में टकराई पर उन नजरो में नजाकत और शराफत दोनों ही भरी हुई थी और लग रहा था साथ में कुछ अलग एहसास की शुरुआत भी हो रही थी शायद यही पहली नजर का  प्यार है।

 बस्ती  स्टेशन पे कुछ सवारियों के उतरने से मुझे उसके सामने वाली ही सीट मिल गई  मुझे लगा जैसे ईश्वर ने मेरी मुराद ही पूरी कर दी अब वो मेरी नजरो के ठीक सामने ही थी। इशारो ही इशारो में मुझे पता चला की वो भी अपनी मौसी के साथ लखनऊ ही जा रही थी और लखनऊ  में अपनी मौसी के साथ रहकर यूनिवर्सिटी से बी काम प्रथम वर्ष की छात्रा थी। 

उसकी मौसी बहुत ही कड़क मिजाज की थी इसलिए वार्तालाप का माध्यम इशारा ही  था। लखनऊ आते आते हमने एक दुसरे का पता ले लिया था जिससे की हम मिल सके ,लखनऊ स्टेशन पहुंचने पे ऐसा लगा जैसे पूरा सफर सिर्फ चंद लम्हो ही का था ,स्टेशन पे विदा होते समय एक अजीब मायूसी थी, लग रहा था मानो कोई हमसे हमारा सब - कुछ लेके जा रहा है उसकी आँखों में भी एक अजीब सी नमी थी। इत्मीनान बस इतना ही था की अगली मुलाक़ात  की गुंजाइश बची हुई थी। और इन्ही अगली मुलाकातों ने उसे ज़िन्दगी भर के लिए मेरा हमसफ़र बना दिया। आज भी हम वो पहली मुलाक़ात और गोरखपुर से लखनऊ का सफर याद करके रोमांचित हो उठते है। 

आरम्भ - मैं और वो 
  

after valentine

किस्सा वैलेंटाइन डे के बाद का -  




हाँ तो आप लोगो को  वैलेंटाइन दिन वाले दिन तो हमारी और कमला की कहानी पता चली  थी , पर उसके बाद क्या हुआ इसको बताने में इतनी देर इस  वजह से हुई की भैया  अस्पताल से ठीक होने में थोड़ा टाइम लग गया। 

अब आप ये सोच रहे है  की हमारी कुटाई हो गई थी  तो बिलकुल सही सोच रहे है।  दरअसल वैलेंटाइन डे वाले दिन कमला को  देखते ही हमरे प्यार का थर्मामीटर इतना हाइ हो गया था की कमला को  सीट पे बैठाने  के बाद हमारी साइकिल की स्पीड 60 किलोमीटर / घंटा हो गई थी , और हम कुछ ही देर में शहर के गुरमुटिआ पार्क आ पहुंचे। पार्क लैला - मजनुओं से खचाखच  भरा हुआ था ,तरह - तरह के दिल के आकर वाले गुब्बारे हाथ में लेके लइका - लईकी  घूम रहे थे , हम तो सीधे कलेजा हथेली पे रखके आये थे अब  इतना तगड़ा बंदोबस्त होने के बाद इस तरह के पार्क में आना कलेजा हाथ में रखके आना ही तो  हुआ। हां तो पार्क में तरह - तरह के नमूने भी देखने को मिले कई ठो  ऐसे मिले की विश्वास हो गया की प्यार अँधा होता है अब हो काहे न एक खूबे सुन्दर लईकी बानर जइसे लइका के हाथ में हाथ डाले घूम रही थी देखे तो लइका का किनारे का बाल पूरा सफाचट था सिर्फ बीच में कुछ बचा था वो भी खड़ा। मेकअप तो इतना पोत के घूम रहीं  थी लोग की अगर भगवान् बरस जाते तो  हरी - हर घांस सफ़ेद हो जाती और चेहरा यूपी के सड़क जैसा। 

मुंह से जानू  - सोना  करके चाशनी इतना झर  रहा था की लगा की आज  के बाद प्यार  करने को ही नहीं मिलेगा। खैर हमको दुसरे से क्या करना था हमको लगा इहा ज्यादा देर रहना सुरक्षित नहीं इसलिए हम अपनी बुद्धि पे भरोसा करके उहा  से खिसक लिए और पहुँच गए गोलगप्पा खाने वहाँ पे भी उहे हाल जल्दी - जल्दी गोलगप्पा खाने के बाद  निरहुआ का एक ठो सिनेमा देखे चल दिए टिकट हम पहले ही खरीद लिए थे वो भी किनारे वाला। आज के दिन का पूरा प्लानिंग हम पहले ही कर लिए थे हाँ सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए  एक ठो  बुरका भी साथ लाये थे। फिलम शुरू होते ही हाल में सीटी और ताली का  आवाज शुरू हो गया  हम भी निश्चिंत होक कमला से बतियाने  लगे। लगा की आज पूरा   मेहनत स्वार्थ हो गया।


 तभी पता नहीं कहा से जोर - जोर से आवाज आने लगी देखे तो हमारी सिट्टी - पिट्टी  गुम , हाल पे बजरंग दल वाले पूरी बटालियन लेके आ गए थे उधर परदे पे निरहुआ का एक्शन सीन शुरू हुआ और  इहा हकीकत में ,बुर्का पहिनने का मौका भी नहीं मिला। सीन जबतक ख़तम हुआ तब - तक हमरा पुर्जा - पुर्जा हिल चुका था और मुंह से बस इहे  निकला  -  हे राम ...... 


मजेदार पढ़े    -  #वैलेंटाइन दिवस के पटाखे

 

main aur wo


main aur wo
मैं और वो 



हमारे वास्तविक जीवन में कई घटनाये ऐसी होती है जो अपनी छाप हमारे जीवन में छोड़ जाती है और कुछ ऐसी होती है जो हमारी दिशा ही बदल देती है। अक्सर इस बदलाव का कारण कोई और होता है और जब बदलाव का कारण कोई  लड़की  होती है तो  उसे हम वो से सम्बोधित करते है।  


main aur wo
main aur wo

इन्ही सारी  कश्मकश के बीच कुछ रूहानी यादें रह जाती है और कहानी शुरू होती है , इन कहानियो  में अक्सर ही दो पात्र प्रमुख होते है एक मैं और एक वो यानी " मैं और वो "


जल्द ही इस ब्लॉग पे  " मैं और वो " नामक एक नई कहानी सीरीज शुरू होने जा रही है । आप भी अपनी रचनाये मैं और वो सीरीज में भेज सकते है।  सोमवार को इस सीरीज की पहली कहानी प्रकाशित होगी. उम्मीद है आप सब को अवश्य पसंद आएगी अपनी प्रतिक्रियाएं इस सीरीज और ब्लॉग के प्रति अवश्य दे।  आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है।                                             


                                                                                                             रायजी 


मजेदार  -  

#वैलेंटाइन दिवस के पटाखे 


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modi vs modi

# नरेन्द्र मोदी बनाम ब्रांड मोदी - 2019 


कुछ भी कह दो पर पर बंदे मे है दम , जी हाँ  हम बात कर रहे है अपने वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी की वैसे तो मैं ना किसी दल का पक्ष लेता हू ना ही किसी भी दल के प्रति मेरी विशेष निष्ठा है , मैने कई मोर्चो पे मोदी जी से लेकर राहुल गाँधी तक सबकी आलोचना भी की है , पर आलोचना का मूल उद्देश्य किसी के प्रति दुराग्रह नही होता एक अच्छा आलोचक ही एक अच्छा हिमायती भी होता है .

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 चित्र साभार इंडियन एक्सप्रेस 

और लेखक को चाहिये की उसकी लेखनी मे किसी प्रकार का दुराग्रह और और अंधभक्ति ना हो , ये बात अलग है की किसी विषय मे जनता का क्या मत होता है और हमारे देश मे जहा अलग अलग विचार धारा के लोग है उनका किसी भी विषय मे अलग अलग मत हो सकता है . किसी को कुछ पसंद होता है और किसी को कुछ , आते है अब अपनी बात पे समाचर चैनलो पे देख रहा था की मोदी ओमान मे भारतीय समुदाय को संबोधित कर रहे थे उनका भव्य स्वागत और भारतीयो के बीच का उत्साह बताता है की बंदे मे कितना दम है . लाख आलोचनाओ के बाद भी अभी से 2019 मे मोदी की जीत पक्की है शंका केवल वही कर सकते है जिन्होने सच्चाई से मुंह मोड रखा है .

कारण मोदी के सापेक्ष मौजूदा परिदृश्य मे कोई ऐसा नेता नही दिखाई देता जिसपे जनता विश्वास कर सके भले ही लोग कहे की मोदी की लोकप्रियता कम हुई है फिर भी कुछ सीटे कम हो सकती है लेकिन 2019 मे भी मोदी सरकार ही रहेगी कारण सरकार की छवि पे एक भी दाग का ना होना , जिसमे संप्रग सरकार ने रिकॉर्ड तोड दिया था .

अन्य कारणो मे विदेशो मे भारत की बढ़ती धमक , हिन्दूवादी एजेंडा , कमजोर विपक्ष , और सरकार की निर्णय क्षमता ऐसे मुद्दे है जिनका लाभ मोदी सरकार को मिलेगा हालांकि बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पे सरकार को नुकसान हो सकता है . मोदी सरकार के कुछ मंत्रियो और नेताओ का बड़बोलापन भी सरकार के हित मे नही है .पिच्छ्लि बार की तरह वोटो का ध्रुवीकरण कितना होगा और इसका लाभ किसे मिलेगा ए अभी कुछ कहा नही जा सकता . पर इन सबके बाद जो सबसे बड़ा मुद्दा है वो है मोदी .

इस बार के चुनाव मे विपक्ष मे कोई और नही मोदी खुद है , मोदी का मुकाबला कमजोर विपक्ष से ना होकर ब्रांड मोदी से है आज भी मोदी हारे हुए गुजरात को जीतकर भाजपा की झोली मे दे देते है उत्तर प्रदेश मे जहा राजनीतिक विश्लेक्षण धरे के धरे रह जाते है और और मोदी पे विश्वास करके जनता भाजपा की झोली मे उत्तर प्रदेश भी डाल देती है ए मोदी नही ब्रांड मोदी है. आने वाले चुनाव भी इसी ब्रांड को प्रचारित करके लड़े जाएं इससे इंकार नही किया जा सकता कर्नाटका , मध्यप्रदेश और राजस्थान ऐसे राज्य है जहा ब्रांड मोदी की एक बार फिर परीक्षा है . अभी लोकसभा चुनावो मे एक साल का समय और है .हो सकता है तबतक फिर हर घर मे ब्रांड मोदी देखने को मिले और हमे फिर से सुनाई दे।
             ” हर हर मोदी घर घर मोदी “

narendra modi vs rahul gandhi

नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी  narendra modi aur rahul gandhi 



                       
narendra modi vs rahul gandhi

modi vs gandhi








ऐसा कौन सा नेता होता होगा जो अपने देश की मीडिया की तुलना मे अमेरिका की मीडिया मे ज्यादा सहज होता है वहा भी उसे अपनी छवि बदलने के लिये काफी मेहनत करनी पड़ी . कभी उसे अपनी ही सरकार के बिल जनता के सामने फाड़ने पड़े बाद मे पता चला की वो बिल ना होकर अपनी ही पार्टी का पर्चा था . कभी संसद मे खर्राटे लेना तो कभी अपनी ही पार्टी को बिना बताये गायब हो जाना . अब तक तो आप समझ गये होंगे की सारी भूमिका इस देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रतीक संसद मे विपक्ष के नेता और सबसे पुराने दल कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गाँधी जी के बारे मे .

 राहुल गाँधी के विषय मे समझ मे नही आता ऐसी क्या मजबूरी है की पूरी कांग्रेस छानने के बाद अध्यक्ष की कुर्सी के लिये उनसे बेहतर उम्मीदवार नही मिला , जवाब सबको पता है राहुल गाँधी उसी वृक्ष की शाखा है जो प्रारंभ से ही इस देश पर राज करता आया है . वर्ना आजकल तो काबिलियत ना हो तो आप किसी निजी कम्पनी मे क्लर्क की नौकरी भी नही पा सकते प्रधानमंत्री बनना तो मुँगेरीलाल के सपने देखना है .




अब यदि आपको प्रधानमंत्री बनना है तो आप उम्मीदवार तो हो सकते है पर काबिलियत तो दिखानी ही होगी और आप की वजह से जहा दूसरे अनुभवी और काबिल नेता उम्मीदवार नही बन पाते इसका भरपूर लाभ विपक्ष को मिलता है जो उसे अत्यधिक मजबूत बनाता है . और जनता को उपलब्ध विकल्पो से ही काम चलाना पड़ता है . 
भाजपा के बाद कॉंग्रेस ही वर्तमान समय मे सर्वमान्य राष्‍ट्रीय पार्टी है जिसका अस्तित्व देश के प्रत्येक राज्य मे है पर एक मजबूत नेता के अभाव मे और परिवार के प्रति अन्य नेताओ की श्रद्धा इस पार्टी को दीमक की तरह खाती जा रही है समय है परिवारवाद से उपर उठ के सोचने का . एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है वर्ना सत्ता के निरंकुश होने का भय बना रहता है . संप्रग-2 के शासन काल मे हुए घोटालो को जनता आज भी नही भूल पायी है रिमोट से सरकार को नियंत्रित करना किसी भी स्वस्थ समाज की जनता बर्दाश्त नही कर पाती है वैसा ही यहा भी हुआ और जनता ने एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने मे जोर - शोर से भागीदारी की और उसे मोदी की बातो मे एक ऐसे नेता की छवि दिखाई दी जो की जनता के तमाम दुखो को दूर कर अच्छे - दिन दिखला सकता है.

 लेकिन चार साल बीत जाने के बाद क्या विपक्ष मे इस बात का माद्दा है की वो जनता को समझा सके की वर्तमान सरकार ऐसा क्या कर रही है जिससे देश का खजाना खाली हो रहा है या खजाना भरने के चक्कर मे आम आदमी महंगाई और करो के बोझ से दबता चला जा रहा है, सरकार कितने वादो पर खरी उतरी है, शायद कमजोर विपक्ष को सरकार अपनी उंगलियों पे नचा रही है और विपक्ष के पास मुद्दे होकर भी नही है .  


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