mrityu



मृत्यु 

mrityu


मृत्यु तूं सत्य है, पर डरावनी नहीं
निडर है तुझसे मनुष्य , बना कोई कहानी नई
दो जहाँ के बीच की कड़ी  है तू
हर पल हर छण  सामने खड़ी है तू

विचलित करते ह्रदय को, तेरे विचार है
जर्जर ,बूढी, थकी  हड्डियों को तेरा इन्तजार है
कुछ तो विचार कर मानवता के दुश्मनो का
पापी ,अत्याचारी , रक्तपिपासु  और  भ्रष्टाचारी दुर्जनो का 
पर तुझको तो साधु और सज्जनो  से ही प्यार है
जिनका कारोबार ही परोपकार है 


अमर होने की चाह नहीं मुझको 

तुझसे मिलने की परवाह नहीं मुझको 
पता है  मिलूंगा तुझसे किसी दिन
ए  खुदा  जीवन के हर रंग दे मुझको 

तू छणिक है, पर सुन्दर नहीं 
तूं कही बाहर है ,पर  मेरे अंदर नहीं 
तू लेती है , मैं देता हूँ 
तू बेरंगी है ,मैं रंग बिरंगा हूँ 

तूं मैं को हरने वाली है 

मैं ,मैं में रहने वाला हूँ 


तूं अपनी करने वाली है 
मैं अपना करने वाला हूँ 
तूँ एक अंधेरी हवेली है 
मै उसमे दीप जलाने वाला हूँ 



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bjp ka rag congresi aur ek desi

बीजेपी का राग कांग्रेसी और एक देसी  - 



इधर कुछ दिनो से भारतीय राजनीति मे एक नये तरह का गीत सत्ता पक्ष द्वारा गुनगुनाया जा रहा है जिसे राग कांग्रेसी कहा जाता है . राग कॉंग्रेसी मे आवश्यकता और समय की नजाकत के अनुसार केवल उसके बोल मे परिवर्तन किया जाता है .



भारतीय जनता पार्टी इसी राग को गाते हुए सन 2014 मे सत्ता मे आई थी . और आज अपनी हर गलती पर इसी राग का सहारा लेकर जनता का मनोरंजन करती है . जिस भाजपा ने काग्रेस के शासन काल मे तेल के मूल्यो मे वृद्धि का विरोध किया था , जिसने तेल मूल्य का बाजार के अनुसार निर्धारण का भी विरोध किया था वह आज गरीबो का तेल निकालने पर तुली हुई है . अंतराष्ट्रीय बजार मे तेल के दाम लगातार घटने के बावजूद भारत मे खुदरा मूल्यो मे वृद्धि निरंतर जारी है .

सरकार से पूछने पर उसका वही कांग्रेसी राग शुरु हो जाता है की कांग्रेस के समय भी कीमते 80 के पार गई थी . परंतु यह नही बताया जाता की जिस तेल का मूल्य अंतराष्ट्रीय बजार मे आज 75 डॉलर प्रति बैरल के आस - पास है , कांग्रेस के समय 144 पर पहुंच गई थी . एक तरफ जहां आपको राम मंदिर के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय का इंतजार है वही उसी उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार किया की एससी /एसटी एक्ट मे सवर्णो के खिलाफ अधिकतर मामले फर्जी होते है इस कारण प्राथमिकी दर्ज होते ही उनकी तत्काल गिरफ्तारी ना की जाये लेकिन आपको उच्चतम न्यायालय का न्याय पसंद नही आता है और सवर्णो के खिलाफ उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय को नीचा दिखाने के लिये संसद मे बिल पारित करवा दिया .


उच्चतम न्यायालय ने सिर्फ इतना ही कहा था की जांच के बाद ही दोषी पाये जाने पर गिरफ्तारी हो अर्थात पीड़ित को न्याय मिले लेकिन कही किसी के झूठ के चक्कर मे कोई दूसरा प्रताडित ना हो जाये . जिस जीएसटी का आप 12 % पर विरोध कर रहे थे उसे आप 5 ,, 12 , 18 और 28 % की दर से लेते आये . अभी भी व्यापारी जीएसटी को समझने मे अपना माथा खपा रहे है .

आपकी बातो मे पहले 70 साल अब 60 साल देश की दुर्दशा के लिये कांग्रेस जिम्मेदार होती है .और 60 सालो से देश का विकास ठप्प है . और आपने आकर 4 सालो मे देश की अर्थव्यवस्था को नया मुकाम दे दिया है , आप ने ही देश मे डिजिटल क्रांति लाई है , आपने ही रेल से लेकर दिल्ली मेट्रो तक की नीव रखी है .


आप के अनुसार इंदिरा गाँधी बहुत ही लचर प्रशासक थी . परंतु क्या कोई जिम्मेदारी आपके चुनावी घोषणा पत्रो मे किये गये वादो के लिये नही बनती . आप चार साल से सत्ता मे रहने के बाद भी कॉंग्रेस को पानी पी पी कर कोसते है , आप स्थानो जैसे सड़क ,रेलवे स्टेशन इत्यादि के नाम सिर्फ इसलिये बदलते है की कांग्रेस भी ऐसा करती थी . आप ने अटल की अस्थि यात्रा सिर्फ इसलिये निकाली की कांग्रेस भी ऐसा करती थी , वैसे यह काम आपलोगो ने भले ही कांग्रेस की नकल कर के किया हो लेकिन अच्छा ही किया वर्ना जिस अटल जी की सुध आप लोग नही लेते थे कम से कम कांग्रेस के कारण मरणोपरांत ही सही थोड़ी इज्जत तो अटल जी को दी . फिर तो आपके अनुसार कांग्रेस जो करती थी वो सब सही है क्योंकि आप भी तो उसी रास्ते पर चल रहे है . अगर आपने इन चार सालो मे सिर्फ कांग्रेस को कोसना छोड़कर कोई और काम किया है तो वो है सम्पूर्ण विश्व का भ्रमण अभी एक साल और बाकी है , कुछ बचा हो तो उसे भी देख लीजिये , घबडाइए मत इसका रिकार्ड आप ही के नाम रहेगा नाकी कांग्रेस के .

और लौटने के बाद एक नजर क्योटो बनी काशी पर और देश के बाकी स्मार्ट शहरो पर पर भी जरूर डालियेगा . उसके बाद उस गंगा मा से भी जरूर मिलिएगा जो आपको बुलाती रही है और जिसे आपने गंदगी के दामन से मुक्ति का वादा किया था .

देश का किसान भी आपसे अपनी दुगनी आय का तरीका पूछने के लिये कतार मे खड़ा है और साथ मे वे करोड़ो युवा भी आपसे अपने मन की बात करने वाले है जिनको आपने पकौड़ी बेचने के काम पर लगाया था . कतार से बाहर ऐसे लोगो की भी भीड़ है जो देशभक्ति के प्रमाणपत्रो के वितरण का इंतजार कर रहे है . और खाली बैंक खातो , खाली सिलेंडर और खाली पेट के साथ ही इस देश के गरीब भी .


atal ki kavita



Hindi motivational  श्रृंखला की शुरुआत आज महान कवि और राजनेता अटल बिहारी बाजपेयी जी की उस कविता की चँद पंक्तियों  से की जा रही है जिसमे उन्होंने जीवन में कभी भी आशा और उम्मीद को टूटने ना देने को कहा है। 






टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपने की सुने कौन सिसकी
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता-मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं

atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


अटल बिहारी बाजपेयी की अस्थियाँ और मोदी सरकार 



atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


अटल बिहारी बाजपेयी भारतीय राजनीति का वो प्रथम चेहरा जिसने पहली बार बिना पूर्ण बहुमत के पांच साल गैर कांग्रेसी सरकार का संचालन किया।  दो सीटों से शुरू उनका सफर उनके मजबूत इरादों और वाकपटुता की  कौशल की बदौलत  केंद्र में सरकार बनाने तक एक ऐसा मुकाम तक पहुँच चुका  था जहाँ वे सीधे तौर पर   लोगो के दिलो में जगह बनाने में कामयाब हुए। यह बाजपेयी जी की स्वच्छ  और उदारवादी  छवि का ही  परिणाम है की जिस भारतीय जनता  पार्टी ने  राजनीति से सन्यास लेने के बाद उनकी कोई खबर नहीं ली आज उनकी अस्थियो से  भी राजनीतिक लाभ लेने से बाज नहीं आ रही है , वो भी ऐसे समय जब पार्टी द्वारा मोदी को पार्टी और देश का  सबसे लोकप्रिय नेता बताया जा रहा है।

atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


आखिर ऐसा कुछ तो हुआ होगा जिससे भारतीय जनता पार्टी और  उसकी पार्टी के सबसे बड़े और लोकप्रिय  नेता  भी आज एक मृत व्यक्ति की लोकप्रियता और उसके आचरण को भुनाने में लगे हुए है।

कारण जानने के लिए हमें दोनों का तुलनात्मक रूप से अध्ययन करना पड़ेगा।
माना जाता है की बाजपेयी पार्टी का वह उदारवादी चेहरा थे जिनकी देशभक्ति पर विपक्ष भी विश्वास करता था इसी कारण  नरसिम्हा राव की सरकार ने विश्व के मंच पे विपक्ष में रहते हुए भी बाजपेयी जी को भारत का पक्ष रखने को भेजा था।
जबकि मोदी को  खुद उनकी पार्टी के ही कई नेता  शक की नजरो से देखते है। इसका कारण यह है की  लालकृष्ण आडवाणी ,मुरली मनोहर जोशी  और यशवंत सिंह समेत तमाम ऐसे बड़े नेता है,  जिन्होंने पार्टी को इस मुकाम तक पहुँचाया की उसे संसद में विपक्ष का दर्जा मिल सके।  और बाजपेयी जी ने पहली बार गठबंधन की राजनीति में भाजपा  सरकार का पांच वर्षो का कार्यकाल पूरा किया।  आज वही नेता मोदी द्वारा किनारे लगा दिए गए।  कभी आडवाणी के ही कहने पर अटल जी ने मोदी को अभयदान दिया था , वही आडवाणी आज राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लायक भी नहीं समझे गए।
अटल जी ने हर चुनावी दौरों में जो सत्य था उसी को आधार बनाते हुए अपने भाषण दिए जबकि मोदी द्वारा दिए  आंकड़े ही गई बार गलत होते रहे है भाषण की तो बात अभी दूर है। 

अटल ने कभी सत्ता का मोह नहीं किया उनके लिए देशहित सर्वोपरि था।  इसलिए विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने सरकार की उन बातो का न केवल समर्थन किया बल्कि धन्यवाद भी दिया जो राष्ट्रहित में थी , यही वजह थी की सरकार भी उनसे अनेक मुद्दों पर सलाह लिया करती थी। अटल जी ने कभी देशभक्ति का दिखावा नहीं किया और नाहीं अपने हिन्दू होने का।


वहीं  वर्तमान सरकार सत्ता की चाहत में हिन्दू और मुसलमानो में वैमनस्य की भावना भरने में लगी हुई है।  अगर सरकार को देश की चिंता होती तो वह इन मुद्दों को हवा देने की बजाय इनको शान्त करने में अपना योगदान देती। सत्ता की चाह ने प्रेस को भी नहीं छोड़ा और उनपर भी नियंत्रण की कोशिशे  होती रही ।


atal bihari bajpeyi ki asthiya aur modi sarkar


मोदी सरकार  यदि  गुजरात मॉडल के बलबूते सत्ता पर आई है तो उसे इन चार सालो में किये गए विकास कार्यो को जनता के सामने रखना चाहिए नाकि अटल जी जैसे महान इंसान की अस्थियो को , जिनको जनता एक नेता से ऊपर उठकर देखने लगी है। सरकार को अपने चुनावी घोषणापत्र को जो उसने 2014 के चुनावों में छपवाए थे उनका वितरण हर क्षेत्र में करना चाहिए  अटल जी की अस्थियों का। और अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाती तो उसे अपने गिरेबां में जरूर एक बार झाकना चाहिए।



महान नेता और महान कवि श्री  अटल बिहारी बाजपेयी जी की कुछ अटल पंक्तियाँ आपसे जरूर साँझा करना चहूंगां। 



बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।




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                         मोदी बनाम विपक्ष 




kavi



कवि 



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कवि हूँ , मैं देश दुनिया की छवि हूँ मैं
 हर युग को गाता हूँ मै , हर युग में जाता हूँ मैं
मुहब्बत का पैगाम देता,रवि हूँ मै

मैंने देखे है खून से सने मैदानों को
मैंने देखे है मरते वीर जवानो को
मैंने देखा है बिलखती माँओं को
मैंने देखा है विपदा की घनघोर घटाओ को
कविता में जब इन छणो को पिरोता हूँ
मैंने देखा है रोते श्रोताओ को


त्रेता से लेकर कलियुग तक

और राम के उस सतयुग तक
स्त्री को बिलखते देखा है
उस युग की द्रोपती से लेकर
इस युग की निर्भया तक को तड़पते देखा है

मैंने देखा है राजाओ के अहंकारो को 
और उन्ही राजाओ की जलती चिताओ को 
मैंने देखा है आम्भी और जयचंद जैसे गद्दारो को 
और प्रताप से लेकर भगत सिंह जैसे शूरमाओं को 

अग्नि में समाहित सती को भी देखा है 
और सावित्री जैसी हठी को भी देखा है 
मैंने देखा है झाँसी की मर्दानी को 
और सिंघनी जैसी दुर्गावती रानी को 


हर युग की अपनी एक कहानी है 


कभी गाँधी कभी जयप्रकाश की आंधी है 
तस्वीरें बनती है और बिगड़ती 
सब कवि की कविता में झलकती है 

लिखता वही हूँ जो सही होता है 
हर काल को 
चंद पंक्तियों में 
पिरोने वाला ही कवि होता है। ..... 





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kahani

kahani

कहानी 



बहुत दिन हो गए थे कोई कहानी लिखे सोचा आज जरूर लिखूंगा आखिर कही ना कही मन में अपूर्वा की कही बातें घूम रही थी की आप कहानी बहुत अच्छा लिखते है मेरे बेटे के लिए एक लिख दीजिये न प्लीज।

अपूर्वा मेरी क्लास मेट थी स्नातक के प्रथम वर्ष से ही मैं उसे जानता था , कारण वह मेरे बड़े भाई साहब के दूर के रिश्ते की साली भी लगती थी लेकिन कभी उससे मुलाकात नहीं थी।

वो तो एक दिन उसकी माँ अपूर्वा के साथ  भाई साहब से मिलने चली आई थी शायद कुछ काम था उनको। तभी बातों - बातों में पता चला की उसने भी  स्टीफेंस कॉलेज में एडमिशन लिया है। भाई साहब ने मुझको आवाज लगाई " सुनील "
मैं उनकी आवाज सुनकर दौड़ा चला आया भाई साहब एकदम नपे तुले और अनुशासनवादी इंसान थे  जिस वजह से उनका भय और सम्मान दोनों ही हमारे ह्रदय में रहता था।

" ये देखो ये अपूर्वा है तुम्हारे ही कॉलेज में पढ़ती है "
मैंने सहमति से सिर हिला दिया  " जी भैया "
मैं वहा सर झुकाये खड़ा रहा जब तक की वे लोग चले ना गए


उसके बाद अक्सर ही अपूर्वा से कॉलेज में मुलाकात हो जाती थी धीरे - धीरे मुलाकात कब प्यार में बदल गया पता ही ना चला।


kahani

अब तो बिना उसके मन ही नहीं लगता था। जिस दिन वह कॉलेज नहीं आती ,उस दिन ऐसा लगता जैसे पूरा कॉलेज ही वीरान हो गया है। चाहे लड़कपन का प्यार कहिये या जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही होने वाला पहला प्यार। पर दीवानगी में कही कोई कमी नहीं थी ,
दोनों ने निश्चय किया की बात अब घर वालो को बता देनी चाहिए।  वो बरसात की रात थी जब दोनों इस निश्चय से अपने घरो की ओर एक दूसरे से विदा हुए की जल्द ही घरवालों की मर्जी से  एक हो जायेंगे और पूरा जीवन एक दुसरे के प्यार में बिता देंगे।

पर घर पहुँचते ही जो बम का गोला गिरा उसके तबाही के निशान आज भी मौजूद है , अपूर्वा की माँ ने उसकी शादी अमेरिका में रहने वाली उसकी सहेली के बेटे से तय कर दी थी और उसी रात उनकी फ्लाइट होने की वजह से मंगनी होनी थी । अपूर्वा ने लाख समझाने की कोशिश की पर किसी ने उसकी एक नहीं सुनी।



आता हूँ  - दरवाजे की घंटी के साथ ही मेरी चेतना भूत से वर्तमान में आ जाती है।

" साहब आपका टेलीग्राम आया है "  - कहते हुए डाकिया दो लिफाफे  मेरे हाथ में थमा देता है।



एक में शायद कोई सरकारी पैगाम था - तो राज्य सरकार इस साल का श्रेष्ठ साहित्य पुरस्कार मुझे देने जा रही है , पढ़कर मन प्रसन्न हुआ और उसकी कही  एक बात याद आ गई कॉलेज के दिनों से ही अपूर्वा मेरे लिखे पत्रों को देखकर कहती थी तुम एक दिन बड़े लेखक जरूर बनोगे जितनी गहराई तुम्हारे शब्दों में है मैंने उतनी बहुत ही कम लेखकों की कलम में देखी है तुम तो जिसको प्रेम पत्र लिखोगे वो  तुम्हारी ही हो जाएगी तब लेखक जी  मुझे भूल तो नहीं जाओगे।

काश तुम्हारी कही बाते सही हो जाती , ये लेखक का दिल ही तो था जिसने अपने दिल और  जीवन में तुम्हारे सिवा किसी और को ना रखा सिवा तन्हाई के।

तुम्हारी मुस्कुराहट भरी तस्वीर देखकर ही दिल को तसल्ली मिल जाती थी , तुम्हारी खुशियों से ही ये दिल खुश हो जाता था। किन्तु जब तुम्हारे  ऊपर प्रकृति ने दुखो का पहाड़ गिरा दिया तब से ये दिल आज तक रोता ही आया है , किसे पता की 15 दिन पहले तुम्हारी खुशियों की वो आखरी उड़ान होगी जिसमे तुमने अपने पति को मुस्कुराते हुए विदा किया था।  और उसके बाद तुमने यहीं बसने की सोच ली ताकि अपने सास ससुर की सेवा कर सको।

इस दूसरे लिफाफे में क्या है शायद किसी की मेडिकल रिपोर्ट है , ये तो .......अपूर्वा के पति की रिपोर्ट है उन्हें क्या हो गया था   
 ........ ....... इसमें तो लिखा है वे पिता बनने के लिए पूरी तरह फिट नहीं थे  ......
फिर ये ........ अपूर्वा का ..... बेटा  .... ...... . वो बरसात की रात .........


लेखक द्वारा क्वोरा पर लिखित एक जवाब से साभार-

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navjot singh siddhu - imran khan



नवजोत सिंह सिद्धू - इमरान खान 

navjot singh siddhu - imran khan

पाकिस्तान में इस माह होने वाले चुनावों में इमरान खान की पार्टी तहरीक - ए - इन्साफ (p t i ) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इमरान खान उस पार्टी के सबसे बड़े नेता। इमरान खान क्रिकेट की दुनिया को अलविदा कहने के बाद से ही राजनीति में सक्रिय  थे। और उन्होंने तहरीक - ए - इन्साफ नामक पार्टी का गठन किया। जैसा की सबको पता है खान अपने व्यक्तिगत जीवन में काफी विवादित रहे , उनकी पूर्व  पत्नियों ने उनपर कई आरोप  लगाए परन्तु इससे उनकी लोकप्रियता पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा। 


क्रिकेट में भी खान ने पाकिस्तान को इकलौता विश्वकप 1992 में अपनी कप्तानी में दिलाया था। क्रिकेट जगत में कई उपलब्धियां उनके नाम पर आज भी दर्ज है। सिद्धू से लेकर गावस्कर तक उनके मित्र हुआ करते थे यही वजह है की अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने सिद्धू , कपिलदेव और गावस्कर को आमंत्रित किया था। 

गावस्कर और कपिलदेव तो नहीं जा पाए किन्तु सिद्धू अपने मित्र के शपथ ग्रहण समारोह में खुद को जाने से नहीं रोक पाए। गावस्कर और कपिलदेव ने अलग - अलग कारणों का हवाला देते हुए जाने से इंकार कर दिया। 
इसको लेकर भारत में काफी हो हल्ला  मचा की क्या सिद्धू का जाना सही था।  सिद्धू ने भी वापस आकर कहा की उनका जो आजतक यहाँ  नहीं मिला वह पाकिस्तान में दो दिन में ही मिल गया। सिद्धू ने भी इमरान खान की तरह राजनीतिक महारत हासिल कर ली है इसी वजह से चर्चा होना लाजिमी है। 

भारत और पकिस्तान के सम्बन्ध जग जाहिर है।  इधर कश्मीर को लेकर कुछ अर्से से दोनों देशो में तनाव देखा जा सकता है , इमरान खान ने भी आते ही यह साफ़ कर दिया की वह कश्मीर मुद्दे पर कोई नरमी नहीं बरतने वाले। मोदी सरकार की भांति ही उन्होंने पाकिस्तान के लोगो से वादों की झड़ी लगा दी  , उन्होंने सादगी दिखाते हुए प्रधानमंत्री आवास में रहने से मना कर दिया जहाँ सैकड़ो कर्मचारी और गाड़ियाँ है ,वो तो अपने घर में ही रहना चाहते थे किन्तु सुरक्षा कारणों से सैन्य आवास को ही अपना घर बना लिया।  


पाकिस्तान के अन्य हुकुमरानों से भले ही इमरान खान अलग हो या खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हो परन्तु कश्मीर मसले पर वे पूर्वर्ती  सरकारों के बनाये राह पर ही चलते हुए दिख रहे है। यही वजह है की सिद्धू  के पकिस्तान मेहमाननवाजी के अलग - अलग अर्थ लगाए जा रहे है।  कइयों का मानना है की इमरान खान ने भारतीय प्रधानमंत्री को न्यौता नहीं दिया था जबकि सिद्धू पूर्व में भाजपा में उपेक्षित  होने  की अपनी भड़ास निकालने और भारतीय प्रधानमंत्री को नीचा  दिखाने पाकिस्तान पहुँच गए। वैसे सिद्धू ने इसे सियासी रंग ना देते हुए  दोस्ताना बताया और शांति का पैगाम देने वाला बताया है । किन्तु विवाद यही तक होता तो गनीमत थी  उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी सेना प्रमुख को गले भी लगा लिया  इसके पीछे सिद्धू की भावना जो भी रही हो  किन्तु जब आप सियासत में होते है तो सब कुछ सियासी ही हो जाता है। 

navjot singh siddhu - imran khan


सोशल मीडिया पर सिद्धू पाकिस्तान जाने को लेकर काफी ट्रोल हो चुके है कइयों ने तो उन्हें भारत विरोधी भी बता डाला है , अनेक राजनीतिक दलों ने सिद्धू पर निशाना साधा है शिवसेना ने तो इसे राष्ट्रविरोधी तक करार दे दिया है। खैर विवाद तो चलता ही रहेगा किन्तु दोस्ती और देश में सिद्धू के लिए क्या जरुरी था यह तो वही जाने। 



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