Gandhi is a seductive surname



गाँधी एक बहकावे वाला उपनाम - 



महात्मा गाँधी जैसी शख्शियत के उपनाम से प्रसिद्ध गाँधी शब्द आज राजनीति में बेहद ही मजबूत शब्द माना जाता है।  यहाँ बात केवल शब्द की है नाकि इसको लगाने वाले शख्श  की । लोग अक्सर ही आपके उपनाम को गंभीरता से लेते है , यही उपनाम आपकी पहचान का मूलस्त्रोत होता है।  कभी -  कभी यह उपनाम जातिगत और क्षेत्रगत बंधनो से ऊपर उठता हुआ राष्ट्रिय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करता है । ऐसा ही करिश्मा मोहनदास करमचंद्र  " गाँधी  "  ने किया था ।

 Gandhi is a seductive surname

देश की आजादी में अपना योगदान देने वाले गांधी के प्रति तत्कालीन भारतीय समाज का बड़ा वर्ग अत्यंत ही संवेदनशील था और उसकी नजरो में महात्मा गांधी एक देवतुल्य पुरुष थे। 

नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और गाँधी उनकी वैशाखी । इंदिरा गाँधी द्वारा फिरोज खान के साथ प्रेम विवाह करने पर जवाहरलाल नेहरू को अपना और अपने परिवार का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में दिखाई पड़ा उन्होंने फिरोज खान  के " खान "   को हटाकर गांधी कर दिया जिससे इंदिरा खान ना होकर इंदिरा गांधी के नाम से पहचानी जाये।  
 Gandhi is a seductive surname

वैसे इस बारे में यह भी कहा जाता है की गांधी जी ने फिरोज खान को अपना दत्तक पुत्र माना था परन्तु इस प्रकार के तथ्यों की पुष्टि नहीं की जा सकती। फिरोज खान वैसे तो पारसी थे परन्तु  उनका खान उपनाम प्रथम दृष्टया मुस्लिम प्रतीत होता और तत्कालीन समय में संचार क्रांति के इतने प्रगतिशील ना होने की वजह से आम जनता प्रथम दृष्टि को ही सत्य मान बैठती । इस प्रकार भारतीय इतिहास पुरुष महात्मा गाँधी के उपनाम का अधिग्रहण  बहुत ही सफाई पूर्वक नेहरू - खान परिवारों द्वारा कर लिया गया और भारतीय जनता के विश्वास का भी । इस प्रकार नेहरू - खान परिवार नेहरू - गांधी  परिवार के नाम से जाना जाने लगा। 


इंदिरा गाँधी ने नेहरू की विरासत को आगे बढ़ाया और उपनाम लगाया  "गांधी " का । सत्ता का केन्द्रीकरण करने की शुरुआत इंदिरा गांधी के शासन से शुरू हुई । राजीव गाँधी और फिर वर्तमान में राहुल गाँधी खुद से ज्यादा  इसी नेहरू - गाँधी खानदान के वंशज के तौर पर जाने जाते है। अभी जाति  सम्बंधित एक विवाद पर राहुल ने अपने गोत्र की पुष्टि भी की थी । परन्तु यह उतना ही आश्चर्य जनक है की  "खान "  उपनाम के साथ ही  फिरोज खान भी वक़्त की आंधी में कहीं सिर्फ इसलिए खो गए है की उनका उपनाम खान था , जो की नेहरू के वंशजो और भारतीय राजनीति दोनों के अनुकूल नहीं था। उपनाम की महत्ता इससे ज्यादा कहीं और नहीं देखी जा सकती। 


अब बात असली गांधी के हक़दारो की तो जैसा की सब जानते है उनके चार बेटे थे , हरिलाल , मनीलाल , रामदास और देवदास परन्तु महात्मा गाँधी ने कभी उन्हें राजनीति में स्थापित करने की कोशिश नहीं की।  वैसे तो आज महात्मा गाँधी की वंशवृक्ष बेहद विशाल है परन्तु किसी ने भी उनके गांधी उपनाम और राजनीतिक विरासत पर दावा नहीं किया।  जैसा की नकली उपनाम वाले करते है। 



modi

मोदी 

सच कहूं तो मैं एक आम भारतीय की तरह कांग्रेस से काफी निराश हो चुका था। मैं भाजपा को भी पूरी तरह सही नहीं मानता था। तभी अरविंद केजरीवाल आये लगा बंदा कुछ हट के है। फिर उनका पहला झूठ पकड़ा जब उन्होंने अपने बच्चो की कसम खाई और कभी कांग्रेस और बीजेपी का समर्थन ना लेने की बात कही। ईश्वर उनके बच्चो को दीर्घायु प्रदान करे। आम आदमी की तरह प्लेटफार्म पर सोने वाली फोटो खूब भाई, फिर उनकी तानाशाही देखने को मिली। जिन सबूतों से वह शीला सरकार पर कार्यवाही की बात करते थे अचानक ही वह गायब हो गए। झूठ पर झूठ और कुछ हद तक उनके देश के प्रति विचार रास नहीं आये।









मुझे कांग्रेस के इरादे नेक नहीं लगते , मुझे ये समझ नहीं आता की वंशवाद की ऐसी कौन सी मज़बूरी है की राजनीति के अनुकूल ना होते हुए भी कांग्रेस भारत जैसे विशाल देश के लिए राहुल गाँधी को अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने पर तुली हुई है । मनमोहन सिंह ने सोनिया गाँधी के हाथो की कठपुतली बनना क्यों मंजूर किया। हर देश विरोधी तत्वों का कांग्रेस का समर्थन स्वतः ही क्यों मिल जाता है । कांग्रेस के भ्रष्टाचार , हिन्दू और देश विरोधी रवैये से जनता घुट चुकी थी।








ऐसे में गुजरात से उठकर राष्ट्रिय पटल पर मोदी जी का उभार हुआ , जी इसलिए की अभी तक सम्मान बरकरार है क्योंकि राजनीति में व्यक्तित्व में कब बदलाव हो जाये पता नहीं । कुछ हिंदूवादी बातें हुई , मैं सांप्रदायिक नहीं हूँ परन्तु इस देश की अन्य पार्टियों द्वारा हिन्दुओ को अनदेखा किया गया। जैसे हमारे पूर्वजो ने छोटी जातियों को अनदेखा किया था। जिसका दर्द उनके सीने में अभी तक है , और हमारे संविधान ने उनकी इसी स्थिति का आंकलन करते हुए उन्हें आरक्षण प्रदान किया। हालांकि वर्तमान में मैं मैं आरक्षण दिए जाने का पक्षधर नहीं। उन्ही में से कुछ लोगो को मोदी ने सम्मान क्या दे दिया अन्य लोगो ने इसे चुनावी स्टंट बता दिया। चलिए यह काम आप भी सारे पार्टी के मुखिया राहुल से लेकर ममता तक से करवा लीजिये बात बराबर हो जाएगी ।



उनका स्वच्छता अभियान पहले मेरे लिए किसी महत्व का नहीं था मुझे लगा कुछ दिन बाद यह स्वतः ही चर्चा से गायब हो जायेगा जैसा आजतक भारत में होते आया है। परन्तु मैंने देखा धीरे - धीरे इसकी शाखाये विशाल होते जा रही है घर से लेकर बाहर तक लोगो की इस पर चर्चा जारी है , जहाँ तक मेरा मानना है कोई भी काम तब सफल है जब वह लोगो के जेहन में घर कर जाए ।


दरअसल 2014 के बाद मैंने देश के उन चेहरों को अपने असली रंग में आते देखा है जो उससे पहले फेयर एंड लवली लगा कर अपने असली चेहरे को ढके हुए थे। मैंने राहुल गांधी को सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करते देखा है। मैंने ममता बनर्जी को देश हित से पहले स्वयं की सत्ता बरक़रार रखने के लिए जमीर को बेचते देखा है। मैंने " भारत तेरे टुकड़े होंगे " जैसे नारे भारत की राजधानी और देश के सबसे बड़े शैक्षणिक संस्थान में सुने है। मैंने पकिस्तान के सेना प्रमुख से भारतीय मंत्री को गले मिलते देखा है । मैंने इमरान खान के लिए शांति के नोबल की पुकार सुनी है ।



मेरे लिए देश सर्वपरि है इसलिए मै " हमारा सिद्धांत है हम घर में घुस के मारेंगे " बार - बार सुनना और देखना चाहूंगा। मैं मोदी को वर्तमान राजनीति में सबसे श्रेष्ठ तब तक मानता रहूँगा जब तक वह ऐसे ही ईमानदार रहेंगे। तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार प्रधानमंत्री रहने के बाद भी उन पर एक रूपये का भ्रष्टाचार कोई सिद्ध नहीं कर सकता । वे देशहित के मुद्दों पर खुलकर बोलते और फैसले लेते है। वे कुशल राजनीतिज्ञ और कुशल वक्ता भी है । उन्होंने विश्व में भारत का मान और भारतीयों का अभिमान दोनों ही बढ़ाया है ।


लेखक  द्वारा  क्वोरा पर दिए गए एक जवाब से साभार - 

2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी के प्रति आपकी धारणा कैसे बदल गई है?

holi hai



होली है 

holi hai


रंग तेरा या रंग मेरा
इस उत्सव का एक ही प्रिये 
हूँ तैयार रंग दे मुझको  
प्रीत के इस रंग से प्रिये 

है वाणी में गुजिया की मिठास 

नशा भांग का तेरे पास 
अबकी होली कुछ ऐसे खेले 
रहे रंगो में जीवन की आस 

मधुरिम - मधुरिम  , मस्तम - मस्तम 

 रगो में चढ़ता होली का खुमार 
शिकवे ना याद करो अब कोई 
 उड़ेगा रंग 
फैलेगा प्यार 

कहीं छुप जाये  

जिसे बुलाये 
चाहे जितना नाच नचाये 
भीगेगी फिर से एक बार   
चुनर वाली देखो आज 



लेखक द्वारा क्वोरा पर दिए एक जवाब से साभार   

poor



गरीब 

                                       
poor
 
पैरो में चप्पल नहीं रहती  , तपति सड़को का एहसास होता है 
कभी कंकड़ तो कभी कांटो से  भी मुलाकात होता है। 

कड़ाके की सर्द रातों में खाली पेट नींद नहीं आती  
वो फटा कम्बल भी जब छोटा भाई खींच ले जाता है। 

वो फटा हुआ पैजामा  सिलने के बाद भी क्यों तन को ढँक नहीं पाता  है  
सबको देने के बाद  रोटी, माँ के हिस्से की क्यों घट जाती है। 

छप्पर से टपकती बारिश की बूंदो  में  मैं  , कागज की नाव चलाता हूँ  
और उन्ही नावों पर बैठकर कल्पना की  पतंग उडाता हूँ 

डरता हूँ आंधी  और तूफानो से , इसलिए नहीं की  डर लगता है 
छत मेरी कमजोर है , लम्बा ये सफर लगता है  

ढिबरी की रोशनी में बैठकर आसमान के  तारे गिन जाता हूँ 
रात को गोदामों के बाहर पड़े अनाजों को बिन लाता हूँ 

वो ऊँची ईमारत वाले घर में माँ मेरी पोंछा लगाती है 
मोटी सी वो औरत माँ को खूब सताती  है 

माँ कहती है सब अपना अपना नसीब है 
वे  बड़े लोग  शरीफ और हम छोटे लोग गरीब है 

मैं बोला माँ '  अब तक तेरी चाह थी अब मेरी चाह है 
गरीब पैदा होना नहीं गरीब मरना गुनाह है 

पढ़े बुढ़ापे पर एक मार्मिक कविता - बुढ़ापा 

Some Interesting Facts about Holi

होली के बारे में कुछ रोचक तथ्य  - 




फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाला होली का त्यौहार भारत और नेपाल दोनों ही जगहों में प्रमुखता से मनाया जाने वाला त्यौहार है । धुरखेल , धुरविन्दं और धूलखेड़ी इसके अन्य नाम है। इसके अतिरिक्त इसे बसंत महोत्सव और कान महोत्सव भी कहा जाता है। होली के दिन चन्दन और आम की मंझरी को मिलकर खाने का बड़ा महत्व  है।  होलिका और प्रह्लाद की कहानी के अतिरिक्त  कृष्ण और पूतना , ढुंढी तथा शिव की बारात के रूप में होली की कथाये प्रचलित है। माना जाता है की गणो का रूप धारण करके लोग शिव की बारात का हिस्सा बनते है।  इस दिन भांग पीने की भांग परंपरा से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। होली में रंगो के प्रयोग का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को जाता है। 

इतिहास में भी अकबर - जोधाबाई और जहांगीर - नूरजहां के साथ होली खेलने का विवरण मिलता है। दक्षिण भारत के विजयनगर में भी होली मनाने के प्रमाण मिले है।  हालाँकि दक्षिण भारत में होली की महत्ता उतनी नहीं है जितनी उत्तर भारत में।  इसी कारण दक्षिण भारत के अधिकांश सरकारी प्रतिष्ठान इस दिन खुले रहते है। 

बरसाना की विश्व प्रसिद्द लठ्मार होली -   


ऐसा माना जाता है की श्रीकृष्ण ने मथुरा के  बरसाना में ग्वालो के संग राधा तथा उनकी अन्य सहेलियों के साथ छेड़छाड़ की थी जिसके फलस्वरूप वहां के निवासियों ने उन लोगो की लट्ठ से धुलाई कर दी। इसका दूसरा पक्ष यह भी माना जाता है की श्रीकृष्ण हर साल राधा के साथ होली खेलने आते थे और राधा उन्हें बांस की बल्लियों ( डंडे )से  दौड़ाती थी।  उसके बाद से ही बरसाना और नन्द गांव में लठमार होली की परंपरा विकसित हो गई।  वहां का प्रसिद्ध राधा - रानी मंदिर के परिसर में इस प्रकार की होली का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है। बरसाना के अगले दिन नंदगांव में होली मनाई जाती है जहाँ बरसाना के पुरुष वहां की महिलाओ के साथ होली खेलने पहुँचते है और बदले में उन्हें रंगो के साथ लट्ठ मिलती है। 


कुमाउँनी बैठक होली


इसकी शुरुआत पौष माह के पहले रविवार से हो जाती है।  नैनीताल के अल्मोड़ा जिले में मनाई जाने वाली इस होली में रंगो के अतिरिक्त शास्त्रीय संगीत का रस भी लिया जाता है।  इसमें ख्याल , ठुमरी से लेकर लोक गीतों को गाने की परंपरा है। इसके साथ ही इसमें राजनीतिक और हास्य चर्चाये भी होती है।  इसकी शुरुआत कैसे हुई यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। 


नवसम्वत का आरम्भ  -  

होली के दिन पूर्णिमा होने की वजह से इस दिन  भारतीय नवसम्वत का आरम्भ होता है। इसी दिन मनु का जन्म भी हुआ था। होली के पर्व के बाद ही नए वर्ष का आरम्भ होता है। 

होलिका दहन  -           

माना जाता है की हिरणकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ होलिका  को अग्नि से किसी प्रकार की क्षति ना होने का वरदान प्राप्त था। जिस वजह से हिरणकश्यप ने अपनी बहन को प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठने को कहा।  प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ परन्तु होलिका उसी अग्नि में भष्म हो गई।  तभी से होलिका दहन  बुराई के खात्मे के प्रतीक स्वरुप होली से एक दिन पहले मनाया जाता है।  इसमें गोबर के छेद वाले उपले जलाने की प्रथा है। माना जाता है की एक साथ सात उपलों की माला से भाइयो की नजर उतारकर जलाने पर सारी बुरी बालाएं इसी अग्नि में समाहित हो जाती है। 


bhai sahab



भाई साहब 

bhai sahab


बचपन से ही भाई साहब का अस्पष्ट नजरिया हमेशा ही मुझे कुछ दुविधा में डाले रहता था । उधर  भाई साहब  इसके उलट  मुझे ही आरोपित किया करते थे । उनके अनुसार मैं लापरवाह और सामाजिकता की गहराई में डूबा हुआ ऎसा इंसान  था जिसने अपन बहुमूल्य समय इन्ही बेफजूल के  कार्यो में व्यर्थ कर दिया  । भाई साहब के लिए समय की परिभाषा अलग थी , अगर उन्हें मुझे समय देना पड़े तो उनकी व्यस्तता प्रधानमंत्री को भी मात दे देती है । यहाँ उनकी प्रेरणा स्त्रोत धर्मपत्नी की बात ना की जाये तो परिवार पुराण कुछ अधूरा सा लगता है । भाभी जी भी व्यस्तता में भाई साहब से कम ना थी, चादर बिछाने से लेकर टीवी का रिमोट ढूंढने तक ना जाने ऐसे कितने जटिल काम थे जो उनकी दिनचर्या से ऊपर थे और उनकी व्यस्तता बढ़ाते थे ,हालांकि मायके पक्ष के सन्दर्भ में उनकी व्यस्तता उसी तरह रफूचक्कर हो जाती थी जिस तरह घर के महत्वपूर्ण अवसरों पर  भाई साहब की उपस्थिति । 

भाई साहब का दर्शन मैं आजतक नहीं समझ पाया भावनाये कभी उनपर हावी नहीं हो पाई हालांकि भाभी जी की भावनाये उनपर जरूर हावी रहती थी।  खुशनसीबी यह थी की ईश्वर की कृपा उनपर बराबर बनी  रही और उनके महत्वपूर्ण कार्य स्वतः ही होते चले गए , हालांकि इन कार्यो का श्रेय भी भाभी जी ने ईश्वर से हटाकर खुद पर ले लिया था ,वैसे  शुरुआत ईश्वर से ही होती थी परन्तु वार्तालाप की अंतिम यात्रा में ईश्वर ठीक  पीछे उसी प्रकार छूट जाते थे जिस प्रकार गांव की पगडंडियों से गुजरने वाली बारात में दूल्हा ।  कभी - कभी तो मुझे ईश्वर पर भी दया आने लगती थी , मैं कितना सोचता था की ईश्वर को किसी बात का श्रेय दूँ , परन्तु भाई साहब की बातो से लगने लगता ईश्वर कुछ नहीं करते, आदमी जो करता है उसे निश्चित रूप से होना ही है । 

भाई साहब को दूसरो को प्रसन्न करने की अदभुत कला थी , हालाँकि यह प्रसन्नता मौखिक रूप से ही होती थी व्यवहारात्मक रूप से इस प्रसन्नता का 90 % हिस्से का स्थानांतरण उनके ससुराल पक्ष में होता और काफी कुछ सुनने के बाद 10 % बाकियो के हिस्से में आता । मुझे भाई साहब से कभी कोई शिकायत नहीं रही क्योंकि बाल्यावस्था से ही मुझे उनकी प्रकृति की आदत सी  हो गई थी ।  वैसे भाई साहब ने कई जगहों पर मेरी मदद अवश्य की थी परन्तु अपनत्व का नमक निकालकर ।  वैसे मैं यह नमक आवश्यकता से अधिक घोल देता था जिसकी वजह से मुझे खुद कभी काल स्वयं पर ग्लानि होने लगती थी ,  वैसे यह आवश्यकता से अधिक मेरे अनुसार नहीं होता था। 

भाई साहब की नजरो में बुद्धिजीवी बनना और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होना एक ही बात थी । वैसे अभी तक यह सम्मान उन्ही को प्राप्त हुआ है जिनकी नजरो में भाई साहब खुद सुकरात या प्लूटो से कम नहीं थे।  भाई साहब द्वारा एक नए दर्शन का ईजाद किया गया, जिसे आधुनिक युग का  द्धिज आचरण सिद्धांत कहा जा सकता है । मैं भाई साहब के दर्शन के पहले अध्याय में ही अनुत्तीर्ण हो जाया करता था जिसके अनुसार व्यवहार लाभकारी और बचतकारी होना चाहिए,  बचतकारी में समय और अर्थ दोनों आते थे।  परन्तु यह बात मेरे पल्ले कभी नहीं पड़ती और शायद मैं यह दोनों ही गँवा बैठता । 

दर्शन के दूसरे अध्याय के अनुसार बातो से महत्ता बताकर दूसरो को भ्रम में रखना और टेढ़ी - मेढ़ी पगडंडियों से घुमाने के बाद  कार्य की जटिलता या कार्य करने में  असमर्थता प्रकट करना मनुष्य का एक सामान्य लक्षण होना चाहिए और  कभी - कभी  ऐसे अवसरों पर मौन व्रत भी रखा जाना चाहिए। भाई साहब ने इस अध्याय को सम्पूर्ण रूप से आत्मसात कर लिया था और और साथ में उनकी  जीवन संगिनी ने भी  ।  वैसे इसे मेरी तरह सीधे शब्दों में " ना " या " हां " बोलने की जहमत और कार्य की प्रकृति पर चर्चा के साथ  उसे हल करने की नीयत से भाई साहब कोसो दूर भागते थे और मुझे अपने इस गुण  के कारण कई जगह भाई साहब द्वारा मूर्ख घोषित कर दिया जाता । 


मुझे भाई साहब का दर्शन अवसरवादिता और संवेदन शून्य सा लगता, हालाँकि भाई साहब संवेदनशील भी थे परन्तु उनके लिए जो मेरी नजरो में इंसानियत के आम गुणों से अभावग्रस्त थे। मेरा अपना कोई दर्शन नहीं था , जिसने मदद मांगी उसकी मदद की भले ही वह उस काबिल हो या  ना हो कम से कम ईश्वर ने तो मुझे इस काबिल बनाया ही होगा । समाज में कुछ समय रूपी धन स्वयं की मर्जी से खर्च किया , शायद आत्मा और मन को प्रसन्नता अवश्य मिली होगी ,परन्तु इस ख़ुशी को पाने के चक्कर में वह दौड़ छूट गई जिसके भाई साहब विजेता थे।  जिस दौड़ में आज हर इंसान शामिल है तथा  आगे बने रहने के लिए भाई साहब के दर्शन को अपनाता है , और मेरे जैसा इंसान उनकी नजर में पढ़ा लिखा तो रहता है लेकिन अक्लमंद नहीं रहता ।   

    

इन्हे भी पढ़े - गरीब और सरकार  

pakistani handpump

पाकिस्तानी हैंडपंप 


हीरा ठाकुर  आज बहुत परेशान थे।  उनकी परेशानी का कारण वीरू का वह लड़का था जो पाकिस्तान से हैण्डपम्प उखाड़ लाया था।  हीरा ठाकुर ने वीरू से उस हैंडपंप की गुजारिश की थी ताकि वे शान से उसे अपने दरवाजे पर लगवा सके और उन्हें उस नल में पाकिस्तानियो की हार दिखाई दे।  किन्तु बसंती ने वह नल देने से वीरू को रोक लिया था।  बसंती उसे एक वाटर प्यूरीफायर  कंपनी को देना चाहती थी जिसे कंपनी अपने दफ्तर में लगवाती।

लेकिन जबसे पकिस्तान ने अभिनन्दन को वापिस किया है तबसे भारत के जैकाल , मोगैम्बो , गेंडास्वामी और चिन्ना ने पकिस्तान को नल वापिस करने की मांग करदी।  भारतीय सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए मिस्टर इंडिया को खोजने का आदेश जारी किया है परन्तु एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी कृष और शिवाजी - बॉस  दोनों ही मिस्टर इंडिया को खोजने में असमर्थ है।

इधर कुछ भारतीय नेताओ ने तारा सिंह द्वारा उखाड़े गए नल को पाकिस्तानी होने से ही इंकार कर दिया है , वे तारा सिंह से इस बात की पुष्टि के लिए सबूत की मांग कर रहे है।  इधर तारा सिंह इस बात को लेकर आग - बबूला हो उठे है और उन नेताओ के नल उखाड़ने निकल पड़े है।

इधर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी ट्रा  ने अपने एजेंट अक्षय खुमार को पाकिस्तान से उस नल का वाशर लाने की जिम्मेदारी सौंपी है। और उनके सहयोग के लिए टाइगर को साथ में भेजा है।

क्रमश  -  



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