social media vs news channel

सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल social media vs news channel


social media vs news channel
सोशल मीडिया 


जबसे फेसबुक ,व्हाट्सअप और इस जैसे अन्य अस्त्रों  का अवतरण हुआ है तबसे घर में मुंह बांधके बैठने वाले लोग भी अचानक से अपने विराट अवतार में मंच पे आने लगे है। बस कमाल  है कुछ उंगलियों का जो कीबोर्ड या टच स्क्रीन पे चलती है। पहले इंडिया - पाकिस्तान के मैच में टीवी गुस्सा उतरने का एक प्रमुख माध्यम हुआ करती थी। पर अब तो सोशल मीडिया पे ही वॉक युद्ध शुरू हो जाता है नित्य नए - नए शब्दों के अविष्कार होते रहता है जिनके प्रहार से विरोधी खेमे में तहलका मच जाता है।



social media vs news channel
न्यूज़ चैनल 


मुद्दा चाहे राजनीति का हो खेल का हो या समाज से जुड़ा हो सारी बातें आपको न्यूज़ चैनल से पहले सोशल मीडिया के माध्यम से मिल जाती है , हद तो तब हो जाती है जब परीक्षा से पहले प्रश्नपत्र तक आपके व्हाट्सअप पर आ जाता है। एक समय था जब सोशल मीडिया के खिलाड़ी समाज में किसी तरह की अफवाह फ़ैलाने में कामयाब हो जाते थे इसके लिए वे साल भर पुरानी खबर मसाला लगाकर नए रूप में परोसते थे  या किसी अन्य जगहों की तस्वीर या विडियो दिखाकर उनका गलत इस्तेमाल किया करते थे ऐसे में सोशल मीडिया की विश्वसनीयता संदेहास्पद हो जाती थी बदस्तूर इनका खेल अभी भी जारी है परन्तु सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता इन सारी बातो को अच्छे से समझने लगे है। अब इन पर वायरल खबर की पड़ताल करने के बाद ही उन पर विश्वास किया जाता है। इन खबरों की पड़ताल कई न्यूज़ चैनल भी करते है और अपने चैनल पे जासूसी जैसा धारावाहिक  बनाकर परोसते है। 

शायद ही कोई ऐसा घर या व्यक्ति हो जो सोशल मीडिया पे उपस्थित न हो। क्योंकि इस प्लेटफार्म पे उपस्थिति दर्ज न कराना  पिछड़ेपन की निशानी माना  जाता है ,इसी कारण  सारे न्यूज़ चैनल भी सोशल मीडिया पर उपस्थित है। कभी इनके कमेंट बॉक्स में जाके तो देखिये आपको सम्पूर्ण भारत की  विचारधारा की झलक मिल जाएगी ,और साथ में  कई उपयोगकर्ताओं के बीच चलने वाले वॉक युद्ध की झलक भी जिनमे कई ऐसे शब्द मिलेंगे जिनसे आप भी परिचित नहीं होंगे। 

न्यूज़ चैनल अक्सर खबरों को अपनी trp के अनुसार प्रबंधित करते है और इसके लिए वे किसी भी हद तक चले जाते है , एक ही खबर की अलग - अलग  न्यूज़ चैनलो पे  अलग - अलग व्याख्या की जाती है , जबकि  सोशल मीडिया में खबर  तो वही रहती है लेकिन उसपे आने वाले कमेंट अत्यंत ही रोचक होते है। अगर कोई खबर अच्छे तरीके से प्रस्तुत है तो उसको सराहना भी मिलती है , कभी कभी तो कोई खबर या वीडियो इतना पॉपुलर हो जाता है की उससे समबन्धित व्यक्ति अचानक से ही सुर्खियों में आ जाता है जिसकी उसे भी कोई उम्मीद नहीं रहती, तत्काल में वेलेंटाइन डे से पूर्व प्रिया  प्रकाश वारियर इसका सबसे बड़ा उदहारण है जो की पुरे देश का नेशनल क्रश बन गई थी। और उनके इंस्टाग्राम खाते में एक ही दिन में अनुयाईयों की संख्या छः लाख पहुंच गई  इस वजह से उनका कॅरियर अचानक से चमक उठा। 

कुल मिलकर सोशल मीडिया वर्तमान समय में आम आदमी की आवाज बनता जा रहा है और इसकी पहुँच और बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इससे लाभ लेने वालो की संख्या भी जो इसको अपने  अनुसार ढालने की कोशिश करते दिख जाते है। ऐसे लोगो में सबसे अधिक संख्या राजनीतिज्ञों की है क्योंकि न्यूज़ चैनेलो को तो वे अन्य तरीको से प्रबंधित कर लेते है और न्यूज़ चैनल व्यावसायिक होने के कारण अपना मूल धर्म सच वो भी पूरा सच को सामने लाने की बजाय उनसे होने वाले लाभ और हानि की समीक्षा करने के बाद ही उनका प्रसारण करते है जबकि सोशल मीडिया में आम आदमी भी अपनी बात और और किसी घटना को शेयर कर सकता है।


इसी कारण पहले जो राजनेता सोशल मीडिया को एक शसक्त माध्यम बताते थे वही सोशल मीडिया में अपने कार्यो की परिणीति के फलस्वरूप अपनी घटती लोकप्रियता और सोशल मीडिया पर  आम आदमी के तर्कों से परेशां  इसके दुरूपयोग की बात कर रहे है।  

इंटरनेट क्रांति और खास तौर पर डाटा के घटते दामों ने सोशल मीडिया को और बड़ा करने का काम किया है और इसपर आने वाली अनेक नई  तकनीक इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ा ही  रही है , वही व्यावसायिकता और गलत रिपोर्टिंग के कारण न्यूज़ चैनल इनका मुकाबला करने में कही से सक्षम नहीं दिखते। 

      
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न्यूज़  चैनलों पे होने वाली डिबेट  और उनकी प्रासंगिकता



subramanyam swami

सुब्रमण्यम स्वामी वन मैन आर्मी subramanyamswami one man army - 

subramanyam swami
स्वामी 



सुब्रमण्यम स्वामी भारतीय राजनीति का वो चेहरा है जो अपनी बात बेबाक तरीके से रखने और उन्हें सिद्ध करने के लिए  कोर्ट का दरवाजा खटखाना भी नहीं चूकते। यहाँ तक की उनकी अपनी पार्टी बीजेपी भी उनके सवालो से परेशान  हो जाती है और बगले झाकने लगती है। सरकार के शुरूआती दौर में ही उन्होंने अरुण जेटली को वित्त मंत्री बनाये जाने पर सवालिया निशान लगाए थे और एक वकील को इतने बड़े देश की अर्थव्यवस्था तहस - नहस  करने का कारण बताया था। उनके बाद यशवंत सिन्हा ने भी वित्त मंत्री की काबिलियत पर प्रश्न चिन्ह लगाए थे। जो की स्वामी  की बातो का समर्थन था। इसका एक कारण ये भी है की स्वामी खुद एक अर्थशास्त्री है , उन्होंने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है और  विश्व के  नामी अर्थशास्त्रियों के साथ शोध कार्य भी किया है।   हमने भी देखा की सरकार कैसे देश की अर्थव्यवस्था के नाम पर आम आदमी पर करो का बोझ बढाती जा रही है। और उसके कई फैसले गलत सिद्ध हुए है। स्वामी 1990  -  1991 तक भारत के वाणिज्य ,न्याय और विधि मंत्री रह चुके है और साथ में अंतराष्ट्रीय व्यापार आयोग के अध्यक्ष भी।


सुब्रमणयम  स्वामी के परेशां करने वाले सवालो से राहुल गाँधी भी अछूते नहीं रहे है पिछले साल उन्होंने राहुल गाँधी से उनकी जाति को लेकर ही सवाल पूछ लिया था की वे हिन्दू है या ईसाई , सुनंदा पुष्कर केस में उन्होंने शशि थरूर पर ही अपने बाण चला दिए थे। नेशनल हेराल्ड को लेकर स्वामी अभी भी सोनिया  गांधी के पीछे पड़े हुए है। 


स्वामी के पिता जी भारतीय सांख्यिकीय सेवा के अधिकारी थे और इसके निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे इसलिए स्वामी ने भी अर्थशास्त्र से अपनी पढाई शुरू की। स्वामी आईआईटी में प्रोफ़ेसर भी रह चुके है और अपनी विचारधारा के कारण इंदिरा गाँधी की आँखों की किरकिरी भी इंदिरा गाँधी के कारण ही उन्हें अपनी नौकरी गवानी  पड़ी और तभी से स्वामी राजनीति में सक्रिय भी हुए। आपातकाल के दौरान स्वामी अपनी गिरफ़्तारी के पूर्व ही भूमिगत हो गए थे।  उन्होंने उस दौरान भी निर्भीकता से संसद में पहुंच कर अपनी बात रखने का साहस दिखाया था जब कोई इंदिरा गाँधी के विषय में बात करने से भी कतराता था। 

वैसे तो स्वामी के विषय में पूरी जीवनी कही भी मिल जाएगी। पर जरुरी है स्वामी की विचारधारा और सच के प्रति उनकी निष्ठां और निडरता को समझने की । इसी विचारधारा को लेकर स्वामी ने अपनी पार्टी भी बनाई थी पर लोकसभा चुनावों से पूर्व उसे भारतीय जनता पार्टी में विलय करा दिया था जिससे की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक सर्वजनहितकारी सरकार का गठन हो सके। स्वामी आज भी उन मुद्दों पे खुलकर बोलते है जिनपे आम नेता बात करने से भी कतराते है। स्वामी की छवि कुछ हद तक हिंदुत्व वादी की भी है इसलिए रामसेतु से लेकर राम मंदिर के निर्माण में भी स्वामी का लगाव देखने को मिलता है। राम मंदिर के निर्माण को लेकर स्वामी बीजेपी से भी सवाल पूछते नजर आ जाते है ये स्वामी ही है जिन्हे वन मैन आर्मी का दर्जा दिया जा सकता है। इसलिए आजकी युवा पीढ़ी में भी स्वामी के चाहने वालो की अच्छी संख्या है। जो इस देश के राजनीति  और समाज में होने वाले घटनाक्रम पे अपनी बात रखने और उसको सही साबित करने के लिए प्रयासरत है। ताकि देश की भ्रष्ट और संवेदनहीन व्यवस्था को सुधारा जा सके।  


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chetna kavita

चेतना  (कविता )- chetna (poetry )


तू खड़ा है जहाँ  है देख वहां 
क्या जमीं है नीचे की आसमां है ऊपर 
तू है कहा जरा तू पता लगा  

तू सचेत नहीं तो अचेत क्यों 
है चेतना कहा जरा ढूंढ के ला 

भाग रहा जो ये वक़्त है 
कहता खुद को सशक्त है 
है धूल तू इसे चटा 
कदम तू अब बढ़ा 

सोच मत एक क्षण भी तू 
मिल जायेगा एक दिन उस कण में तू 

आँधिया है आ रही रोकने को तुझे 
चट्टान बन तू अब रोकने को उन्हें 

तू अंश है भगवान् का 
महान तू बन के दिखा 

छाया है अँधेरा इस संसार में 
हर तरफ मशाल तू जला 
कदम तू अब बढ़ा।  . . . . . . . . . . . . . 


                                                                       
chetna kavita
लेखक 

इन्हे भी पढ़े -तेरा जाना (कविता )

news channel debate

न्यूज़  चैनलों पे होने वाली डिबेट  और उनकी प्रासंगिकता news channelo pe hone wali debate  aur unki prasangikta-



इधर कुछ दिनों से समाचार चैनलों या मीडिया पर विभिन्न मुद्दों को लेकर होने वाली बहस जिसे डिबेट कहा जाता है  एक आम बात होती जा रही है। हम देख सकते है की किसी मुद्दे को लेकर विभिन्न पार्टियों , संगठन या उस मुद्दे से सरोकार रखने वाले किसी विशिष्ट व्यक्ति को चैनल के स्टूडियो में आमंत्रित किया जाता है और उनसे उस मुद्दे पर बहस करवाई जाती है।  

news channel debate
news channel debate 

अगर मुद्दा राजनीतिक हो तब आप देख सकते है की इन राजनीतिक दलों  द्वारा  होने वाली डिबेट कैसी होती है। कभी - कभी  तो मुझे लगता है की ये सारे डिबेट पूर्व प्रायोजित होते है यहाँ पूर्व प्रायोजित का मतलब है की डिबेट किस दिशा में ले जानी  है।  मैंने अक्सर देखा है की अगर न्यूज़ चैनल सत्ताधारी दल या किसी अन्य दल से जुड़ाव रखते है तो उनके सवाल ही ऐसे होते है जिनका जवाब सिर्फ विपक्ष के लिए नकारात्मक होता है वे विपक्षी दल के प्रवक्ता  को अपनी सवालो के जवाब में उलझा कर रख देते है इसीलिए राजनीतिक दल भी न्यूज़ चैनल की प्रतिष्ठा , एंकर और विपक्षी प्रवक्ता की काबिलियत  के अनुसार ही  अपने प्रवक्ताओं को भेजते है  ।

 चैनल भी चाहते है की डिबेट में शामिल व्यक्ति ऐसा हो जो की  उनके चैनल की  trp  बढ़ाने  में सहायक हो।  ये एंकर भी बड़े चतुर होते है पूरी डिबेट का रुख  अपने अनुसार मोड़ने में सक्षम होते है। इसके लिए विपक्षी प्रवक्ता को कम  समय देना उनकी बात पूरी होने से पहले अपना एक घुमावदार सवाल उनके सामने रख देना उनके आंकड़ों और तथ्यों के साथ अपने आंकड़ों और तथ्यों को बताना जिससे उनकी बात सही होते हुए भी उसकी दिशा बदल जाती है और यदि प्रवक्ता भी चालू हुआ और अपनी प्रभावशाली बात रखते चला गया जो उनके लिए हितकर नहीं है तो कुछ नहीं हुआ तो अंतिम अस्त्र बात को काटते हुए विज्ञापन चला देना। कुछ ऐसे दांव पेंच है जोकि मुझे लगता है की एक परिपक्व दर्शक वर्ग अब समझने लगा होगा।  लेकिन यदि  दर्शक की किसी दल या उसके नेता के प्रति  निष्ठां है तो उसको ये सारी डिबेट अपने अनुकूल या प्रतिकूल भी लग सकती है। अनुकूल लगने पर वो खुश होता है और प्रतिकूल लगने पर भी वह पूरी डिबेट को ध्यान से सुनता है जिसमे की वो कमियां निकाल  सके। ऐसे ही दर्शक वर्ग से मिलने वाली trp को ध्यान में रखकर ज्वलंत और  भावनात्मक मुद्दों पर  डिबेट कराई जाती है. जिसमे डिबेट में शामिल मुद्दे से शुरू हुई बहस की  नौबत तू - तू , मैं - मैं  और व्यक्तिगत मुद्दों तक आ जाती है। और असल मुद्दा कही गायब सा हो जाता है।   


अब बात आती है सामाजिक मुद्दों को लेकर होने वाली डिबेट की।  इन मुद्दों पर होने वाली डिबेट की तो हद ही हो जाती है बहस में ऐसे विचार निकल कर सामने आते है जो की कही से आम  सामाजिक  विचारधारा से मेल नहीं खाती  . और किसी न किसी बात पे नए मुद्दे को जन्म दे देती है.
मुझे लगता है की आने वाले दिन क्या वर्तमान समय में ही जनता का इन डिबेट से मोहभंग होते जा रहा है क्योंकि सारे चैनलो पर इस तरह की डिबेट आम होते जा रही है। एक ही प्रवक्ता कई चैनलो पर दर्शको का टाइम जाया करते हुए मिल जाते है. और इन डिबेटोँ  में सच कही पीछे रह जाता है  . 



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