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जाति क्यों नहीं जाती


ज़िन्दा थे तो बे बेनूर थे और मारके कोहिनूर बना दिया हुक्मराणो ने रायजी. . सब तो चले गये जहाँन से पर स्वर्ग मे दरबारियों ने जाति ना पुच्छी .


अंग्रेजो को जब लग गया की भारत मे रहना अब उनके बस की बात नही है और व़े अधिक दिनो तक अपना नियंत्रण नही बनाये रख सकते तो उन्होने सामरिक महत्व की इस धरती को बांटने का फैसला किया . भारत की जनता से बड़ा और ताकतवर विरोधी उसके सामने कोई नही था . उन्होने उसमे सेध लगाने के लिये अपने अधिकरिओ से रिपोर्ट मांगी उन्होने बताया की धर्म ही ऐसा एक मुद्दा है जो की भारतीय समाज की जडो मे गहराई तक विद्यमान है. यहाँ के लोग धर्म गुरुओ की बातों पर आंख मूंद कर विस्वास करते है . डाक्टरो से ज्यादा भीड़ ओझओ और सोखाओ के पास रहती है .


पर यहाँ जातियॉ मे कोई वैमनस्य नही है सबके कार्य क्षेत्र बंटे हुए है और सब अपना त्योहार मिलजुल कर मानते है . यहाँ दरगाहो पे हिन्दू और मुस्लिम दोनो ही सजदे मे सिर् झुकते है. एक दूसरे की शादियों से लेकर गांवो मे पड़ने वाले हर सामूहिक समारोहो मे भी भाग लेते है .


 अंगेरेजो ने अपना पूरा शोध करने के बाद पाया की केवल धर्म ही ऐसा मुद्दा है जिससे इनमे फुट डाला जा सकता है . उस समय संचार के साधन नही के बराबर होते थे. पत्रकारिता व्यापार ना होकर समाज सेवा का माध्यम थी जिसे अनुदान द्वारा संचालित किया जाता था . उस पर भी अंग्रेज़ी सरकार द्वारा कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये जाते थे. जिनसे समाचर पात्रो का चोरी – चुपके संचालन होता था . 

लोग भी शिक्षित नही होते थे गाँव मे कोई एक ही ऐसा आदमी होता था जो अखबार पढ पाता था इस करण सब लोग एक जगह इकट्ठा होकर समाचर सुना करते थे और उस पर चर्चा किया करते थे . ग़ुलाम भारत केवल अंग्रेजो का ग़ुलाम था ना की अपनी घृणित मानसिकता का . 


अग्रेजो ने भारतीयो की धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वासो का भरपूर फायदा उठाया और उनमे फुट डालने मे कामयाब हो गये जाते जाते उन्होने दुनिया मे अहिंसा के जनक गाँधी के भारत मे ऐसी हिंसा को जन्म दिया जिसने सम्पूर्ण मानवता को शर्मशार कर दिया . अंग्रेजो द्वारा बोयो गये इस बीज को भारतीय राजनेताओ ने अपने अपने तरीके से सींचा और उसकी अनेको नई प्रजातियाँ तैयार की किसी ने दलित का पौधा बनाया तो किसी ने सवर्ण का तो किसी ने पिछड़ी का ,

हिन्दू और मुसलमान का तो विशालकाय वृक्ष ही खड़ा कर दिया , और हम कहते है ” एक भारत अखंड भारत "


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Pappu paas ho gaya


पप्पू पास हो गया - pappu paas ho gaya 



मैं  और पप्पू बचपन से ही एक साथ स्कूल मे  साथ - साथ पढ़ते आये थे , शुरुआत मे जब पप्पू चौथी कक्षा का विद्यार्थी था  तभी मैने  विद्यालय मे दाखिला लिया था . मेरे चौथी कक्षा मे आने तक पप्पू ने मेरा इंतजार बड़ी बेसब्री से किया था . हालांकि पप्पू के एक दो सब्जेक्ट को छोड़ कर बाकी सबमे 0 नंबर ही थे . पर पप्पू हार मानने
pappu
pappu
वालो मे से नही था, हर बार कम नंबर आने के बाद वो कड़ी साधना मे जुट जाता था . पर  साधना करने के लिये उसे अपना घर उपुक्त नही लगता इसलिये वो अपने मामा के घर शिमला  या मौसी के पास  मसूरी चला जाता था. 

पप्पू जब लौट के वापस आता तो उसकी साधना उसके चेहरे से सॉफ झलकती थी , हाँ  तो मुझे याद है की जब मैं कक्षा चार मे पहुँचा तो सरकार की तरफ से एक नई शिक्षा नीति आ गई की आठवीं तक के किसी विद्यार्थी को फेल नही किया जायेगा, मैं बड़ा प्रसन्न हुआ , मुझे लगा की जरूर पप्पू की साधना का फल है जो भगवान के साथ सरकार ने भी सून ली .

अब तो में भी पप्पू का मुरीद हो गया और पप्पू के साथ अपनी घनिष्टता बढ़ा ली . पप्पू अपने लंच बॉक्स मे हमेशा मूली के परांठे और मिर्चे का आचार लाया करता था . वो कहता था की मिर्च से गला सॉफ होता है और मूली से पेट . अक्सर लंच के बाद पूरी कक्षा के विद्यार्थी अपने नाक पे रूमाल लगा लिया करते थे शायद कही से विषैली गैस का  रिसाव होने लगता .

आठवी कक्षा के बाद नौवी कक्षा मे अचानक से पप्पू के अंदर प्रवचन देने की प्रवित्ति उतपन्न हो गई मुझे लगा शायद मिर्चे ने पप्पू का गला कुछ ज्यादा ही सुरीला बना दिया था , कई बार क्लास की लड़कियां कन्फ्यूज हो जाती . पर पप्पू के प्रवचन मे आंकड़े अक्सर ही इधर से उधर हो जाया करते थे कभी अकबर  की रानी एलीजाबेथ हो जाती तो कभी पप्पू बाबर का युद्ध सम्राट अशोक से करा देता.

पर इन सबमे पप्पू का कोई दोष नही था सब गलती किताबो की ही थी जिनमे इतने रानी राजाओ का जिक्र था , इसी से खिसिया के एक बार तो पप्पू ने  किताब ही फाड़ दी  जबकि अगले दिन उसी विषय की परीक्षा थी .बेचारा पप्पू किताब की वजह से  फिर फेल हो गया और मैं पास होके अगली कक्षा मे पहुंच गया ,उसके बाद तो कभी - कभी ही पप्पू से मुलाकात हो पाती थी. पर पप्पू के चर्चे जरूर सुनने को मिलते थे , समय का पहिया चलते गया और  पढ़ाई पूरी करने के बाद  आम आदमी की तरह मैं भी  नौकरी मे लग गया. पर पप्पू ने उसी विद्यालय मे ही मन लगा लिया था .
इधर कुछ दिनो से पप्पू का ज़िक्र अचानक ही  बढ गया  था , कई लोगो ने बताया की पप्पू अपने अमेरिका वाले फूफा के यहाँ गया था वहा उन्होने अनेक विद्वान लोगो से उसकी मुलाकात कराई पप्पू से बहुत से प्रवचन दिलवाये जिससे पप्पू वहा अपना झंडा गाड़ के आया है. यहाँ आने पे पप्पू मे फिर से नई उर्जा झलकने लगी थी और इस बार पप्पू ने बिहार से फार्म भरकर हाइ स्कूल की  परीक्षा न केवल  पास कर ली  बल्कि पूरा बिहार ही  टॉप कर दिया . 
  
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Ab to achhe din dikhla do sarkar

अच्छे दिनों की आस में 


बड़ी मुश्किल से एक एक रुपया जोड़कर 4 जी मोबाइल के लिये पैसा जमा किया था मोदी सरकार ने वो भी तोड़ दिया , लगा क‍ि अच्छे दिन की तरह 4 जी मोबाइल के लिये अभी कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा , दिन भर टी वी पर सिर खपाने के बाद निष्कर्ष निकला क‍ि बजट कुछ समझ में नहीं आया , आखिर सरकार ने आम आदमी को राहत दिया है या हमेशा की तरह देश की जीडीपी की दुहाई देकर उसकी बैंड बजाई है।

 सरकार से निवेदन है क‍ि कभी कभी धरातल पे उतरके आम इंसानों की जिंदगी की जीडीपी भी समझ लिया करो। कभी कभी तो लगता है क‍ि सरकार, सरकार ना होकर एक फाइनेंशियल इन्स्टिट्यूट होकर रह गई है जिसका काम बस लोगों का खाता खुलवाने से लेकर बीमा करने तक रह गया है ए बिल्कुल वैसा ही है जैसे मुर्गी को दाना डालकर हलाल करना . गरीब आदमी जिसका मुफ्त मे खाता खुलवा कर सब्सिडी के कुछ पैसे डालकर फिर उन्ही पैसो को बैंक द्वारा मिनिमम बॅलेन्स के नाम पे काट लिया जाता है।

 ऐसा करके लगभग 1700 करोड़ रुपया बांको द्वारा गरीबो से वसूला गया. समझाने के लिये इतना ही काफी है गरीब को सब्सिडी का पैसा पाने के लिये बैंक मे खाता खुलवाना और उसे आधार से लिंक करना आवश्यक है ये उसकी मजबूरी है , अगर उसके पास मिनिमम बॅलेन्स इतना भी पैसा नही है तो क्यो नही उसका खाता बंद करके उसको पूर्व की भांती सब्सिडी जारी रखी जाये , और उससे भुगतान के समय ही राहत प्रदान की जाये . अगर उसके पास इतना ही पैसा रहता तो वो गरीब ही क्यो कहलाता . 

pakoura
pakoura 

हाँ तो आते है अब बजट पे तो इस बार सरकार कहा पीछे रहने वाली थी , बीमा दिया इन्होने…. किसानो को , स्वास्थ्य का भी बीमा दिया . पर उसके लिये तो बीमार पड़ना पड़ेगा इनके टर्म एंड कंडीशन मानने पडेंगे . सेस को बढ़ा दिया जिससे विभिन्न प्रकार की शिक्षा और स्वास्थ्य बिलों के दाम बढ़ेंगे समझ में नही आता एक देश एक टैक्स का नारा कहा गया . कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई . जेटली जी के विषय मे एक बात कहना चाहूंगा क्या वकालत के सिवा उन्हे अर्थशास्त्र मे भी महारत हासिल है .

 सुब्रमण्यम स्वामी ने शुरु मे ही इनकी काबलियत जग जाहिर कर दी थी पर अपनी राजनीतिक कुशलता से जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी इस देश के वित्तमंत्री है . मीडिया से भी अनुरोध है क‍ि वो केवल चुनाव के समय ही नही बल्कि अपनी दैनिक रिपोर्टिंग में सरकार की विभिन्न योजनाओं की जमीनी स्तर पे निष्पक्ष भाव से विवेचना करे . ताकि हम भी जान सकें क‍ि सरकार अपने चुनावी वादों में कितनी खरी उतरी है. फिलहाल इस आम बजट में कोई भी ऐसी चीज नहीं है जिससे आम जनता, और निचले तबके के लोग राहत महसूस कर सकें..


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