घर के मंदिर में भगवान श्रीराम की भक्ति भाव से भरे दादा जी ने श्री रामचरितमानस खोलते हुए अपने ७ साल के पोते से पूछा, '' पोते, बताओ तो तुलसी दास जी के बचपन का नाम क्या था ?''
छोटे पर्दे पर रामानंद सागर कृत रामायण ने सदियों से चली आ रही उसी आस्था को सदृश्य रूप से उतारा था. उसके एक-एक किरदार को लोग सच मान बैठे थे. अभिनय करने वाले खुद राम रस में ऐसे डूबे की किसी ने आजीवन शाकाहार अपना लिया तो कोई आध्यात्म जगत में पूरी तरह उतर आया. जिसने भी श्री रामचरितमानस पढ़ी थी उन्होंने रामायण सीरियल में पूर्ण रूप से उसे सजीव होते देखा। धारावाहिक के प्रसारण काल में बिजली विभाग की हिम्मत नहीं होती की वह चंद सेकेंड के लिए भी विद्युत की कटौती कर सके. प्रसारण काल में जहाँ सड़कों पर सन्नाटा छा जाता तो मुहल्ले में किसी एक घर में टेलीविजन होने पर किसी सिनेमाहाल सा अहसास होता। उस वक्त की जीवटता केवल उस दौर के लोग ही समझ सकते हैं. बाकी भगवान् श्रीराम तो छोड़िये मात्र रामानंद कृत धारावाहिक 'रामायण' की आस्था से जुड़े इतने रोचक प्रसंग हैं की उनपर कई किताबें लिखी जा सकती हैं.