mandiro me bhagwan nahi milte ab


मंदिरो में भगवान् नहीं मिलते अब (कविता )


शंकर जी बसे  हिमालय  पर 
ना जाने दूध किसे पिलाते हो 
बछड़ा भी ना पी पाया जिसे 
उसे नाली  में क्यों बहाते हो 

जो जग के दाता  राम है 

अयोध्या जिनका धाम है 
उस धाम में क्यों आग लगाते हो 
अपनी सियासत चमकाते हो 

ब्रम्हा जी ने लिख दिया 
जनता ने तुमको भीख दिया 
उसपे इतना इतराते हो 
जाने कौन सी बेशर्मी के साबुन से नहाते हो 

है लिखा किसी संत ने, ना अपना आपा  खोए 
राजा हो या रंक सभी का अंत एक सा होए

बोले कन्हैया, सुन मेरी मइया 

देख धरा है मुझमे समाया देख  तीनो लोक है मेरे अंदर 
फिर भी अकड़े  क्यों सर्कस का बन्दर 

मैं ना मंदिर में मैं ना  मस्जिद में 
मुझको न ढूंढो तुम अपनी जिद में 
मैं तो हूँ हर उस दिल में समाया 
जिसमे ना  कोई मोह ना  कोईं माया 
जिसके दिल में हर प्राणी का  मर्म समाया । ........ 


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bewfai


बेवफाई 


मेंरे दिल के पन्नो पे तस्वीर तेरी है
जो मिट गई हथेली से
वो लकीर मेरी है

कभी तंग करते थे तुम हमको
कभी तंग करते थे हम तुमको
अब तंग करते हो तुम हमको
हम कह ना सके कुछ तुमको

वो फूल तेरे बगिया का
घर मेरे जो रखा है
उस फूल से मेरे घर का
हर कोना  महका है

पर मेरे दिल के कोने में 
तेरी ही खुशबू  है
उस रात की यादें है 
सारी मुलाकाते है 

वफ़ा मेरी तुझको 
एक बार बुलाती है 
तेरी बेवफाई के 
किस्से सुनाती है 

की होकर बेवफा यूँ 
दिल जो मेरा तोड़ा  है 
बर्बादी की राह पर मुझको ला छोड़ा है 

तूं बेवफा है तो क्या हुआ 
यूँ खंजर प्यार का चला दिया 
और प्यार करने वालो का नाम 
सारे जग में हंसा दिया। 




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man ki baat

मन  की बात 


हम क्या बोलेंगे साहब आप ही इतना कुछ सुना देते है की मन खुश हो जाता है , आपके पास तो बड़का बड़का माइक है ,लाखो लोगो की भीड़ है हम तो उस भीड़ का हिस्सा मात्र है ,


आपने कह दिया की आप अच्छे दिन लाएंगे हम इसी उम्मीद पर आपको लेते आये। अभी कल की ही बात है हमारी घरवाली हमसे बोली अब तो छोटका लोगो पे तुम्हारी सरकार ज्यादा ध्यान देगी तुमको अपने दुकान के लिए भी आसानी से लोन मिल जायेगा , अब हम उसको कैसे समझाते की सरकार तो हर जगह नहीं जा सकते , कही बैंक का मैनेजर जालिम निकला तो सरकार उसको कैसे सबक सीखाएंगे और हम गरीब मनई अपनी फ़रियाद लेकर कहां - कहाँ तक दौड़ेंगे हाँ सरकार बोले है तो अच्छे दिन जरूर आएंगे सरकार के मंत्री तो है वो तो सरकार के आदेश पर काम करेंगे और उनके आदेश पर बैंक से लेकर हर विभाग के अधिकारी भी ढंग से काम करना शुरू कर देंगे आखिर कुछ तो डर होगा हमारे नए सरकार का।

पहले के सरकार तो कुछ बोलते ही नहीं थे और अबकी सरकार खूब बोलते है अरे रेडियो  पर भी तो अपने मन की बात करते है पर कभी हमारे मन की बात क्यों नहीं सुनते हम भी क्या क्या सोचते है सरकार के पास इतना टाइम कहा होता है की अपने देश  के मनई लोगो की बात सुन सके वो तो विदेश में जाकर ऊ ट्रम्प  के साथ  देश को आगे बढ़ाने की चर्चा  में ही बिजी रहते है , लेकिन देश का क्या उसके लिए सरकार जरूर कुछ आदेश देकर जाते होंगे । अब पिछले ही साल सरकार से शिकायत करनी थी  की हमारे इलाके के सांसद और विधायक जी कभी दर्शन ही नहीं देते , वो भी तो सरकार की ही पार्टी के है उनके अंदर भी तो सरकार का खौफ होना ही चाहिए , हमारे सरकार तो  इतने अच्छे है 18 घंटा तक तो खाली काम करते है और उनकी पार्टी के लोगो का इ हाल है , इहे लोग सरकार को बदनाम करते है।

अभी पिछले ही महीने पढ़ा था एगो भगोड़ा बैंक का पैसा लेकर विदेश भाग गया और लोग हमारे सरकार को सुना रहे है , अब हम क्या कहे मतलब सरकार थोड़ी ना जानते है कौन आदमी ईमानदार है और कौन बेईमान अगर इतना ही पता होता तो हमारे सरकार एक -  एक को जेल नहीं भिजवा दिए होते , आप मत सोचियेगा सरकार ये बैंक वाले भी कम धूर्त नहीं होते अभी छह महीने से हमारी ही अर्जी दबाकर रखे हुए है चार महीने में तो आधार से लिंक किये है कह रहे थे सब की सरकार की योजना है कोई भी आदमी अब फर्जी काम नहीं करवा पायेगा बताइये जैसे हम समझ ही नहीं रहे है की सब कैसे हमको चुतिया बना रहे है अगर ऐसा होता तो उ नीरव मोदी कैसे उल्लू बना देता।

man ki baat

ऐसे ही सब हमको नोटबंदी में उल्लू बनाये थे कह रहे थे सरकार नोट बॅंद कर दी है हम भी उनसे कहे हमरी सरकार जनता की सरकार है अगर नोटबंद की होगी तो जरूर पहले उतना नोटछाप ली होगी इतनी बुरबक नहीं है सब नोट तुम्ही लोग ब्लैक कर दिए होंगे देखे नहीं कितना करोड़ लेके लोग पकड़ा रहे है।  बात तो बहुत है सरकार पर पर उ  खाद की दुकान पर भी जाना है आधार से लिंक करवाने नहीं तो सब खाद ही नहीं देंगे।अब आप से क्या छुपाये सरकार  1000  रुपया के खाद के लिए आज हम महाजन के यहाँ से 2000 उधार लेकर आये है काहे से लोग बोल रहे थे बाकी का एक हजार वापस हमरे खाता में आएगा  तब हम सूद सहित महाजन को लौटा देंगे इहे गरीबी मिटाये खातिर तो हम आपको वोट दिए रहे की   एक थो आप ही है जो हमरा अच्छा दिन जरूर लाएंगे ऊ टीबी  पर आपका अच्छा दिन वाला प्रचार भी देखे रहे जिसमे किसान लोग आपस में बतिया रहे थे की अच्छा दिन आने वाला है , आप भले ही भूल गए होंगे सरकार लेकिन हमको आज भी ऊ प्रचार याद है आप निश्चिंत होकर अपना काम करते रहिये सरकार ऐसे ही हम आगे भी आपको अपनी मन की बात बताते रहेंगे आखिर आप सच्ची में कहा मिलने वाले।


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thelua and mathelua

ठेलुआ और मथेलुआ 


ठेलुआ और मथेलुआ अपने गाँव के सबसे बड़े लाल बुझक्कड़ हुआ करते थे , लाल बुझक्कड़ अत्यंत ही प्राचीन भाषा का शब्द है चूंकि दोनो की योग्यता के अनुसार इससे उचित शब्द की खोज नही की जा सकती थी इसलिये इसका प्रयोग ही यथोचित समझा गया . इस शब्द का अर्थ अलग अलग लोग अपने अपने अनुसार लगाते रहते है .

thelua and matheluaठेलुआ और मथेलुआ को अक्सर एक दूसरे के साथ बंदर और उसकी पूंछ की तरह देखा जाता था . बंदर की तरह ही दोनो को गुलाटियां लगाने की आदत थी और इसी आदत की वजह से बेचारे अपने हाथ पेर तुड़वा बैठते . गाँव मे होने वाले नुक्कड नाटको मे भी दोनो को बानर या रीक्ष का ही किरदार दिया जाता था जिसे दोनो बखूबी निभाते थे .कभी – कभी तो दोनो की हरकते देखकर ऐसा लगता की जैसे असली मे कोई बानर या रीक्ष आ गया है . लोग उनके अभिनय का भरपूर आनंद लेते थे और ठहाके मारकर हंसते – हंसते लोटपोट हो जाया करते थे . दोनो के घरवाले उनकी आदतो से परेशान होकर नित्य ही उनको ताने दिया करते थे जो की उनके लिये दिनचर्या का नियमित हिस्सा था .

एक बार की बात है उनके गाँव मे एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा का आगमन होता है , सारे ग्रामवासी उनकी सेवा सत्कार मे जुट जाते है , ठेलुआ और मथेलुआ की जोड़ी को भी महात्मा की सेवा मे लगा दिया जाता है .
ठेलुआ के आगे के दो दांत बढते हुए उसके होंठो को पार कर गये थे कई बार उसके दांतो पर वज्रपात की संभावना हुई लेकिन खुशकिस्मती से कोई संभावना आगे नही बढ सकी .शक्ल से काले ठेलुआ के आगे के दोनो दांत ही अंधेरे मे उसकी राष्‍ट्रीय पहचान बने हुए थे . वही मथेलुआ शरीर से हट्टा – कट्टा तो था पर था एक नंबर का डरपोक . स्कूल के दर पर दोनो केवल दो ही बार गये थे. एक बार स्कूल मे लगे आम के पेड़ से आम चुराने और दूसरी बार स्कूल मे जांच आने पर मास्टर साहब द्वारा बच्चो की गिनती मे जिसमे दोनो को पुरस्कार स्वरूप किस्मीबार नामक टॉफी मिली थी .
हाँ तो महात्मा जी द्वारा रोज शाम को गाँव के मैदान मे प्रवचन का आयोजन होता था जिसमे अन्य गाँव के लोग भी उनकी मधुर वाणी सुनकर चले आते थे , पास के ही गाँव के एक पुराने जमींदार हरखू सिंह बहुत ही राजा आदमी थे उन्होने ही महात्मा जी के प्रवचन मे होने वाले खर्चे जिसमे प्रसाद से लेकर तम्बू तक शामिल था स्वयं वहन किया करते थे .

एक दिन सांय काल के समय महात्मा जी प्रवचन दे रहे थे तभी तेज गति से आंधी और तूफान नामक दो डाकू आ धमके , दोनो ही बड़े जालिम किस्म के बंदे थे वो जानते थे की प्रवचन सुनने भारी संख्या मे लोग उपस्थित होंगे ,औरते तो ऐसे स्थल पर जाती ही अपने गहनो का प्रदर्शन करने प्रवचन मे उनका ध्यान कम अपनी बहुओं और सास की चुगली मे ज्यादा रहता है , किसकी सास ज्यादा अत्याचारी है और किसकी बहू ने उनके लायक पुत्र को अपने वश मे कर रखा है चर्चा का प्रमुख विषय रहता था .


आंधी तो कुछ हद तक मुलायम था पर तूफान किसी को नही बख्शता था . दोनो ही घोडो पर सवार थे, औरते तो उन्हे देखते ही रोने लगी तथा जिन गहनो को उन्हे दिखाने मे दिलचस्पी थी उन्ही को अब छुपाने की जगहे ढूंढी जाने लगी . मर्द जो अब तक महात्मा जी के प्रवचनो मे लीन कलियुगी संसार और मोहमाया से विरक्ति की बाते कर रहे थे अचानक से ही उन्हे अपने तिजोरी मे रखे धन की चिंता सताने लगी . ठेलुआ और मथेलुआ प्रवचन सुनते सुनते कब गहरी नीद्रा मे लीन  हो गये उन्हे कुछ पता ही नही चला ,महात्मा जी लोगो से धैर्य रखने की अपील कर रहे थे . आंधी और तूफान ने मंडप मे प्रवेश करते ही अपने बाहुबल दिखाना शुरु कर दिया उन्होने हवा मे कुछ गोलिया दागते हुए सभा मे भय का माहौल बना दिया भयभीत औरते स्वतः ही अपने अपने गहने उनके चरणो मे अर्पित करते जा रही थी जिससे उनके प्राण उनके पास बचे रहे .

बंदूक की आवाज सुनकर ठेलुआ और मथेलुआ दोनो की नींद खुल जाती है , दोनो अपने सामने डाकुओ को पाकर भयभीत हो जाते है तथा भय से अचानक ही तंबू की रस्सी उनके हाथ से खींच जाती है और आंधी और तूफान के उपर एक बड़ा हिस्सा आ गिरता है जिससे दोनो ही मूर्च्छित हो जाते है . ग्रामवासियो द्वारा तत्काल ही पुलिस को सूचित किया जाता है . अगले ही दिन से अखबारो मे ठेलुआ और मथेलुआ छा जाते है , सरकार से डाकुओ के सिर् पर रखा इनाम भी उन्हे प्राप्त होता है और तो और महात्मा जी उनको अपना शिष्य बना लेते है . गाँव की औरते जो अब तक उनकी बुराई करते नही थकती थी अपने – अपने गहने पाकर ठेलुआ – और मथेलुआ के लम्बी उम्र की कामना करती है . दोनो के घर वाले भी अब दोनो को नित्य नये पकवान बनाकर खिलाने लगते है . वैसे इन दोनो के स्वभाव मे कोई परिवर्तन अब भी नही आया था .आज भी दोनो पूर्व की भांति ही ज्ञानी थे. राजा और रानियो के साथ ही दोनो के दिन की शुरुआत होती थी ये अलग बात है राजा और रानी कभी चिडि के होते थे और कभी हुकुम के पर इनके आज तक नही हुए . शायद किसी ने ठीक ही कहा है ” अल्लाह मेहरबान तो गधा पहलवान “

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