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चाय और पकौड़ा 



शाम के समय एक मित्र के साथ में चाय – पकौड़े की पार्टी मे गया हुआ था, पार्टी एक रेस्टोरेन्ट मे थी जहा अन्य मित्र भी आये हुए थे . फरमाइश के अनुसार अलग अलग प्रकार के पकौडो का ऑर्डर हुआ , किसी को पनीर पसंद था तो किसी को प्याज के पकौड़े किसी को गोभी के पसंद थे तो किसी को पालक के . रेस्टोरेन्ट खचाखच भरा हुआ था . अनेक विदेशी सैलानी भी पकौडो को देखने और चखने आ रहे थे . वो रेस्टोरेन्ट वाले से मोदी के पकौड़े दिखाने की बात कर रहे थे उनकी बात चीत से लग रहा था की वी मोदी को पकौडो का ब्रांड अंबेसडर समझने लगे थे . वहा के एक वेटर ने बताया की जबसे मोदी जी ने पकौडो की बात की तबसे लोग उससे अलग अलग तरह के पकौड़े सीखने के लिये भीड़ लगने लगे . 


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पकौर स्टाल इन कर्नाटका 

मीडिया वाले उसकी आमदनी जानने मे ज्यादा इच्छुक हो गये थे . बाहर निकलने पर एक मित्र ने बताया की वो किसी अच्छे लोकशन की तलाश कर रहा है ताकि वो एक पकौड़े का स्टाल लगा सके . ठेले और स्टाल बनाने वालो के पास अचानक ही ग्राहको की भीड़ बढ गई . मुझे अब लगने लगा था की पकौड़े को एक राष्‍ट्रीय व्यंजन घोषित कर देना चाहिये सरकार को भी इसके स्टार्टअप पर सब्सिडी देना चाहिये . हर आफिस के बाहर वाटर प्रूफ पकौड़े के स्टाल बनाकर बेरोजगरो को देना चाहिये .

 में तो कहता हूँ इसमे भी आरक्षण लगा देना चाहिये , पनीर ब्रेड और मच्छी के पकौड़े केवल एससी वाले ही बनायेंगे जबकि गोभी और अन्य सब्जियो के पिछड़ी वाले , सामान्य वालो को केवल चाय बनाने को मिलेगा वो भी नीबू वाली . आइ आइ टी मे तो पकौड़े की मेकिंग को लेकर एक इंजीनियरिंग की डीग्री ही बना देनी चाहिये . बल्कि इसको कौशल विकास योजना मे भी शामिल करना चाहिये .आगे  बढ़ने पर कई आइ आइ एम के शोधार्थी पकौडो के स्टाल मे चटनी और पकौड़े के साथ अपना शोध ग्रंथ पूर्ण करने मे लगे हुए थे . मुझे लगता है की अब हमारे देश मे बेरोजगारी की समस्या जल्द ही खत्म होके रहेगी और भारत सम्पूर्ण विश्‍व मे पकौड़े को वैश्‍विक रोजगार के रूप मे स्थापित करने वाले देश के रूप मे जाना जायेगा . और मोदी उस देश के नेता …


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जाति क्यों नहीं जाती


ज़िन्दा थे तो बे बेनूर थे और मारके कोहिनूर बना दिया हुक्मराणो ने रायजी. . सब तो चले गये जहाँन से पर स्वर्ग मे दरबारियों ने जाति ना पुच्छी .


अंग्रेजो को जब लग गया की भारत मे रहना अब उनके बस की बात नही है और व़े अधिक दिनो तक अपना नियंत्रण नही बनाये रख सकते तो उन्होने सामरिक महत्व की इस धरती को बांटने का फैसला किया . भारत की जनता से बड़ा और ताकतवर विरोधी उसके सामने कोई नही था . उन्होने उसमे सेध लगाने के लिये अपने अधिकरिओ से रिपोर्ट मांगी उन्होने बताया की धर्म ही ऐसा एक मुद्दा है जो की भारतीय समाज की जडो मे गहराई तक विद्यमान है. यहाँ के लोग धर्म गुरुओ की बातों पर आंख मूंद कर विस्वास करते है . डाक्टरो से ज्यादा भीड़ ओझओ और सोखाओ के पास रहती है .


पर यहाँ जातियॉ मे कोई वैमनस्य नही है सबके कार्य क्षेत्र बंटे हुए है और सब अपना त्योहार मिलजुल कर मानते है . यहाँ दरगाहो पे हिन्दू और मुस्लिम दोनो ही सजदे मे सिर् झुकते है. एक दूसरे की शादियों से लेकर गांवो मे पड़ने वाले हर सामूहिक समारोहो मे भी भाग लेते है .


 अंगेरेजो ने अपना पूरा शोध करने के बाद पाया की केवल धर्म ही ऐसा मुद्दा है जिससे इनमे फुट डाला जा सकता है . उस समय संचार के साधन नही के बराबर होते थे. पत्रकारिता व्यापार ना होकर समाज सेवा का माध्यम थी जिसे अनुदान द्वारा संचालित किया जाता था . उस पर भी अंग्रेज़ी सरकार द्वारा कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये जाते थे. जिनसे समाचर पात्रो का चोरी – चुपके संचालन होता था . 

लोग भी शिक्षित नही होते थे गाँव मे कोई एक ही ऐसा आदमी होता था जो अखबार पढ पाता था इस करण सब लोग एक जगह इकट्ठा होकर समाचर सुना करते थे और उस पर चर्चा किया करते थे . ग़ुलाम भारत केवल अंग्रेजो का ग़ुलाम था ना की अपनी घृणित मानसिकता का . 


अग्रेजो ने भारतीयो की धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वासो का भरपूर फायदा उठाया और उनमे फुट डालने मे कामयाब हो गये जाते जाते उन्होने दुनिया मे अहिंसा के जनक गाँधी के भारत मे ऐसी हिंसा को जन्म दिया जिसने सम्पूर्ण मानवता को शर्मशार कर दिया . अंग्रेजो द्वारा बोयो गये इस बीज को भारतीय राजनेताओ ने अपने अपने तरीके से सींचा और उसकी अनेको नई प्रजातियाँ तैयार की किसी ने दलित का पौधा बनाया तो किसी ने सवर्ण का तो किसी ने पिछड़ी का ,

हिन्दू और मुसलमान का तो विशालकाय वृक्ष ही खड़ा कर दिया , और हम कहते है ” एक भारत अखंड भारत "


must read - .kanpur 

Pappu paas ho gaya


पप्पू पास हो गया - pappu paas ho gaya 



मैं  और पप्पू बचपन से ही एक साथ स्कूल मे  साथ - साथ पढ़ते आये थे , शुरुआत मे जब पप्पू चौथी कक्षा का विद्यार्थी था  तभी मैने  विद्यालय मे दाखिला लिया था . मेरे चौथी कक्षा मे आने तक पप्पू ने मेरा इंतजार बड़ी बेसब्री से किया था . हालांकि पप्पू के एक दो सब्जेक्ट को छोड़ कर बाकी सबमे 0 नंबर ही थे . पर पप्पू हार मानने
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वालो मे से नही था, हर बार कम नंबर आने के बाद वो कड़ी साधना मे जुट जाता था . पर  साधना करने के लिये उसे अपना घर उपुक्त नही लगता इसलिये वो अपने मामा के घर शिमला  या मौसी के पास  मसूरी चला जाता था. 

पप्पू जब लौट के वापस आता तो उसकी साधना उसके चेहरे से सॉफ झलकती थी , हाँ  तो मुझे याद है की जब मैं कक्षा चार मे पहुँचा तो सरकार की तरफ से एक नई शिक्षा नीति आ गई की आठवीं तक के किसी विद्यार्थी को फेल नही किया जायेगा, मैं बड़ा प्रसन्न हुआ , मुझे लगा की जरूर पप्पू की साधना का फल है जो भगवान के साथ सरकार ने भी सून ली .

अब तो में भी पप्पू का मुरीद हो गया और पप्पू के साथ अपनी घनिष्टता बढ़ा ली . पप्पू अपने लंच बॉक्स मे हमेशा मूली के परांठे और मिर्चे का आचार लाया करता था . वो कहता था की मिर्च से गला सॉफ होता है और मूली से पेट . अक्सर लंच के बाद पूरी कक्षा के विद्यार्थी अपने नाक पे रूमाल लगा लिया करते थे शायद कही से विषैली गैस का  रिसाव होने लगता .

आठवी कक्षा के बाद नौवी कक्षा मे अचानक से पप्पू के अंदर प्रवचन देने की प्रवित्ति उतपन्न हो गई मुझे लगा शायद मिर्चे ने पप्पू का गला कुछ ज्यादा ही सुरीला बना दिया था , कई बार क्लास की लड़कियां कन्फ्यूज हो जाती . पर पप्पू के प्रवचन मे आंकड़े अक्सर ही इधर से उधर हो जाया करते थे कभी अकबर  की रानी एलीजाबेथ हो जाती तो कभी पप्पू बाबर का युद्ध सम्राट अशोक से करा देता.

पर इन सबमे पप्पू का कोई दोष नही था सब गलती किताबो की ही थी जिनमे इतने रानी राजाओ का जिक्र था , इसी से खिसिया के एक बार तो पप्पू ने  किताब ही फाड़ दी  जबकि अगले दिन उसी विषय की परीक्षा थी .बेचारा पप्पू किताब की वजह से  फिर फेल हो गया और मैं पास होके अगली कक्षा मे पहुंच गया ,उसके बाद तो कभी - कभी ही पप्पू से मुलाकात हो पाती थी. पर पप्पू के चर्चे जरूर सुनने को मिलते थे , समय का पहिया चलते गया और  पढ़ाई पूरी करने के बाद  आम आदमी की तरह मैं भी  नौकरी मे लग गया. पर पप्पू ने उसी विद्यालय मे ही मन लगा लिया था .
इधर कुछ दिनो से पप्पू का ज़िक्र अचानक ही  बढ गया  था , कई लोगो ने बताया की पप्पू अपने अमेरिका वाले फूफा के यहाँ गया था वहा उन्होने अनेक विद्वान लोगो से उसकी मुलाकात कराई पप्पू से बहुत से प्रवचन दिलवाये जिससे पप्पू वहा अपना झंडा गाड़ के आया है. यहाँ आने पे पप्पू मे फिर से नई उर्जा झलकने लगी थी और इस बार पप्पू ने बिहार से फार्म भरकर हाइ स्कूल की  परीक्षा न केवल  पास कर ली  बल्कि पूरा बिहार ही  टॉप कर दिया . 
  
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Ab to achhe din dikhla do sarkar

अच्छे दिनों की आस में 


बड़ी मुश्किल से एक एक रुपया जोड़कर 4 जी मोबाइल के लिये पैसा जमा किया था मोदी सरकार ने वो भी तोड़ दिया , लगा क‍ि अच्छे दिन की तरह 4 जी मोबाइल के लिये अभी कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा , दिन भर टी वी पर सिर खपाने के बाद निष्कर्ष निकला क‍ि बजट कुछ समझ में नहीं आया , आखिर सरकार ने आम आदमी को राहत दिया है या हमेशा की तरह देश की जीडीपी की दुहाई देकर उसकी बैंड बजाई है।

 सरकार से निवेदन है क‍ि कभी कभी धरातल पे उतरके आम इंसानों की जिंदगी की जीडीपी भी समझ लिया करो। कभी कभी तो लगता है क‍ि सरकार, सरकार ना होकर एक फाइनेंशियल इन्स्टिट्यूट होकर रह गई है जिसका काम बस लोगों का खाता खुलवाने से लेकर बीमा करने तक रह गया है ए बिल्कुल वैसा ही है जैसे मुर्गी को दाना डालकर हलाल करना . गरीब आदमी जिसका मुफ्त मे खाता खुलवा कर सब्सिडी के कुछ पैसे डालकर फिर उन्ही पैसो को बैंक द्वारा मिनिमम बॅलेन्स के नाम पे काट लिया जाता है।

 ऐसा करके लगभग 1700 करोड़ रुपया बांको द्वारा गरीबो से वसूला गया. समझाने के लिये इतना ही काफी है गरीब को सब्सिडी का पैसा पाने के लिये बैंक मे खाता खुलवाना और उसे आधार से लिंक करना आवश्यक है ये उसकी मजबूरी है , अगर उसके पास मिनिमम बॅलेन्स इतना भी पैसा नही है तो क्यो नही उसका खाता बंद करके उसको पूर्व की भांती सब्सिडी जारी रखी जाये , और उससे भुगतान के समय ही राहत प्रदान की जाये . अगर उसके पास इतना ही पैसा रहता तो वो गरीब ही क्यो कहलाता . 

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हाँ तो आते है अब बजट पे तो इस बार सरकार कहा पीछे रहने वाली थी , बीमा दिया इन्होने…. किसानो को , स्वास्थ्य का भी बीमा दिया . पर उसके लिये तो बीमार पड़ना पड़ेगा इनके टर्म एंड कंडीशन मानने पडेंगे . सेस को बढ़ा दिया जिससे विभिन्न प्रकार की शिक्षा और स्वास्थ्य बिलों के दाम बढ़ेंगे समझ में नही आता एक देश एक टैक्स का नारा कहा गया . कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई . जेटली जी के विषय मे एक बात कहना चाहूंगा क्या वकालत के सिवा उन्हे अर्थशास्त्र मे भी महारत हासिल है .

 सुब्रमण्यम स्वामी ने शुरु मे ही इनकी काबलियत जग जाहिर कर दी थी पर अपनी राजनीतिक कुशलता से जनता द्वारा नकारे जाने के बाद भी इस देश के वित्तमंत्री है . मीडिया से भी अनुरोध है क‍ि वो केवल चुनाव के समय ही नही बल्कि अपनी दैनिक रिपोर्टिंग में सरकार की विभिन्न योजनाओं की जमीनी स्तर पे निष्पक्ष भाव से विवेचना करे . ताकि हम भी जान सकें क‍ि सरकार अपने चुनावी वादों में कितनी खरी उतरी है. फिलहाल इस आम बजट में कोई भी ऐसी चीज नहीं है जिससे आम जनता, और निचले तबके के लोग राहत महसूस कर सकें..


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uff ye berojgaari




उफ्फ ये बेरोजगारी  - uff ye berojgari



 कहते है खाली दिमाग शैतान का पर इस दिमाग में भरे क्या ? जबसे इंडिया में स्किल डिव्ल्पमेंट शुरू हुआ तबसे बेरोजगारी भी बढ़ना शुरू हो गई , पहले तो नौकरी के लिए सारे प्रयास कर लिए, एक से एक डिग्री ले ली। कई हजार के फॉर्म भर के परीक्षा दे आए कभी दो नंबर से चुके कभी चार से बसो और ट्रेनो पे लटक के गये लटकते टाइम कसम से ऐसी फीलिंग आई की इस बार नौकरी मिल के ही रहेगी पर पता नही क्यों रिज़ल्ट से ये फेल कीवर्ड नही हटा पाए।
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इसी चक्कर में पूरा भारत भ्रमण भी कर लिया। परीक्षा देते समय सारे नियमों का पालन भी किया, सुबह – सुबह उठकर काली गाय को ढूंढ़कर रोटी खिलाने से लेकर नित्य हनुमान चालीसा तक सब किया कई बार गाय की दुलत्ती भी खानी पड़ी। कई पंडितों को हाथ से लेकर कुंडली तक, सब दिखाया कभी कोई राहु काल बताता तो कभी कोई शनि की महादशा और हम इन्ही ग्रहों के चक्कर काटते रह जाते। 

कई लड़की वाले सुन्दर मुखड़ा देख के अनायस ही पूछ बैठते की” बेटा क्या कर रहे हो “कसम से इतना गुस्सा आता की कह देते “अंकल कलेक्टर “है। किसी ऑफिस वगैरह में यदि किसी काम से जाना भी पड़ता तो कोशिश करते की ना ही जाये क्योंकि वहा पे भी यही सवाल दागा जाता और उत्तर ना मे सुनने पर सामने वाले को ऐसा लगता जैसे हमसे बड़ा बेचारा कोई है ही नही. अब तो रिश्तेदारियो मे भी हमने जाना छोड़ दिया क्योंकि वहा तो इस सवाल के साथ उपदेश ज्यादा होता था इनके द्वारा अनेक ऐसे लडको का इज्जत के साथ उदाहरण दिया जाता जिन्हे अच्छी नौकरिया मिल चुकी है और लगता था जैसे हमारी कोई इज्जत ही नही है. 

कई समाज सुधारको द्वारा सूचना केन्द्र की तरह कोई भी फॉर्म निकलने पर तुरंत हमे इत्तेला किया जाता था वो भी पूरे नसीहत के साथ . अब कहा कहा हम इस गुस्से को कण्ट्रोल करते कही कही तो विस्फोट हो ही जाता था. कई सुभचिंतक हमपे दोष ना देकर व्यवस्था, सरकार और राजनीति पे दोष देने लगते . 

कभी कभी तो कसम से हमको भी सरकार पे बड़ा गुस्सा आता लगता जैसे इनके घर नही बसे वैसे ही ये नही चाहते की हम बेरोजगारो के भी घर बसे . आखिर हम भी क्या करे नौकरियो की हालत एक अनार सौ बीमार वाली जो हो गई है . दिन रात पढ़ते – पढ़ते तो अब किताबे भी नाराज हो गई है कहती है इतना घिसोगे तो पानीपत के मैदान से सारी सेना ही गायब हो जायेगी बस मैदान रह जायेगा .

 अब तो लगता है कही एक पकौड़े का ठेला ही लगा दे …

kasganj se kashmir

कासगंज से कश्मीर 


kashganj
हम भारत के लोग 

सड़क , खून , उपद्रव , हिन्दू , मुस्लिम, गाय ,तिरंगा जो शब्द आप को उचित लगे उसे अपने पास रख लीजिये उसके बारे मे सोचिये क्या पायेंगे आप ? बस एक मानसिक बीमारी जो की इन शब्दो द्वारा फैलाया जाता है, इसी मानसिक बीमारी ने कई घरो को बर्बाद कर दिया ,एक शारीरिक बीमारी से सबसे ज्यादा फायदा किसे होता है – डाक्टर को और दवा कम्पनियो को , वैसे ही इन मानसिक बिमारियो से लाभ होता है हमारे राजनेताओ को और हममे ये बीमारी क्यो फैलाई जाती है सिर्फ वोट पाने के लिये जिससे उनकी सत्ता बनी रही और वे राज करते रहे.

नुकसान हमेशा सिर्फ और सिर्फ हमारा है होता है, क्योंकि पुलिस मे भी हमारे ही भाई बहन है और सेना मे भी हमारे ही भाई उपद्रवी भी हमारे घर के गुमराह किये गये बच्चे है और वे टूटी हुई दुकाने और जलते हुए बस भी हमारे ही किसी अपने के है. महल मे रहने वाले तो वो है अपनी सुरक्षा मे सेना लेकर चलने वाले तो वो है और उनको सुरक्षा देने वाले हम ना की हमारी सुरक्षा करने वाले वो .


हम अपनी जान पे खेलके उनकी रक्षा करते है अपनी भारत मां की रक्षा करते है , और बदले मे ये अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये हमारा इस्तेमाल खिलौने की तरह करते रहते है. हमारा खून पानी की तरह सडको पे बहता है और शायद हम अब एक शतरंज के प्यादे की तरह रह गये है ना हमे कश्मीर मे शान्ती से रहने को मिलता है ना कासगंज मे , कभी कश्मीर जलता है तो कभी कोई और प्रदेश.

                                                                                                     raijee

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राजनीतिक प्रबंधन

Indian budget



भारतीय बजट  पूर्व  समीक्षा 

Indian budget

वर्तमान समय में आज के दिन हमारे वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा भारतीय बजट पेश किया जा रहा है। 
बजट पेश करने से पहले ही केंद्र में स्थापित बीजेपी सरकार द्वारा बजट में आम जनता को विशेष राहत ना देने की बात कही गई है सरकार द्वारा पहले ही रोना इस बात का संकेत है की बजट में आम जनता को विशेष राहत नहीं मिलने वाली है। वित्तीय घाटे का बढ़ना और 2019 में होने वाले चुनावों के मद्देनजर एक संतुलित बजट की उम्मीद  की जा सकती है। 


crowd of unemployment
बेरोजगारों की भीड़ 

 सवाल होगा देश में बढ़ती बेरोजगारी का जो की सरकार  ने हर साल दो करोड़ नौकरियों का वादा किया था लेकिन दो लाख नौकरिया भी नहीं दे पाई जिस कारण देश में दिन प्रतिदिन बेरोजगारों की फौज खड़ी  होते जा रही है। मौजूदा समय में भारत में 1.86  करोड़ लोग बेरोजगार है तथा 2018 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.5 प्रतिशत है।  जो की चिंताजनक है। 




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बारिश की आस लगाए किसान 

सवाल होगा कृषि छेत्र का जहा सरकार ने किसानो को आय दुगनी करने का वादा  किया था  पर किसान आत्महत्या करने को मजबूर है आंकड़े बताते है की भारत में हर साल 10000 किसान आत्महत्या करते है। बढ़ती लगत दर और ग्रामीण अंचल में फैली साहुकारी  इनकी आत्महत्या की प्रमुख वजह है।  क्या सरकार जमीनी स्तर पर बजट में इसके लिए कोई प्रावधान कर सकती है। 


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मध्यम वर्ग 
सवाल होगा उस मध्यम वर्ग का जो की दिन प्रतिदिन महंगाई की मार से तनाव में जी रही है लेकिन फिर भी सरकार के प्रति उसकी श्रद्धा नोटबंदी से लेकर जी एस टी  तक बरक़रार रही है। कर में छूट की सीमा जो की वर्तमान में 2.5 लाख है में सरकार बढ़ोत्तरी करती है या नहीं। पेट्रोल और डीजल के दामों को  जी एस टी से  बाहर रखना सरकार की मंशा पे सवाल खड़ा करता है। 

फिलहाल आज पेश होने वाले बजट से हम बस उम्मीद कर सकते है की सरकार कारपोरेट के अलावा  देश के निचले और मध्यम तबके के लोगो की दुश्वारियां कम  करे जो की उसका काम है न की देश हित के नाम  पे जनता को भावनात्मक  रूप से ब्लैकमेल करते हुए नए करो का बोझ थोपे।    
बजट के बाद हम फिर बजट की अनेक बारीकियों पे चर्चा करेंगे। 

वित्तमंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट -   http://www.finmin.nic.in/

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