Issq ki dahlij

 इश्क की दहलीज





भाषा नैनो की जिनको आती है

बिन चीनी की , चाय भी उन्हें भाती है 


मिलते हैं ऐसे हर गलियों में 

जैसे भंवरे हैं हर कलियों में 


कुछ सीधे से दिखते कुछ सादे हैं 

अपनी मां के वे शहजादे हैं 


इश्क की एबीसीडी जो पढ़ने जाते हैं 

पकड़े डैडी तो , चाय की अदरक बन जाते हैं 


पूछे हैं प्रभु , मंदिरों में दर्शन किसके पाते हो 

सामने हमें छोड़, बगल में देख मुस्काते हो 


जो लाए थे फूल गुलाब का ,हमारे लिए 

सच-सच बताना अर्पित किस , देवी को किए 


मिटा देते हैं जो, प्यार के हर सबूतों को 

देख पापा के, बाटा वाले जूतो को 


ऐसे अजूबे ही , कटी पतंगों के लुटेरे है 

बाहर से सरल ,अंदर से छुछेरे हैं 


बड़ी रोचक सी इनकी  कहानी है 

बस यहीं से शुरू , इनकी जवानी है

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