statue of unity


स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - सरदार पटेल की मूर्ति 


भारत में बनने वाली सरदार पटेल की इस 182 मीटर लम्बी विशालकाय प्रतिमा को बनाने की जिम्मेदारी लार्सन एन्ड ट्रूबो नामक कंपनी को दी गई है। नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए इस योजना की शुरुआत की गई थी। तथा देश भर के किसानो से लोहा भी माँगा गया था। मूर्ति का एक हिस्सा कांसे का है जिसका निर्माण चीन के एक कारखाने टीक्यू आर्ट फैक्ट्री में हुआ है। इसके अलावा भी अन्य सामग्री चीन से मंगवाई जा रही है।
statue of unity

भारत जैसे देश में जहाँ आबादी का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे रहने को मजबूर है , यहाँ तक की अधिसंख्य परिवारों को दो जून की रोटी भी नहीं नसीब हो पाती है , उस देश में इस तरह की परियोजनाएं अपने ही देश की गरीबी का मजाक उड़ाती है। मेरा मानना है की जब तक देश में एक भी इंसान गरीबी रेखा के नीचे है तब तक हम उसी देश के करदाताओं काएक भी पैसा अपनी राजशाही और राजनीतिक स्वार्थ के लिए खर्च नहीं कर सकते। ऊपर से आप एक ओर मेक इन इंडिया की बाते करते है और दूसरी तरफ मेड इन चाइना के माल से सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे महान शख्शियत की मूर्ति सुसज्जित करवाते है। जिसपे आप सोचते है की हम भारतीयों को गर्व की अनुभूति हो, तो हमें अनुभूति तो होती है लेकिन गर्व की नहीं, शर्म की। अगर हम अन्य देशो की तुलना करते हुए उनसे ऊँची मूर्ति लगा रहे है तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए की उनमे से अधिकांश विकसित देश है।

मूर्ति में लगने वाली रकम जो की लगभग 3000 करोड़ के करीब है सोच के इस देश के नीति नियंताओ की मंशा पे संदेह होता है। दूसरी तरफ क्या हाड़ - मांस के बने इंसान खाली पेट इस मूर्ति के दर्शन पाकर तृप्त हो सकेंगे। भारत का करदाता अपना कर ख़ुशी - ख़ुशी इसलिए देता है की उसका देश तरक्की कर सके उसके देश के गरीब भाई - बहनो के लिए चलने वाली योजनाए सुचारु रूप से जारी रह सके नाकि चाइना के माल से मूर्तियां  खड़ी हो सके।

विश्व स्तर पर भारत को बस विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति के ख़िताब से नवाजे जाने के सिवा कुछ और नहीं हासिल होने वाला और घरेलु स्तर पर लम्बे समय तक चलने वाला एक राजनीतिक मुद्दा।


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