tera intjaar

तेरा इन्तजार 

tera intjaar



बड़ी हसरत से तुझे देखे जा रहा था
वो बाजार में चूड़ियों को पहनते हुए तेरी खिलखिलाहट भरी हंसी
एक अजीब सी चुलबुली ख़ुशी मेरे दिल ने महसूस की
लगा की बस तू ही तू है इस जहाँ में मेरा सबकुछ

सोचा कदम बढ़ाऊ तो कैसे
मुहब्बत का पंछी उड़ाउँ तो कैसे
चारो और गिद्ध रूपी पहरेदार जो थे
पर साथ में मेरे कुछ वफादार भी थे

पैगाम पहुंचा जब मेरा  तुझतक
यकीन तो तेरी नजरो ने ही दिला दिया था
आता संदेशा तेरा जबतक
कभी तो अपने होंठो को हिला दिया होता
अपने लबो से भी कुछ फरमा दिया होता


हम तो तसल्ली कर लिए होते
कम से कम इस दिल को तो थोड़ा फुसला दिया होता
ये इश्क़  का रोग लाइलाज नहीं होता मेरी जान
बस तूने एक बार आवाज तो दिया होता

कुछ वक़्त बदला, कुछ बदले तेरे तेवर
कुछ हमने भी खुद को बदला
ना बदल सके तो इस दिल में तेरे कलेवर 


अभी भी इन्तजार तेरा करते है 

इश्क़ की गली में लोग ऐतबार मेरा करते है 
तू डरती है ज़माने से तो डरा कर 
अभी भी तेरे नाम पर पैमाने भरा करते है 

बड़ी कातिल थी तेरी निगाहें 
कम्बख्त दिल को भी ना छोड़ा 

तेरे इन्तजार में निकली दिल से आंहे 

दौड़ा न सका अपनी मुहब्बत का घोडा 



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Nota - Beginning Empty of Throne with the Pink Revolution



नोटा - गुलाबी  क्रांति से सिंहासन खाली करो की  शुरुआत -

Nota - Beginning Empty of Throne with the Pink Revolution

भारतीय राजनीति एक बार फिर अपने महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है जहाँ आम जनता का विश्वास मौजूदा राजनीतिक पार्टियों से उठता दिख रहा है। सवर्णो को अपना जन्मसिद्ध वोटर मानने वाली बीजेपी को उम्मीद नहीं थी की एससी / एसटी को खुश करने के चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के जिस निर्णय को वह पलट चुकी है वही उसकी सत्ता पलटने की हैसियत रखती है।  सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट की खामी को दूर करते हुए  एफ़ आई आर के बाद बिना जाँच की गिरफ्तारी पर रोक लगा दिया था।  उसी पर  सरकार को लगा की नहीं गिरफ्तारी तो बिना जाँच के ही होनी चाहिए भले ही किसी निर्दोष को फंसाया जा रहा हो, जबतक अदालत उसे निरपराध घोषित करेगी तब तक बेचारा ऐसे  गुनाह की सजा काटकर आएगा जिसका उससे कोई वास्ता ही नहीं , बस उसकी गलती यही होगी की वह सवर्ण है। और उस भाजपा का पारम्परिक वोटर भी जिसकी सरकार  बनवाने में उसने मदद की थी वही भाजपा उसकी लुटिया डूबोने में लगी हुई है।

यह तो था सवर्णो का दुःख अब देश की बाकि गरीब जनता की भी सुन लीजिये वह भी सरकार से पूछ रही है की क्या नोटबंदी  में कड़कड़ाती ठण्ड में  2000 रूपये के लिए केवल उसे ही परेशान  क्यों किया गया।  इस देश के पूँजीपति से लेकर अधिकारी वर्ग तक और बड़े नेता से लेकर छुटभैया तक इन लाइनों  में क्यों नहीं दिखे। कुछ ईमानदार छवि और दिखावटी लोगो को छोड़कर केवल आम जनता मरती रही और सरकार दावा करती रही की इसके बाद देश के अंदर का कालाधन वापस आ जायेगा और एक नए भारत का निर्माण होगा। अभी भी नोटबंदी की सफलता और असफलता पर चर्चा जारी है।  अगर यह इतनी सफल ही होती तो चर्चा की कोई बात ही नहीं थी। 

कई गरीबो के घर बेटियों की शादिया टूट गई क्या किसी अमीर के घर ऐसा हुआ नहीं , बल्कि कई वीआईपी शादियों में पैसा पानी की तरह बहा।  गुजरात के एक कोआपरेटिव बैंक में अमित शाह के पैसो को सफ़ेद करने का मामला भी सामने आया जिसे प्रबंधित मीडिया ने ज्यादा टूल नहीं दिया। ऐसे ही कई बीजेपी नेता नए नोटों की गड्डियाँ  उड़ाते मिले। 50 से ज्यादा बार नोटबंदी  के दौरान आरबीआई ने अपने फैसलों और नियमो में बदलाव किया।  उत्तर प्रदेशो के चुनावों में इस नोटबंदी  ने अपना व्यापक असर दिखाया और अन्य पार्टिया इस कारण  अपना पॉलिटिकल  मनैजमेंट  नहीं कर पाई जिससे फायदा बीजेपी को हुआ इसी कारण नोटबंदी  का खेल खेला गया जिसमे आम आदमी ने अपनी जान और मान दोनों को ही गँवा दिया । मध्यम  और निचले तबके के व्यापारी वर्ग तो बुरी तरह टूट गए  और इसके बाद लागू  होने वाली जीएसटी ने तो मानो उसकी कमर ही तोड़ दी , कभी पुराना  माल को लेकर जीएसटी की संशय  कभी इसकी प्रणाली को समझने का फेर महीनो बिना व्यापार किये ही  निकल गए। और मिला क्या ? ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।

नोटा फिल्म का एक पोस्टर 


देश के विकास के नाम पर जब आम आदमी घुन की तरह पिसा  रहा था तब भी विदेश यात्राओं में कुछ कमी नहीं आई, पेट्रोल के जिन दामों पर विपक्ष में रहते हुए साइकिल से चला गया आज अपनी सरकार  में सवाल पूछने पर मुंह फेर लिया जाता  है.  जब जनता पूछती है की ऐसा क्यों है की अंतराष्ट्रीय मार्केट  में 65 डॉलर प्रति बैरल होने के बाद भी पेट्रोल महंगा है जबकि पूरवर्ती  सरकार में १४४ डॉलर प्रति बैरल में  भी  दाम इतने ही थे।  रुपया क्यों भारतीय प्रधानमंत्री की उम्र पार करने के बाद भी नहीं रुक रहा

अर्थव्यवस्था इतनी व्यवस्था करने के बाद भी काबू में नहीं आ रही है तो आपमें और पिछली सरकारों में क्या अंतर था।  हिन्दू का कार्ड कबतक चलेगा ,खाली पेट तो बिलकुल नहीं , गाय  की रक्षा कबतक होगी जब बहु बेटियाँ  ही सुरक्षित नहीं है ।कब तक पाकिस्तान हमारी देश की बहुओ  को विधवा बनाता रहेगा  ? नेपाल का चीन के साथ सैन्य अभ्यास क्यों आखिर आप क्यों चार साल बीत जाने के बाद भी कांग्रेस को कोस रहे है ? जातिवाद का जहर घोलना था तो अन्य पार्टियों में क्या बुराई थी  ? 

विपक्ष में कमजोर नेतृत्व , तीसरे  मोर्चे  की नाजुक स्थिति तथा  लालची एकता  और भाजपा के विश्वासघात  को देखते हुए धीरे -  धीर आम आदमी अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए भारी संख्या में नोटा दबाने का मन बना चुका है इसकी संख्या को देखते हुए 2019  में अवश्य ही इसे एक बार फिर गुलाबी क्रांति की संज्ञा दी जाएगी क्योंकि नोटा के बटन का रंग गुलाबी है।



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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - सरदार पटेल की मूर्ति 


biwi ki tarkari

biwi ki tarkari

बीवी की तरकारी -


हर दुसरे दिन करेले की सब्जी मत बनाया करो , बी पी लो हो जाता है 
और इसी चक्कर में वो हो जाता है 

चना खिलाके घोडा बना दिया 
माँगा था प्यार पूरा पर थोड़ा ही दिया 

डूब जाते तुम्हारी झील सी  आँखों में 
फिर ध्यान आया ठंड बहुत है  

आलू के कोफ्ता से तो कुफत हो गई 
पड़ोसन थोड़ा सा प्यार मुफ्त में ले गई 

आज खीर में चीनी कम है 
पर तुम्हारे प्यार में बड़ा दम है 

इन कजरारी आँखों से घूरा ना करो 
बड़ा मुश्किल होता है इन्हे देखकर मुस्कुराना  

रायता लौकी का अच्छा था 
बेलन जब मारा तो बचाव में वो चौकी भी अच्छा था 

कभी पालक पनीर भी बनाया करो 
हमें देखकर थोड़ा सा तो मुस्कुराया करो 

तुम सांभर हो तो मैं हूँ डोसा 
बस कायम रहे मुझ पर तुम्हारा भरोसा 
नहीं तो मुझे बना दोगी चटनी बिन समोसा 

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aashiq



आशिक़ 

aashiq


जबसे बगल वाली पर गाना बना
तबसे बगल में जाना हो गया मना
जहर तो तब कोई बो  गया
जब सामने वाली पर भी एक ठो हो  गया


अखियां चार कहा से करे अब
जब जमाना ही बेवफा हो गया
पड़ोसन को आँख मारी तो 
तो बुढऊ खफा हो गया 

नैना के नैनो से घायल हुए
काजल की अँखियो के कायल हुए
खुशबू की खुशबू जब तक आती
पूजा के पैरो के पायल हुए

किस्से बहुत हुए , कहानियाँ बहुत बनी

गलियों के आशिको से इस आशिकी में बहुत ठनी


कभी लोगो  ने बदनाम किया ,कभी अपने हुनर ने नाम किया

कभी किसी ने दिलफेंक आशिक कहा

कभी किसी ने बहता हुआ साहिल कहा
अब किस - किस को समझाते की, लोगो ने किस्सा क्यों आम किया

हमने तो इश्क़ को खुदा मानके, हर चेहरे से प्यार किया
तुमने मुहब्बत की तंग गलियों से, गुजरने से इंकार किया
और जब हम गुजरे तो कहते हो
गली में रहने वाले दिलो को बेकरार किया

हमने तो मुहब्बत का शहर बसा दिया 
इस नफरत भरी दुनियां को जीना सीखा दिया 
तभी तो इस दुनियां ने हमें आशिक़ बना दिया 


कभी आओ गली में हमारी ,और यकीं  करो हमारा 
बनालोगे आशियाना , देखके इस गली का नजारा 


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section 377 and gay



अनुच्छेद - 377  और समलैंगिगता -



विगत 6 सितम्बर को आई पी सी की धारा 377 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित ठहराते हुए कहा की हमें व्यक्ति की पसंद को आजादी देनी होगी तथा यह गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसले में आईपीसी की धारा-377 को समानता और संवैधानिक  अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए आंशिक रूप से खारिज कर दिया है हालाँकि कुछ मसलो में ये प्रभावी रहेगा। 



section 377 and gay


फैसला आते ही बाहर खड़े हजारो समलैंगिको ने अपनी ख़ुशी का इजहार अपने तरीके से किया। अब एक बार फिर इस कानून पर नए सिरे से चर्चा होना स्वाभाविक है।  परन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की भारत जैसे परम्परागत देश में इस तरह के फैसले कितनी अहमियत रखते है। जहाँ आज भी इन मुद्दों पर खुलकर चर्चा करना भी समाज पसंद नहीं करता वहां अब कानूनन रूप से इसे मान्यता मिलना भारतीय समाज में नए बदलाव  का संकेत है।  इसके साथ ही कुछ नए सवाल सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहे है , जोकि इस कानून में दिलचस्पी को बढ़ाते ही है , इनके कुछ उदाहरण निम्न है। 

धारा 377 में कोई रेप केस आया तो न्यायधीश कैसे तय करेंगे कि किसका बलात्कार हुआ? 

बच्चो के जेंडर का निर्धारण कैसे होगा  ?

अब लड़को  को भी डर  है रेप होने का। 


हालाँकि सरकार  ने इस मुद्दे पर अपनी भूमिका नगण्य रखी है और सबकुछ  कोर्ट पर छोड़ दिया है , अभी भी धारा 377 आंशिक रूप से कुछ मसलो में प्रभावी रहेगी , परन्तु देखना यह है की  क्या भारतीय समाज इसे अपनी स्वीकार्यता देता है या नहीं  ? 





statue of unity


स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - सरदार पटेल की मूर्ति 


भारत में बनने वाली सरदार पटेल की इस 182 मीटर लम्बी विशालकाय प्रतिमा को बनाने की जिम्मेदारी लार्सन एन्ड ट्रूबो नामक कंपनी को दी गई है। नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए इस योजना की शुरुआत की गई थी। तथा देश भर के किसानो से लोहा भी माँगा गया था। मूर्ति का एक हिस्सा कांसे का है जिसका निर्माण चीन के एक कारखाने टीक्यू आर्ट फैक्ट्री में हुआ है। इसके अलावा भी अन्य सामग्री चीन से मंगवाई जा रही है।
statue of unity

भारत जैसे देश में जहाँ आबादी का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे रहने को मजबूर है , यहाँ तक की अधिसंख्य परिवारों को दो जून की रोटी भी नहीं नसीब हो पाती है , उस देश में इस तरह की परियोजनाएं अपने ही देश की गरीबी का मजाक उड़ाती है। मेरा मानना है की जब तक देश में एक भी इंसान गरीबी रेखा के नीचे है तब तक हम उसी देश के करदाताओं काएक भी पैसा अपनी राजशाही और राजनीतिक स्वार्थ के लिए खर्च नहीं कर सकते। ऊपर से आप एक ओर मेक इन इंडिया की बाते करते है और दूसरी तरफ मेड इन चाइना के माल से सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महान शख्शियत की मूर्ति सुसज्जित करवाते है। जिसपे आप सोचते है की हम भारतीयों को गर्व की अनुभूति हो, तो हमें अनुभूति तो होती है लेकिन गर्व की नहीं, शर्म की। अगर हम अन्य देशो की तुलना करते हुए उनसे ऊँची मूर्ति लगा रहे है तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए की उनमे से अधिकांश विकसित देश है।

मूर्ति में लगने वाली रकम जो की लगभग 3000 करोड़ के करीब है सोच के इस देश के नीति नियंताओ की मंशा पे संदेह होता है। दूसरी तरफ क्या हाड़ - मांस के बने इंसान खाली पेट इस मूर्ति के दर्शन पाकर तृप्त हो सकेंगे। भारत का करदाता अपना कर ख़ुशी - ख़ुशी इसलिए देता है की उसका देश तरक्की कर सके उसके देश के गरीब भाई - बहनो के लिए चलने वाली योजनाए सुचारु रूप से जारी रह सके नाकि चाइना के माल से मूर्तियां  खड़ी हो सके।

विश्व स्तर पर भारत को बस विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति के ख़िताब से नवाजे जाने के सिवा कुछ और नहीं हासिल होने वाला और घरेलु स्तर पर लम्बे समय तक चलने वाला एक राजनीतिक मुद्दा।


rafale aircraft deal

राफेल विमान सौदा -

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राफेल विमान 

आइये पहले तो राफेल डील की शुरुआत पे एक संछिप्त नजर डालते है (क्योंकि जवाब विषय को देखते हुए थोड़ा लम्बा है )-

कारगिल युद्ध के बाद सेना के लिए ऐसे लड़ाकू विमानों की आवश्यकता महसूस हुई जो सेना की जरूरतों को पूरा कर सके , जिसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार में 126 विमानों की खरीद का प्रस्ताव रखा गया और अगली कांग्रेस की सरकार ने प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। अमेरिका , ब्रिटेन, रूस इत्यादि 6 देशो के लड़ाकू विमानों का निरीक्षण करने के बाद यूपीए सरकार ने फ़्रांस के राफेल विमानों पर अपनी मुहर लगाई जो की अन्य विमानों की तुलना में कम कीमत ,गुणवत्ता और रखरखाव में भी सस्ते थे। परन्तु यूपीए सरकार के कार्यकाल में तकनीकी कारणों की वजह से यह डील पूरी नहीं हो पाई। उस समय एचएएल को भारत में इसके पुर्जो को आपस में जोड़ने का काम सौंपा जाना था। तकनीकी हस्तांतरण का मुद्दा भी फ़्रांस से डील ना हो पाने की प्रमुख वजह थी। रही बात विमान की तकनीकी की तो विमान की तकनीकी इतनी उन्नत है की 100 किलोमीटर दूर विमान को भी आसानी से निशाना बना सकती है , यहॉँ तक की अमेरिका और चीन के पास भी इतनी उन्नत श्रेणी के विमान नहीं है।

मोदी सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा फ़्रांस की यात्रा के दौरान इस डील को आगे बढ़ाते हुए दोनों देशो ने इस पर अपनी सहमति दे दी।
अब अपना रुख विवाद की तरफ करते है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस डील को पूरा करने के बाद जानकारी दी की उन्होंने इस डील में कांग्रेस की अपेक्षा 12600 करोड़ की बचत की परन्तु उन्होंने इस तथ्य को सार्वजनिक नहीं किया की डील हुई कितने में है उन्होंने कहा की फ़्रांस इसके अलावा कलपुर्जे और मिसाइल अपने पास से देगा।
बस यही से विवाद की शुरुआत होती है। कांग्रेस ने अपने समय होने वाली डील से सम्बंधित समस्त आंकड़े रखते हुए मोदी सरकार से डील सार्वजनिक करने की मांग की है और मोदी सरकार डील की रकम को सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक ना करने का हवाला देते हुए डील पर अपनी पीठ थपथपा रही है।
कांग्रेस का आरोप है की जो विमान वह 428 करोड़ में खरीद रही थी , मोदी सरकार उसी के 1555 करोड़ दे रही है। और भारत में कलपुर्जो को जोड़ने का काम एचएएल को ना देकर अनिल अम्बानी की कम्पनी रिलायंस डिफेन्स को दिया गया है , हालाँकि अनिल अम्बानी ने राहुल गाँधी को लिखे पत्र में यह स्पष्ट किया है की उनका इस डील से कोई वास्ता नहीं है। और नाहीं सरकार की तरफ से उनके पास इस तरह का कोई प्रस्ताव आया है। यहाँ तक की अनिल अम्बानी की स्वामित्व वाली कंपनियों ने नेशनल हेराल्ड में प्रकाशित इससे सम्बंधित एक खबर को संज्ञान में लेते हुए 5000 करोड़ का मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है।
सारा विवाद डील की कीमतों और भारत में इसके रखरखाव और कलपुर्जो को जोड़ने में रिलायंस डिफेन्स और इसकी सहायक कंपनियों की भूमिका को लेकर है। सरकार का कहना है की फ़्रांसिसी कंपनी भारत में "मेक इन इंडिया " कार्यक्रम को बढ़ावा देगी जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं था। जबकि कांग्रेस इस तथ्य को सिरे से ख़ारिज करती है और डील की कीमतों को बढ़ा हुआ बताकर डील में घोटाले का होना बताती है।
मेरे अनुसार एक बात तो तय है की विमान बड़ी ही उन्नत श्रेणी के है जिसका कोई जवाब नहीं है और इस तथ्य को दोनों पार्टियाँ और अन्य रक्षा विशेषज्ञ भी मानते है । इस डील से भारतीय वायुसेना का आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही और साथ में देश की सुरक्षा व्यवस्था भी और मजबूत होगी। दूसरी बात कांग्रेस सरकार ने देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए राफेल जैसे अनेक सौदों को लटकाये रखा जो की देश की सुरक्षा के लिए अत्यंत ही आवश्यक थी और जिसे मोदी सरकार ने तेजी से पूरा करने का काम किया है। कांग्रेस के समय डील के मसौदो पर ही चर्चा हुई थी तथा समय के साथ लागत मूल्य बढ़ना लाजमी है। एक और तथ्य जो की सबसे आवश्यक है वह यह है की विक्रेता देश और उसकी कम्पनियाँ अपने उत्पाद को अलग अलग देशो को अलग अलग मूल्यों पर बेचती है तथा मूल्य उजागर होने पर उनकी तकनीकी के स्तर का आंकलन भी किया जा सकता है इसलिए कई समझौतो में इसके मूल्य को गोपनीय रखने की शर्तपर ही कम्पनियाँ अपना उत्पाद देने को तैयार होती है। इस कारण हो सकता है सरकार इस को उजागर करने से बच रही हो। अगर इस डील में किसी तरह का घोटाला हुआ है जैसा की कांग्रेस के आरोप है तो उसके लिए हमें तब तक प्रतीक्षा करनी होगी जब तक दोनों देशो की किसी भी जाँच एजेंसी से इस तरह की कोई खबर नहीं आती। जैसा की अभी तक किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की है या भारतीय कैग की रिपोर्ट जो की अपने मानको के अनुसार आडिट करती है। अगर कांग्रेस के आरोप निराधार है तो उसे देश की सुरक्षा से सम्बंधित मसलो पर राजनीति नहीं करनी चाहिए जो की उसी के लिए घातक है और अगर वास्तव में घोटाला हुआ है तो सिद्ध होने पर भाजपा भी उसी की श्रेणी में खड़ी हो जाएगी।
लेखक द्वारा क्वोरा पर राफेल विमान के मुद्दे पर पूछे गए सवाल पर दिए गए जवाब से साभार -

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