lahu

 लहू 




लाल हूँ ,लहू हूँ , अछूत नहीं

lahuसड़को पर बहाते हो कभी आजमाते हो
खून हूँ , सुकून  हूँ ,ना बहुँ तो थम  जाते हो                       

बह जाऊ तो डर  जाते हो
बहाते हो तो क्या पाते हो
बहता हूँ पीढ़ी दर पीढ़ी
इसीलिए तो हर पीढ़ी को आजमाते  हो 

लाल हूँ , बवाल नहीं 
ये सबको क्यों नहीं बतलाते हो 
कभी तलवार से कभी बन्दूक से 
लाल के सिवा क्या पाते हो 

एक बून्द बनता हूँ कई लम्हो में एक ही लम्हे में मुझे बहा जाते हो 


हर नस्ल हर कौम में रंग लाल मेरा 
काश कभी आये ,वो भी सवेरा 
चली जाये जाति ,ना रहे तेरा मेरा 

सुर्ख लाल हूँ , सुर्खियों में रहता हूँ 
बंदिशे बहुत है, सबको सहता हूँ 
फिर भी हर बार, यही कहता हूँ 
बिना भेद के हर रगो में बहता हूँ 
लाल हूँ, लाल गुलाब की तरह
खुशबू  ए चमन की तरह
अमन से रहता हूँ 


लाल  हूँ  लहू  हूँ  अछूत  नहीं  .. ... .. .. 


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teri meri kahani

तेरी मेरी कहानी 




तेरी आवाज सुनकर मैं अब थोड़ा जी भी लेता हूँ 
की थोड़ा खा भी लेता हूँ ,थोड़ा पी भी लेता हूँ 

की आँखे थक गई थी ये, तेरा दीदार करने को 
की धड़कन रुक गई थी ये ,तेरा इन्तजार करने को 
मेरी खामोशियाँ अब तो, मेरी नजरे बताती है 
कभी तुझको बुलाती है, कभी मुझको सताती है 

मेरे साँसों में बसने वाले, एक बात  बताते जा 
की रह लेगा तू  मेरे बिन ,बस इतना समझाते जा 

कभी मै तेरा हो जाऊं, कभी तू मेरी बन जाये 
की एक दूजे में खो जाये, कभी वो दिन भी आ जाये 

जुदाई अब ये तुझसे ,सही जाये नहीं मुझसे 
की धड़कन कह रही हमसे, मर जायेंगे हम कसम से 

बंदिशे तोड़ के आ जा 
की तेरा आशिक बुलाता है 
गर रूठी हुई है तो , ये तुझको मनाता है 

बड़ी लम्बी  है ये जिंदगानी 
की बड़ी छोटी सी, अपनी कहानी 
की कहता है अब ये तुझसे, मेरी आँखों का ये पानी 
 राजा बन जाऊ मैं तेरा , बन जाये तू मेरी रानी 
की कहीं अधूरी न रह जाये, ये तेरी मेरी कहानी 


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commenting on castism

हम जातिवादी हो चुके है


आज सुबह ही मुझे एक काम से एक सरकारी विभाग मे जाना पड़ा क्लर्क ने कागज पे निगाह घुमाई और कहा अच्छा तो आप राय साहब है भई आपका काम तो पहले होना चाहिये और उसने मेरा काम जल्दी कर दिया बातचीत मे पता चला की वो भी मेरी जाति से ही सम्बंधित था . यह एक छोटा सा उदाहरण था जिसने बता दिया की जाति क्यों नही जाती .
उत्तर प्रदेश मे समाजवादी पार्टी की सरकार बनने पर पिछड़ी जाती की एक विशेष जाति को विशेष तौर पर लाभ पहुँचाया जाता है . यही कारण है की अन्य जातियों की सरकारी नौकरियो मे हालत उंट के मुंह मे जीरा जैसी हो चुकी थी फिलहाल वर्तमान सरकार तो आम आदमी के लिये विशेष तौर पर बी बी वाइ ( भिखारी बनाओ योजना) लेकर आई है इसके तहत नौकरियों की जांच के नाम पर 2-3 साल निकल जायेंगे फिर कुछ समय तक इस तरह की बातें आती रहेंगी की अमुक नौकरी निकलने वाली है सरकार उसमे बदलाव कर रही है इत्यादि .
कुल मिलाकर जनता को दिलासो के नाम पर बेवकूफ बनाने की परम्परा जारी रहेगी और जनता भी बेवकूफ बनती रहेगी क्योंकि वो जातिवादी हो चुकी है कभी सपा मे अपनी जाति देखकर तो कभी भाजपा और बसपा इत्यादि पार्टीयो मे अपनी जाति देखकर इनकी गलतियो को अनदेखा करती रहेगी .
क्या कभी सोचा है भारत जैसे इस विशाल देश मे पार्टियाँ जाति आधारित क्यों बनती है , क्योंकि हम जातिवादी है हम आपस मे एक दूसरी जातियों को शंका की दृष्टि से देखते है . कुछ तो राजनीति ने जातिवादी बना दिया कुछ हमारे समाज के ठेकेदारो ने अब तो आलम ये है की जातियों मे उच्च पदो पर आसीन लोगो ने अपनी – अपनी जातियों को आगे बढाने का ठेका सा ले रखा है .
कुछ तो करना पड़ेगा इस जाति का वर्ना आने वाली पीढियाँ नफरत और हिंसा के वातावरण के लिये हमे ही जिम्मेदार ठहरायेँगी . और हम दोष देते फिरेंगे इस राजनीति को जिसको इंसानियत का दुश्मन बनाने मे कहीं ना कहीं हम खुद दोषी है .
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bareli ka peda part - 5


bareli ka peda part - 5



बरेली का पेड़ा - 5 (hindi me)



विजय - जी मैडम 
त्रिशा - एक गुजारिश है आपसे 
विजय - बताइये 
त्रिशा - प्लीज आप मुझे मैडम ना कहे 
विजय - क्यों मैडम 
त्रिशा - देखा फिर मैडम 

विजय - नहीं मैडम वो बात ऐसी है की .... 
त्रिशा बीच में ही बात को काटते हुए 
- आपका मैडम कहना ऐसा लगता है जैसे मैं कोई बुढ़िया हो गई हूँ। 
विजय - ऐसी बात नहीं है मैडम 
त्रिशा - देखा फिर मैडम , अगर आपको लगता है की मैं बुड्ढी और खड़ूस हूँ तो आप मुझे मैडम कह सकते है। 
विजय - नहीं ऐसी बात नहीं है आप हमारी कम्पनी की मालकिन है इसीलिए मैं कहता था लेकिन अगर आप की यही इच्छा है तो ठीक है मैं आपको त्रिशा जी कहकर ही बुलाऊंगा। 
त्रिशा - अब हुई न सही बात 

विजय की नजरे झुक जाती है। 

त्रिशा  वेटर को बुलाती है और उसे टमाटर का सूप और गोभी के परांठे लाने को कहती है। 

विजय अचानक ही बोल उठता है - आपको कैसे पता की मुझे गोभी के परांठे पसंद है.
त्रिशा विजय की तरफ अचंभित नेत्रों से देखती है - अच्छा आपको भी गोभी के परांठे पसंद है मैंने तो अपनी पसंद का डिनर मंगवाया था। 

विजय मन ही मन ही मन सोचता है की इस लड़की को तो आज की लड़कियों की  तरह पिज्जा या अन्य विदेशी  व्यंजनों से लगाव होना चाहिए पर इसे तो शुद्ध देशी व्यंजन  ही पसंद है। 

विजय - जी बरेली में मां के हाथो के गोभी के परांठे मुझे हमेशा ही पसंद रहे है। 
त्रिशा - खुशनसीब है आप विजय जी जो आप की माँ आपके साथ है मैं तो बहुत छोटी थी तभी माँ का साथ छूट गया। पापा ने ही उनकी कमी पूरी करने की कोशिश की पर एक माँ की ममता तो एक माँ ही दे सकती है।कहते हुए त्रिशा भाउक हो उठती है। 

विजय त्रिशा को दुखी देख विषय बदलने की कोशिश करता है 

विजय - आप कभी बरेली आई है। 
त्रिशा - नहीं 
विजय - एक बार जरूर आइयेगा परांठे के साथ चिली पनीर भी मिलेंगे। 
त्रिशा  - अच्छा तो जनाब को ये भी पसंद है उसका भी ऑर्डर देते है माँ के हाथो का नहीं तो क्या। 
विजय - अरे त्रिशा जी मैं तो वैसे ही कह रहा था खामख्वाह आपको परेशान होने की जरुरत नहीं है। 
त्रिशा - इसमें परेशान होने की क्या बात है। कम से कम आपने अपनी पसंद तो बताई नहीं तो आप तो करेला खाने को भी तैयार थे। कहते हुए त्रिशा मुस्कुरा देती है और उसे देखकर विजय भी मुस्कुरा देता  है। 

त्रिशा बैरे को बुलाकर चिली पनीर का ऑर्डर भी दे देती है। 

बहुत दिनों बाद किताबो की गहराइयों से निकलकर त्रिशा किसी शख्स के साथ बातें कर रही थी उसे खुद नहीं पता था की जिंदगी और किताबों में कितना अंतर होता है। किताबें पढ़ना तो आसान होता है पर किसी शख्स का चेहरा पढ़ना सबसे मुश्किल। 

विजय का संकोची स्वभाव और मासूमियत  ने कही न कही अपना काम करना शुरू कर दिया था। त्रिशा भी अभी इस बात से अनजान थी। और विजय भी इससे बेखबर था। 


वेटर भोजन लेकर आता है और दोनों खाना शुरू करते है। 

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bareli ka peda part - 4

बरेली का पेड़ा  - 4 bareli ka peda in hindi



पूर्णिमा की वो रात जिसमे निकला था एक चाँद  विजय को आज भी है याद

ठण्ड की रातें वाकई बहुत सुहानी हो जाती है जब वो कही दूर वादियों में गुजरती है।  विजय पहली बार किसी आलिशान होटल में रात्रिभोज करने वाला था मुंबई में तो अक्सर सड़क किनारे लगने वाले ठेलो से ही उसका काम चल जाता था , यहीं आकर उसने पावभाजी का स्वाद लिया जिसे मुंबई जैसे शहर में गरीबो का भोजन कहा जाता है। बरेली में बने अपने घर के खाने की याद विजय को हमेशा ही आती थी , मां के हाथो के बने गोभी के परांठे और चिली पनीर की सब्जी विजय के पसंदीदा व्यंजन है। गोभी के परांठो का तो विजय इतना शौकीन था की गर्मी के दिनों में भी कही न कहीं से गोभी  ढूंढ लाया करता था।


त्रिशा तैयार होकर होटल के रेस्टोरेंट में पहुँचती है ,वहाँ विजय पहले से ही उसका इन्तजार कर रहा होता है .त्रिशा को देखते ही वह सन्न रह जाता है वजह आज त्रिशा  आसमान से उतरी  किसी परी सरीखी लग रही थी वैसे तो त्रिशा सादगी वाले ही वस्त्र जैसे सलवार सूट ही पहनती थी। परन्तु आज उसने साड़ी पहनी थी।
काले  रंग की साडी ऊपर से खुले बाल और बिना किसी मेकअप के साक्षात् सुंदरता की देवी लग रही थी , विजय तो  उसे देखते ही रह गया। 

त्रिशा - क्या मैनेजर साहब आप तो आज बहुत ही स्मार्ट लग रहे है। 
विजय (थोड़ा शर्माते हुए) - नहीं मैडम आप तो स्वयं  किसी राजकुमारी से  कम नहीं लग रही है.
त्रिशा (मुस्कुराते हुए )- अच्छा जी , तारीफ़ करना तो कोई आपसे सीखे। 

 अब विजय क्या बताता की वाकई त्रिशा कितनी खूबसूरत लग रही  थी। अगर वो उसकी मालकिन नहीं होती फिर तो वो उसकी खूबसूरती का विस्तार  से वर्णन करता ,परन्तु वो भी अपने  कद को पहचानता था इसीलिए उसने बात को वही विश्राम दिया। पर त्रिशा तो आज जैसे विजय को परेशान करने के मूड थी। 

त्रिशा - बताइये मैनेजर साहब क्या खाएंगे आप। 

विजय - जो आपकी मर्जी मैडम। 

त्रिशा - फिर तो आज हम करेले के सूप से शुरुआत करते है (ऐसा कहते हुए वो विजय का चेहरे  वाले भाव को देखने लगती है )
विजय - थोड़ा सकुचाते हुए कहता है "जी मैडम " 
विजय को करेले से सख्त नफरत थी  उसका मानना था की  करेले जैसी कड़वी चीज सब्जी कहलाने लायक भी  नहीं है।यही सोचते हुए की आज तो वो बुरी तरह फस गया उसका चेहरा किसी बच्चे की तरह लगने लगा था। उसके मासूम चेहरे पर आने वाले भावो को देखकर त्रिशा खिलखिला के हस पड़ती है। लेकिन वो अभी विजय को किसी तरह की राहत देने के मूड में नहीं थी। 

विजय - क्या हुआ मैडम 
त्रिशा (हँसते हुए )- कुछ नहीं विजय जी करेला तो मुझे पसंद नहीं है , वो तो मैंने आपके लिए मंगवाया है ,मैं टमाटर के सूप से ही काम चला लूंगी। 

अब तो विजय का मासूम चेहरा नारियल के छिलके की तरह उतर चुका था। बड़ी मुश्किल  अपने चेहरे के भावो को छुपाते हुए वह कहता है की। 

-  मैडम मैं सोच रहा था की मैं भी टमाटर के सूप से ही शुरुआत करू क्या है की ठंड के मौसम में मुझे करेला सूट नहीं करता। गर्मी की सब्जी गर्मी में ही खाई जाये तो सेहत के लिए अच्छा रहता है।  

त्रिशा को खेती किसानी के बारे में रत्ती भर भी जानकारी नहीं थी उसे नहीं पता था की करेला गर्मी के मौसम की सब्जी है। अपनी हार होती देख वो कहती है   -    ठीक है हम दोनों ही टमाटर का सूप मंगाते है। 
क्रमश :...... 

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the burning city

जलता शहर  - jalta shahar


ये तेरे शहर मे उठता धुंआ सा क्यो है
यहाँ हर शक्स को हुआ क्या है
बह रही है खून की नदियाँ यहाँ
जाने वो कहता खुद को खुदा कहा है

हर हाथ मे खंजर
और वो खौफनाक मंजर
दिलो को दिलो से जोड़े
ना जाने वो दुआ कहा है

ना तू हिन्दू ना में मुस्लिम
फर्क बता दे लहू मे जो
उन जालिमो का काफिला कहाँ है

सब खेल है सियासतदारो का
और उनके वफ़ादारो का
हम और तुम तो शतरंज के प्यादे है
अभी और खतरनाक उनके इरादे है

अभी तो शुरु हुआ खेल है देखो
आगे किस किस का होता मेल है देखो
गाँव से लेकर शहर तक दिलो मे पीर है देखो
कभी जाति कभी आरक्षण कभी मजहब और धर्म के चलते तीर है देखो

आज बहा लो खून है जितना चाहे
छीन लो सुकून तुम जितना
वही लहू निकलेगा एक दिन अश्क़ो से तुम्हारे
वही सुकून तुम भी चाहोगे
पर कोई ना होगा पास तुम्हारे
जब तक सियासतदारो को पहचानोगे
जब तक इस खेल को जानोगे .. जब तक इस खेल को जानोगे.

ये तेरे शहर मे उठता धुंआ सा क्यो है ..........



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बरेली का पेड़ा  - 3 bareli ka peda



कहते है की  इंसान की अच्छाई उसके कार्यो  से परिलक्षित होती है और अच्छे इंसानो मांग हर जगह रहती है। 
बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा भर पेट भोजन हो जाने के बाद विजय उसे लेकर अपने साथ बाहर निकलता है वह सोचने लगता है की अभी तो मैंने इसकी मदद कर दी परन्तु इनका प्रतिदिन का गुजारा कैसे होगा विजय को विचारमग्न देख त्रिशा उससे पूछ बैठती है :

त्रिशा - "क्या सोच रहे है मैनेजर साहब  "
विजय -जी  कुछ नहीं मैडम 
 त्रिशा ( बुजुर्ग की तरफ इशारा करके बोलती  है की)  -  मैं सोच रही थी क्यों न इनकी काबिलियत के अनुसार इनको अपनी कोल्हापुर वाली फ़ैक्ट्री में कुछ हल्का सा काम दे दिया जाये जिससे की इनके दैनिक दिनचर्या का काम पूरा हो सके। 

विजय जिस बात को लेकर चिंता कर रहा था उसका समाधान इतनी आसानी से मिल जायेगा उसने सोचा भी नहीं था।  उसने मैडम का शुक्रिया अदा किया और बुजुर्ग से इस सिलसिले में बात करने को मुखातिब हुआ बुजुर्ग भी उनकी बाते सुन रहा था और उसके मन में  कही न कही उन दोनों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी इसलिए वो उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गया। 

विजय  -  मैडम मुझे तो मालूम भी नहीं था की आपका ह्रदय इतना विशाल है सत्य ही है आप अठावले जी जैसे महान इंसान की संस्कारवान पुत्री है। 

त्रिशा - नहीं मैनेजर साहब, गुण तो आपके अंदर भरे हुए है मुझे लगा आप भी आज की पीढ़ी की तरह ही व्यावसायिक रुख अख्तियार करते होंगे परन्तु आप के अंदर मानवता जैसे गुणों का समावेश भी है ये आज जानने को मिला। 

विजय - नहीं मैडम मैं तो एक अदना सा इंसान हूँ जिसे आपके पिता जी ने तराश के इस काबिल बनाया की वो भी समाज के लिए कुछ कर सके। 

त्रिशा , विजय की शैली से काफी प्रभावित होती है और  फिर वापस गाड़ी में बैठकर सभी  सफर के लिए निकल पड़ते है  .
विजय सोचता है की विदेश में रहकर भी इस लड़की के अंदर भारतीय संस्कार इस कदर भरे  हुए है और एक वे लड़किया है जो भारत में रहकर भी विदेशी संस्कृति को अपनाने में विशेष रूचि दिखाती है। भारतीय संस्कृति आज भारत से निकलकर विदेशो तक में फ़ैल रही है और लोगो को एक सुव्यवस्थित जीवनशैली प्रदान कर रही है वही पाश्चात्य संस्कृति अपनों से ही अपनों को दूर करने में लगी है स्त्रियों के लिए परिवार का अर्थ स्वयं के पति तक रह गया है।  रिश्तो की डोर कही न कही टूट रही है  और नए स्वार्थवादी रिश्तो का जन्म हो रहा है। जिससे मनुष्य सबकुछ होने के बावजूद अंदर से खोखला होते जा रहा है। 

ठण्ड के मौसम में गाड़ी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ती है रास्ते में ही विजय बुजुर्ग से उनका नाम और पता पूछता है उसे ताज्जुब होता है ये जानकर की ये मामूली सा दिखने वाला आदमी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रह चुका है जिसके दोनों लड़को ने उसे घर से निकाल दिया और सारे पैसे तथा संपत्ति पर अपना अधिकार कर बैठे।सरकार की तरफ से मिलने वाली पेंशन भी अभी कार्यालयों के चक्कर काट रही है। अभी वह और कुछ जानता  तब तक त्रिशा उसे बहार का मनोहारी दृश्य देखने को कहती है  सूरज भी अब ढलने ही  वाला था  की  वे कोल्हापुर में प्रवेश करते है।  गाड़ी एक शानदार होटल में जाकर रूकती है  जहा पहले से ही सबके कमरे आरक्षित  रहते है।

ड्राइवर और भीकू सामान उतारते है और बाकि लोग रिसेप्शन की ओर आगे बढ़ते है।सबके कमरे तो आरक्षित थे सिवा उन बुजुर्ग के इसलिए विजय उनको अपने कमरे में साथ ले गया।त्रिशा रात में भोजन साथ में करने की बात कहकर अपने कमरे में विश्राम करने चली गई। क्योंकि अभी तो वो रात बाकि थी जहाँ से  कहानी एक नया मोड़ लेने वाली थी। 

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