deshwa

देशवा  (भोजपुरी कविता )


साहब साहब कहके पुकार मत बाबू
जेके देहले रहले वोट उहे ना बा काबू
खेल बा सब सत्ता के और
नेता हो गईल बाड़े बेकाबू

बोली बोलला मे आगे बाड़े देश के ई नेता
माई के आंख मे आंशु बा और
खून से लथपथ बा बेटा
रोज तमाशा चलअता देश मे ई का होता

हिन्दू , मुस्लिम रहलें इंहा बनके देखअ भाई भाई
मरलें नेता बांट देहले देखअ पाई पाई
अ जतियो मे जात बटलें अब केहके समझाई


अरे बिजली भइल महन्गा देख , सड़क मे अब मछलि पलाई
गरीब रोअता खून के आंशु बढअता महंगाई
की सुनत हई अब हिन्दू कहला से पेट भर जाई

अरे का भइल जो लईका आपन पढके घूमतारें
अरे कुछ ना करिहें त चौराहे पे पकौड़ी त बेचाइ

अब का बोली , का कही और केकरा के समझाइ
खोज अ कौनो और रास्ता जेसे देश सुधर जाई
नेता पे भरोसा नईखे कुलहि बाड़े मौसेरा भाई
राम के जे ना भइल उ जनता के का मुंह दिखलाई










meri muhabbat


मेरी मुहब्बत 


तेरी मासूम मुहब्बत पे दिल  है मेरा ठहरा सा
बहुत सोचा तुझे भुलूँ
पर इश्क़ है गहरा सा

मुहब्बत में जो दिल टूटा
तो आवाज नहीं होती
जो होता है वो कह नहीं सकता
उसकी कहीं फ़रियाद नहीं होती
हमें मालूम था एक दिन ऐसा भी आएगा
जो था खुदा मेरा
वही   तडपायेगा

चाहत है तू मेरी
तुझे कैसे भला भूलूँ
की जी करता है एक बार,  तुझे जरा  छू लूँ

तुझ बिन रात नहीं गुजरती
दिन भी काट खाता है
अब तेरे बिना मुझको
कोई और न भाता है

पारो है तू मेरी, मैं तेरा देवदास हूँ
तेरे बिना  देखो , कितना उदास हूँ
तू मेरी हो जाये , बता वो लकीर कहाँ खींचू
तू कहे तो मुहब्बत के बगिया को
अपने खून से सींचू

तेरी गुस्ताख़ मुहब्बत में दिल ये मेरा ठहरा सा
जाने कौन सी है बंदिशे
है तुझपे कौन पहरा सा

है पहचान नहीं तुझको मेरी मुहब्बत की
जाने कौन सी है दुनिया तेरी जरुरत  की
इन्तजार है तेरा, जब तक जिंदगानी है
यही मेरी  मुहब्बत की, छोटी सी कहानी है .........



इन्हे भी पढ़े - 

खामोश लब




ishq



इश्क़ 


इश्क़ के समंदर में डूबते  है  आशिक़ कई 

बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई 

इश्क़ के रोग  का इलाज नहीं 

फिर भी  इस रोग में  पड़ते है कई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना रांझे को हीर मिली, ना शीरी को मिला फरहाद 

इस इश्क़ - मुश्क़ के चक्कर  में ,ना जाने कितने हुए बर्बाद 
ना जाने कितने हुए बर्बाद ,  देखो फिर भी ना  छूटी आशिकी 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

जख्म  मिलता है, मिलती है देखो रुसवाई 

बैरी हो जाते है अपने , और जमाना हो जाता है हरजाई 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

ना  जाने कौन सी दिल्लगी होती है इस इश्क़ में 

जाने  मिलता है कैसा सुकून 
नजरे ढूंढती है दीदार - ए - मुहब्बत 
हम नासमझ क्या जाने , होता है क्या इश्क़ - ए - जूनून 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई

नैनो की भाषा है , इनायत है रब की 

दिल में चाहत है ,और है आशिकी
हँसते वे बहुत हैं,
हँसते वे बहुत हैं ,जिसे लगा ये रोग नहीं 
बोलो वाह भई वाह भई  वाह भई


इन्हे भी पढ़े  -  

तेरी मेरी कहानी 




indian rail a journey


भारतीय रेल एक सुहाना सफर 


शादियों के इस मौसम में यदि किसी ने भारतीय रेल का मजा न लिया हो तो मजा कुछ फीका हो जाता है। ऐसे ही एक शादी में मुझे लौटते समय भारतीय रेल की वो सुखद अनुभूति हुई जो अधिकांश भारतीय सालो से करते आ रहे है। 


यात्रा थी बनारस से गोरखपुर के बीच की बहुत ही छोटी सी और संक्षिप्त यात्रा।  सर्वप्रथम तो यह बता दूँ की यह वही बनारस है जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है और जहा की जनता उन्हें आज भी उनके किये वादो के लिए ढूंढ रही है पर उन्हें विदेश यात्राओं से फुर्सत हो तब वे देश की कुछ सुध ले सके खैर वे सुध क्या लेंगे जहाँ वे कहते है की वे वी आई पी कल्चर को नहीं मानते और गाड़ियों पर से बत्तिया हटा दी गई है वही एक बार उनके आगमन के समय मैं bhu कैंपस में ही था जहाँ सड़को पर बैरिकेटिंग के माध्यम से आम जनता की गाड़ियों को घंटो रोक दिया गया यहाँ तक की एम्बुलेंस सेवाओं को भी। इसलिए बनारसवासी 2019 के चुनावों का इन्तजार कर रहे है। ताकि कही वे दिखलाई दे। 


हा तो बनारस की सड़को पे कूदते फांदते (क्योंकि वहा  की कोई भी सड़क समतल नहीं ) हम पहुंचे मंडुआडीह स्टेशन ट्रेन थी मंडुआडीह - गोरखपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस चूँकि ट्रेन में चढ़ने से पहले टिकट लेना आवश्यक था इसलिए टिकट लेने खिड़की की और चल पड़े।

 वहा पहुंचा तो देखा की टिकट खिड़की से शुरू लाइन दीवार ख़त्म होने के बाद घूमकर u  आकार में लगी हुई थी सोचा जाना तो जरुरी है और दोपहर तक कोई ट्रेन भी नहीं है इसलिए हम भी लाइन में लग गए। अभी ट्रेन खुलने में एक घंटा का समय बाकि था सोचा टिकट मिल ही जाएगी। परन्तु लाइन थी जो खिसकने का नाम ही नहीं ले रही थी आगे देखा तो बगल से काफी महिलाये लगी हुई थी और पीछे उनके घर वाले कुछ ऐसे लोग भी थे जो खिड़की पे सीधे जाके  अपना रौब दिखाते हुए टिकट लेने की कोशिश कर रहे थे और हम पीछे वाले पीछे ही रह गए। खैर तभी सूचना मिली की ट्रेन चलने वाली है इस कारण कई लोग काउंटर छोड़ कर ट्रेन पकड़ने निकल लिए   अवसर देखकर हम भी  टिकट के लिए डटे  रहे  और   टिकट लेने में कामयाब रहे। 
indian railway
अब बारी थी ट्रेन के अंदर  घुसने की जिसपर  दरवाजे तक लटकने वालो की अच्छी संख्या थी  जुगाड़ पद्धति के द्वारा आपातकालीन खिड़की से ट्रेन में प्रवेश करने में  कामयाब हुए। अंदर का नजारा और मुर्गे के बाड़े में कोई विशेष अंतर नहीं था बाहर भी कई लोग ऐसे थे जिनसे अब सुपाड़ी न कूची जाये और वे दरवाजे पे बाहर की ओर अपनी जान जोखिम में डालकर  लटके हुए थे।   
   
कभी सोचता हूँ सरकार की मोटर साइकिल पर तीन सवारियों पर ओवरलोडिंग में   चालान काटती है  परन्तु इसका क्या। 

खैर ट्रेन अपने निर्धारित समय से प्रारम्भ स्थान से ही खुलने में दो घंटे ले लेती है। और लोग अंदर  राहत की सांस लेते है। वैसे राहत के नाम पर बस एक दुसरे के ऊपर चढ़े लोग स्टेशनो का नाम  बताने और पूछने  में मशगूल थे। आने वाले स्टेशनो पर ट्रेन के अंदर घुसने के लिए होने वाली  धक्कामुक्की और न घुस पाने  वाले बेबस चेहरे ही थे। बाकि बहुत से नज़ारे ऐसे थे जो सोचने पे मजबूर करते थे की क्या वाकई हमारी सरकार हमें इंसान समझती है या वोट देने वाले जानवर। 


इन्हे भी पढ़े - 

हम जातिवादी हो चुके है






  

इस माह की १० सबसे लोकप्रिय रचनायें

SPECIAL POST

uff ye berojgaari

उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari  कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमें...