Some Interesting Facts about Holi

होली के बारे में कुछ रोचक तथ्य  - 




फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाये जाने वाला होली का त्यौहार भारत और नेपाल दोनों ही जगहों में प्रमुखता से मनाया जाने वाला त्यौहार है । धुरखेल , धुरविन्दं और धूलखेड़ी इसके अन्य नाम है। इसके अतिरिक्त इसे बसंत महोत्सव और कान महोत्सव भी कहा जाता है। होली के दिन चन्दन और आम की मंझरी को मिलकर खाने का बड़ा महत्व  है।  होलिका और प्रह्लाद की कहानी के अतिरिक्त  कृष्ण और पूतना , ढुंढी तथा शिव की बारात के रूप में होली की कथाये प्रचलित है। माना जाता है की गणो का रूप धारण करके लोग शिव की बारात का हिस्सा बनते है।  इस दिन भांग पीने की भांग परंपरा से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। होली में रंगो के प्रयोग का श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को जाता है। 

इतिहास में भी अकबर - जोधाबाई और जहांगीर - नूरजहां के साथ होली खेलने का विवरण मिलता है। दक्षिण भारत के विजयनगर में भी होली मनाने के प्रमाण मिले है।  हालाँकि दक्षिण भारत में होली की महत्ता उतनी नहीं है जितनी उत्तर भारत में।  इसी कारण दक्षिण भारत के अधिकांश सरकारी प्रतिष्ठान इस दिन खुले रहते है। 

बरसाना की विश्व प्रसिद्द लठ्मार होली -   


ऐसा माना जाता है की श्रीकृष्ण ने मथुरा के  बरसाना में ग्वालो के संग राधा तथा उनकी अन्य सहेलियों के साथ छेड़छाड़ की थी जिसके फलस्वरूप वहां के निवासियों ने उन लोगो की लट्ठ से धुलाई कर दी। इसका दूसरा पक्ष यह भी माना जाता है की श्रीकृष्ण हर साल राधा के साथ होली खेलने आते थे और राधा उन्हें बांस की बल्लियों ( डंडे )से  दौड़ाती थी।  उसके बाद से ही बरसाना और नन्द गांव में लठमार होली की परंपरा विकसित हो गई।  वहां का प्रसिद्ध राधा - रानी मंदिर के परिसर में इस प्रकार की होली का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है। बरसाना के अगले दिन नंदगांव में होली मनाई जाती है जहाँ बरसाना के पुरुष वहां की महिलाओ के साथ होली खेलने पहुँचते है और बदले में उन्हें रंगो के साथ लट्ठ मिलती है। 


कुमाउँनी बैठक होली


इसकी शुरुआत पौष माह के पहले रविवार से हो जाती है।  नैनीताल के अल्मोड़ा जिले में मनाई जाने वाली इस होली में रंगो के अतिरिक्त शास्त्रीय संगीत का रस भी लिया जाता है।  इसमें ख्याल , ठुमरी से लेकर लोक गीतों को गाने की परंपरा है। इसके साथ ही इसमें राजनीतिक और हास्य चर्चाये भी होती है।  इसकी शुरुआत कैसे हुई यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। 


नवसम्वत का आरम्भ  -  

होली के दिन पूर्णिमा होने की वजह से इस दिन  भारतीय नवसम्वत का आरम्भ होता है। इसी दिन मनु का जन्म भी हुआ था। होली के पर्व के बाद ही नए वर्ष का आरम्भ होता है। 

होलिका दहन  -           

माना जाता है की हिरणकश्यप की बहन और प्रह्लाद की बुआ होलिका  को अग्नि से किसी प्रकार की क्षति ना होने का वरदान प्राप्त था। जिस वजह से हिरणकश्यप ने अपनी बहन को प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठने को कहा।  प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ परन्तु होलिका उसी अग्नि में भष्म हो गई।  तभी से होलिका दहन  बुराई के खात्मे के प्रतीक स्वरुप होली से एक दिन पहले मनाया जाता है।  इसमें गोबर के छेद वाले उपले जलाने की प्रथा है। माना जाता है की एक साथ सात उपलों की माला से भाइयो की नजर उतारकर जलाने पर सारी बुरी बालाएं इसी अग्नि में समाहित हो जाती है। 


bhai sahab



भाई साहब 

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बचपन से ही भाई साहब का अस्पष्ट नजरिया हमेशा ही मुझे कुछ दुविधा में डाले रहता था । उधर  भाई साहब  इसके उलट  मुझे ही आरोपित किया करते थे । उनके अनुसार मैं लापरवाह और सामाजिकता की गहराई में डूबा हुआ ऎसा इंसान  था जिसने अपन बहुमूल्य समय इन्ही बेफजूल के  कार्यो में व्यर्थ कर दिया  । भाई साहब के लिए समय की परिभाषा अलग थी , अगर उन्हें मुझे समय देना पड़े तो उनकी व्यस्तता प्रधानमंत्री को भी मात दे देती है । यहाँ उनकी प्रेरणा स्त्रोत धर्मपत्नी की बात ना की जाये तो परिवार पुराण कुछ अधूरा सा लगता है । भाभी जी भी व्यस्तता में भाई साहब से कम ना थी, चादर बिछाने से लेकर टीवी का रिमोट ढूंढने तक ना जाने ऐसे कितने जटिल काम थे जो उनकी दिनचर्या से ऊपर थे और उनकी व्यस्तता बढ़ाते थे ,हालांकि मायके पक्ष के सन्दर्भ में उनकी व्यस्तता उसी तरह रफूचक्कर हो जाती थी जिस तरह घर के महत्वपूर्ण अवसरों पर  भाई साहब की उपस्थिति । 

भाई साहब का दर्शन मैं आजतक नहीं समझ पाया भावनाये कभी उनपर हावी नहीं हो पाई हालांकि भाभी जी की भावनाये उनपर जरूर हावी रहती थी।  खुशनसीबी यह थी की ईश्वर की कृपा उनपर बराबर बनी  रही और उनके महत्वपूर्ण कार्य स्वतः ही होते चले गए , हालांकि इन कार्यो का श्रेय भी भाभी जी ने ईश्वर से हटाकर खुद पर ले लिया था ,वैसे  शुरुआत ईश्वर से ही होती थी परन्तु वार्तालाप की अंतिम यात्रा में ईश्वर ठीक  पीछे उसी प्रकार छूट जाते थे जिस प्रकार गांव की पगडंडियों से गुजरने वाली बारात में दूल्हा ।  कभी - कभी तो मुझे ईश्वर पर भी दया आने लगती थी , मैं कितना सोचता था की ईश्वर को किसी बात का श्रेय दूँ , परन्तु भाई साहब की बातो से लगने लगता ईश्वर कुछ नहीं करते, आदमी जो करता है उसे निश्चित रूप से होना ही है । 

भाई साहब को दूसरो को प्रसन्न करने की अदभुत कला थी , हालाँकि यह प्रसन्नता मौखिक रूप से ही होती थी व्यवहारात्मक रूप से इस प्रसन्नता का 90 % हिस्से का स्थानांतरण उनके ससुराल पक्ष में होता और काफी कुछ सुनने के बाद 10 % बाकियो के हिस्से में आता । मुझे भाई साहब से कभी कोई शिकायत नहीं रही क्योंकि बाल्यावस्था से ही मुझे उनकी प्रकृति की आदत सी  हो गई थी ।  वैसे भाई साहब ने कई जगहों पर मेरी मदद अवश्य की थी परन्तु अपनत्व का नमक निकालकर ।  वैसे मैं यह नमक आवश्यकता से अधिक घोल देता था जिसकी वजह से मुझे खुद कभी काल स्वयं पर ग्लानि होने लगती थी ,  वैसे यह आवश्यकता से अधिक मेरे अनुसार नहीं होता था। 

भाई साहब की नजरो में बुद्धिजीवी बनना और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होना एक ही बात थी । वैसे अभी तक यह सम्मान उन्ही को प्राप्त हुआ है जिनकी नजरो में भाई साहब खुद सुकरात या प्लूटो से कम नहीं थे।  भाई साहब द्वारा एक नए दर्शन का ईजाद किया गया, जिसे आधुनिक युग का  द्धिज आचरण सिद्धांत कहा जा सकता है । मैं भाई साहब के दर्शन के पहले अध्याय में ही अनुत्तीर्ण हो जाया करता था जिसके अनुसार व्यवहार लाभकारी और बचतकारी होना चाहिए,  बचतकारी में समय और अर्थ दोनों आते थे।  परन्तु यह बात मेरे पल्ले कभी नहीं पड़ती और शायद मैं यह दोनों ही गँवा बैठता । 

दर्शन के दूसरे अध्याय के अनुसार बातो से महत्ता बताकर दूसरो को भ्रम में रखना और टेढ़ी - मेढ़ी पगडंडियों से घुमाने के बाद  कार्य की जटिलता या कार्य करने में  असमर्थता प्रकट करना मनुष्य का एक सामान्य लक्षण होना चाहिए और  कभी - कभी  ऐसे अवसरों पर मौन व्रत भी रखा जाना चाहिए। भाई साहब ने इस अध्याय को सम्पूर्ण रूप से आत्मसात कर लिया था और और साथ में उनकी  जीवन संगिनी ने भी  ।  वैसे इसे मेरी तरह सीधे शब्दों में " ना " या " हां " बोलने की जहमत और कार्य की प्रकृति पर चर्चा के साथ  उसे हल करने की नीयत से भाई साहब कोसो दूर भागते थे और मुझे अपने इस गुण  के कारण कई जगह भाई साहब द्वारा मूर्ख घोषित कर दिया जाता । 


मुझे भाई साहब का दर्शन अवसरवादिता और संवेदन शून्य सा लगता, हालाँकि भाई साहब संवेदनशील भी थे परन्तु उनके लिए जो मेरी नजरो में इंसानियत के आम गुणों से अभावग्रस्त थे। मेरा अपना कोई दर्शन नहीं था , जिसने मदद मांगी उसकी मदद की भले ही वह उस काबिल हो या  ना हो कम से कम ईश्वर ने तो मुझे इस काबिल बनाया ही होगा । समाज में कुछ समय रूपी धन स्वयं की मर्जी से खर्च किया , शायद आत्मा और मन को प्रसन्नता अवश्य मिली होगी ,परन्तु इस ख़ुशी को पाने के चक्कर में वह दौड़ छूट गई जिसके भाई साहब विजेता थे।  जिस दौड़ में आज हर इंसान शामिल है तथा  आगे बने रहने के लिए भाई साहब के दर्शन को अपनाता है , और मेरे जैसा इंसान उनकी नजर में पढ़ा लिखा तो रहता है लेकिन अक्लमंद नहीं रहता ।   

    

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पाकिस्तानी हैंडपंप 


हीरा ठाकुर  आज बहुत परेशान थे।  उनकी परेशानी का कारण वीरू का वह लड़का था जो पाकिस्तान से हैण्डपम्प उखाड़ लाया था।  हीरा ठाकुर ने वीरू से उस हैंडपंप की गुजारिश की थी ताकि वे शान से उसे अपने दरवाजे पर लगवा सके और उन्हें उस नल में पाकिस्तानियो की हार दिखाई दे।  किन्तु बसंती ने वह नल देने से वीरू को रोक लिया था।  बसंती उसे एक वाटर प्यूरीफायर  कंपनी को देना चाहती थी जिसे कंपनी अपने दफ्तर में लगवाती।

लेकिन जबसे पकिस्तान ने अभिनन्दन को वापिस किया है तबसे भारत के जैकाल , मोगैम्बो , गेंडास्वामी और चिन्ना ने पकिस्तान को नल वापिस करने की मांग करदी।  भारतीय सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए मिस्टर इंडिया को खोजने का आदेश जारी किया है परन्तु एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी कृष और शिवाजी - बॉस  दोनों ही मिस्टर इंडिया को खोजने में असमर्थ है।

इधर कुछ भारतीय नेताओ ने तारा सिंह द्वारा उखाड़े गए नल को पाकिस्तानी होने से ही इंकार कर दिया है , वे तारा सिंह से इस बात की पुष्टि के लिए सबूत की मांग कर रहे है।  इधर तारा सिंह इस बात को लेकर आग - बबूला हो उठे है और उन नेताओ के नल उखाड़ने निकल पड़े है।

इधर भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी ट्रा  ने अपने एजेंट अक्षय खुमार को पाकिस्तान से उस नल का वाशर लाने की जिम्मेदारी सौंपी है। और उनके सहयोग के लिए टाइगर को साथ में भेजा है।

क्रमश  -  



new india


नया भारत 




पिछले कुछ दिनों से समाचारो की सुर्खियों में पुलवामा हमला और उसके तुरंत बाद 56 इंच के सीने को लेकर सवाल सोशल मीडिया  में  देखे गए।  हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की पुलवामा हमले में कहीं ना कहीं भारतीय सुरक्षा तंत्र की नाकामी थी और नाही इस बात से भी की बिना स्थानीय सहयोग के ऐसी घटना को अंजाम देना संभव था। 

फिर सवाल यह भी उठने लगता है की क्या भारत एक बार फिर शांति की दुहाई देगा जैसा 26 / 11 के हमले में दिया गया था या जैश के खिलाफ पाक को सबूत देगा।  घाव बड़ा था इसलिए प्रश्न यह भी था की क्या  " मोदी है तो संभव है " जैसे कहावत हकीकत में अपना असर दिखाएंगे।परन्तु किसी भी घटना के लिए तुरंत प्रतिक्रिया देना कहाँ तक सही है जब सारी की सारी  प्रतिक्रियाएं धरी की धरी रह गई और 56 इंच बढ़ता हुआ 58 इंच हो गया।  जवाब मिला तेरहवे दिन जी बिलकुल यह नया भारत है जिसने जैश ए मुहम्मद के आतंकवादियों को बहत्तर हूरो से मिलवाने का काम किया।  जिसने रातो रात 1000 किलो का बम पकिस्तान में ले जाकर उस वक़्त फोड़ा जब सारे खटमल ( आतंकवादी ) एक जगह जमा थे। 



पकिस्तान घबरा गया उसकी आवाम में सरकार विरोधी नारे लगने लगे , इमरान खान को अपनी साख बचाने के लिए अमेरिका से आयातित एफ - 16 से भारत पर हमला करना पड़ा लेकिन दुश्मन के पलटवार को लेकर सजग भारतीय सेना ने एक एफ - 16 को मार गिराया।  हालाँकि इसमें हमारे एक मिग विमान के पायलट विमान के नष्ट होने की वजह से पाकिस्तानी क्षेत्र में जा गिरे। 

पहले तो पकिस्तान ने शेखी बघारते हुए सूचना दी की भारत के दो पायलट उसके कब्जे में है, परन्तु भारत द्वारा एक पायलट अभिनन्दन के पकिस्तान में होने की बात कही गई , हुआ यूँ  की पाकिस्तान ने अपना पायलट भी गिन लिया था। पहले तो इमरान खान ने रिहाई के बदले शर्त रखी जिसे स्वीकार नहीं किया गया  , फिर भारतीय प्रधानमंत्री से फोन पर बात करने की कोशिश की जिसे मोदी ने मना कर दिया। इसके बाद इमरान खान ने बिना शर्त पाकिस्तानी संसद में भारतीय विंग कमांडर को छोड़ने की बात कही। तथा बाघा सीमा तक कुशलता पूर्वक उन्हें छोड़ा गया। 

पकिस्तान कभी यूएन पहुँचता है , कभी भारत से शांति की अपील करता है। उधर अमेरिका पकिस्तान पर दबाव बनाता है तो चाइना  कुछ भी कहने से बचता है।  एक तरफ इजरायल पाकिस्तानी सेना के रडार जाम करता है तो दूसरी तरफ रसिया सैन्य मदद की पेशकश करता है। शायद नए और उभरते भारत का लोहा दुनियां मानने को मजबूर है। 

यह मोदी के प्रति लोगो का  विश्वास ही है की पुलवामा हमले के बाद देश की जनता को यकीन था की बदला जरूर लिया जायेगा और बदला लिया भी गया। 

बात अब देश में ही छिपे उन आतंकवादियों को भी उनके बिलो से निकालना होगा जो खुद को भारतीय कहते है लेकिन दिल से राष्ट्रविरोधी है। भारत की अधिकांश  राजनीतिक पार्टियों देश हित से सर्वोपरि स्वयं का हित समझती है।  तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करना , सोशल मीडिया पर अफवाहों को बढ़ाना , खुद की देश के प्रति स्थिति स्पष्ट ना करना।  देश को बस एक ऐसे उद्देश्य की पूर्ति का माध्यम समझना जिससे उन्हें सत्ता और धन की प्राप्ति होती है ,वर्ना इनकी संपत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी कैसे संभव है। 

वर्षो बाद देश को एक मजबूत नेता और सरकार मिली है जिसने देशविरोधी तत्वों के साथ - साथ विश्व मंच पर इससे वैर रखने वालो की नींदे  उड़ा रखी है , इसमें कोई संदेह नहीं की जागरूक और देशप्रेमी जनता 2019 में देश की कमान इसे छोड़ किसी और को सौपेंगी क्योंकि यही नए भारत के निर्माणकर्ता है। 




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भारतीय शादियां 


शादियों के सीजन की शुरुआत हो चुकी है।  रिश्तेदारियों और जान - पहचान वालो के यहाँ से निमंत्रण के आने का दौर शुरू हो चुका है।  पुराने कपड़ो को स्त्री करके नया बनाया जा रहा है और पिछले साल वाले जीजा को पुराना बताया जा रहा है । 



रिश्तेदारियों में पड़ने वाली शादियों के लिए नए कपडे लिए जा रहे है।  कई घरो में तो न्यौतो की बाढ़ आई हुई है और घर की लगभग पूरी आमदनी इन्ही शादियों की तैयारियों में जाने की संभावना है। दूर के रिश्तेदार ट्रेनों में वापसी के लिए रिजर्वेशन के जुगाड़ में लगे हुए है , और पास वाले एक दुसरे की गाड़ियों में तेल के हिसाब में लगे हुए है।  ससुराल जाने के लिए चार पहिया ढूंढी जा रही है और घर की शादियों में जाने के लिए समय की दुहाई दी जा रही है। 

दूल्हा - दुल्हन मुंबई वाली मौसी के बच्चो की  परीक्षा से परेशान है जो फ़रवरी में है, और लखनऊ वाली दीदी ने साफ़ - साफ़ कह दिया है की शादी की तारीख मार्च - अप्रैल में नहीं पड़नी चाहिए। मई में छोटका भाई के कम्पटीशन का एग्जाम है तो जून में सब हलवाई ना मिलने से परेशान है।
तारीख पे तारीख मिल रही है लेकिन बियाह नहीं हो रहा है।  ऐसे पढाई लिखाई से क्या फायदा जब शादी के लिए ही समय ना हो। 

कुछ पुरानी शादियों की चर्चाये सुनाई दे रही है , कहीं लड़की ने लड़के को छोड़ दिया तो कहिं लड़के ने लड़की को।

कारण शादी के बाद पता चला की लड़की की नाक छोटी है और लड़के का कुछ और। 

खास रिश्तेदारियों से कई दिन पहले ही बुलावे  का दौर शुरू हो चुका  है तो कई जगह रिश्ते में खास लोगो द्वारा औपचारिकता पूरी की जा रही है। इंद्र देव से सारे होने वाले नव वर - वधु शांति की प्रार्थना कर रहे है क्योंकि उनका कोपभाजन होने पर लड़के और लड़की के नाम के पूर्व भद्रा की उपाधि लग जाती है। और शामियाने वाले से लेकर रिश्तेदार तक जो उपाधिया लगाते है सो अलग। 
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सालियाँ जूता चुराई की रणनीति बनाते दिख रही है और होने वाले जीजा के वजन के अनुसार जूते की कीमत तय की जा रही है। कुछ चुलबुली सालियाँ जीजा का बुलबुला निकालने की सोच रही है तो दूल्हे के छोटे भाइयो से घर के बड़े अपने लिए उन्ही सालियो में से घरवाली पसंद करने की बात पे मजा लेते हुए। बड़े अपने साढू और सढ़ुआइन की खातिरदारी में व्यस्त है तो छोटे लड़के सहबाला बनके ही मस्त है। 

लड़के की बुआ की डिमांड कुछ बढ़ी हुई है बस इसी बात पे बड़ी बहन की नाक चढी हुई है। भौजाई सास से नए जेवर की चाह में मगन है क्योंकि घर का ये आखिरी लगन है। 

पुराने लोग बस हलवाई से पकवानो का हाल पूछ रहे है , और कब, क्या ,कहाँ खाया था एक दूसरे से वो साल पूछ रहे है। 

कुछ इमरती , लाल मोहन और पनीर पकौड़ा आपका बेसब्री से इन्तजार कर रहे है , दौर शुरू हो चुका है शादियों के मेले का ,झमेले की बाद में सोचियेगा साहब, इस पापी पेट को क्यों बेकरार कर रहे है। 




Boor and smart


गंवार और होशियार 




उसका गँवारपना देख कर कभी - कभी तो मन में हंसी आने लगती है।  मास्टर की डिग्री के पद पीएचडी और उसके बाद कॉलेज के सहायक प्रोफ़ेसर पद पर आसीन होने तक वह गंवार ही रहा ,हालांकि अपने विषय का वो महारथी था परन्तु सांसारिक विषय में उसकी जानकारी कक्षा पांच के बच्चे जितनी भी नहीं थी ।

कॉलेज में तो उसे मात्र  5 - 6 घंटे बिताने होते थे जिसके लिए उसने पीएचडी तक कर डाली लेकिन बाकी के घंटो के लिए कोई सीख ना ले सका।

उसको लगता था की दुनिया बस यहीं तक है ,वह भूल गया था की दुनियां की शुरुआत यहाँ से है। पैसा बचाता था वो , बचाना भी चाहिए कब कैसा वक़्त आ जाए क्या पता।  परन्तु जीवन की विषमताओ को बढ़ाते हुए धन बचाने का मन सिर्फ उसके ही बस की बात थी। 

बोलने में भी वह कुछ कंजूस था।  आस - पड़ोस से लेकर कॉलेज तक बस सबको किसी एलियन की प्रजाति समझ कर अलग ही प्रकार से देखता था।  हम में अ लगाने की आदत सी पड़ गई थी उसको । 

शादी हुई बच्चे हुए परन्तु वो अपनी ही धुन में चलता रहा।  बीवी दुखी होकर बच्चो के साथ  मायके चली गई क्योंकि उसे जनाब की आदते नहीं पसंद थी।  आदतो की शुरुआत होती थी सुबह देर से उठने से  फिर नित्य क्रिया और नाश्ते के बाद कॉलेज।  कॉलेज के बाद दोस्त - मित्र ना होने की वजह से वह सीधा घर चला आता था।  उसका मानना था की दोस्त सिर्फ समय की बर्बादी के लिए ही होते है , ये तरक्की की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। इस कारण बीमार होने पर भी वह अकेला ही अस्पताल जाता था। शाम का वक़्त भी किताबो में ही बीतता था।परिवार के लिए वक़्त ही ना बचता उसके पास।  उसे ज्ञान प्राप्त करने की बड़ी लालसा थी लेकिन इस किताबी ज्ञान का उपयोग सिर्फ कॉलेज तक ही सीमित था। 

लोगो को खुद से नीचा समझने की प्रवृत्ति भी उसमे घर करने लगी थी।  खुद में मगन रहने वाला वह बीवी और बच्चो के घर से जाने के बाद भोजन हेतु होटल पर निर्भर हो गया था । वह अकेला ही अपनी टेबल पर बैठकर भोजन करता और दुसरे लोगो के समूहों को को भोजन करते देखा करता था ।  धीरे - धीरे उसकी सेहत गिरती गई और अस्पताल तक जाना पड़ा।  अस्पताल में संयोगवश उसे पोस्टमार्टम हेतु लाइ गई कुछ लाशें दिखाई पड़ी।  कैसे - कैसे चीरा काटी  की गई थी उन लाशो से।
ऐसे लग रहा था जैसे इंसानी शरीर ना होकर कोई कपडे से बनी कोई  मूरत है जिसमे जहाँ से मन किया वहा से खोलकर सिलाई कर दी गई। उम्र तो देखो कोई पचास के आसपास होगी कैसे एक सफ़ेद कपडे में लिपटा है कोई ऐतराज नहीं है इसे, इस ठंड में लोहे की बनी स्ट्रेचर पर लेटने से । 

उधर अस्पताल के  बाहर काफी भीड़ इकठ्ठा होने लगी थी , चारो तरफ विलाप की आवाजे गूंज रही थी।  उसके बगल से दो वार्डबॉय आपस में बाते करते हुए जा रहे थे की कैसे दुर्घटना में मरा हुआ शख्श इस शहर का सबसे धनी व्यक्ति निरंजन दास था  ।  कई फैक्टरियां थी उसकी , शहर में स्कूल - कॉलेज से लेकर गरीबो के लिए घर तक बनवा कर दिए थे उसने।  अपने ज़माने में पढाई के लिए लन्दन तक गया था। और आज सब कुछ होने के बाद यहाँ लेटा हुआ था। कितनी महँगी क्रीम लगाता था चेहरे पर और आज टांके से पूरा चेहरा भरा हुआ है। 

दो - दो गाड़ियां सुरक्षा  में चलती थी फिर भी इसके प्राणो की रक्षा नहीं कर पाई।  लेकिन अस्पताल के बाहर की भीड़ बता रही है की पूरा शहर इसको कितना मानता था।  कितने गरीबो के घर आज चूल्हे नहीं जले कितने शहर के मजदूर आज काम करने नहीं गए। लोगो का रो - रो के बुरा हाल है। बात तो थी इस आदमी में वर्ना आजकल के अमीर तो आसमान से नीचे उतरते ही नहीं , महान था यह आदमी मरने के बाद भी लम्बे समय तक लोगो की यादो में जीवित रहेगा । 

वह  आज अजीब उलझन में था, उसे समझ नहीं आ रहा था की किताबो में लिखे सूत्र और जिंदगी का यह आधारभूत सत्य दोनों में से कौन जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।  उसे आज वह सब व्यर्थ लगने लगा था जो वह करता आया था।  जब जीवन क्षणिक है और उसका अंत निश्चित है तब संसार में वह  अपना समय कहाँ जाया कर रहा था।  उसका कार्य और उसका परिवार दोनों संतुलित क्यों नहीं हो पा रहे थे।  केवल कार्य करते गया तो उसे कुछ लकड़ी के पुरूस्कार जरूर मिलेंगे लेकिन उन्हें लेने के बाद फिर अगले पुरूस्कार हेतु प्रयत्न जारी हो जाएगा और यह क्रम निरंतर चलता रहेगा। 

लेकिन परिवार और व्यवहार कदम - कदम  पर उसके साथ खड़े रहेंगे। जीवन ईश्वर प्रदत्त प्रकृति हेतु ही है , इसको सम्पूर्णता के साथ जीने में ही इसका सार  है। पता नहीं आज उसे कैसी बेचैनी थी ,क्या सत्य उसने जान लिया था जो उसके कदम अपने परिवार को घर वापिस लाने हेतु बढे जा रहे थे। शायद अब वह गंवार नहीं रहा। 



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freedom of speech

अभिव्यक्ति की आजादी


अभिव्यक्ति की आजादी ........  कहा है  ?

नहीं साहब यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी बिलकुल नहीं है।  आप पडोसी को गाली नहीं दे सकते प्रधानमंत्री तो दूर की बात है।
क्या लगता है आप को गाली देने पर पडोसी छोड़ेगा ? की इस देश के प्रधानमंत्री  ?

जवाब सबको पता है - नरेंद्र दामोदर दास मोदी

लेकिन आप किसी को कुछ भी कह क्यों रहे है ? क्या पीड़ा है आपकी ?

आपकी पीड़ा यही है की वातानुकूलित कमरों में बैठकर देश के लिए लम्बी  -  लम्बी छोड़ने वालो की दूकान ( गैर लाभकारी संगठन( NGO) ) बंद हो चुकी है।
देश की एकता और अखंडता को खंडित करने वाले अपने बिलो से बाहर नहीं निकल पा रहे है।
देश एक बार फिर विदेशियों(इस बार इटली ) के चंगुल से मुक्त है।
भारतीय फौज बिना किसी हस्तक्षेप के मानवता के दुश्मनो और कातिलों को चुन - चुन कर मार रही है।

कोई और पीड़ा ? हां बची है - भारत अब दुनियां की आँख से आँख मिलाकर कह सकता है की मैं मैं बेहतरीन बनने की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा हूँ।

आप लगाइये नारे पकिस्तान के और हम कह दे पकिस्तान चले जाओ तो गन्दा है
खुली छूट है कुछ भी कहने की तो क्या भरतवंशियो की लाशो पर चढ़कर बोलोगे, अफजल हम शर्मिंदा है



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