modi bhakti

भक्त उसी के होते है जिसके कार्य महान होते है




एक होते  है प्रशंसक उसके बाद अनुयायी और सबसे बड़ा भक्त , भारतीय राजनीति मे शुरुआती दोनो प्रकार के लोग सदैव रहे है परंतु भक्त आजतक कोई राजनेता नही बना सका है . यह पहली बार है जब किसी नेता के अनुयायियो को भक्त कहा जाता है उसपर से अंधभक्त .


 कहा जाता है की भक्ति से ही शक्ति है यही कारण है की इन्ही भक्तो की भक्ति से प्राप्त शक्ति के कारण मोदी भारतीय राजनीति का वो चेहरा बन घुके है जिनपर लगने वाले आरोपो से उन्हे लाभ ही होता है . दशको बाद भारत को एक ऐसा नेता मिला जिसकी ईमानदारी पे किसी को कोई शक नही यह बात अलग है की पिछली सरकार अपने द्वारा किये गये भ्रष्टाचार का खामियाजा आजतक भुगत रही है और इस सरकार पर भी बेवजह आरोप लगाने से नही चुकती . 

लेकिन वो भूल जाती है की लोगो ने सरकार को भरपूर समर्थन दिया है और राज्यो मे होने वाले चुनाव यह बताते है की लोगो की भक्ति मे किसी तरह की कमी नही आई है . शासन के दौरान सुधार हेतु कुछ ऐसे निर्णय भी लेने पड़ते है जिनसे जनता मे नाराजगी उत्पन्न होती है इसी कारण कई राजनीतिक पार्टिया देश हित को त्याग कर वोट बैंक की राजनीति हेतु ऐसे निर्णय लेने से बचती है . मोजुदा सरकार ने इसकी परवाह ना करते हुए देशहित मे ऐसे अनेक निर्णय लिये जिनका लाभ भविष्य मे मिलना तय है परंतु इन्ही सब को लेकर विपक्ष द्वारा दुष्प्रचार की नीति जारी है .

 परंतु वे भी चाहे जितना प्रयास करले भक्तो के आगे सब विफल है . अगर उनमे काबिलियत है तो केवल अपने बिना लाभ वाले अनुयायी ही बनाकर दिखा दे भक्त तो दूर की बात है. फिलहाल विपक्ष भारतीय राजनीति मे खलनायक का वो चेहरा है जो हमे फिल्म नायक मे देखने को मिलता है जिसमे सारे विरोधी मिलकर भी एक नायक का कुछ नही कर पाते क्योंकि ये पब्लिक है ये सब जानती है .

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mahfil a dilli

महफ़िल ए दिल्ली  mahfil a dilli   



आज महफ़िल में तूफ़ान मचाते है हम 
चलो जरा दिल्ली घूम कर आते है हम 

रंग बदली है और बदली है फिजा भी देखो 
चारो तरफ धुंध ही धुंध  है और हवा भी  देखो

रंग बदला है देखो  आज उस दिल्ली का 
आप के हाथ में आज कमल है  देखो    

जहां मुमताज महल लाल किले  का जिक्र हुआ करता है 
पता नहीं  उस पर भी कब धब्ब्बा  लग जाये देखो 

दिल्ली ने तो दिल्ली वालो  को ही लूट लिया 
जनता भी उसमे पिसती  है देखो 

जिन्हे वोट देकर जिताया सभी ने 
आज उन्ही को अपने बयान पर माफ़ी मांगकर रोते देखो 

क्या कहे बड़े लोगों  की बातो को  
इनसे तो सच्चा गरीब का बच्चा है देखो 

जहाँ बड़े लोग लुटाते है देश का धन अपने स्वार्थ में 
देश के लिए जो मर - मिटे
उनके अपनों के दुखों को बांटकर तो देखो 

महलो में तो सजती रही है महफिले लाखो 
कभी गरीबखानो में भी महफिले जमा कर देखो 


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राजनीति पे कविता 

modi vs apposition

मोदी बनाम विपक्ष  modi banam wipaksh - 



लगभग साठ सालो तक देश की बागडोर संभालने वाली कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड रही है , कारण 2014 से चलने वाली मोदी लहर .

modi vs apposition मोदी लहर के चलने के अनेक कारणो की समीक्षा की जा सकती है लेकिन अगर कहा जाये वर्तमान मे मोदी लहर कमजोर पड़ी है तो क्या आप बता सकते है की किस पार्टी या नेता की लहर मजबूत हो रही है , क्या मोदी का मुकाबला करने की थोड़ी सी भी हैसियत उस विपक्ष मे है जिसका संवाद जनता से टूट चुका है . विपक्ष के पास जब - जब सत्ता मिली है उसने देश को सिर्फ और सिर्फ लूटने का ही कार्य किया है क्या विपक्ष की सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य और मोदी सरकार की सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य एक ही है  जवाब आपको भी पता है .


यही वजह है की पूरा विपक्ष एकजुट होकर भी मोदी का मुकाबला नही कर सकता क्योंकि विपक्ष की नीयत जनता अच्छी तरह जानती है . भारत जैसे विशाल देश मे लोगो की अपेक्षाये भी विशाल ही होती है और अपेक्षाओ पर निस्चित समय मे खरा उतारना  ईश्वर के बस की ही बात है. लेकिन उसकी शुरुआत करना और इस बात का भरोसा लोगो मे  होना की देश विकास की ओर अग्रसर है सरकार की किसी उपलब्धि से कम नही है . विश्‍व मंच पर भारत जिस तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराते जा रहा है  उसका श्रेय निश्‍चित  ही मोदी सरकार के खाते मे जायेगा .


नोटबंदी जैसे मुद्दे को विपक्ष ने भुनाने की कोशिश  की पर कभी इसका जिक्र नही किया की  कैसे जाली नोट और आतंकवाद की कमर तोड़ने मे इसने अहम योगदान निभाया  . नोटबंदी से भारत मे एक ऐसी व्यवस्था ने ज्न्म लिया जिसमे करो की चोरी करने वाले  लोगो के मन मे दहशत  पैदा हुई .


आधार कार्ड का सबसे अधिक विरोध वे लोग ही ज्यादा करते दिखे जिनकी अनेक बेनामी संपत्तियाँ उजागर होते जा रही है आजतक के भारतीय इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ जब किसी सरकार ने  राम रहीम जैसे ढोंगी बाबाओ को सालांखो  के पीछे पहुचाया  जिसकी कल्पना किसी अन्य सरकार मे नही की जा सकती . लालू जैसे चारा चोर को जिस सीबीआइ  ने  आजतक राहत दे रखी थी वही आज उसके सारे मामलो को अदालत से जल्द फैसला दिलवाने मे लगी हुई है . पाकिस्तान  मे मोदी की दहशत इसी से समझी  जा सकती है की आज वहा मोदी  का विरोध करके पार्टियाँ अपनी राजनीति की दुकान चलाती है .


उसी राजनीति की दुकान को चलाने के लिये आज सारा विपक्ष एकजुट है जो आज मोदी की वजह से बंद हो चुकी है . 2019 को पास आता देख विपक्ष द्वारा सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार का कार्य शुरु हो चुका है . और इसके लिये तमाम  तरह की तकनीको का भी भरपूर प्रयोग किया जा रहा है जिसमे हाल मे हुई फेसबूक और कैम्ब्रिज एनालिटिका द्वारा मिलकर  फेसबूक उपयोगकर्ताओ  की सूचनाओ  को चुराकर उनकी सौदेबाजी करना शामिल है .



वर्तमान भारतीय राजनीति मे कोई भी पार्टी  मोदी के दूर - दूर तक नही दिखाई देता विपक्ष चाहे जितना जोर लगा ले लेकिन जब तक मोदी स्वेच्छा से राजनीति का त्याग नही करते तब - तक भारतीय प्रधानमंत्री की कुर्सी की शोभा वे ही बढाएंगे .
   
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girgit ki bechaini

गिरगिट की बेचैनी  -girgit ki  bachaini 


मेर घर के छोटे से बगीचे मे पौधो के बीच अनेक गिरगिट है जो की पानी देते वक़्त या पौधे के पास जाने पर अचानक से प्रकट होते है तथा मुझे देखके भागने लगते है पौधो के बीच वे रंग बदलकर उन्ही मे घुलमिल जाते है .कल शाम को पौधो मे पानी देते वक़्त अचानक से एक गिरगिट बाहर निकल कर आया  तथा भागने की बजाय मुझे देखने लगा वह  कुछ व्यथित सा नजर आ रहा था , इतने दिन मेरे घर मे रहते हुए उसे पता चल गया था की मैं एक लेखक हूँ .इसलिये भागने की बजाय वो मुझसे कई सारे सवाल पूछने लगा .

girgit ki bechaini

  
उसका पहला प्रश्‍न अपनी पहचान को लेकर था उसको लग रहा था की जिस पहचान के कारण उसकी नस्ल संसार भर मे प्रसिद्ध है उसको उससे छीनने का प्रयास किया जा रहा है .
मैने अन्जान बनकर जानना चाहा की कौन उसकी पहचान छीन रहा है . वो भी बड़ा चतुर था उसने मेरी तरफ इशारा कर दिया .
मैने पूछा में उसकी पहचान कैसे छीन रहा हूँ . 
अब वो गंभीर मुद्रा मे आ गया - बोला तुम कौन हो 
 अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया आम आदमी  
गिरगिट - इसी आम आदमी का उदाहरण दे दे कर तुम्हारे जैसा एक इंसान आज खास आदमी बन गया .
न जाने कितने रंग बदले उसने पिछ्ले ही दिनो पढ़ा था उसने एक नया रंग खोज निकाला जिससे कीचड़ भी सॉफ हो जाता है .
क्या नाम था उसका ........ हाँ  माफीनामा , न जाने कितनो पे कीचड़ उछालने के बाद उसने इसका इस्तेमाल किया .
मैने भी उससे पूछ ही दिया - पर किसी से माफी मांगने मे क्या बुराई है .
गिरगिट - लो कर लो बात ऐसे तो हर कोई एक दूसरे पे कीचड़ उछालता रहे और तुम लोगो के चारो ओर दलदल ही दलदल हो जाये . क्या फिर तुम उसे माफीनामा से साफ कर पाओगे . बिल्कुल नही उसकी कीमत तो तुम्हे चुकानी पड़ेगी . कीचड़ उछालने से तुम्हारे हाथ भी गन्दे होंगे और सामने वाला भी तुम्हारी कुटाई को तैयार रहेगा . फिर चाहे कितना भी माफीनामा से सॉफ करते रहो ना तुम्हारा मैल सॉफ होगा ना उसका .
वो धीरे - धीरे अब अपने प्रमुख मुद्दे की ओर अग्रसर होने लगा था. 
गिरगिट - जबसे तुम आम आदमी राजनीति मे आ जाते हो पता नही ऐसा क्या हो जाता है की लोग तुम्हारी कसमो , वादो पर भी ऐतबार नही करते . कभी तुम केसरिया रंग लेकर किसी इलाके मे मांसाहार का विरोध करते हो. तो कभी किसी इलाके मे चुनाव जीतने के लिये उसे भी जायज ठहराते हो . यार इतनी तेजी से तो हम रंग नही बदल पाते जितनी तेजी से तुम लोगो की पार्टिया बदलवाते हो . अभी तक तुम्हारे नाम फेंकू , पप्पू  , जैसी कम उपाधिया थी जो अब हमसे हमारी पहचान छीनने मे लगे हो . 
हमारे रंग बदलने से तो किसी का नुकसान नही होता पर तुम्हारे रंग बदलने से कितने लोगो की उम्मीदे  टूटती है कुछ अंदाजा भी है तुम्हे , उस जनता के साथ - साथ  तुम मानवता के साथ भी   विश्वासघात करते हो . 
इतने रंग बदलते हो की तुम्हारा कोई रंग ही नही रह जाता . कुछ दिनो मे मुहावरो मे से हमारा नाम हटाकर लोग कहेंगे क्या नेताओ की तरह रंग बदल रहे हो . और हम एक विलुप्त प्राणी बनकर रह जायेंगे.  

अब में उसे कैसे समझाता जिस देश मे नेताओ द्वारा धर्म , रंग , शाकाहार - मांसाहार , वंदे मातरम , राष्ट्र - गान , तिरंगे तक का कापीराइट अपनी पार्टी के नाम करा लिया जाता है वहां  ये तो बहुत ही तुच्छ जीव है जिसने अगर ज्यादा विरोध किया तो उसका अस्तित्व ही संकट मे पड़  सकता है . 


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naari wyatha



नारी व्यथा -  गंभीर समस्या  naari wyatha ek gambhir samasya  


"अजी सुनते हो "  - शब्द कानो में पड़ते ही दिमाग में हलचल होने लगती है की पता नहीं अब कौन सी मुसीबत आने वाली है। वैसी  ही अनुभूति  " ब्रेकिंग न्यूज़" सुनते समय होती   है।
                                                                        
naari wyathaशादी के कुछ समय बाद कानो को ये नया स्वर सुहाना जरूर लगता है परन्तु कुछ समय व्यतीत हो जाने के बाद आने वाले खतरे की आशंका से मन ग्रसित हो उठता है.  अभी कुछ दिन पहले ही पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष जी  से हुई बातचीत में उन्होंने विषय से सम्बंधित गंभीरता का विस्तार से वर्णन किया था वे बताने लगे की कैसे - कैसे लोग अपनी समस्या लेकर उनके पास आते है , उनमे इसका कोई फर्क नहीं पड़ता की वे किस ओहदे पर है  घर पर वे सभी एक नितांत भय के वातावरण में जीवन व्यतीत कर रहे है। अभी कल ही एक प्रख्यात चिकित्सक अपनी समस्या लेकर आये थे की उनकी धर्मपत्नी जो की चिकित्सक नहीं है इतनी शंकालु प्रवृत्ति की महिला है जो की सदैव उनके साथ चिपकी रहती है यहाँ तक की रोगियों को देखते वक़्त भी उनके बगल में कुर्सी पर विराजमान रहती है इस कारण चिकित्सक महोदय की खिल्ली उड़नी  लाजमी है .   मैंने भी अध्यक्ष जी की चुटकी ली की उनमे इस तरह का संघ बनाने की हिम्मत तभी आई जब वे कुंवारे है वर्ना एक शादीशुदा पुरुष के ख्यालो में भी इस तरह के विचार नहीं आ सकते। मुझे चिकित्सक महोदय की धर्मपत्नी की तरह ही उन समाचार चैनलों का ध्यान आया जो अक्सर ही सेलिब्रिटीयो की निजी ज़िन्दगी में तांका - झांकि करते है। 

मेरे बगल के शर्मा जी उपजिलाधिकारी के पद पर आसीन है परन्तु घर में प्रवेश से पूर्व मेरे यंहा आकर इस बात की जानकारी अवश्य लेते है की आज उनकी श्रीमती जी की मनोदशा कैसी  है। उसके पश्चात पूरी तैयारी के साथ घर में प्रवेश करते है। अभी कल ही उनका शाम का भोजन मेरे ही घर पर हुआ था कारण जो उन्होंने बताया उसको सार्वजनिक करने में लोगो का प्रशासन पर से विश्वास उठ सकता है। 

घर में यदि आपकी धर्मपत्नी की सास है तब तो आपके लिए कुछ आस है क्योंकि युद्ध के मैदान में शत्रु का ध्यान दोनों ही तरफ लगा रहता है।  अगर किसी के पूर्वजन्मों में किये गए पुण्यस्वरूप एक सुशील धर्मपत्नी  मिलती है तो उनसे अनुरोध है की घर में टेलीविजन का प्रवेश वर्जित करदे नहीं तो पूर्वजन्मों का पुण्य कब टेलीविजन की धारा में प्रवाहित हो जायेगा आप की सोच से परे है। 

जबसे टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर सास - बहु प्रकार के धारावाहिको की टीआरपी में बढ़ोत्तरी हुई  है तबसे आम आदमी के घर की सुख शांति में बेतहाशा गिरावट दर्ज की गई है , क्योंकि सास भी कभी बहु थी जैसे धारावाहिको ने बहुओ के अंदर सास बनने की ऐसी जिज्ञासा जगाई की देखके लगता नहीं की कौन सास है और कौन बहु।  जितना  छल - प्रपंच इन धारावाहिको में दिखाया जाता है  उसकी कल्पना कभी आम आदमी भी नहीं कर सकता , परन्तु  हमारे और आपके घर की गृहणियों के लघु मन मष्तिस्क में संदेह रूपी ज्वार - भाटा अवश्य ही उठ जाता है जो की समुन्द्र मंथन के बाद ही शांत होता है जिसमे विष का प्याला शंकर जी की ही तरह हमेशा  ही हमें  गटकना  पड़ता है। 

निश्चित रूप से इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की वर्तमान समय में ये समस्या एक गंभीर रूप धारण करते जा रही है , महिला - मित्र से  जब इसका रूपांतरण पत्नी में होता  है तो इस समस्या की गंभीरता का पता  चलता है।  अनेक शोधार्थियों द्वारा इस क्षेत्र में शोधकार्य जारी है परन्तु अभी तक किसी भी नारी के मष्तिस्क का  १/१०  से ज्यादा हिस्सा नहीं पढ़ा जा सका है  . सरकार से अनुरोध है की देश की अन्य समस्याओ की तरफ इस पर भी ध्यान दिया जाये।  जिससे की प्रत्येक कार्यकारी पुरुष बिना भय और दुखी मन के अपने कार्य में अपनी क्षमता का १०० प्रतिशत योगदान दे सके जिससे देश के विकास का पहिया तेजी से आगे बढ़ते हुए संसार के अन्य देशो को पीछे छोड़ सके।   



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hindutw


हिंदुत्व का मतलब समझा दो मुझे  hindutw ka matlab samjha do mujhe 

hindutw

आज अगर में हिन्दुत्व की बात करू तो मुझे किसी न किसी पार्टी से जरूर जोड़कर देखा जायेगा चाहे मेरी बात सकारात्मक हो या नकारात्मक . दरअसल आज हर धर्म अपने राजनीतिक रंग मे रंग चुका है ऐसा इसलिये संभव हुआ है क्योकी धर्म ही एक ऐसा माध्यम है  जो व्यक्ति की आस्था और अटूट विश्‍वास से जुड़ा हुआ है  जिसके फलस्वरूप वो अपना कीमती वोट भी धर्म के नाम पे अनुचित रुख अख्तियार करनेवाली पार्टीयो को दे सकता है . यही कारण है की  राजनीतिक पार्टीयो ने समाज को बरगलाने के लिये सर्वप्रथम धर्म को हथियार बनाया है उसके बाद जाति को . एक और बड़ी चीज जो पहले से विद्यमान थी और जो हमारी रग- रग  मे बसती है उस देशभक्ति और भारत मां का भी कापीराइट करा लिया गया है , यानी की अब धर्म से लेकर देशभक्ति तक सब मे  राजनीति समाहित हो चुकी है .


इन सब के साथ साथ रंग भी राजनीति की चासनी मे डूब चुके है और अलग - अलग पार्टीयो ने इसपर भी अधिकार जमा लिया है .

आप सोच रहे होंगे की हिन्दुत्व की बात करने से पहले इतनी भूमिका क्यो ? तो बात सॉफ है की हम भी पाक सॉफ है और साथ मे एक सच्चे हिन्दू भी जो की मानवतावादी है , जिसका धर्म उसे उन्माद फैलाने को नही कहता जिसके धर्म ने भारत माता  का कापीराइट नही कराया है और इस देश पे उतना ही सबका हक है जितना की मेरा .  देशभक्त होने के लिये मुझे अब इन राजनीतिक पार्टीयो के प्रमाणपत्र की जरूरत नही जिनका खुद का कोई ईमान नही होता जो अपनी भारत माँ  का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक हित  के लिये करते है बल्कि इनसे बड़ा देश द्रोही तो कोई और नही हो सकता जो अपनी माँ  का सौदा करते है जो  उस मां का दामन उसके  ही सपूतो को आपस मे लड़वा कर  खून से लाल करते हो  .

हिदुत्व हमे ये शिक्षा नही देता की हम उसमे राजनीति का मिश्रण करे , जिस हिन्दू धर्म के संस्कार का हम पालन करते है , हम उसकी विशेषताओ और सम्पूर्ण समाज के कल्याण की भावना से प्रेरित होकर कहते है की हमे ऐसे धर्म पे गर्व है जो की हमे शिक्षा देता है की संसार के कल्याण हेतु यदि प्राणो का न्योछावर भी करना पड़े तो हम हर्ष के साथ  उसका त्याग करदे जैसे की महर्षि दधीचि ने किया था . नाकी धर्म के नाम पर अपने ही भाई  - बन्धुओ  से बैर रखे . हिन्दू धर्म मे ही वसुधैव - कुटुम्बकम की अवधारणा दी गई है और इसी हिन्दू धर्म मे हमे सभी धर्मो का आदर करना भी सिखाया गया है . लेकिन अब हम अपने धार्मिक ग्रंथो को कहा पढ़ते है अब तो हमे जैसा दिखाया जाता है वैसा देखते है और जैसा सिखाया जाता है वैसा सीखते  है . अब तो बस हम हिन्दुत्व पे इसलिये गर्व करते है की हम बहुसंख्यक है , हम सरकार बनाते है वास्तविक गर्व का कारण  तो हमे पता ही नही है नही तो कई लोग हिन्दू कहलाने के लायक भी नही है . 


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आप की कसम और आप का माफीनामा arvind kejriwal ka mafinama 

aap

बहुत दिन बाद भारतीय राजनीति में कुछ नया देखने को मिला , पहले तो अभिनेता राजनीति मे आते थे अब लोग राजनीति मे आने के बाद अभिनय करते है , इधर कुछ दिनो से तो भारतीय राजनीति मे अभिनय को लेकर भारी प्रतिस्पर्धा है और गिरगिट जैसे छोटे जीव के पास उतने रंग नही रह गये है जितने रंग राजनीति मे देखने को मिल रहे है . कुछ हद तक गलती आम जनता की भी है जो वास्तविकता और अभिनय मे अंतर नही कर पाती तभी तो अन्ना आन्दोलन मे राजनीति मे न आने की कसम खाने वाले अरविन्द केजरीवाल ने जब अपने बच्चो तक की कसमे खा ली तो जनता ने आँखमूंद कर विश्‍वास कर लिया.

इंडिया अगेन्स्ट करप्शन से शुरु हुई सेवा कब आम आदमी पार्टी मे बदल गई पता ही नही चला वहा भी हम उनकी राजनीति मे न आने की कसमो को भूल गये और 28 सीटे दे दी . इसी के साथ शुरु हुई बच्चो की कसमे की मर जायेंगे लेकिन कांग्रेस और भाजपा का साथ नही लेंगे , भगवान उनके बच्चो को अपने बाप की बुरी नीयत से बचाये लेकिन आखिर आप ने जिस कांग्रेस को पानी पी पी कर गरियाया था उसका साथ ले ही लिया . और जनता फिर एक बार आपके अभिनय की कायल हो गई अन्ना जैसे बुद्धजीवी ने भी आपके अभिनय की तारीफ बखूबी की .

आप की राजनीति शुरु ही आरोप लगाने से हुई आरोप ऐसे लगाये गये जैसा आजतक किसी ने सोचा न था जनता को कुछ नया देखने को मिला अब क्या कीजियेगा जनता को जब – जब कुछ नया या अलग हट कर अभिनय देखने को मिलता है तो वो उसकी ओर जरूर आकर्षित होती है और भूल जाती है की ये राजनीति है , तभी तो पहली बार किसी पार्टी के मुखिया ने उसी संसदीय क्षेत्र का चुनाव किया जहा से दूसरी पार्टी के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने का एलान किया . आप की इसी अदाकारी ने आपसे वो करवा दिया जहा अभिनय के दम पर काम नही चलता सिर्फ और सिर्फ सबूत काम आते है . मीडिया मे बने रहने की जिस आदत की वजह से आप शीला दीक्षित से लेकर कपिल सिब्बल तक के खिलाफ सबूत होने की बात करते थे वो सारे सबूत आपके दुबारा मुख्यमन्त्री बनते ही गायब हो जाते है . लेकिन आप भूल जाते है की जनता छोड़ सकती है लेकिन अदालत सबूत मांगती है जो आप दे न पाये और अपनी हार होते देखते आप ने वो कर दिया जिससे आपकी पार्टी ही शर्मसार हो जाये . आपका माफीनामा भारतीय राजनीति मे कुछ हटकर है और आप भी। 


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