लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती
कहने को तो पूरा दिन यूँ ही निकल जाता हैपर माँ के आँचल में जो गुजरे
अब वो रात नहीं आती
बहती है जब जब पुरवाई
मिटटी की सोंधी खुशबु तो आती है
पर एक लम्हा नहीं गुजरता
जब बीते लम्हे की याद नहीं आती
मिटटी की सोंधी खुशबु तो आती है
पर एक लम्हा नहीं गुजरता
जब बीते लम्हे की याद नहीं आती
सब कुछ तो पा लिया
ए जिंदगी तुझसे
पर वो बचपन वाली बरसात नहीं आती
भीड़ में रहकर भी अब
अपनेपन की एहसास नहीं आती
ए जिंदगी तुझसे
पर वो बचपन वाली बरसात नहीं आती
भीड़ में रहकर भी अब
अपनेपन की एहसास नहीं आती
मैंने देखा है तेरी आँखों में
नीर के दरिया को बहते हुए
पर ये बात जुबां तक नहीं आती
नीर के दरिया को बहते हुए
पर ये बात जुबां तक नहीं आती
पीर बहुत है सीने में मेरे भी
पर शिकन चेहरे पर नजर नहीं आती
खड़ा हूँ साथ तेरा साया बनकर
तेरी नजर कैसे तुझे बतलाती
इसीलिए
लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती
तेरी नजर कैसे तुझे बतलाती
इसीलिए
लिखता हूँ मैं थोड़ा थोड़ा पर वो बात नहीं आती
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