man ki baat

मन  की बात 


हम क्या बोलेंगे साहब आप ही इतना कुछ सुना देते है की मन खुश हो जाता है , आपके पास तो बड़का बड़का माइक है ,लाखो लोगो की भीड़ है हम तो उस भीड़ का हिस्सा मात्र है ,


आपने कह दिया की आप अच्छे दिन लाएंगे हम इसी उम्मीद पर आपको लेते आये। अभी कल की ही बात है हमारी घरवाली हमसे बोली अब तो छोटका लोगो पे तुम्हारी सरकार ज्यादा ध्यान देगी तुमको अपने दुकान के लिए भी आसानी से लोन मिल जायेगा , अब हम उसको कैसे समझाते की सरकार तो हर जगह नहीं जा सकते , कही बैंक का मैनेजर जालिम निकला तो सरकार उसको कैसे सबक सीखाएंगे और हम गरीब मनई अपनी फ़रियाद लेकर कहां - कहाँ तक दौड़ेंगे हाँ सरकार बोले है तो अच्छे दिन जरूर आएंगे सरकार के मंत्री तो है वो तो सरकार के आदेश पर काम करेंगे और उनके आदेश पर बैंक से लेकर हर विभाग के अधिकारी भी ढंग से काम करना शुरू कर देंगे आखिर कुछ तो डर होगा हमारे नए सरकार का।

पहले के सरकार तो कुछ बोलते ही नहीं थे और अबकी सरकार खूब बोलते है अरे रेडियो  पर भी तो अपने मन की बात करते है पर कभी हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनते हम भी क्या क्या सोचते है सरकार के पास इतना टाइम कहा होता है की अपने देश  के मनई लोगो की बात सुन सके वो तो विदेश में जाकर ऊ ट्रम्प  के साथ  देश को आगे बढ़ाने की चर्चा  में ही बिजी रहते है , लेकिन देश का क्या उसके लिए सरकार जरूर कुछ आदेश देकर जाते होंगे । अब पिछले ही साल सरकार से शिकायत करनी थी  की हमारे इलाके के सांसद और विधायक जी कभी दर्शन ही नहीं देते , वो भी तो सरकार की ही पार्टी के है उनके अंदर भी तो सरकार का खौफ होना ही चाहिए , हमारे सरकार तो  इतने अच्छे है 18 घंटा तक तो खाली काम करते है और उनकी पार्टी के लोगो का इ हाल है , इहे लोग सरकार को बदनाम करते है।

अभी पिछले ही महीने पढ़ा था एगो भगोड़ा बैंक का पैसा लेकर विदेश भाग गया और लोग हमारे सरकार को सुना रहे है , अब हम क्या कहे मतलब सरकार थोड़ी ना जानते है कौन आदमी ईमानदार है और कौन बेईमान अगर इतना ही पता होता तो हमारे सरकार एक -  एक को जेल नहीं भिजवा दिए होते , आप मत सोचियेगा सरकार ये बैंक वाले भी कम धूर्त नहीं होते अभी छह महीने से हमारी ही अर्जी दबाकर रखे हुए है चार महीने में तो आधार से लिंक किये है कह रहे थे सब की सरकार की योजना है कोई भी आदमी अब फर्जी काम नहीं करवा पायेगा बताइये जैसे हम समझ ही नहीं रहे है की सब कैसे हमको चुतिया बना रहे है अगर ऐसा होता तो उ नीरव मोदी कैसे उल्लू बना देता।

man ki baat

ऐसे ही सब हमको नोटबंदी में उल्लू बनाये थे कह रहे थे सरकार नोट बॅंद कर दी है हम भी उनसे कहे हमरी सरकार जनता की सरकार है अगर नोटबंद की होगी तो जरूर पहले उतना नोटछाप ली होगी इतनी बुरबक नहीं है सब नोट तुम्ही लोग ब्लैक कर दिए होंगे देखे नहीं कितना करोड़ लेके लोग पकड़ा रहे है।  बात तो बहुत है सरकार पर पर उ  खाद की दुकान पर भी जाना है आधार से लिंक करवाने नहीं तो सब खाद ही नहीं देंगे।अब आप से क्या छुपाये सरकार  1000  रुपया के खाद के लिए आज हम महाजन के यहाँ से 2000 उधार लेकर आये है काहे से लोग बोल रहे थे बाकी का एक हजार वापस हमरे खाता में आएगा  तब हम सूद सहित महाजन को लौटा देंगे इहे गरीबी मिटाये खातिर तो हम आपको वोट दिए रहे की   एक थो आप ही है जो हमरा अच्छा दिन जरूर लाएंगे ऊ टीबी  पर आपका अच्छा दिन वाला प्रचार भी देखे रहे जिसमे किसान लोग आपस में बतिया रहे थे की अच्छा दिन आने वाला है , आप भले ही भूल गए होंगे सरकार लेकिन हमको आज भी ऊ प्रचार याद है आप निश्चिंत होकर अपना काम करते रहिये सरकार ऐसे ही हम आगे भी आपको अपनी मन की बात बताते रहेंगे आखिर आप सच्ची में कहा मिलने वाले।


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ठेलुआ और मथेलुआ 


ठेलुआ और मथेलुआ अपने गाँव के सबसे बड़े लाल बुझक्कड़ हुआ करते थे , लाल बुझक्कड़ अत्यंत ही प्राचीन भाषा का शब्द है चूंकि दोनो की योग्यता के अनुसार इससे उचित शब्द की खोज नही की जा सकती थी इसलिये इसका प्रयोग ही यथोचित समझा गया . इस शब्द का अर्थ अलग अलग लोग अपने अपने अनुसार लगाते रहते है .

thelua and matheluaठेलुआ और मथेलुआ को अक्सर एक दूसरे के साथ बंदर और उसकी पूंछ की तरह देखा जाता था . बंदर की तरह ही दोनो को गुलाटियां लगाने की आदत थी और इसी आदत की वजह से बेचारे अपने हाथ पेर तुड़वा बैठते . गाँव मे होने वाले नुक्कड नाटको मे भी दोनो को बानर या रीक्ष का ही किरदार दिया जाता था जिसे दोनो बखूबी निभाते थे .कभी – कभी तो दोनो की हरकते देखकर ऐसा लगता की जैसे असली मे कोई बानर या रीक्ष आ गया है . लोग उनके अभिनय का भरपूर आनंद लेते थे और ठहाके मारकर हंसते – हंसते लोटपोट हो जाया करते थे . दोनो के घरवाले उनकी आदतो से परेशान होकर नित्य ही उनको ताने दिया करते थे जो की उनके लिये दिनचर्या का नियमित हिस्सा था .

एक बार की बात है उनके गाँव मे एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा का आगमन होता है , सारे ग्रामवासी उनकी सेवा सत्कार मे जुट जाते है , ठेलुआ और मथेलुआ की जोड़ी को भी महात्मा की सेवा मे लगा दिया जाता है .
ठेलुआ के आगे के दो दांत बढते हुए उसके होंठो को पार कर गये थे कई बार उसके दांतो पर वज्रपात की संभावना हुई लेकिन खुशकिस्मती से कोई संभावना आगे नही बढ सकी .शक्ल से काले ठेलुआ के आगे के दोनो दांत ही अंधेरे मे उसकी राष्‍ट्रीय पहचान बने हुए थे . वही मथेलुआ शरीर से हट्टा – कट्टा तो था पर था एक नंबर का डरपोक . स्कूल के दर पर दोनो केवल दो ही बार गये थे. एक बार स्कूल मे लगे आम के पेड़ से आम चुराने और दूसरी बार स्कूल मे जांच आने पर मास्टर साहब द्वारा बच्चो की गिनती मे जिसमे दोनो को पुरस्कार स्वरूप किस्मीबार नामक टॉफी मिली थी .
हाँ तो महात्मा जी द्वारा रोज शाम को गाँव के मैदान मे प्रवचन का आयोजन होता था जिसमे अन्य गाँव के लोग भी उनकी मधुर वाणी सुनकर चले आते थे , पास के ही गाँव के एक पुराने जमींदार हरखू सिंह बहुत ही राजा आदमी थे उन्होने ही महात्मा जी के प्रवचन मे होने वाले खर्चे जिसमे प्रसाद से लेकर तम्बू तक शामिल था स्वयं वहन किया करते थे .

एक दिन सांय काल के समय महात्मा जी प्रवचन दे रहे थे तभी तेज गति से आंधी और तूफान नामक दो डाकू आ धमके , दोनो ही बड़े जालिम किस्म के बंदे थे वो जानते थे की प्रवचन सुनने भारी संख्या मे लोग उपस्थित होंगे ,औरते तो ऐसे स्थल पर जाती ही अपने गहनो का प्रदर्शन करने प्रवचन मे उनका ध्यान कम अपनी बहुओं और सास की चुगली मे ज्यादा रहता है , किसकी सास ज्यादा अत्याचारी है और किसकी बहू ने उनके लायक पुत्र को अपने वश मे कर रखा है चर्चा का प्रमुख विषय रहता था .


आंधी तो कुछ हद तक मुलायम था पर तूफान किसी को नही बख्शता था . दोनो ही घोडो पर सवार थे, औरते तो उन्हे देखते ही रोने लगी तथा जिन गहनो को उन्हे दिखाने मे दिलचस्पी थी उन्ही को अब छुपाने की जगहे ढूंढी जाने लगी . मर्द जो अब तक महात्मा जी के प्रवचनो मे लीन कलियुगी संसार और मोहमाया से विरक्ति की बाते कर रहे थे अचानक से ही उन्हे अपने तिजोरी मे रखे धन की चिंता सताने लगी . ठेलुआ और मथेलुआ प्रवचन सुनते सुनते कब गहरी नीद्रा मे लीन  हो गये उन्हे कुछ पता ही नही चला ,महात्मा जी लोगो से धैर्य रखने की अपील कर रहे थे . आंधी और तूफान ने मंडप मे प्रवेश करते ही अपने बाहुबल दिखाना शुरु कर दिया उन्होने हवा मे कुछ गोलिया दागते हुए सभा मे भय का माहौल बना दिया भयभीत औरते स्वतः ही अपने अपने गहने उनके चरणो मे अर्पित करते जा रही थी जिससे उनके प्राण उनके पास बचे रहे .

बंदूक की आवाज सुनकर ठेलुआ और मथेलुआ दोनो की नींद खुल जाती है , दोनो अपने सामने डाकुओ को पाकर भयभीत हो जाते है तथा भय से अचानक ही तंबू की रस्सी उनके हाथ से खींच जाती है और आंधी और तूफान के उपर एक बड़ा हिस्सा आ गिरता है जिससे दोनो ही मूर्च्छित हो जाते है . ग्रामवासियो द्वारा तत्काल ही पुलिस को सूचित किया जाता है . अगले ही दिन से अखबारो मे ठेलुआ और मथेलुआ छा जाते है , सरकार से डाकुओ के सिर् पर रखा इनाम भी उन्हे प्राप्त होता है और तो और महात्मा जी उनको अपना शिष्य बना लेते है . गाँव की औरते जो अब तक उनकी बुराई करते नही थकती थी अपने – अपने गहने पाकर ठेलुआ – और मथेलुआ के लम्बी उम्र की कामना करती है . दोनो के घर वाले भी अब दोनो को नित्य नये पकवान बनाकर खिलाने लगते है . वैसे इन दोनो के स्वभाव मे कोई परिवर्तन अब भी नही आया था .आज भी दोनो पूर्व की भांति ही ज्ञानी थे. राजा और रानियो के साथ ही दोनो के दिन की शुरुआत होती थी ये अलग बात है राजा और रानी कभी चिडि के होते थे और कभी हुकुम के पर इनके आज तक नही हुए . शायद किसी ने ठीक ही कहा है ” अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान “

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 मोदी की घटती लोकप्रियता 


कर्नाटका चुनाव के बाद सरकार  बनाने के लिए होने वाली जी तोड़ कोशिश करने के बाद भी बीजेपी सदन में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई जिस तोड़ - फोड़ की राजनीति के लिए वह जानी जाती है उसमे कही न कही फेल हो गई।  हालांकि बीजेपी ने राज्य में सबसे ज्यादा सीट जितने में कामयाबी जरूर हासिल की थी  परन्तु स्पष्ट बहुमत से बस चंद कदम दूर रह गई।

अगर स्पष्ट शब्दों में कहा जाये तो राज्यों में पूर्ण बहुमत ना मिलना कहीं ना कहीं मोदी सरकार की घटती लोकप्रियता का संकेत देती है , कर्नाटका में तो सत्ता विरोधी रुझान भी थे तभी तो जेडीएस भी सीटे निकालने में कामयाब रही। अगर कहा जाये की मोदी विरोधी रुझान इधर कुछ महीनो से बनना शुरू हुए है तो ज्यादा उचित होगा , इसको समझने के  लिए हमको कुछ तथ्यों पर बेबाक रूप से चर्चा करनी होगी। 

कांग्रेस अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के बाद से लगातार 10 सालो से सत्ता में बनी हुई थी , जाहिर है सत्ता विरोधी रुझान होगा ही दूसरी बात कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के लिए कार्य तो कुछ नहीं क्या परन्तु उनको इस झूठे दिलासे में अवश्य रखा की उनका हित कांग्रेस पार्टी तक ही है , प्रदेश स्तर पर यही कार्य सपा और बसपा ने भी किया जिसमे बाजी मारी अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने।
विकास से कही दूर उत्तर प्रदेश जैसो राज्यों में भी जनता ने क्रांतिकारी तरीके से वोट किया। कारण मुजफ्फरपुर जैसे दंगो ने ध्रुवीकरण की ऐसी राजनीतिक शुरुआत की जो आज भी थमने का नाम नहीं ले रही। वस्तुए और विचार जब नए होते है तब वे लोगो को ज्यादा प्रभावित करते है लोग जबतक उनकी असलियत समझते है तबतक वह उनके हाथ से निकल चुका होता है। 

भारत की राजनीति में भी यही हुआ एक ओर कांग्रेस पार्टी में नित नए घोटालो की पोटली खुलती जाती थी और जनता का आक्रोश अपने परवान चढ़ते जाता दूसरी ओर ध्रुवीकरण की नकारात्मक राजनीति समाज को बांटते हुए अपने - अपने पार्टियों के वोट बैंक मजबूत करती। बीजेपी ऐसे समय में खुल कर सामने आती है और अपने आपको सच्चा हिंदूवादी पार्टी घोषित करती है क्योंकि उसे पता था अल्पसंख्यक वोट उसे कभी मिलने वाला नहीं , वह गोरक्षा , भगवा हिंदुत्ववादी मुद्दों पर अपनी राय बेहिचक रखती है जनता के लिए यह एक तरह से नई  राजनीति थी क्योंकि अभी तक सारी पार्टियों जिन मुद्दों पर चर्चा मात्र से डरती थी  बीजेपी उन मुद्दों पर काम की और खुलकर बातें करने लगी
जैसे धारा 370 , पाकिस्तान और चीन के खिलाफ जोशीले भाषण, हिंदुत्व , हर साल दो करोड़ युवाओ को रोजगार ,राष्ट्रभक्ति ,सरहद पर एक के बदले दस सिर काटकर लाना ,अल्पसंख्यकों के खिलाफ बातें, किसानो की आय दुगनी करने के सपने , बुलेट ट्रेन , स्मार्ट सिटी , स्विस बैंक, काला धन , गरीबी हटाओ , पेट्रोल के दाम ,स्वच्छ गंगा मिशन ऐसे ही बातों की बड़ी लम्बी चौड़ी अनुक्रमणिका  है. और इसके साथ ही बीजेपी ने कुछ नारे भी प्रचलित करवाए जैसे सबका साथ सबका विकास , अबकी बार मोदी सरकार , हर - हर मोदी घर - घर मोदी, प्रधान सेवक  इत्यादि। 

शुरूआती दौर में जनता ने सरकार बनवाने से लेकर सरकार बनने के बाद लिए गए हर निर्णयों में मोदी सरकार का साथ दिया चाहे वो नोटबंदी हो या जीएसटी  या फिर एफडीआइ जनता को लगा की सरकार को कुछ समय अवश्य देना चाहिए परन्तु समय बीतने के साथ ही सम्पूर्ण कथानक की विषयवस्तु उसे समझ में आने लगी उसे समझ में आने   लगा की असली परेशानी उसके मुस्लिम भाइयो से बैर नहीं बल्कि इस बैर को आगामी चुनावों में एक बार फिर मुद्दा बनाने वालो से है। इन चार सालो में सरकार की यदि कोई उपलब्धि रही है तो कांग्रेस राज में बनने वाले आधार कार्ड को बैंक से लेकर सिम कार्ड , पैन कार्ड , गैस पासबुक , ड्राइविंग लाइसेंस , इत्यादि से लिंक करने की रही है। कुछ कार्य सरकार ने बैंकिंग सेक्टर में भी किये है जैसे कितनी बार पैसा निकालना है कितनी बार जमा करना है , खाते में निर्धारित राशि से कम होने पर लगने वाला अर्थ दंड कितना होना चाहिए इत्यादि। 

मोदी सरकार में गरीब और गरीब होते गया और अमीर और अमीर होते गया अब इसके बारे में विस्तार से कभी फिर चर्चा होगी की कैसे। परन्तु यहाँ यह समझना आवश्यक है की सरकार का कोई भी वास्तविक एजेंडा आजतक लोगो के समझ में नहीं आया भले ही सरकार ने इसपर प्रचार स्वरुप कई हजार करोड़ क्यों न खर्च कर दिए।
लेकिन एक बात अब धीरे धीरे लोगो के समझ में आने लगी है की सरकार का भी एजेंडा विकासवादी नहीं है वरन विकास सरकार द्वारा नियंत्रित और स्वार्थी मीडिया तक ही सीमित है। बाकि मोदी सरकार ने अपने पूर्व कथित वादों में कितनो को पूरा किया और जिन राज्यों में उसकी सरकार है क्या आने वाले दिनों में वो भी पंजाब की तरह ही हाथ से निकल जायेंगे। देखना दिलचस्प होगा क्योंकि अभी तक जिन राज्यों में चुनाव हुए है वहा  पूर्व में अन्य सरकारे  थी।  वैसे उप चुनावों में होने वाली हार ख़ास तौर पर गोरखपुर और फूलपुर  इशारा तो मोदी क्षरण का ही करते है।  



  


tu sabr to kar



तू सब्र तो कर 



ये रात भी कट जाएगी 
ये गम भी मिट जाएगा  
ये धुंध भी छट जाएगी 
ये अँधेरा भी हट  जायेगा 
                           तू सब्र तो कर 

ये दिल भी लग जायेगा 
ये धड़कने भी चल जाएँगी 
ये मौसम भी बदल जायेगा 
ये मन भी मुस्कुराएगा 
                         तू सब्र तो कर 

ये दुनिया भी देखेगी 
ये लोग भी देखेंगे 
तेरे अपने भी देखेंगे 
तेरे दुश्मन भी देखेंगे 
                               तू सब्र तो कर 

तेरे रब का साथ रहेगा 
किसी अपने का हाथ रहेगा 
ये किस्मत भी तेरी रहेगी 
ये तेरा खुद का विश्वास रहेगा 
                                     तू सब्र तो कर 


ऐसा ही एक दिन मेरा भी आएगा 

ऐसा ही एक दिन तेरा भी आएगा 

                              
                                            तू सब्र तो कर 

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खामोश लब 

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कर्नाटक चुनाव

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आज की बात कर्नाटक के साथ शुरु करते है जहां सारे राजनीतिक दल अटक से गये है . जनता का विश्वास अगर सबसे ज्यादा चुनावो के बाद अगर किसी पर है तो वो है अमित शाह . हर तरह की राजनीति मे भाजपा के लिये क़िला फतह करके लाने वाले अमित शाह के दिमाग मे कर्नाटक चुनावो के बाद सरकार बनाने के लिये क्या चल रहा है अभी कोई नही जानता लेकिन सब इतना जरूर जानते है की इस खेल का उनसे बड़ा महारथी  कोई नही है . फिलहाल एक बात जो स्पष्ट है वो ये है की कर्नाटक चुनाव मे जनता ने किसी एक पार्टी को निस्चित तौर पर बहुमत नही दिया है भले ही अधूरे बहुमत मे कोई पार्टी सबसे ज्यादा सीटे लाई हो .


कहते है की प्यार और जंग मे सब जायज है शायद भाजपा ने अपने लिये ही इस फार्मूले का जन्म माना है . मौजूदा राजनीतिक हालत मे कांग्रेस और जेडीएस के सरकार बनाने के प्रबल आसर है . भाजपा को इसके लिये विपक्षी कुनबे मे तोड़फोड़ की आवश्यकता पड़ेगी इसके लिये विपक्षी खेमा सतर्क है की उसके सिपाही कही ज्यादा वेतन के लालच मे अपनी निष्ठा का त्याग करते हुए भाजपा के साथ ना चले जाये .

खैर देखना दिलचस्प होगा की कर्नाटक मे किसकी सरकार बनती है . क्योंकि गोआ की हार कांग्रेस अभी भूली नही है और इस बार मदर्स डे के अवसर पर कमान भी सोनिया गाँधी ने संभाल ली है .

वैसे   भाजपा की प्रत्येक जीत के पीछे राहुल गाँधी का हाथ जरूर है क्योंकि भाजपा का नारा ही यही है आप का हाथ हमारा विकास . आज बहुत सी बातें या बातों का तरीका कई लोगो को नागवार लग सकता है लेकिन यह इतना भी नही जितना चुनावो के दौरान एक दूसरे के लिये प्रयुक्त होनी वाली मधुर भाषा .
वैसे इन दिनो एक कहावत चलन मे ज्यादा ही है , चीते की चाल , बाज की नजर और अमित भई शाह पर शक नही करते .

indian media


भारतीय मीडिया 


भारतीय राजनीति के मौजूदा हालत में विकास कही पीछे छुटते जा रहा है , मीडिया भी जनता के मुलभुत मुद्दों सड़क ,पानी , बिजली, स्वास्थ , शिक्षा और कानून व्यवस्था की जमीनी हकीकत न दिखते हुए उन्ही खबरों को दिखाने में लगी  जिससे उसके चैनल की टीआरपी बढ़ सके क्या आने वाले दिनों में मीडिया द्वारा दिखाई गई खबरे खास तौर पर राजनीतिक मुद्दों पर आधारित कार्यक्रम अपनी प्रासंगगिकता खो बैठेंगे और मीडिया स्वार्थ सिद्धि हेतु  सम्पूर्ण रूप से राजनीतिक प्रभाव में आ जायेगा .

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मीडिया एक राजनीतिक मुहीम का हिस्सा हो गई है , मैंने न्यूज़ चैनलों पर होने वाली डिबेट की प्रासंगिकता के विषय में विस्तार से चर्चा की थी और बतलाया था की ऐसे डिबेट पूर्व प्रायोजित होते है।  इनमे पूर्व में सब निर्धारित रहता है , वैसे देखा जाये तो धीरे - धीरे जनता भी इस बात को समझने लगी है। मैंने ऊपर की पांच  लाइने एक चैनल से पूछी थी जवाब अभी तक मिला नहीं। 


भारतीय मीडिया आज विश्व मंच पर अपनी पहचान राजनीतिक चाटुकारिता के रूप में बनाती जा रही है। दिल्ली और नोएडा जैसे शहरो में प्लॉट आवंटन खुद के लिए अन्य सरकारी सुविधाएं और राजनीतिक सौदेबाजी मीडिया की प्रमुख पहचान है।  निचले स्तर पर भी पत्रकारिता मात्र थानों से लेकर विभिन्न सरकारी विभागों में दलाली का साधन बनकर रह गई है। ऐसे में निष्पक्ष पत्रकारिता कहाँ  रह जाती है जो थोड़े बहुत मीडिया कर्मी अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबा नहीं पाते उनको राजनीतिक द्धेष का शिकार होना पड़ता है तथा  सरकारी तंत्र द्वारा उन्हें अनेको माध्यम से प्रताड़ित किया जाता है। 

बाकि अक्सर चैनलों पर छाये रहने वाले पत्रकारों की अगर संपत्ति की जाँच हो जाये तो सारी हकीकत जनता के सामने आ जाएगी परन्तु ऐसा कभी संभव नहीं। यह एक बहुत आवश्यक कदम है की मीडिया से जुड़े उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की संपत्ति की निष्पक्ष रूप से जांच की जाये क्योंकि लोकतंत्र में कोई भी संविधान और जनता  से बढ़कर नहीं होता। 


लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया आज बड़े बड़े उद्योग समूहों द्वारा संचालित किया जा रहा है। ऐसे में सरकार पर दबाव बनाने में और सरकार को खुश करने में मीडिया का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। 

कई खबरे तो ऐसी है जो सोशल मीडिया पर बहुतायत में प्रसारित होने पर भी मीडिया में नहीं दिखाया जाता। 
सोशल मीडिया को भी आजकल नियंत्रित करने के लिए विभिन्न राजनीतिक समूह प्रयासरत है। इस कार्य में इनके द्वारा संचालित आईटी सेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 

वैसे मीडिया की हकीकत अब जनता भी बखूबी समझने लगी है , अगर ऐसे ही चलता रहा तो चैनलों पर दिखाए जाने वाले सास - बहु के कार्यक्रम और समाचार एक ही श्रेणी में आ जायेंगे जिनमे सिवा नौटंकी के और खबरों को तोड़ मरोड़ के दिखने के सिवा कुछ और नहीं होता। 


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त्रिशा और विजय भोजन समाप्त करने के पश्चात होटल के बगीचे में घूमने निकलते है।  बहुत ही सुन्दर नजारा था वो रंग बिरंगे फव्वारे , करीने से लगे अनेको सुन्दर पुष्प वाले पौधे , मखमली घास और चांदनी रात में हलके कोहरे की बरसात मन मोहने के लिए पर्याप्त थी ।


 त्रिशा  - पता है विजय जी आज से ठीक ३० साल पहले मां और पापा की भी मुलाकात भी इसी कोल्हापुर में हुई  थी। माँ यहाँ अपनी छुट्टियां बिताने आई थी और पापा दादा जी के साथ फैक्ट्री के काम से।
यही पर इसी होटल में माँ ठहरी हुई थी और पापा भी।

विजय - एक बात कहे त्रिशा जी आपकी माँ बहुत ही सुन्दर रही होंगी।
त्रिशा - हाँ पर आपको कैसे पता।
विजय (मुस्कुराकर) - क्योंकि आपके पिता जी को देखकर लगता है की आप भी अपनी माँ पर ही गई होंगी।
त्रिशा भी (मुस्कुराते हुए ) - तो इसे मैं क्या समझू अपनी तारीफ या पिता जी की बुराई।
विजय (झेपते हुए ) - नहीं मेरा कहने का  मतलब वो नहीं था....
त्रिशा बीच में ही बात काटते हुए - अच्छा तो क्या मतलब था आपका।

विजय बात को सँभालते हुए  - जी आपके पिता जी का ह्रदय तो बहुत ही विशाल है उनके विषय में कुछ भी अनुचित कैसे कह सकता हूँ , और आप तो साक्षात् देवी है।

त्रिशा - चलिए कोई बात नहीं .

चांदनी रात थी उस पर था तेरे जुल्फों का घना अँधेरा 

फिसलते कैसे नहीं हम तेरे प्यार में 
जब सामने हो दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा 


दोनों देर रात एक दूसरे से बातें करते हुए होटल के कई चक्कर लगा लेते है , इन्ही बातों के सिलसिले आगे चलकर कब मुहब्बत में बदल जाते है दोनों को पता ही नहीं चलता , अभी तो बस शुरुआत थी। ........ 

आगे आगे देखिये इस इश्क में होता है क्या 
दीदार -ए - मुहब्बत में रात भर कोई सोता है क्या 

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