spirituality part2

Adhyatmikta -  jeewan ki aawashyakta   

आध्यात्मिकता -  जीवन की आवश्यकता 

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में सर्वप्रथम आध्यात्मिकता के विषय में विस्तार से चर्चा की थी  . वर्तमान जीवन की भागदौड़ , रिश्तो की आपाधापी  और जीवन की अस्थिरता मानसिक विचलन का प्रमुख कारण है। आध्यात्मिकता एक ऐसा माध्यम है जिससे इन सारी  समस्याओ का निवारण हो सकता है।  अगर हम अध्यात्म में कच्चे है तो अनेक ऐसे श्रेष्ठ गुरु है जिनकी शरण में और मार्गदर्शन लेकर हम इस पथ पर आगे बढ़ सकते है। 



adhyatmikta
adhyatmikta 


क्या है आध्यात्मिकता (what is spirituality) -  

आध्यात्मिकता ज्ञान की वह शाखा है  जो संसार की वास्तविकता से हमारा साक्षात्कार कराती है और ईश्वर और हमारे बीच समबन्ध स्थापित करती है। आध्यात्मिकता को किसी धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है।  अध्यात्म में समूर्ण सृष्टि का  संचालन कर्ता एक ही सर्वशक्ति को माना  गया है. अध्यात्म का प्रारम्भ मन की चेतना से  होता है. जिसमे सर्वप्रथम मन के विकारो को दूर करना और सांसारिक या भौतिक निश्चेतना से  परलौकिक चेतना   की ओर बढ़ना है। 

आध्यात्मिकता और मनोविज्ञान (spirituality and psychology) - 

आधुनिक वैज्ञानिको ने आध्यात्मिकता को मनोविज्ञान से जोड़कर देखा है उनका मानना है की अध्यात्म एक सकारात्मक मनोविज्ञान है जो मनुष्य को निराशा के छड़ो से निकालकर आशा को ओर ले जाता है , जीवन के कठिन छड़ो  में उसका विश्वास ईश्वर और उसके न्याय व्यवस्था पे बनाये रखता है जिससे वह कठिन छड़ो में  भी सकारात्मकता के साथ  खड़ा रहता है। उसे संसार का  भौतिक ज्ञान हो जाता है। अगर मनुष्य के कठिन क्षड़ों  में पूरा संसार उसके विपरीत खड़ा हो या उसका साथ छोड के चला जाये तो यही विश्वास उसकी ताकत बनता है. 

अध्यात्म हमें भौतिक ज्ञान से आत्मीय ज्ञान का अनुभव कराता  है जिसमे हम अपनी आत्मा से भली भांति परिचित होते है। 
शेष अगले अंश में। ....  

   

vinashkale

vinash kale vipreet buddhi in hindi

विनाश काले  विपरीत बुद्धि  

आज से 200 साल पहले समाज मे बाल विवाह , सती प्रथा जैसी अनेक कुप्रथायें विद्यमान थी . राजा राम मोहन राय द्वारा इन कुप्रथाओ के खिलाफ आवाज उठाई गई . उन्हे भारी विरोध का सामना करना पड़ा ,अनेक धर्मगुरुओ ने उन्हे जान से मरवाने की धमकी तक दे डाली पर पर उन्होने वही किया जो समाज और मानवता के लिये आवश्यक था . 
kaliyug
अँधेरा 

भारतीय समाज अपने विकास की ओर अग्रसर है . पर एक विकसित समाज ऐसी सत्ता के लिये घातक है . जिसका उद्देश्य सामाजिक कुरीतियो और स्वार्थी समूहो के सहयोग से अपनी सत्ता बनाये रखना है . संसार मे प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है . जो परिवर्तित नही होता है वो अपनी महत्ता खो बैठता है. आर्यो के आगमन से लेकर अंग्रेजो की ग़ुलामी तक भारत ने अनेको उतार चढाव देखे है , हर काल एक विशेष नाम से जाना जाता है . जो उस काल की विशेषता इंगित करता है .

वर्तमान भारतीय समाज के लिये मुझे कुछ कहना होगा तो में सिर्फ यही कहूँगा "चाहे वो परिवार हो या सरकार सब स्वार्थ , धन और सत्ता के खेल मे लीन है " .

सहयोग , भाईचारा , अपनत्व , दया , क्षमा सहनशीलता जैसे गुणो का समाज से निरंतर हास् होते जा रहा है. रिश्ते शर्मशार हो रहे है . वास्तव मे पुराणो के अनुसार कलियुग की शुरुआत हो चुकी है तो इसका अंत कितना भयावह होगा कल्पना से परे है . यदि समाज विकास की ओर अग्रसर है तो ये कैसा सामाजिक विकास है जहां घर के बुजुर्गो को एक बोझ की तरह समझा जाने लगा है , जहां पड़ोस मे रहने वाले एक अजनबी है , जहां रिश्ते ही रिश्तो को कलंकित करते जा रहे है , जहा बहू बेटिया घर के बाहर से लेकर अंदर तक असुरक्षित है . जहां बेटा खुद बाप बन बैठा है . जहां पैसा ही ईमान ,धर्म और आदमी की पहचान बन चुका है और इंसान एक मशीन . और मशीन सोचा कहा करती है , कहते है की इंसान के  अंदर क्रोध की भावना जितना अधिक बढ़ते जाएगी कलियुग उतना ही करीब आते जायेगा। इंसान और मशीन में फर्क करना मुश्किल हो जायेगा उसकी बुद्धि और विवेक दोनों ही निष्क्रिय हो जायेंगे। 

पति और पत्नी का  सम्बन्ध नाम मात्र का रह जायेगा दोनों ही एक दुसरे के विश्वास पात्र नहीं रह जायेंगे। बुद्धि ही इंसान को भ्रमित करने लगेगी और अपनी बुद्धि से नियंत्रण खो देगा.पुराणों में कुछ इसी प्रकार कलियुग की शुरुआत की बात कही गई है और कहा गया है की इसी समय भगवान् श्रीकृष्ण का कल्कि अवतार धरती पर अवतरित होगा।  उसके पश्चात् सम्पूर्ण धरती जलमग्न हो जाएगी। और १५००० वर्ष की रिक्ति के बाद धरती पे सतयुग की शुरुआत होगी। 
वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है की जिस प्रकार मनुष्य छोटी छोटी बातों में अपना आप खोते जा रहा है धन के पीछे अपनों का ही गाला काटने को आतुर है और उसकी सारी  चारित्रिक विशेषताएं नष्ट होते जा रही है कलियुग की शुरुआत  हो चुकी  है। अब तो बस इस विनाश काल की शुरुआत में ईश्वर भक्ति में लीन  होकर दुषग्रहो के प्रभाव से अपनी बुद्धि और  विवेक की सलामती की दुआ ईश्वर से मांगनी चाहिए।    

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अध्यात्म की शुरुआत 


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अध्यात्म की शुरुआत 

अध्यात्म हमारे भीतर की वह चेतना है जो की निष्काम है उसी चेतना को जगाने का प्रयास ही  अध्यात्म  कहलाता।  मनुष्य जन्म कई लाख योनियों में जन्म लेने के पश्चात मिलता है इस जन्म की सार्थकता को प्रत्येक व्यक्ति नहीं समझते और भोग - विलास की प्रवृत्तियों में जीवन का सम्पूर्ण भाग निकल देते है वे भूल जाते है की शरीर नश्वर है जो अमर है वो है आत्मा।


जीवन एक प्रक्रिया है इस धरती पर जन्म के साथ ही यह शुरू हो जाती है और अटल सत्य मृत्यु के साथ ख़त्म चाहे वो राजा हो या रंक  प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती।

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अध्यात्म 

सूर्य की रौशनी सबपर एक समान भाव से पड़ती है , वायु का प्रवाह भी समान ही होता है , यहाँ कुछ भी वास्तविक नहीं है जिसके पीछे हम अपना समय नष्ट करते है जिस सुख के पीछे हम दिन रात भागते है वो शारीरिक और क्षणिक है .

वास्तविक सुख का अनुभव हमारी आत्मा को होता है। किसी नगर में एक बार कुछ लोग सड़क  पे चले जा रहे थे उनको देख कुछ और उनके पीछे चलने लगे सबको लगने लगा की अवश्य ही कुछ विशेष बात है इस प्रकार भीड़ अत्यधिक बढ़ गई अंत में पता चला की वे लोग इस शहर में नए थे और मार्ग से विचलित हो गए थे उनका अनुसरण करने वाले हजारो लोगो का समय और ऊर्जा बिना किसी बात के ही व्यर्थ चला गया। 

 कुछ लोग ऐसे भी थे जो समझदार थे और वे अपने नित्य के कामो में ही लगे  रहे। कहने का तात्पर्य ये है की यदि समाज का बड़ा वर्ग या पूरा समाज ही गलत दिशा अर्थात भौतिक सुख के पीछे भाग रहा है तो यह  आवश्यक नहीं की हम भी उसके पीछे भागे।  वर्तमान समय में राजनीति ,सत्ता ,धन और भौतिक सुख के पीछे भागने वालो की संख्या सर्वाधिक है पर क्या वे मानसिक रूप से सुखी है ? 

भारतीय समाज में भी वैदिक काल से ही पुरुषार्थ की अवधारणा चली आ रही है जिसके अंतर्गत पुरुषार्थ  करते हुए जीवन व्यतीत करने वाला पुरुष ही सर्वोत्तम होता है।  पुरुषार्थ के अंतर्गत चार श्रेणियाँ होती है धर्म , अर्थ ,काम ,और मोक्ष। अंतिम मोक्ष की प्राप्ति है जिसमे जीवन के अंत काल में सर्वस्य त्याग कर ईश्वर की भक्ति में लीन  होते हुए  अपने अंश को ईश्वर के अंश में समाहित करना है। 

बचपन से लेकर जवानी और जवानी से लेकर बुढ़ापे तक जीवन चक्र अलग अलग अवस्थाओं से गुजरता है।  जहां हम इस मोह रूपी संसार के मायाजाल में फंसकर अनर्गल कार्यो में ही जीवन का वास्तविक सुख और उद्देश्य दोनों ही भूल जाते है। अध्यात्म वही चेतना है जो हमें वास्तविक सुख के प्रति जागृत करती है।  मन से तमाम तरह की बुराइयों को निकाल बहार फेंकती है जिससे एक स्वच्छ मन में ईश्वर का वास हो सके और हमारे और हमारे सर्वशक्तिमान परम पिता के बीच अटूट संपर्क स्थापित हो सके यही अध्यात्म की शुरुआत है बाकी बाते अगले अंश में........ 
              
 अगला भाग -  

आध्यात्मिकता -  जीवन की आवश्यकता

 

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fenku uncle

फेंकू चच्चा 


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fenku uncle 


मारे गाँव मे एक ठो चच्चा हुआ करते थे फेंकू चच्चा . उनके फेंकने के किस्से दूर – दूर तक मशहूर थे . दूर – से मतलब अमेरिका से नही हाँ आसपास के गाँव, रिश्तेदारियो और जवार मे , चच्चा जब कभी रिश्तेदारियो मे जाते तो उनके आसपास भीड़ का रेला लग जाता था उनकी बातों के दीवाने घर के बच्चो से लेकर बूढ़े बुजुर्ग तक सभी थे . चच्चा अक्सर ही भ्रमण पे जाया करते थे थोड़ा घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के थे . वापस लौटकर आने पर बातों का भंडार रहता था .


चच्चा एक बार बता रहे थे की कैसे रास्ते मे उन्हे शेर मिल गया था , चच्चा उसे देखकर बिल्कुल भी नही डरे बल्कि शेर चच्चा को देखते ही उनके आगे नतमस्तक हो गया और पूरे जंगल मे उनके पीछे – पीछे घूमते रहा चच्चा उसे पालतू बनाकर घर ले आने लगे पर गाँव वाले उसे देखकर कही डर से मर ना जाये इसीलिये समाजहित मे उसे जंगल मे ही छोड़ आये . हम बच्चे जब तक छोटे थे तब तक चच्चा की कहानियो को सही मानते थे . जैसे की चच्चा बताते की उन्होने ही गब्बर सिंह को पकड के फिल्म शोले मे दिया था जिससे अमिताभ बच्चन उनका फैन हो गया था. अपनी जवानी मे वो सेना मे थे और उन्होने कैसे पाकिस्तान की नाक मे दम कर दिया था उनको देखते ही पाकिस्तानी डर के भाग खड़े होते थे .



चीनी तो उनको देखते ही हिन्दी बोलना शुरु कर देते थे . अमेरिका तक मे उनके चर्चे थे , एक बार हमने पूछ  ही दिया तब तो चच्चा इतिहास की किताबो मे आपका नाम जरूर होगा चच्चा बोले की वे नही चाहते थे की पाकिस्तानी और चीनी बच्चे उनके बारे मे पढ के पैंट गीला करदे भला इनमे बच्चो का क्या दोष . ऐसे लोगो की भी संख्या अधिक थी जिन्हे चच्चा और उनकी कहानियों पर पूर्ण निष्ठा थी . और वे चच्चा के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नही थे . चच्चा की फ्रेंड फालोविंग भी बड़ी लम्बी चौड़ी थी इसका करण था की चच्चा से बढिया मनोरंजन और मसाला फिल्मो के पास भी नही होता था .

और चच्चा की शैली मे लोगो को बांधे रखने की छ्मता थी वो वही सुनाते जो लोग सुनना चाहते थे , करना चाहते थे चाहे वो कल्पना मे ही क्यो ना हो . इधर गाँव मे प्रधानी के चुनावो की घोषणा हुई उधर चच्चा के चौपाल का दायरा बढ़ता गया . चच्चा को इस से बढिया मौका कहा मिलता अपनी काबिलयत दिखाने का सो वो भी चुनाव मे खड़े हो गये . चच्चा मे भीड़ जुटाने की काबिलियत तो थी ही सो उन्होने फिर अपनी बातो का मायाजाल फैलाना शुरु कर दिया , सबको लगा कुछ हो चाहे ना हो चच्चा का दिल नही दुखाना चाहिये नही तो बिना बिजली , सड़क के इस गाँव मे हमारा समय कैसे व्यतीत होगा औरतो को लगा की अगर चच्चा हार गये तो मर्द दिन रात घर मे पड़े उन्हे ही परेशन करते रहेंगे , बच्चो ने तो साफ – साफ कह दिया था की अगर उनके घर से चच्चा को वोट नही मिला तो वो भूख हड़ताल पे चले जायेंगे , तब – तब क्या चच्चा प्रधान हो गये . आज भी गाँव मे चच्चा के किस्सो के साथ चाय – पकौडो से ही लोगो का टाइम पास होता है .


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